विद्यार्थी और राजनीति पर निबंध | Essay on Students and Politics in Hindi
विद्यार्थी और राजनीति पर निबंध | Essay on Students and Politics in Hindi!
विद्यार्थी जीवन मानव जीवन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण समय होता है । इस काल में विद्यार्थी जिन विषयों का अध्ययन करता है अथवा जिन नैतिक मूल्यों को वह आत्मसात् करता है वही जीवन मूल्य उसके भविष्य निर्माण का आधार बनते हैं ।
पुस्तकों के अध्ययन से उसे ज्ञान की प्राप्ति होती है परंतु इसके अतिरिक्त अनेक बाह्य कारक भी उसकी जीवन-प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं । विभिन्न प्रकार के आर्थिक, राजनैतिक व धार्मिक परिवेश उसके जीवन पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभाव डालते हैं । विद्यार्थी जीवन में प्राप्त अनुभव व ज्ञान ही आगे चलकर उसके व्यक्तित्व के निर्माण हेतु प्रमुख कारक का रूप लेते हैं ।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है । अत: जहाँ वह निवास करता है उसके अस-पास होने वाली घटनाओं के प्रभाव से वह स्वयं को अलग नहीं रख सकता है । उस राष्ट्र की राजनीतिक, धार्मिक व आर्थिक परिस्थितियाँ उसके जीवन पर प्रभाव डालती हैं । सामान्य तौर पर लोगों की यह धारणा है कि विद्यार्थी जीवन में राजनीति का समावेश नहीं होना चाहिए ।
प्राचीन काल में यह विषय केवल राज परिवारों तक ही सीमित हुआ करता था । राजनीति विषय की शिक्षा केवल राज दरवार के सदस्यों तक ही सीमित थी परंतु समय के साथ इसके स्वरूप में परिवर्तन अया है । अब यह किसी वर्ग विशेष तक सीमित नहीं रह गया है । अब कोई भी विद्यार्थी चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या संप्रदाय का हो इस विषय को प्रमुख विषय के रूप में ले सकता है ।
स्वतंत्रता के पश्चात् विगत पाँच दशकों में देश की राजनीति के स्वरूप में अत्यधिक परिवर्तन देखने को मिला है । आज राजनीति स्वार्थी लोगों से भरी पड़ी है । ऐसे लोग अपने स्वार्थ को ही सर्वोपरि मानते हैं, देश की सुरक्षा व सम्मान उनकी प्राथमिकता नहीं होती है । विभिन्न अपराधों में लिप्त लोग भी आज देश के महत्वपूर्ण पदों पर आसीन हैं ।
ADVERTISEMENTS:
भारतीय नागरिक होने के कारण हमारा यह दायित्व बनता है कि हम देश की राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण को रोकें । विद्यार्थियों को यदि राजनीति के मूल सिद्धांतों की जानकारी होगी, तभी वे देश के नागरिक होने का कर्तव्य भली-भाँति निभा सकते हैं । गाँधी जी एक कुशल राजनीतिज्ञ थे, हालाँकि वे साथ-साथ एक संत और समाज-सुधारक भी थे । आज के विद्यार्थियों को उनके जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए।
राजनीति में अपराधी तत्वों के समावेश को रोकने के लिए यह आवश्यक है कि हम विद्यार्थी जीवन से ही छात्रों को राजनीति की शिक्षा प्रदान करें । शिक्षकों का यह दायित्व बनता है कि वह छात्रों को वास्तविक राजनीतिक परिस्थितियों से अवगत कराएँ ताकि वे बड़े होकर सही तथा गलत की पहचान कर सकें । सभी विद्यार्थियों का यह कर्तव्य बनता है कि वह राष्ट्रहित को ही सर्वोपरि समझें ।
यदि वे 18 वर्ष से अधिक आयु के हैं तो अपने मताधिकार का प्रयोग बड़ी ही सावधानी व विवेक से करें तथा अपने आस-पास के समस्त लोगों को भी सही व योग्य व्यक्ति को ही अपना मत देने हेतु प्रेरित करें । विद्यार्थी स्वयं अपने मतों के मूल्य को समझें तथा दूसरों को भी इसकी महत्ता बताएँ, जिससे राष्ट्र के शासन की बागडोर गलत हाथों में न पड़ने पाए ।
विद्यार्थियों को अपनी शिक्षा प्राप्ति के दौरान ऐसी राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने से बचना चाहिए जिनसे उनकी सामूहिक शिक्षा बाधित हो । आज के चतुर राजनीतिज्ञ अपनी स्वार्थ सिद्धि हेतु विद्यार्थियों को मोहरा बनाते हैं । उन्हें तोड़-फोड़ तथा अन्य हिंसात्मक गतिविधियों के लिए उकसाया जाता है । परिणामस्वरूप विद्यार्थियों का अमूल्य समय नष्ट हो जाता है ।
महाविद्यालयों की छात्र राजनीति में प्रवेश करने का अर्थ इतना है कि सभी छात्र लोकतंत्र की मूल भावना को समझें तथा साथ-साथ राजनीति के उच्च मापदंडों को आत्मसात् कर आवश्यकता पड़े तो राजनीति में प्रवेश लेकर राष्ट्र निर्माण की ओर कदम उठाएँ । छात्र हमारे समाज के युवा वर्गों का सही अर्थों में तभी प्रतिनिधित्व कर सकते हैं जब वे योग्यता संपन्न और चरित्रवान् हों ।
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छात्र और राजनीति पर निबंध
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प्रस्तावना - विद्या और राजनीति - राजनीति का वर्तमान परिदृश्य - छात्र जीवन में राजनीति - राजनीति का अध्ययन क्यों आवश्यक है - उपसंहार।
छात्र की जीवन-वृत्ति इस पर निर्भर करती है कि वह विद्यालय में क्या पढ़ता है। छात्र अपनी रुचि के अनुसार विषयों का चयन करते हैं। जो राजनीतिज्ञ बनना चाहते हैं, वे शुरू से ही राजनीति में रुचि लेते हैं। वे विद्यालय एवं महाविद्यालय के चुनावों में हिस्सा लेते हैं। छात्र और राजनीति का संबंध बहुत पुराना रहा है।
विद्या और राजनीति सहोदरा हैं। दोनों का पृथक रहना कठिन है। दोनों: के स्वभाव भिन हैं, किन्तु लक्ष्य एक है : व्यक्ति और समाज को अधिकाधिक सुख पहुँचाना। विद्या नैतिक नियमों का वरण करती है, अत: उसमें सरलता हैं, विजय है तथा बल है, जबकि राजनीति में दर्प है, और है बाह्य शक्ति। भारतीय-संस्कृति के ऐतिहासिक पृष्ठों को पलटें, तो पता लगेगा कि विद्या ने राजनीति को स्नेह प्रदान किया है और प्रतिदान में राजनीति ने शिक्षा को समुचित आदर दिया है, जिसका संचालन राजनीतिक नेताओं द्वारा होता है।
संसार का इतिहास इस बात का साक्षी है कि जब भी किसी राष्ट्र में क्रांति का बिगुल बजा, तो वहाँ के छात्र द्रष्टा मात्र नहीं रहे, अपितु उन्होंने क्रांति के बागडोर संभाली। परतंत्रता काल में स्वातंत्र्य के लिए और वर्तमान काल में भ्रष्टाचारी सरकारों के उन्मूलन के लिए भारत में छात्र शक्ति ने अग्रसर होकर क्रांति का आह्वान किया। इंडोनेशिया और ईरान में छात्रों ने सरकार का तख्ता ही उलट दिया था। यूनान की शासन नीति में परिवर्तन का श्रेय छात्र वर्ग को ही है। बंगलादेश को अस्तित्व में लाने में ढाका विश्वविद्यालय के छात्रों का योगदान भुलाया नहीं जा सकता। असम के मुख्यमंत्री तो विद्यार्थी रहते ही मुख्यमंत्री बने थे।
बहुत-से छात्रों ने अपना अध्ययन छोड़ा और स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। उनका त्याग सराहा गया। परंतु, अब परिदृश्य बदल चुका है। अब हमारी राजनीतिक व्यवस्था में ज्यादातर स्वार्थी नेता हैं। उनका एकमात्र प्रयोजन अपनी आवश्यकताओं एवं इच्छाओं को पूरा करना होता है। वे शायद ही राष्ट्र की परवाह करते हैं। ऐसे नेताओं ने हमारे छात्रों का भी उपयोग करना शुरू कर दिया है।
मेधावी छात्र राजनीति को किसी उपयोग का नहीं समझते। जो पढ़ाई में अच्छे नहीं होते, वे राजनीति से जुड़ जाते हैं। ऐसे छात्र बहुत-सी समस्याएँ उत्पन्न कर देते हैं। वे अपनी पढ़ाई से भागते हैं और अन्य छात्रों एवं शिक्षकों को परेशान करते हैं। वे हड़ताल पर चले जाते हैं। वे सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाते हैं। उन्हें स्वार्थी नेताओं द्वारा समर्थन किया जाता है। ये नेता युवाओं और छात्रों की शक्ति का दुरुपयोग करते हैं। ऐसे नेताओं से प्रभावित होकर वे गलतियाँ कर बैठते हैं।
छात्र को पढाई खत्म करने के बाद भी जीवन के चौराहे पर किंकर्तव्य-विमूढ़ (परेशान) खड़ा होना पड़ता है। नौकरी उसे मिलती नहीं, हाथ की कारीगरी से वह अनभिज्ञ है। भूखा पेट रोटी माँगता है। वह देखता है, राजनीतिज्ञ बनकर समाज में आदर, सम्मान, प्रतिष्ठा और धन प्राप्त करना सरल है, किन्तु नौकरी पाना कठिन है। ईमानदारी से रोजी कमाना पर्वत के उच्च-शिखर पर चढ़ना है तो वह राजनीति में कूद पड़ता है। आज कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में छात्र-संघों के चुनाव होते हैं, जो कि संसद् के चुनाव से कम महत्त्वपूर्ण और अल्पव्ययी नहीं हैं विद्यालयों में संसद् और राज्य विधान-सभाओं का अनुकरण कराया जाता है।
हमारे देश को युवा और ईमानदार नेताओं की जरूरत है। हमलोग भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी, घोटाले, हड़ताल आदि-जैसी समस्याओं का सामना कर रहे हैं। इन सबसे निपटने के लिए हमलोगों को योग्य शासकों की आवश्यकता है। अन्य विषयों की तरह विद्यालयों और महाविद्यालयों में राजनीति भी पढ़ाई जानी चाहिए। लेकिन, ऐसी राजनीति निश्चय ही राष्ट्र-हित में होनी चाहिए। इसीलिए समाज को भ्रष्टाचार और अंधविश्वास से मुक्त करने के लिए राजनीति का अध्ययन करना आवश्यक हैं।
यदि छात्रों को राजनीति के वास्तविक प्रयोजन से अवगत कराया जाए, तो वे इसके प्रति एक सकारात्मक रवैया विकसित करेंगे। यह स्वस्थ मनोवृत्ति योग्य नेताओं का सृजन करेगी। तभी हमारे पास देश के लिए अच्छे प्रशासक होंगे। दलगत और फरेबी राजनीति के अखाड़ेबाजों को यह समझना होगा कि शिक्षक एवं छात्र भ्रष्टाचार, सामन्तशाही, आडम्बर, विलासिता आदि को समाजवाद की संज्ञा नहीं देंगे और राजनीति के नाम पर समाज विरोधी तत्त्वों द्वारा शिक्षा की छेड-छाड़ बर्दाश्त नहीं करेंगे। इस प्रकार शिक्षा में राजनीति का हस्तक्षेप समाप्त होने पर ही भारत का छात्र व्यावहारिक राजनीति के दर्शन का पण्डित बन पथ-प्रदर्शक, सूत्रधार, क्रान्त-दर्शी और समाज का उन्नायक बन सकेगा। अतः छात्र और राजनीति के संबंध को पुनर्जीवन की आवश्यकता है।
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Students And Politics Essay In Hindi विद्यार्थी और राजनीति पर निबन्ध
Students And Politics Essay In Hindi/Students and Politics Hindi Essay
(Students And Politics Essay In Hindi)
विद्यार्थी और राजनीति पर निबन्ध .
100 , 200 , 300 , 500 , 600
विद्यार्थी और राजनीति पर निबन्ध
प्रस्तावना –
“ विद्यार्थी” शब्द का अर्थ है-विद्या प्राप्त करने वाला। विद्या जीवन का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण अंग है। जो व्यक्ति विद्या प्राप्त करता है, विद्यार्थी कहलाता है। विद्यार्थी-जीवन मनुष्य के जीवन का निर्माणकाल होता है। ‘राजनीति से अभिप्राय है-राजकाज चलाने की नीति। विद्यार्थी” शब्द का अर्थ है-विद्या प्राप्त करने वाला। विद्या जीवन का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण अंग है।
जो व्यक्ति विद्या प्राप्त करता है, विद्यार्थी कहलाता है। विद्यार्थी-जीवन मनुष्य के जीवन का निर्माणकाल होता है। ‘राजनीति से अभिप्राय है-राजकाज चलाने की नीति। यद्यपि प्राचीनकाल में राजनीति का क्षेत्र केवल शासकों, लेखकों, दार्शनिकों तक ही सीमित था, किन्तु वर्तमानकाल में यह काफ़ी विस्तृत हो गया है। अब इसमें शासन की प्रत्येक गतिविधि को जानने का अधिकार सर्वसाधारण को भी दिया गया है।
विद्यार्थी-जीवन ब्रह्मचर्य आश्रम का ही दूसरा नाम है। विद्यार्थी विद्या का अर्थी (चाहने वाला) होता है। वह अपने इस जीवन में ज्ञान-भण्डार का विकास करता है। वह साहित्य, कला, इतिहास, गणित, मनोविज्ञान और चिकित्सा-विज्ञान आदि सभी प्रकार के विषयों का अध्ययन करता है, उन्हीं विषयों में राजनीति भी एक महत्त्वपूर्ण विषय है।
विद्यार्थी और राजनीति –
आज का युग प्रजातंत्र का युग है। आज राजनीति जीवन के अधिकांश भाग को व्याप्त किए हुए हैं। आज विद्यार्थी राजनीति विषय लेकर उसका गहन अध्ययन करते हैं। उन्हें राजनितिक घटनाओं का विश्लेषण तथा तत्त्वों की गति-विधि तथा परिणामों का ज्ञान होना आवश्यक है।
विद्यार्थी जीवन –
विद्यार्थी जीवन मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ कल है। इस समय का सदुपयोग करके मनुष्य अपने जीवन को सुखदायक बनाने में सफल प्रयत्न कर सकता है। इस समय विद्यार्थी पर भोजन, वस्त्रादि की चिन्ता का कोई भार नहीं होता है। उनका मन और मस्तिष्क निर्विकार होता है। इस समय उसके शरीर और मस्तिष्क की सभी शक्तियाँ विकासोन्मुखी होती है। इस स्वर्ण काल में उसके लिए केवल एक ही कार्य होता है और वह है सम्पूर्ण प्रवृत्तियों और शक्तियों को विद्या के अर्जन की ओर लगाना।
विद्यार्थियों का राजनीति में भाग लेना उचित या अनुचित –
अब प्रश्न यह उठता है कि विद्यार्थी को राजनीति में क्रियात्मक भाग लेना चाहिए या नहीं। समाज का एक वर्ग ऐसा है जिसके विचार से विद्यार्थी को राजनीति में भाग नहीं लेना चाहिए। छात्र को अर्जुन के समान चिड़िया के नेत्र रूपी विद्या को ही लक्ष्य बनाना चाहिए। उसे प्रतिक्षण ज्ञानार्जन की ही धुन होनी चाहिए। राजनीति रूपी डायन के पल्ले पड़कर जीवन इस प्रकार बर्बाद हो जाता है, जैसे कँटीली झाड़ियों के बीच में खड़े हुए केले के पत्ते जर्जर हो जाते हैं।
विद्यार्थी-काल भावना-प्रधान होता है। उस समय गतिविधियों का नियंत्रण मस्तिष्क नहीं करता, वरन उनका मन करता है। विद्यार्थी की राजनीति तो विद्याभ्यास ही है और विद्यालय ही उसका वर्तमान कार्य-क्षेत्र है। छात्रों को सक्रिय राजनीति से दूर रह कर ही विषय के रूप में राजनीति का ज्ञान कराया जा सकता है। ये कोमल मति छात्र कुम्हड़बतियाँ (कोमल फल) हैं, इन्हें राजनीति तर्जनी नहीं दिखानी चाहिए। विद्यार्थी पक्षी के छोटे बच्चे के समान होते हैं। इन्हें राजनीति के उन्मुक्त आकाश में उड़ने का प्रयत्न बाज के भय से नहीं करना चाहिए। विद्यार्थी को प्रारम्भ से ही राजनीति सीखने का अर्थ है कि गाय के बछड़े को जन्म लेते ही हल में जोत देना।
अन्न के अंकुरों का ही आटा पीसने का प्रयत्न कौन मुर्ख करेगा। राजनीति का कुछ सक्रिय ज्ञान महाविद्यालय के छात्रों के लिए अपेक्षित हो सकता है। परन्तु वह भी सीमित मात्रा में ही होना चाहिए; अन्यथा विश्व-विद्यालयों के छात्रों के काण्ड क्या इस राजनीति के द्वारा नहीं होते ? कुछ ऐसी परिस्थितियाँ हो सकती है, जिनमें विद्यार्थियों का राजनीति में भाग लेना उचित ही नहीं, अपितु आवश्यक भी हो जाता है।
सर्वप्रथम जब देश पर कोई बाहरी आक्रमण होता है, तब देश की स्वतंत्रता खतरे में होती है। जब राष्ट्रीय गौरव एवं स्वाभिमान खतरे में होता है, देश के नागरिकों, महिलाओं एवं बच्चों का साधारण जीवन कठिन हो जाता है। उन्हें पशुवत जीवन व्यतीत करने के लिए बिवस होना पड़ता है। ऐसे कठिन समय में स्नातकों को भी अपने दायित्व को निभाते हुए साहस का प्रदर्शन करना चाहिए। बड़े-बूढ़ों को राजनीति में दूरदर्शिता अवश्य होती है; लेकिन राजनितिक क्रान्ति युवा वर्ग ही उत्पन्न कर सकता है। ये दोनों ही अपने-अपने स्थान पर महत्त्वपूर्ण सक्रिय तथ्य प्रस्तुत करते हैं। इसलिए विद्यार्थी को समय पड़ने पर राजनीति में सीमित रूप से भाग लेना चाहिए, अन्यथा उसे सक्रिय राजनीति से दूर रहना चाहिए।
राजनीति में भाग लेने से लाभ या हानि –
राजनीति में भाग लेने से विद्यार्थी-वर्ग को अनेक लाभ हैं। राजनीति सम्बन्धी ज्ञान रखने वाला विद्यार्थी अपने जीवन के लिए उचित मार्ग चुनने में समर्थ हो सकता है। वह देश की आर्थिक, औद्योगिक एवं सामाजिक उन्नति में सहायक सिद्ध हो सकता है। अच्छी राजनीति का ज्ञान रखने वाला विद्यार्थी आगे चलकर स्वयं भी एक अच्छा नेता बन सकता है तथा समाज में अच्छे नेताओं का चयन के लिए जनमत को जागरूक करता है। इस प्रकार राजनीति उसे दूसरे देशों की अच्छाइयाँ भी बतलाती है, जिसको अपने संविधान में लागू करके लाभ उठाया जा सकता है।
जहाँ विद्यार्थी-वर्ग को राजनीति में भाग लेने से लाभ है, वहां हानियाँ भी हैं। जब विद्यार्थी राजनीतिक कार्यों को ही अपना मुख्य उद्देश्य समझ लेता है, तो वह अपने अध्ययन के प्रति उदासीन हो जाता है। जब विद्यार्थी राजनीति में भाग लेने लगता है, तो उसका जीवन-क्रम बिगड़ जाता है। वह पथ-भ्रष्ट होकर दिनाशोन्मुख हो जाता है। उसके अंदर विद्रोह की भावनाएँ भर जाती हैं। फिर वह समाज के प्रत्येक प्राणी, यहाँ तक कि गुरुजनों से भी, झगड़ बैठता है। जहाँ गुरुओं में उसकी आस्था समाप्त हुई, वहीं उसे किसी भी विषय का पूर्ण ज्ञान नहीं प्राप्त हो सकता।
उपसंहार –
विद्यार्थी और राजनीति आज एक सिक्के के दो पहलुओं की तरह हैं, इनको एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता। यदि छात्रों को भविष्य में राष्ट्र को नेतृत्व करना है, तो उन्हें राजनीति में प्रवेश करने से पूर्व अपनी क्षमताओं का विकास करना चाहिए। जीवन के साफल्य के लिए बौद्धिक राजनीतिक सचेतना का विकास विद्यार्थी को अपने अंदर करना चाहिए। उसे राजनीति में सक्रीय भाग नहीं लेना चाहिए; परन्तु अवसर पड़ने पर अपने देश की रक्षार्थ प्राणों की बाजी तक लगा देना चाहिए।
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विद्यार्थी और राजनीति पर निबंध | Essay on Student and Politics in Hindi
इस निबंध के अन्य शीर्षक ―
- राजनीति में छात्रों की सहभागिता
- राजनीति में युवकों की भूमिका
रुपरेखा ―
प्रस्तावना, विद्यार्थी जीवन का उद्देश्य, विद्यार्थी और राजनीति, आज का विद्यार्थी, उपसंहार.
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विद्यार्थी एवं राजनीति पर निबंध | Essay On Student and Politics In Hindi
विद्यार्थी एवं राजनीति पर निबंध.
प्रस्तावना- राजनीति जीवन का एक मुख्य अंग है , जिससे कोई भी व्यक्ति अछूता नहीं है , फिर विद्यार्थी इस क्षेत्र से कैसे वंचित रह सकता है। किन्तु आज राजनीति का रूप पूर्णतया परिवर्तित हो चुका है। आज राजनीति को भ्रष्टाचार , स्वार्थपरता , जातिवाद एवं भाई-भतीजावाद ने दूषित कर रखा है। देश के भावी नागरिक अर्थात् विद्यार्थी को क्या राजनीति में प्रवेश करना चाहिए अथवा इससे दूर ही रहना चाहिए , यह एक चर्चा का विषय है।
विपक्षी विचारधारा- जो लोग राजनीति में विद्यार्थियों को भाग लेने के विरोध में है , उनका यह तर्क है कि आज राजनीति एक अखाड़ा बन चुका है , जहाँ केवल एक दूसरे को मात देने की कोशिश ही की जाती है। आज अलग-अलग दल अथवा गुट बन रहे हैं तथा उनके मध्य शत्रुता पैदा हो रही हो , जिससे विद्यार्थियों के मन की शान्ति भंग होती है और उनका मन अध्ययन से विमुख हो जाता है। अधिकांश राजनीतिक दल विद्यार्थियों का प्रयोग अपने स्वार्थ के लिए करते हैं। नेता लोग विद्यार्थियों में फूट डालकर उन्हें हड़ताल , तोड़-फोड़ , हिंसा आदि करने के लिए भड़काते हैं। विद्यार्थी मन तो अपरिपक्व होता है , उन्हें जैसा चाहे वैसा करने के लिए उकसा दिया जाता है। विद्यालयों के अधिकतर अध्यापक भी दलगत राजनीति से प्रेरित होते हैं , इसलिए वे भी छात्रों को शिक्षा देने के स्थान पर अपनी शक्ति का विस्तार करने के लिए विद्यार्थियों का गलत एवं अनुचित प्रयोग करते हैं।
आज राजनीति में धन का विशेष महत्त्व हो गया है। धनी परिवारों के बच्चे जल्दी ही राजनीति में आ जाते हैं और इसी कारण आज विद्यालयों एवं कॉलेजों में हड़तालें एवं तालेबन्दी होती रहती हैं।
इसके विरोधी लोगों का यह भी मत है कि नेताओं के इशारे पर विद्यार्थी कॉलेजों में अपनी अनुचित माँगे पूरी करवाने के लिए संगठित होकर कार्य करते हैं। छात्र संगठन एक शक्ति है , अतः प्रत्येक दल का नेता विद्यार्थियों का ही सहारा लेकर आगे बढ़ता है। राजनीति में प्रवेश का सबसे बड़ा नुकसान विद्यार्थी को यह होता है कि वह स्वयं को बहुत शक्तिशाली समझने लगता है तथा पढ़ाई की ओर ध्यान न देकर ‘ दादागिरी ’ करने में अपना समय नष्ट करता है।
पक्ष में तर्क- ऐसा नहीं है कि राजनीति में प्रवेश करने पर विद्यार्थी को केवल हानियाँ ही होती है। इसके पक्ष में कई लोग अपने तर्क भी प्रस्तुत करते हैं। विद्यार्थी राजनीति में प्रवेश करके अपने जीवन का एक सुयोग्य मार्ग चुन लेता है। वह राष्ट्र की आर्थिक , सामाजिक एवं औद्योगिक प्रगति में सहायक सिद्ध होती है। राजनीति का ज्ञान होने पर वह आगे जाकर एक सफल नेता बन जाता है।
इसके पक्ष में जो लोग अपना तर्क प्रस्तुत करते हैं , उनका मानना है कि शिक्षा का उद्देश्य केवल साक्षर बनना ही नहीं होना चाहिए , वरन् विद्यार्थी के व्यक्तित्व का सम्पूर्ण विकास होना चाहिए। राजनीति उसको इस बात से अवगत कराती है कि उसके देश में , आस-पास तथा विश्व में भी क्या चल रहा है। राजनीति में भाग लेने से विद्यार्थी के व्यक्तित्व का चहुँमुंखी विकास होता है। भीरू , किताबी कीड़ा , शर्मीला बनने के स्थान पर वह अग्रगामी , जागरुक तथा आत्मविश्वासी बनता है तथा जीवन की मुश्किलों का सामना करना भी सीख जाता है।
विद्यार्थी को जीवन के प्रजातान्त्रिक रूप का ज्ञान प्राप्त होता है। वह अपने अधिकार तथा कर्त्तव्य समझने लगता है। विद्यार्थी में राष्ट्रभक्ति की भावना पैदा होती है तथा उसे इस बात का ज्ञान होता है कि देश में कितनी दरिद्रता , अज्ञानता तथा पिछड़ापन है। वह एक अच्छा वक्ता बन जाता है तथा निर्माणाधीन नेता के रूप में उसमें साहस , उद्देश्य के प्रति निष्ठा , सेवा भाव , आत्म-अनुशासन आदि गुणों का विकास होता है।
विद्यार्थी काल जीवन का रचनात्मक समय होता है , जिसमें जितना अधिक ज्ञान अर्जित कर लिया जाए , उतना ही अच्छा है। यदि हम अपने महान नेताओं के जीवन का अध्ययन करें तो हम देखेंगे कि उनमें से अधिकांश ने विद्यार्थी जीवन में भी राजनीति में सक्रिय भाग लिया था। इसलिए विद्यार्थी को अपनी रुचि के अनुसार राजनीति में भाग लेना चाहिए , किसी के दबाव या आकर्षण में फँसकर नहीं। यदि उसे राजनीति में दिलचस्पी है तो अपने आपको सक्रिय रूप से राजनीति से न जोड़कर पढ़ाई पर अधिक ध्यान देना चाहिए क्योंकि राजनीति में तो बाद में भी आया जा सकता है किन्तु पढ़ाई एक निश्चित आयु में ही रुचिकर लगती है। आयु बीत जाने पर शिक्षा में मन नहीं लगता।
उपसंहार- निष्कर्ष रूप में हम यह कह सकते हैं कि सभी गतिविधियाँ अच्छी हैं , बशर्ते उन्हें यथोचित सीमाओं के भीतर रहकर पूर्ण किया जाए। विद्यार्थियों को अपने अध्ययन पर समुचित ध्यान देते हुए अपने आस-पास की दुनिया के बारे में भी जागरुक रहना चाहिए तथा अध्ययन के पश्चात् परिपक्व आयु में ही राजनीति में प्रवेश करना चाहिए। जिससे वह अपनी आजीविका भली-भाँति कमा सके तथा देश को भी एक कुशल नागरिक एवं राजनीतिज्ञ प्राप्त हो सके।
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