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भारत में लोकतंत्र पर निबंध (Democracy in India Essay in Hindi)

भारत में लोकतंत्र

भारत को विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के रुप में जाना जाता है, जिस पर सदियों तक विभिन्न राजाओं, सम्राटों तथा यूरोपीय साम्राज्यवादीयों द्वारा शासन किया गया। भारत 1947 में अपनी आजादी के बाद एक लोकतांत्रिक राष्ट्र बन गया था। उसके बाद भारत के नागरिकों को वोट देने और अपने नेताओं का चुनाव करने का अधिकार मिला। भारत क्षेत्रफल के हिसाब से दुनियां का सातवां सबसे बड़ा देश और आबादी के हिसाब से दूसरा सबसे बड़ा देश है, इन्हीं कारणों से भारत को विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के रुप में भी जाना जाता है। 1947 में देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत के लोकतांत्रिक सरकार का गठन हुआ था। हमारे देश में केंद्र और राज्य सरकार का चुनाव करने के लिए हर 5 साल में संसदीय और राज्य विधानसभा चुनाव आयोजित किए जाते हैं।

भारत में लोकतंत्र पर बड़े तथा छोटे निबंध (Long and Short Essay on Democracy in India in Hindi, Bharat me Loktantra par Nibandh Hindi mein)

भारत में लोकतंत्र पर निबंध – 1 (250 300 शब्द) – loktantra par nibandh.

भारत की शासन प्रणाली लोकतांत्रिक है। यहाँ भारत की जनता अपना मुखिया स्वयं चुनती है। भारत में प्रत्येक नागरिक को वोट देने और उनकी जाति, रंग, पंथ, धर्म या लिंग के बावजूद अपनी इच्छा से अपने नेताओं का चयन करने की अनुमति प्रदान करता है।

लोकतंत्र का प्रभाव

भारत में लोकतंत्र का मतलब केवल वोट देने का अधिकार ही नहीं बल्कि सामाजिक और आर्थिक समानता को भी सुनिश्चित करना है। सरकार को लोकतंत्र को सफल बनाने के लिए निरक्षरता, गरीबी, सांप्रदायिकता, जातिवाद के साथ-साथ लैंगिग भेदभाव को खत्म करने के लिए भी काम करना चाहिए। देश में सरकार आम लोगों द्वारा चुनी जाती है और यह कहना गलत नहीं होगा कि यह उनकी बुद्धि और जागरूकता है जिससे वे सरकार की सफलता या विफलता निर्धारित करतें हैं।

लोकतंत्र के घटक

भारतीय लोकतंत्र का एक संघीय रूप है जिसके अंतर्गत केंद्र में एक सरकार जो संसद के प्रति उत्तरदायी है तथा राज्य के लिए अलग-अलग सरकारें हैं जो उनके विधानसभाओं के लिए समान रूप से जवाबदेह हैं। भारत के कई राज्यों में नियमित अंतराल पर चुनाव आयोजित किए जाते हैं। इन चुनावों में कई पार्टियां केंद्र तथा राज्यों में जीतकर सरकार बनाने के लिए प्रतिस्पर्धा करती हैं।

लोकतंत्र को विश्व के सबसे अच्छे शासन प्रणाली के रुप में जाना जाता है, यही कारण है कि हमारे देश के संविधान निर्माताओं और नेताओं ने शासन प्रणाली के रुप में लोकतांत्रिक व्यवस्था का चयन किया। हमें अपने देश के लोकतंत्र को और भी मजबूत करने की आवश्यकता है।

इसे यूट्यूब पर देखें : Essay on Democracy in Hindi

निबंध 2 (400 शब्द)

लोकतंत्र से तात्पर्य लोगों के द्वारा, लोगों के लिए चुनी सरकार से है। लोकतांत्रिक राष्ट्र में नागरिकों को वोट देने और उनकी सरकार का चुनाव करने का अधिकार प्राप्त होता है। लोकतंत्र को विश्व के सबसे अच्छे शासन प्रणाली के रुप में जाना जाता है, यही कारण है कि आज विश्व के अधिकतम देशों में लोकतांत्रिक व्यवस्था लागू है।

भारतीय लोकतंत्र की विशेषताएं

वर्तमान समय में भारत दुनिया में सबसे बड़ा लोकतंत्र है। मुगलों, मौर्य, ब्रिटिश और अन्य कई शासकों द्वारा शताब्दियों तक शासित होने के बाद भारत आखिरकार 1947 में आजादी के बाद एक लोकतांत्रिक देश बना। इसके बाद देश के लोगों को, जो कई सालों तक विदेशी शक्तियों के हाथों शोषित हुए, अंत में वोटों के द्वारा अपने स्वयं के नेताओं को चुनने का अधिकार प्राप्त हुआ। भारत में लोकतंत्र केवल अपने नागरिकों को वोट देने का अधिकार प्रदान करने तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह सामाजिक और आर्थिक समानता के प्रति भी काम कर रहा है।

भारत में लोकतंत्र पांच लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर काम करता है:

  • संप्रभु: इसका मतलब भारत किसी भी विदेशी शक्ति के हस्तक्षेप या नियंत्रण से मुक्त है।
  • समाजवादी: इसका मतलब है कि सभी नागरिकों को सामाजिक और आर्थिक समानता प्रदान करना।
  • धर्मनिरपेक्षता: इसका अर्थ है किसी भी धर्म को अपनाने या सभी को अस्वीकार करने की आजादी।
  • लोकतांत्रिक: इसका मतलब है कि भारत सरकार अपने नागरिकों द्वारा चुनी जाती है।
  • गणराज्य: इसका मतलब यह है कि देश का प्रमुख एक वंशानुगत राजा या रानी नहीं है।

भारत में लोकतंत्र कैसे कार्य करता है

18 वर्ष से अधिक आयु का हर भारतीय नागरिक भारत में वोट देने का अधिकार का उपयोग कर सकता है। मतदान का अधिकार प्रदान करने के लिए किसी व्यक्ति की जाति, पंथ, धर्म, लिंग या शिक्षा के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होता है। भारत में कई पार्टियाँ है जिनके उम्मीदवार उनकी तरफ से चुनाव लड़ते हैं जिनमें प्रमुख है भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (कांग्रेस), भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई), कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया- मार्क्सिस्ट (सीपीआई-एम), अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) आदि। उम्मीदवारों को वोट देने से पहले जनता इन पार्टियों या उनके प्रतिनिधियों के आखिरी कार्यकाल में किये गये कार्यों का मूल्यांकन करते हुए, अपना मतदान करती है।

सुधार के लिए क्षेत्र

भारतीय लोकतंत्र में सुधार की बहुत गुंजाइश है इसके सुधार के लिए ये कदम उठाए जाने चाहिए:

  • गरीबी उन्मूलन
  • साक्षरता को बढ़ावा देना
  • लोगों को वोट देने के लिए प्रोत्साहित करना
  • लोगों को सही उम्मीदवार चुनने के लिए शिक्षित करना
  • बुद्धिमान और शिक्षित लोगों को नेतृत्व की भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित करना
  • सांप्रदायिकता का उन्मूलन करना
  • निष्पक्ष और जिम्मेदार मीडिया सुनिश्चित करना
  • निर्वाचित सदस्यों के कामकाज की निगरानी करना
  • लोकसभा तथा विधानसभा में ज़िम्मेदार विपक्ष का निर्माण करना

हालांकि भारत में लोकतंत्र को अपने कार्य के लिए दुनिया भर में सराहा जाता है पर फिर भी इसमें सुधार के लिए अभी भी बहुत गुंजाइश है। देश में लोकतंत्र कार्यप्रणाली को सुनिश्चित करने के लिए ऊपर बताए क़दमों को प्रयोग में लाया जा सकता है।

निबंध 3 (500 शब्द)

लोकतांत्रिक राष्ट्र एक ऐसा राष्ट्र होता है जहां नागरिक अपने चुनाव करने के अधिकार को इस्तेमाल करके अपनी सरकार चुनते हैं। लोकतंत्र को कभी-कभी “बहुमत के शासन” के रूप में भी जाना जाता है। दुनिया भर के कई देश लोकतांत्रिक सरकारे है लेकिन अपने विशेषताओं के कारण भारत को दुनियां के सबसे बड़े लोकतंत्र के रुप में जाना जाता है।

भारत में लोकतंत्र का इतिहास

भारत पर मुगल से मौर्यों तक कई शासकों ने शासन किया। उनमें से प्रत्येक के पास लोगों को शासित करने की अपनी अलग शैली थी। 1947 में अंग्रेजों के औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता मिलने के बाद भारत एक लोकतांत्रिक राष्ट्र बन गया था। उस समय के भारत के लोग, जिन्होंने अंग्रेजों के हाथों काफी अत्याचारों का सामना किया था, उन्हें आजादी के बाद पहली बार वोट करने और खुद की सरकार चुनने का अवसर प्राप्त हुआ।

भारत के लोकतांत्रिक सिद्धांत

संप्रभु एक ऐसी इकाई को संदर्भित करता है जो किसी भी विदेशी शक्ति के नियंत्रण से मुक्त होता है। भारत के नागरिक अपने मंत्रियों का चुनाव करने के लिए सर्वभौमिक शक्ति का इस्तेमाल करते हैं।

समाजवादी का मतलब है भारत के सभी नागरिकों को जाति, रंग, पंथ, लिंग और धर्म को नज़रंदाज़ करके सामाजिक और आर्थिक समानता प्रदान करना।

धर्म निरपेक्षता

धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि अपनी पसंद से किसी भी धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता। हमारे देश में कोई आधिकारिक धर्म नहीं है।

लोकतांत्रिक

लोकतांत्रिक का मतलब है कि भारत सरकार अपने नागरिकों द्वारा चुनी जाती है। किसी भी भेदभाव के बिना सभी भारतीय नागरिकों को वोट देने का अधिकार दिया गया है ताकि वे अपनी पसंद की सरकार चुन सकें।

देश का प्रमुख एक वंशानुगत राजा या रानी नहीं है। वह लोकसभा और राज्यसभा द्वारा चुना जाता है जहाँ के प्रतिनिधि खुद जनता द्वारा चुने गयें हैं।

भारत में लोकतंत्र की कार्यवाही

18 वर्ष से अधिक आयु के भारत के हर नागरिक को वोट देने का अधिकार है। भारत का संविधान किसी से भी अपनी जाति, रंग, पंथ, लिंग, धर्म या शिक्षा के आधार पर भेदभाव नहीं करता है।

भारत में कई पार्टियाँ राष्ट्रीय स्तर पर चुनाव लड़ती है जिनमें प्रमुख है – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (कांग्रेस), भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई), कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया- मार्क्सिस्ट (सीपीआई-एम), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी), अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा)। इनके अलावा कई क्षेत्रीय पार्टियां हैं जो राज्य विधायिकाओं के लिए चुनाव लड़ती हैं। चुनावों को समय-समय पर आयोजित किया जाता है और लोग अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करने के लिए मतदान करने के अपने अधिकार का उपयोग करते हैं। सरकार लगातार अच्छे प्रशासन को चुनने के लिए अधिक से अधिक लोगों को वोट देने के अपने अधिकार का इस्तेमाल करने के लिए लगातार प्रयास कर रही है।

भारत में लोकतंत्र का मकसद केवल लोगों को वोट देने का अधिकार देने के लिए नहीं बल्कि जीवन के सभी क्षेत्रों में समानता सुनिश्चित करना भी है।

भारत में लोकतंत्र के कार्य में रुकावटें

हालांकि चुनाव सही समय पर हो रहें हैं और भारत में लोकतंत्र की अवधारणा का एक व्यवस्थित दृष्टिकोण से पालन किया जाता है लेकिन फ़िर भी देश में लोकतंत्र के सुचारु कामकाज में कई बाधाएं हैं। इसमें निरक्षरता, लिंग भेदभाव, गरीबी, सांस्कृतिक असमानता, राजनीतिक प्रभाव, जातिवाद और सांप्रदायिकता शामिल है। ये सभी कारक भारत में लोकतंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।

हालाँकि भारत लोकतंत्र की विश्व भर में सराहना की जाती है लेकिन अभी भी इसे सुधार का काफी लंबा सफर तय करना है। भारत में लोकतंत्र के कामकाज पर असर डालने वाली अशिक्षा, गरीबी, लैंगिग भेदभाव और सांप्रदायिकता जैसी कारकों को समाप्त करने की आवश्यकता है ताकि देश के नागरिक सही मायनों में लोकतंत्र का आनंद ले सकें।

निबंध 4 (600 शब्द)

1947 में ब्रिटिश शासन के चंगुल से मुक्त होने के बाद भारत में लोकतंत्र का गठन किया गया था। इससे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का जन्म हुआ। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रभावी नेतृत्व के कारण ही भारत के लोगों को वोट देने और उनकी सरकार का चुनाव करने का अधिकार प्राप्त हुआ।

इस समय भारत में सात राष्ट्रीय पार्टियाँ हैं जो इस प्रकार हैं – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (एनसीपी), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी), भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई), कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया- मार्क्सिस्ट (सीपीआई- एम), अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा)। इन के अलावा कई क्षेत्रीय पार्टियां राज्य विधानसभा चुनावों के लिए लड़ती हैं। भारत में संसद और राज्य विधानसभाओं का चुनाव हर 5 सालों में होता है।

भारत के लोकतांत्रिक सिद्धांत इस प्रकार हैं:

संप्रभु का मतलब है स्वतंत्र – किसी भी विदेशी शक्ति के हस्तक्षेप या नियंत्रण से मुक्त। देश को चलने वाली सरकार नागरिकों द्वारा एक निर्वाचित सरकार है। भारतीय नागरिकों की संसद, स्थानीय निकायों और राज्य विधानमंडल के लिए किए गए चुनावों द्वारा अपने नेताओं का चुनाव करने की शक्ति है।

समाजवादी का अर्थ है देश के सभी नागरिकों के लिए सामाजिक और आर्थिक समानता। लोकतांत्रिक समाजवाद का अर्थ है विकासवादी, लोकतांत्रिक और अहिंसक साधनों के माध्यम से समाजवादी लक्ष्यों को प्राप्त करना। धन की एकाग्रता कम करने तथा आर्थिक असमानता को कम करने के लिए सरकार लगातार प्रयास कर रही है।

इसका अर्थ है कि धर्म का चयन करने का अधिकार और स्वतंत्रता। भारत में किसी को भी किसी भी धर्म का अभ्यास करने या उन सभी को अस्वीकार करने का अधिकार है। भारत सरकार सभी धर्मों का सम्मान करती है और उनके पास कोई आधिकारिक राज्य धर्म नहीं है। भारत का लोकतंत्र किसी भी धर्म को अपमान या बढ़ावा नहीं देता है।

इसका मतलब है कि देश की सरकार अपने नागरिकों द्वारा लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित हुई है। देश के लोगों को सभी स्तरों (संघ, राज्य और स्थानीय) पर अपनी सरकार का चुनाव करने का अधिकार है। लोगों के वयस्क मताधिकार को ‘एक आदमी एक वोट’ के रूप में जाना जाता है। मतदान का अधिकार किसी भी भेदभाव के बिना रंग, जाति, पंथ, धर्म, लिंग या शिक्षा के आधार पर दिया जाता है। न सिर्फ राजनीतिक बल्कि भारत के लोग सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र का भी आनंद लेते हैं।

राज्य का मुखिया आनुवंशिकता राजा या रानी नहीं बल्कि एक निर्वाचित व्यक्ति है। राज्य के औपचारिक प्रमुख अर्थात् भारत के राष्ट्रपति, पांच साल की अवधि के लिए चुनावी प्रक्रिया द्वारा (लोकसभा तथा राज्यसभा) द्वारा चुने जाते हैं जबकि कार्यकारी शक्तियां प्रधान मंत्री में निहित होती हैं।

भारतीय लोकतंत्र द्वारा सामना किए जाने वाले चुनौतियां

संविधान एक लोकतांत्रिक राज्य का वादा करता है और भारत के लोगों को सभी प्रकार के अधिकार के प्रदान करता हैं। कई कारक हैं जो भारतीय लोकतंत्र को प्रभावित करने का कार्य करते हैं तथा इसके लिए एक चुनौती बन गए है। इन्ही में से कुछ निम्नलिखित कारको के विषय में नीचे चर्चा की गयी है।

लोगों की निरक्षरता सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है जो कि भारतीय लोकतंत्र की शुरूआत के बाद से हमेशा सामने आती रही है। शिक्षा लोगों को बुद्धिमानी से वोट देने के अपने अधिकार का उपयोग करने में सक्षम बनाती है।

गरीब और पिछड़े वर्गों के लोगों से आम तौर पर हमेशा ही राजनीतिक दलों द्वारा छेड़छाड़ की जाती है। राजनीतिक दल उनसे अक्सर वोट प्राप्त करने के लिए रिश्वत तथा अन्य प्रकार के प्रलोभन देते हैं।

इनके अलावा, जातिवाद, लिंगभेद, सांप्रदायिकता, धार्मिक कट्टरवाद, राजनीतिक हिंसा और भ्रष्टाचार जैसे कई अन्य कारक हैं जो भारत में लोकतंत्र के लिए एक चुनौती बन गये है।

भारत के लोकतंत्र की दुनिया भर में काफी प्रशंसा की जाती है। देश के हर नागरिक को वोट देने का अधिकार उनके जाति, रंग, पंथ, धर्म, लिंग या शिक्षा के आधार पर किसी भी भेदभाव के बिना दिया गया है। देश के विशाल सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई विविधता लोकतंत्र के लिए एक बड़ी चुनौती है। इसके साथ ही आज के समय में लोगों के बीच का यह मतभेद एक गंभीर चिंता का कारण बन गया है। भारत में लोकतंत्र के सुचारु कार्य को सुनिश्चित करने के लिए हमें इन विभाजनकारी प्रवृत्तियों को रोकने की आवश्यकता है।

Essay on Democracy in India in Hindi

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भारत में लोकतंत्र पर निबंध | Essay on Democracy in India in Hindi

Essay on Democracy in India in Hindi प्रिय विद्यार्थियों आज हम  भारत में लोकतंत्र पर निबंध आपके साथ साझा कर रहे हैं.

लोकतंत्र क्या है, भारत में लोकतंत्र का भविष्य सम्भावनाएं व चुनौतियों पर आज का यह निबंध कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10 के बच्चों के लिए 100, 200, 250, 300, 400, 500 शब्दों में यहाँ डेमोक्रेसी इन इंडिया इन हिंदी का छोटा बड़ा निबंध दिया गया हैं.

भारत में लोकतंत्र पर निबंध | Essay on Democracy in India in Hindi

Get Here Free Short Essay on Democracy in India in Hindi Language For School Students & Kids.

भारतीय लोकतंत्र पर निबंध Short Essay on Democracy in India in Hindi

प्रस्तावना- अब्राहम लिंकन के अनुसार जनतंत्र जनता का, जनता के लिए और जनता के द्वारा शासन हैं. जनतंत्र का अर्थ है जनता का शासन.

इसका तात्पर्य ऐसी शासन प्रणाली से हैं जिसमें शासन चलाने वाले प्रतिनिधि जनता द्वारा ही चुने जाते है.

साथ ही इसमें आम जनता का सर्वागीण हित प्रमुख होता हैं. भारत में इस तरह की ही जनतंत्रात्मक शासन प्रणाली प्रचलित हैं.

आज भारत विश्व का सबसे बड़ा जनतंत्रात्मक देश है, लेकिन जनतंत्र की स्थिति यहाँ सबसे बदतर दिखाई देती हैं.

भारत की वर्तमान दशा- वर्तमान समय में हमारे देश की दशा अत्यंत शोचनीय हैं. हमारे देश की राजनीतिक, आर्थिक और आर्थिक दशा लडखडा रही हैं. राजनीतिक उथल पुथल और चुनौतियां आए दिन बढ़ती रहती हैं.

पंचवर्षीय योजनाओं का सही संयोजन न होने से यहाँ का अर्थतंत्र बिखरा हुआ हैं. मंदी, महंगाई और आर्थिक शोषण से आज लोग परेशान हैं.

सर्वत्र स्वार्थपरता एवं भ्रष्टाचार का बोलबाला हैं. मानवीय मूल्य लुप्त हो रहे हैं. आतंकवादी हिंसा से भय का वातावरण बन रहा हैं. इस तरह कुल मिलाकर देश में युग विपर्यय की स्थिति हैं.

जनतंत्र के रूप में कमियां- हमारे देश में लोकतंत्र सम्रद्धि नहीं कर पा रहा हैं. मेरी दृष्टि में इसके कई कारण हैं.

  • आर्थिक असंतुलन इस दिशा में सबसे बड़ी बाधा हैं आम जनता की आर्थिक स्थिति एक शोचनीय हैं.
  • ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी अशिक्षा फैली हुई हैं. उनमें राष्ट्रीय चेतना उत्पन्न करने के लिए शिक्षा का प्रचार जरुरी हैं.
  • असीमित जनसंख्या वृद्धि एवं रोजगार की कमी भी हमारे लोकतंत्र को डगमगा रही हैं. शिक्षा प्रणाली दूषित हैं इससे बेरोजगारी बढ़ रही हैं.
  • राजनेताओं का स्वार्थ, देशव्यापी भ्रष्टाचार व सरकारी कार्यालयों में लालफीताशाही आदि से शासनतंत्र को कमजोर कर रहे हैं.
  • आर्थिक कार्यक्रमों को सही ढंग से व्यवहारिक रूप नहीं दिया जा रहा हैं. अधिकांश प्रगतिशील काम केवल कोरे नारे बन जाते हैं.

सुधार की आवश्यकता- ऐसी दशा में यह जरुरी है कि हमारे लोकतंत्र के सर्वमान्य स्वरूप को सुधारा जाए. इसके लिए हमें पूर्वोक्त सभी कमियों को दूर करना होगा.

आर्थिक सुधार कार्यक्रमों को द्रढ़ता से लागू कर बेरोजगारी दूर करना प्रथम लक्ष्य होना चाहिए, तभी देश में आर्थिक स्थिति सुधरेगी और यहाँ मानव शक्ति का पूरा उपयोग हो सकेगा.

इसके अतिरिक्त ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का प्रसार भी जरुरी हैं, इनमें भी अधिक महत्व की बात हैं चारित्रिक द्रढ़ता. जब तक देशवासियों में ईमानदारी और सच्चाई नहीं आती, तब तक किसी भी तरह का सुधार कामयाब नहीं सकता

उपसंहार – अतः वह स्पष्ट है कि हमारे देश में जनतंत्र का भविष्य कुछ धूमिल हैं. जिन परिस्थतियों में आज हमारा देश जकड़ा हुआ हैं. यदि उनको नियंत्रित नहीं किया गया तो यहाँ जनतंत्र की सफलता असम्भव हैं.

अतः हम पहले देश की आर्थिक विषमता तथा अशिक्षा को दूर करने का प्रयास करे, जनतंत्र अपने आप पनपता जाएगा.

भारतीय लोकतंत्र का भविष्य सम्भावनाएं चुनौतियों पर निबंध Essay on Indian Democracy In Hindi

लोकतंत्र जिन्हें जनता का शासन भी कहा जाता हैं, विश्व के अधिकातर देशो ने इसी शासन व्यवस्था को अपनाया हैं. कई पश्चिमी देश कई सैकड़ो साल से इसी पद्दति को अपनाए हुए हैं.

जिन्हें लोकतंत्र का जनक भी कहा जाता हैं. मगर भारतीय लोकतंत्र को विश्व का सबसे बड़ा डेमोक्रेसी कहा जाता हैं. इसकी वजह निरंतर समय के साथ अपनी शासन व्यवस्था को सुद्रढ़ किया जाना भी हैं.

वर्तमान समय में भारत एक बड़ा लोकतान्त्रिक देश हैं. यह 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ. उस समय भारतीय राष्ट्रिय आन्दोलन के नेता व प्रबुद्दजन भारत की नई शासन व्यवस्था को लेकर चिंतित थे.

उन्होंने कई वर्षो के अथक प्रयासों से पुरे विश्व से शासन व सुशासन प्रक्रिया के विचार को लेकर उन्हें एक जगह संग्रहित किया. इस विचारों व शासन की कार्यविधि को बताने वाले दस्तावेज को ही सविधान कहा गया.

लोकतंत्र क्या हैं- लगभग सभी लोकतान्त्रिक व्यवस्था रखने वाले देशो का अपना सविधान होता हैं. भारतीय सविधान में लोकतंत्र, समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता भारतीय जनता के राष्ट्रिय लक्ष्य माने गये. हमारे देश के सविधान ने यहाँ लोकतान्त्रिक पद्दति की स्थापना की.

लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली के अंतर्गत मनमानी ढंग से निर्णय लिए जाने की सम्भावना नही होती हैं. यह लोकतान्त्रिक शासन जनता के प्रति उत्तरदायी होता हैं.

भारत में प्रत्येक नागरिक को 6 मौलिक अधिकार दिए गये हैं. हर व्यस्क नागरिक को मतदान करने व चुनाव लड़ने का अधिकार हैं.

लोकतंत्र की विशेषताएँ

लोकतान्त्रिक व्यवस्था में शक्ति एक अंग तक सिमित नही होती हैं. यहाँ शक्ति विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका में विकेन्द्रित कर दी जाती हैं.

भारत में कार्यपालिका एवं विधायिका प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से भारतीय व्यस्क जनता द्वारा चुनी जाती हैं. लोकतंत्र में राष्ट्रिय स्तर पर कुछ राजनितिक पार्टिया होती हैं.

जो अपने उम्मीदवारों को चुनाव में उतरती हैं. इन पार्टियों में से जिस पार्टी को बहुमत मिलता हैं, वह अपनी सरकार बनाती हैं.

अगर किसी को भी बहुमत ना मिले तो तो 2 या इससे अधिक पार्टिया मिलकर सरकार बनाती हैं. जिसे गठबंधन सरकार कहते हैं.

इस प्रकार लोकतंत्र शासन का ऐसा रूप हैं, जिनमे शासकों का चुनाव जनता द्वारा किया जाता हैं. एक लोकतान्त्रिक देश में इतने अधिक लोग रहते हैं.

कि हर बात पर सबको एक साथ बैठकर सामूहिक निर्णय या फैसला नही लिया जा सकता. इसलिए एक निश्चित क्षेत्र से जनता अपना एक प्रतिनिधि चुनती हैं.

भारत में लोकतंत्र सभी नागरिको की समानता की वकालत करता हैं यह व्यक्ति की गरिमा को बढ़ता हैं.

लोकतंत्र और अधिकार

लोकतंत्र में नागरिको को सरकार के क्रिया कलापों पर विचार-विमर्श करने और उसकी त्रुटियों की आलोचना करने का अधिकार हैं. भारत में जनता को सूचना का अधिकार (RTI) दिया गया हैं.

सूचना का अधिनियम, 2005 हमारी संसद द्वारा पारित एक ऐतिहासिक कानून हैं. इसके द्वारा सामान्य नागरिक सरकारी कार्यालयों से उनकी गतिविधियों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकता हैं. इस तरह भारत में लोकतान्त्रिक व्यवस्था में उतरोतर सुधार किया जा रहा हैं.

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लोकतंत्र पर निबंध 10 lines (Democracy In India Essay in Hindi) 100, 200, 300, 500, शब्दों मे

speech on democracy in hindi

Democracy In India Essay in Hindi – लोकतंत्र को सर्वोत्तम प्रकार की सरकार माना जाता है क्योंकि यह नागरिकों को सीधे अपने नेताओं को चुनने की अनुमति देता है। Democracy In India Essay उनके पास कई अधिकारों तक पहुंच है जो किसी के भी स्वतंत्र और शांतिपूर्वक रहने की क्षमता के लिए मौलिक हैं। दुनिया में कई लोकतांत्रिक देश हैं, लेकिन भारत अब तक सबसे बड़ा है। यहां ‘भारत में लोकतंत्र’ विषय पर कुछ नमूना निबंध दिए गए हैं।

भारतीय लोकतंत्र पर निबंध 10 पंक्तियाँ (Indian Democracy Essay 10 Lines in Hindi)

  • 1) भारत में सरकार का लोकतांत्रिक स्वरूप है।
  • 2) लोकतंत्र में लोगों को उनके लिए सरकार चुनने की अनुमति है।
  • 3) भारत 1947 में अपनी आजादी के बाद से एक लोकतांत्रिक देश है।
  • 4) दुनिया के कई देशों में भारत सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में दर्ज है।
  • 5) लोकतंत्र के कारण भारत के लोगों को कई मौलिक अधिकार प्राप्त हैं।
  • 6) भारत के लोग लोकतंत्र के कारण स्वतंत्रता और समानता का आनंद लेते हैं।
  • 7) लोकतंत्र देश में शांति और प्रेम को प्रोत्साहित करता है।
  • 8) भारत में लोग चुनाव कराकर अपने प्रतिनिधियों का चयन करते हैं।
  • 9) भारत में लोकतंत्र देश के विकास में मदद कर रहा है।
  • 10) लोकतंत्र के कारण भारत में विविध लोग एकता के साथ रहते हैं।

लोकतंत्र पर 100 शब्दों का निबंध (100 Words Essay On Democracy in Hindi)

लोकतंत्र एक शब्द है जिसका उपयोग सरकार के उस स्वरूप का वर्णन करने के लिए किया जाता है जिसमें लोगों को वोट देकर अपनी बात कहने का अधिकार होता है। लोकतंत्र किसी भी समाज का एक अनिवार्य हिस्सा है, और भारत कोई अपवाद नहीं है। ब्रिटिश औपनिवेशिक नियंत्रण के तहत वर्षों की पीड़ा के बाद, भारत को 1947 में लोकतंत्र प्राप्त हुआ। भारत लोकतंत्र पर बहुत जोर देता है। भारत भी बिना किसी संदेह के दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है।

देश को आजादी मिलने के बाद से ही न्याय, स्वतंत्रता और समानता की भावना भारतीय लोकतंत्र में व्याप्त रही है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में, भारत इस बात का ज्वलंत उदाहरण रहा है कि लोकतंत्र कैसे प्रगति को बढ़ावा दे सकता है और अपने सभी नागरिकों के लिए अधिकार सुनिश्चित कर सकता है।

लोकतंत्र पर 200 शब्दों का निबंध (200 Words Essay On Democracy in Hindi)

लोकतंत्र सरकार की एक प्रणाली है जो नागरिकों को वोट देने और अपनी पसंद की सरकार चुनने की अनुमति देती है। 1947 में ब्रिटिश शासन से आज़ादी के बाद भारत एक लोकतांत्रिक राज्य बन गया। यह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है।

भारत में लोकतंत्र अपने नागरिकों को उनकी जाति, रंग, पंथ, धर्म और लिंग के बावजूद वोट देने का अधिकार देता है। इसके पांच लोकतांत्रिक सिद्धांत हैं – संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और गणतंत्र।

विभिन्न राजनीतिक दल समय-समय पर राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर चुनावों में खड़े होते हैं। वे अपने पिछले कार्यकाल में किए गए कार्यों के बारे में प्रचार करते हैं और अपनी भविष्य की योजनाओं को भी लोगों के साथ साझा करते हैं। भारत के 18 वर्ष से अधिक आयु के प्रत्येक नागरिक को वोट देने का अधिकार है। अधिक से अधिक लोगों को वोट डालने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए सरकार लगातार प्रयास कर रही है. लोगों को चुनाव में खड़े होने वाले उम्मीदवारों के बारे में सब कुछ जानना चाहिए और सुशासन के लिए सबसे योग्य उम्मीदवार को वोट देना चाहिए।

भारत एक सफल लोकतांत्रिक व्यवस्था के रूप में जाना जाता है। हालाँकि, कुछ खामियों पर काम करने की जरूरत है। अन्य बातों के अलावा, सरकार को सच्चे अर्थों में लोकतंत्र सुनिश्चित करने के लिए गरीबी, अशिक्षा, सांप्रदायिकता, लिंग भेदभाव और जातिवाद को खत्म करने पर काम करना चाहिए।

लोकतंत्र पर 300 शब्दों का निबंध (300 Words Essay On Democracy in Hindi)

‘डेमोक्रेसी’ शब्द ग्रीक मूल का है जिसका अर्थ है वह सरकार जिसमें सत्ता लोगों के हाथों में होती है। लोकतांत्रिक सरकार वह सरकार है जिसे देश की जनता द्वारा चुना जाता है। लोकतंत्र हमें अपनी स्वतंत्रता का आनंद लेने और सही और गलत पर अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार देता है।

ब्रिटिश शासन से आजादी के बाद 1947 से भारत एक लोकतांत्रिक राष्ट्र है। भारत में सरकार का गठन देश की जनता द्वारा किया जाता है। इसके अलावा, भारत पूरी दुनिया में सबसे बड़ा लोकतंत्र है। यह देश में लोकतंत्र के कारण ही है कि विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के लोग लंबे समय से शांति और सद्भाव से रह रहे हैं। लोकतांत्रिक देशों में रहने वाले लोगों के लिए मतदान बहुत महत्वपूर्ण है। भारत में लोकतंत्र भारत के लोगों को स्वतंत्रता, समानता और न्याय प्रदान करता है।

भारत में लोकतंत्र क्यों महत्वपूर्ण है?

लोकतांत्रिक राष्ट्र में लोकतंत्र प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार और स्वतंत्रता प्रदान करता है। लोग अपनी संस्कृति का पालन कर सकें और स्वतंत्रता के साथ रह सकें। भारत जैसे देश में लोकतंत्र एक बहुत ही महत्वपूर्ण कारक है। भारत धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता वाले लोगों की भूमि है। राष्ट्र में प्रत्येक व्यक्ति अपनी आस्था के अनुसार धर्म का पालन करने के लिए स्वतंत्र है।

लोकतंत्र प्रत्येक नागरिक में देश के अन्य लोगों के प्रति प्रेम और सम्मान को बढ़ावा देता है। यह लोकतंत्र की ही ताकत है जो भारत के लोगों को वर्षों तक प्रेम, शांति और सद्भाव के सूत्र में बांधे रखती है। भारत और उसके नागरिकों की प्रगति और विकास के लिए लोकतंत्र भी महत्वपूर्ण है।

उन देशों के विपरीत जहां अन्य प्रकार की सरकारें मौजूद हैं, लोकतंत्र हमें देश में किसी भी गलत चीज के खिलाफ आवाज उठाने की अनुमति देता है। लोकतंत्र भारत की जनता के लिए सर्वोत्तम उपहार है। देश के लोगों को लोकतंत्र के महत्व को समझना चाहिए और अच्छे नागरिक के रूप में देश के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।

लोकतंत्र पर 500 शब्दों का निबंध (500 Words Essay On Democracy in Hindi)

सबसे पहले, लोकतंत्र सरकार की एक प्रणाली को संदर्भित करता है जहां नागरिक मतदान द्वारा शक्ति का प्रयोग करते हैं। भारत में लोकतंत्र का विशेष स्थान है। इसके अलावा, भारत बिना किसी संदेह के दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। साथ ही, भारत का लोकतंत्र भारत के संविधान से लिया गया है। ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के हाथों पीड़ित होने के बाद, भारत अंततः 1947 में एक लोकतांत्रिक राष्ट्र बन गया। सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि स्वतंत्रता के बाद से भारतीय लोकतंत्र न्याय, स्वतंत्रता और समानता की भावना से ओत-प्रोत है।

भारतीय लोकतंत्र की विशेषताएं

संप्रभुता भारतीय लोकतंत्र की एक महत्वपूर्ण विशेषता है। संप्रभुता का तात्पर्य बाहरी हस्तक्षेप के बिना अपने ऊपर शासी निकाय की पूर्ण शक्ति से है। इसके अलावा, भारतीय लोकतंत्र में लोग सत्ता का प्रयोग कर सकते हैं। सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि भारत की जनता अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करती है। इसके अलावा, ये प्रतिनिधि आम लोगों के प्रति जिम्मेदार रहते हैं।

भारत में लोकतंत्र राजनीतिक समानता के सिद्धांत पर काम करता है। इसके अलावा, इसका अनिवार्य रूप से मतलब है कि कानून के समक्ष सभी नागरिक समान हैं। सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि यहां धर्म, जाति, पंथ, नस्ल, संप्रदाय आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं है। इसलिए, प्रत्येक भारतीय नागरिक को समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त हैं।

बहुमत का शासन भारतीय लोकतंत्र की एक अनिवार्य विशेषता है। इसके अलावा, जो पार्टी सबसे अधिक सीटें जीतती है वह सरकार बनाती है और चलाती है। सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि बहुमत के समर्थन पर किसी को भी आपत्ति नहीं हो सकती।

भारतीय लोकतंत्र की एक अन्य विशेषता संघीय है। सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि भारत राज्यों का एक संघ है। इसके अलावा, राज्य कुछ हद तक स्वायत्त हैं। इसके अलावा, राज्यों को कुछ मामलों में स्वतंत्रता प्राप्त है।

सामूहिक जिम्मेदारी भारतीय लोकतंत्र की एक उल्लेखनीय विशेषता है। भारत में मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से अपने संबंधित विधानमंडलों के प्रति उत्तरदायी है। इसलिए कोई भी मंत्री अपनी सरकार के किसी भी कृत्य के लिए अकेले जिम्मेदार नहीं है।

भारतीय लोकतंत्र जनमत निर्माण के सिद्धांत पर काम करता है। इसके अलावा, सरकार और उसकी संस्थाओं को जनता की राय के आधार पर काम करना चाहिए। सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि भारत में विभिन्न मामलों पर जनता की राय बननी चाहिए। इसके अलावा, भारत का विधानमंडल जनता की राय व्यक्त करने के लिए एक उचित मंच प्रदान करता है।

भारत में लोकतंत्र को मजबूत करने के उपाय

सबसे पहले, लोगों को मीडिया पर अंध विश्वास रखना बंद करना होगा। कई बार मीडिया द्वारा बताई गई खबरें संदर्भ से बाहर और बढ़ा-चढ़ाकर पेश की जाती हैं। सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि कुछ मीडिया आउटलेट किसी विशेष राजनीतिक दल का प्रचार कर सकते हैं। इसलिए, लोगों को मीडिया समाचार स्वीकार करते समय सावधान और सतर्क रहना चाहिए।

भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने का एक और महत्वपूर्ण तरीका चुनाव में उपभोक्ता मानसिकता को खारिज करना है। कई भारतीय राष्ट्रीय चुनावों को किसी उत्पाद को खरीदने वाले उपभोक्ताओं की तरह देखते हैं। सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि चुनावों से भारतीयों को अलगाववादियों के बजाय प्रतिभागियों की तरह महसूस होना चाहिए।

भारत में लोगों को अपनी आवाज़ सुननी चाहिए। इसके अलावा, लोगों को अपने निर्वाचित अधिकारी के साथ केवल चुनावों के दौरान ही नहीं बल्कि पूरे वर्ष संवाद करने का प्रयास करना चाहिए। इसलिए, नागरिकों को अपने निर्वाचित अधिकारी के साथ संवाद करने के लिए लिखना, कॉल करना, ईमेल करना या सामुदायिक मंचों पर उपस्थित होना चाहिए। इससे निश्चित ही भारतीय लोकतंत्र मजबूत होगा।

भारी मतदान प्रतिशत वास्तव में भारत में लोकतंत्र को मजबूत करने का एक प्रभावी तरीका है। लोगों को झिझक से बचना चाहिए और वोट देने के लिए निकलना चाहिए। सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि भारी मतदान भारतीय राजनीति में आम लोगों की पर्याप्त भागीदारी का प्रतीक होगा।

निष्कर्षतः , भारत में लोकतंत्र बहुत कीमती है। इसके अलावा, यह भारत के नागरिकों को देशभक्त राष्ट्रीय नेताओं का एक उपहार है। सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि इस देश के नागरिकों को लोकतंत्र के महान मूल्य को समझना चाहिए और उसकी सराहना करनी चाहिए। भारत का लोकतंत्र निश्चित ही विश्व में अद्वितीय है।

लोकतंत्र पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न: (FAQs)

Q.1 लोकतंत्र का वास्तविक अर्थ क्या है.

उत्तर. लोकतंत्र उस व्यवस्था को संदर्भित करता है जिसमें किसी देश में सरकार का गठन चुनाव के बाद प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लोगों के निर्णय से होता है।

Q.2 भारत सबसे बड़ा लोकतंत्र क्यों है?

उत्तर. भारत क्षेत्रफल में सातवां सबसे बड़ा और जनसंख्या में दूसरा सबसे बड़ा देश है, साथ ही विकसित राजनीति के कारण इसे दुनिया में सबसे बड़े लोकतंत्र का सम्मान प्राप्त है।

Q.3 लोकतंत्र लोगों के लिए किस प्रकार लाभदायक है?

उत्तर. लोकतंत्र किसी देश के सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के समानता प्रदान करता है, और लोगों को यह बताने की शक्ति प्रदान करता है कि उन पर कैसे और कौन शासन करेगा।

Q.4 सबसे पुराना लोकतंत्र कौन सा है?

उत्तर. आइल ऑफ मैन पर स्थित टाइनवाल्ड को सबसे पुराना लोकतंत्र माना जाता है जिसकी उत्पत्ति 9वीं शताब्दी में हुई थी।

भारत में लोकतंत्र पर निबंध Essay on Democracy in India Hindi

इस लेख में हमने भारत में लोकतंत्र पर निबंध हिन्दी में Essay on Democracy in India Hindi दिया है। इसमें आप जानेंगे लोकतंत्र क्या है? इसमें चुनाव की भूमिका, इतिहास, इसके 5 सिद्धांत, और सुधार के उपाय।

Table of Content

हमारे भारत देश में दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। 1947 की आजादी के बाद हमारा भारत एक लोकतांत्रिक राष्ट्र बन गया। जिस कारण जनता को इसके बाद भारत में वोट देने और अपने नेताओं का सही चुनाव करने का अधिकार मिल गया।

भारत में लोकतंत्र पर निबंध | 5 सिद्धांत Democracy in India Essay in Hindi | Its 5 Principle

लोकतंत्र क्या है? What is Democracy?

भारतीय लोकतंत्र अपने नागरिकों को जाति, धर्म, रंग, लिंग और पंथ आदि को नज़र-अंदाज करते हुये अपनी पसंद से वोट देने की अनुमति देता है। इसके पांच लोकतांत्रिक सिद्धांत इस प्रकार हैं – समाजवादी, संप्रभु, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य, लोकतंत्र ।

चुनाव में क्या होता है? What is Election?

भारत में लोकतंत्र का इतिहास history of democracy in india.

उस समय के भारत के लोग, जिन्होंने अंग्रेजों के हाथों काफी अत्याचारों का सामना किया था, पहली बार वोट करने का और अपनी सरकार का चुनाव करने का अधिकार प्राप्त किया।

भारत में चुनाव व राजनीतिक पार्टी Political Parties

भारत के कई राज्यों में विभिन्न रूप से नियमित अंतराल पर भी चुनाव किये जाते हैं। इन चुनावों में कई पार्टियां केंद्र तथा राज्यों में जीतकर सरकार बनाने के लिये प्रतिस्पर्धा करती हैं।

भारतीय लोकतंत्र के 5 सिद्धांत 5 Principles of Indian Democracy

संप्रभु sovereign.

इसका सीधा-सीधा अर्थ है हमारा भारत किसी भी विदेशी शक्ति या उसके नियंत्रण के हस्तक्षेप से मुक्त है।

समाजवादी Socialist

धर्मनिरपेक्षता secularism, लोकतंत्र democracy, लोकतांत्रिक गणराज्य democratic republic.

इसका मतलब है, कि देश का प्रमुख कोई भी एक वंशानुगत राजा या रानी नहीं होता है।

भारतीय लोकतंत्र में सुधार लाने के उपाय क्या है? Ways to Improve Indian Democracy

निष्कर्ष conclusion.

Featured Image – Flickr (Vineer Timple)

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भारत में लोकतंत्र पर निबंध – Essay on Democracy in Hindi

Essay on Democracy in Hindi

लोकतंत्र दो शब्दों से मिलकर बना है – लोक + तंत्र। लोक का अर्थ है जनता और लोग अर्थात तंत्र का अर्थ शासन, अर्थात लोकतंत्र का अर्थ है जनता का शासन। लोकतंत्र एक ऐसी शासन प्रणाली है, जिसमें जनता को अपना शासन चुनने का अधिकार होता है, और जनता अपनी मर्जी से अपना मनपसंद शासक चुनती है।

आपको बता दें कि 15 अगस्त साल 1947 जब भारत को ब्रिटिश शासकों के चंगुल से आजादी मिली तो भारत एक लोकतांत्रिक राष्ट्र बन गया था। आजाद भारत में लोगों को अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर अपने नेताओं को चुनने हक दिया गया। और आज भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है।

भारत में जनता का, जनता के द्धारा और जनता के लिए शासन की लोकतंत्रात्मक व्यवस्था है। भारत में हर पांच साल में केन्द्रीय और राज्य सरकार के चुनाव करवाए जाते हैं, वहीं भारत के लोकतंत्र के महत्व को बताने के लिए और विद्यार्थियों के लेखन कौशल को निखारने के लिए स्कूल-कॉलेजों में छात्रों को निबंध लिखने के लिए कहा जाता है।

इसलिए आज हम आपको अपने इस लेख में अलग-अलग शब्द सीमा के अंदर भारत में लोकतंत्र पर निबंध उपलब्ध करवा रहे हैं, जिसे छात्र अपनी जरुरत के अनुसार चुन सकते हैं।

Essay on Democracy in Hindi

भारत में लोकतंत्र पर निबंध नंबर- 1 – Loktantra Par Nibandh

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जहां जनता को अपने मनपंसद प्रतिनिधि चुनने का अधिकार है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता अपने देश के हित के लिए और देश के विकास के लिए देश की बागडोर एक ऐसे व्यक्ति के हाथ में सौंपती है, जो इसके लायक होता है और देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने में मदत करता है।

वहीं भारत का लोकतंत्र पांच मुख्य सिंद्धातों पर काम करता है जैसे संप्रभु यानि कि भारत में किसी भी तरह की विदशी शक्ति की दखलअंदाजी नहीं है, यह पूरी तरह आजाद है।  समाजवादी, जिसका वोटलब है कि सभी नागरिकों को सामाजिक और आर्थिक समानता प्रदान करना।

धर्मनिरपेक्षता, जिसका वोटलब है किसी भी धर्म को अपनाने या फिर अपनाने से इंकार करने की आजादी। लोकतांत्रिक, जिसका अर्थ है देश के नागरिकों द्धारा भारत की सरकार चुनी जाती है। गणराज्य जिसका अर्थ है देश का प्रमुख कोई एक वंशानुगात राजा या रानी नहीं होती है।

देश में कई तरह की राजनीतिक पार्टियां है, जो हर पांच साल में राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर चुनाव लड़ने के लिए खड़ी होती हैं। लेकिन सिर्फ उसी राजनीतिक पार्टी का शासन होता है, जिसे जनता का सार्वधिक वोट मिलता है।

आपको बता दें भारतीय संविधान के मुताबिक 18 साल से अधिक आयु के हर भारतीय नागरिक को अपने मताधिकार का इस्तेमाल करने का हक है। वह अपना शासक चुनने के लिए अपने कीमती वोट का इस्तेमाल करता है। वहीं ज्यादा से ज्यादा लोगों को अपने वोट का इस्तेमाल करने के लिए भी सरकार लगातार जागरूक कर रही है।

लोकतंत्र का अर्थ – Meaning of Democracy in Hindi

लोकतंत्र,एक ऐसी शासन व्यवस्था है, जिसके तहत जनता को अपनी मर्जी से अपना शासक चुनने का अधिकार प्राप्त होता है। इसके तहत देश हर व्यस्क नागरिक अपने वोट का इस्तेमाल कर एक ऐसा शासक चुनता है, जो देश के और जनता के विकास में उसकी मदत करे और देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने की कोशिश करे , इसके साथ ही देश की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहे।

आपको बता दें कि आजादी से पहले हमारे देश की जनता पर क्रूर ब्रिटिश शासकों ने शासन किया था, जिससे भारतीयों का काफी शोषण हुआ था, लेकिन जब 15 अगस्त, 1947 को अपना भारत देश ब्रिटिश शासकों के चंगुल से आजाद हुआ तो इसे एक लोकतांत्रिक राष्ट्र बनाया गया।

जिसके तहत भारत के हर एक नागरिक को अपनी मर्जी से अपने शासक को चुनने का अधिकार दिया गया, वहीं लोकतंत्र के तहत जाति, धर्म, लिंग, रंग और संप्रदाय आदि को लेकर फैली असमानता की भाव को दूर कर अपने वोट का इस्तेमाल करने की इजाजत दी गई गई।

भारत में लोकतंत्र का इतिहास – Indian Democracy History

पुराने समय में भारत में कई मुगल और मौर्य शासकों ने शासन किया था, पहले वंशानुगत शासन चलता था, जिसमें अगर कोई व्यक्ति किसी  देश या राज्य की सल्तनत हासिल कर लेता था तो वर्षों तक उसी के वंश की कई पीढि़यां राज करती थी और सभी के पास शासन करने की अपनी एक अलग शैली होती थी और सब अपने-अपने अनुसार नियम-कानून और कायदे बनाते थे।

वहीं साल 1947 में जब देश आजाद हुआ और भारत एक लोकतांत्रिक राष्ट्र बना तो वंशानुगत व्यवस्था हमेशा के लिए खत्म की गई, और लोगों को अपने वोट का इस्तेमाल कर अपनी सरकार चुनने का अधिकार दिया गया। वहीं आज भारत देश का सबसे बड़ा लोकतंत्र है।

आपको बता दें कि जब भारत में मुगल और अंग्रेज शासकों द्धारा शासन किया जाता था, तो उस समय भारत की जनता को उनके द्वारा किए गए अत्याचारों को झेलना पड़ता था, और उनकी गुलामी करनी पड़ती थी, लेकिन जब भारत एक लोकतांत्रिक राज्य बना तो भारत के नागरिकों को  अपनी पसंद का शासक चुनने का अधिकार मिला और अपने वोट का इस्तेमाल करने की शक्ति प्राप्त  हुई।

वहीं अब भारत दुनिया का सबसे बड़े लोकतंत्र के रुप में जाना जाता है। आपको बता दें कि आजादी के बाद जब 26 जनवरी, 1950 में हमारे भारत में संविधान लागू किया गया तो भारत को एक लोकतंत्रात्मक और धर्मनिरपेक्ष गणराज्य घोषित किया गया।

हमारे देश की लोकतंत्रात्मक प्रणाली देश में समानता, स्वतंत्रता, न्याय और बंधुत्व के सिद्धांतों में यकीन करती है। लोकतंत्रात्मक व्यवस्था के तहत किसी भी जाति, धर्म, संप्रदाय, लिंग के लोगों को अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर अपने प्रतिनिधि को चुनने का अधिकार दिया गया है।

आपको बता दें कि भारत में सरकार का संसदीय स्परुप अंग्रजों की व्यवस्था पर आधारित है।

भारत में सरकार का एक संघीय रुप है जिसका अर्थ है केन्द्र औऱ राज्य सरकार। जिसमें केन्द्र सरकार वह होती है, जो संसद के लिए जिम्मेदार होती है, अर्थात केन्द्र सरकार ही देश के लिए नियम और कानून बनाती है।

इसके अलावा विदेश नीति भी बनाती  है और अपने देश के हित के लिए दूसरे देश के साथ समझौता करती है, जिससे देश की तरक्की हो सके।

केन्द्र सरकार के लिए हमारे देश में लोकसभा का चुनाव करवाया जाता है। केन्द्र सरकार भारतीय संविधान द्धारा दी गई सभी शक्तियों का अच्छी तरह से इस्तेमाल करती है और भारत के विकास और रक्षा के लिए पूरी तरह से उत्तरदायी होती है। आपको बता दें कि हर 5 साल में संसद का चुनाव आयोजित करवाया जाता है।

वहीं दूसरी तरफ राज्य सरकारें अपनी राज्य से संबंधित विधानसभाओं के लिए जिम्मेदार होती हैं। हमारे भारत देश में प्रत्येक राज्य को राज्य सरकार द्धारा शासित किया जाता है, आपको बता दें कि हमारे देश में कुल 29 राज्य सरकारें हैं, जिनमें से हर राज्य का नेतृत्व राज्यपाल या फिर प्रदेश के मुख्यमंत्री द्धारा किया जाता है।

देश के हर प्रदेश में मुख्यमंत्री का पद काफी अहम होता है, क्योंकि वह प्रदेश की सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता समेत अन्य मामलों से जुड़े सभी अहम फैसलों को लेता है, इसके साथ  ही मुख्यमंत्री मंत्रिपरिषद का भी प्रमुख है। 

वहीं केन्द्र और राज्य की सरकारें लोकतांत्रिक रुप से यानि की जनता के द्धारा चुनी जाती हैं और भारतीय संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्य सभा के नियमों का पालन करती हैं। इसके साथ ही आपको यह भी बता दें कि केन्द्र और राज्य सरकारें मिलकर देश के राष्ट्रपति का चुनाव करती हैं, राष्ट्रपति का राज्यों का प्रमुख भी माना गया है।

लोकतांत्रिक देश भारत में चुनाव एक अहम प्रणाली –

सार्वभौम, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, और लोकतंत्रात्मक गणराज्य भारत में चुनाव एक अति महत्वपूर्ण और बेहद अहम प्रणाली है। सरकार बनाने के लिए, और प्रतिनिधि को चयन करने के लिए चुनाव एक महत्वपूर्ण प्रणाली है।

लोकसभा के चुनाव हो या विधानसभा के चुनाव, इसमें देश के सभी नागरिक एक समान भाव से एक जुट होकर अपने मताधिकार का इस्तेमाल करते हैं और अपने प्रतिनिधि को चुनते हैं, देश में 18 साल से ज्यादा उम्र के हर नागरिक को अपने वोट का इस्तेमाल करने का अधिकार दिया गया है।

देश के नागरिकों को समय-समय पर अपने वोट देने के लिए जागरूक भी किया जाता है। आपको बता दें कि हमारे देश में हर 5 साल में चुनाव होते हैं, जिसमें देश के नागरिक अपने वोट का इस्तेमाल कर देश के विकास और प्रगति के लिए अपना प्रतिनिधि चुनते हैं।

भारत एक ऐसा लोकतंत्रात्मक देश हैं, जिसमें 29 राज्य और 7 केन्द्र शासित प्रदेश हैं, जिसमें हर 5 साल के अंतराल में चुनाव का आयोजन किया जाता है। वहीं इन चुनावों में राजनैतिक दल, केन्द्र और राज्य में जनता के ज्यादा वोट प्राप्त कर अपनी सरकार का निर्माण करते हैं।

आपको बता दें कि चुनाव के दौरान राजनैतिक दल जनता से विकास के तमाम वादे कर जनता से उनकी पार्टी को वोट देने के लिए भी उत्साहित करती  हैं, ऐसे में जनता के सामने सही और योग्य उम्मीदवार का चयन करना एक चुनौती भी होती है।

आपको बता दें भारत में कई राजनैतिक पार्टियां हैं जिनमें से बीजेपी, कांग्रेस, सपा, बसपा, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया- ( सीपीआईएम ), माकपा आदि प्रमुख पार्टी हैं। वहीं जनता किसी भी राजनैतिक दलों के उम्मीदवारों का चयन, पार्टी के प्रतिनिधियों के द्धारा करवाए गए विकास कामों के आधार पर करती है।

भारत के 5 लोकतांत्रिक सिद्धांत

भारत एक ऐसा लोकतंत्रात्मक देश है जो मुख्य रुप से 5 लोकतांत्रिक सिद्धान्तों पर काम करता है – जैसे कि संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरेपक्षता और लोकतांत्रिक। जिनसे बारे में हम आपको नीचे संक्षिप्त में बता रहे हैं –

लोकतंत्रात्मक गणराज्य भारत संप्रभु के सिद्धांत पर काम करता है, जिसका अर्थ  है, हमारा भारत किसी भी विदेशी शक्ति, उसके नियम-कानून और उसके नियंत्रण के हस्तक्षेप से मुक्त है।

समाजवादी भी भारत का एक लोकतांत्रिक सिद्धान्त हैं, जिसका वोटलब है कि हमारा देश के हर नागरिक को जाति, धर्म, संप्रदाय, लिंग , रंग और पंथ  को अनदेखा कर आर्थिक समानता और सामाजिकता प्रदान करना।

  • धर्म निरपेक्षता –

भारत एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य है, जिसका वोटलब है, भारत के सभी नागरिक को अपनी मर्जी और पसंद के अनुसार किसी भी धर्म को अपनाने और उसके पालन करने की स्वतंत्रता प्राप्त है, क्योंकि हमारे देश भारत में कोई भी आधिकारिक धर्म नहीं है।

  • लोकतांत्रिक –

भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य है, जिसका अर्थ है कि भारत की सरकार का चयन, भारत के नागिरकों द्धारा किया जाता है, किसी भी जातिगत भेदभाव और आर्थिक असमानता के बिना सभी नागिरकों को समान भाव से वोट देने का अधिकार दिया गया है, ताकि वे अपनी पसंद की सरकार चुन सके जिससे देश के विकास को बल मिल सके और देश आर्थिक रुप से मजबूत बन सके।

गणतंत्र –

जब से हमारे देश का संविधान लागू हुआ है ,तब से भारत एक धर्मनिरेपक्ष और लोकतंत्र गणराज्य घोषित किया है, अर्थात हमारे देश का मुखिया कोई वंशानुगत राजा या रानी नहीं है बल्कि इसे लोकसभा और राज्यसभा द्धारा चुना जाता है, जिसका फैसला जनता-जर्नादन के हाथ में होता है।

सबसे बड़े लोकतंत्र में सुधार की जरूरत

हमारा देश भारत, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जिसमें सुधार की बेहद जरूरत है, इसमें सुधार के लिए समय-समय पर ठोस कदम उठाए जाने चाहिए। वहीं हम आपको नीचे लोकतंत्र में सुधार के कुछ उपायों के बारे में बता रहे हैं –

  • ज्यादा से ज्यादा लोगों को अपने मताधिकार का इस्तेमाल करने के लिए बढ़ावा देकर।
  • देश से गरीबी की समस्या को जड़ से खत्म कर।
  • ज्यादा से ज्यादा लोगों को शिक्षित कर और साक्षरता दर को बढ़ाकर।
  • जनता को सही और योग्य उम्मीदवार चुनने के लिए शिक्षित कर।
  • लोकसभा और विधानसभा में सभ्य और जिम्मेदार विपक्ष का निर्माण कर।
  • शिक्षित, सभ्य और योग्य लोगों तो प्रतिनिधित्व करने के लिए प्रोत्साहित कर।
  • जातिगत भेदभाव को दूर कर।
  • निर्वाचित सदस्यों द्धारा करवाए गए विकास कामों और कामकाज की निगरानी कर।
  • सांप्रदायिकता का उन्मूलन।

भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली को पूरे देश में सराहा जाता है, हालांकि भारत के लोकतंत्र में अशिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी जैसे तमाम कारकों को जड़ से खत्म करने की जरूरत है ताकि देश के लोकतंत्र को और अधिक मजबूती मिल सके और देश के विकास को बल मिल सके। 

अगले पेज पर और भी निबंध….

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Democracy in India Essay in Hindi

भारत में लोकतंत्र पर निबंध – Democracy in India Essay in Hindi

भारत में लोकतंत्र पर बड़े तथा छोटे निबंध (essay on democracy in india in hindi), जनतंत्र का आधार चुनाव – democracy’s base election.

  • प्रस्तावना,
  • जनता और चुनाव,
  • राजनैतिक दल और नेता,
  • चुनाव प्रचार,
  • चुनाव का दिन,

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

प्रस्तावना- चुनाव लोकतंत्र का आधार है। एक निश्चित समय के लिए जनता अपने प्रतिनिधि चुनती है। ये लोग मिलकर देश की व्यवस्था चलाने के लिए सरकार का गठन करते हैं। संविधान द्वारा अधिकार प्राप्त आयोग चुनाव कराने की व्यवस्था करता है। उसका दायित्व स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराना होता है। लोकतंत्र के लिए चुनाव आवश्यक है। उसके बिना लोकतंत्र नहीं चल सकता।

जनता और चुनाव- चुनाव का अधिकार जनता को होता है। भारतीय संविधान के अनुसार प्रत्येक वयस्क स्त्री-पुरुष को अपना प्रतिनिधि चुनने का अधिकार है। पच्चीस वर्ष का होने के बाद प्रत्येक स्त्री-पुरुष को चुनाव में खड़ा होने का अपि कार है। हमारे देश में अनेक राजनैतिक दल हैं। ये दल चुनाव में अपना उम्मीदवार खड़ा करते हैं। जनता जिसको पसन्द करती है उसको वोट देकर अपना प्रतिनिधि चुनती है। इस प्रकार निर्वाचन में जनता बहुत महत्त्वपूर्ण होती है। उसके बिना निर्वाचन का कार्य हो ही नहीं सकता।

राजनैतिक दल और नेता- भारत में अनेक राजनैतिक दल हैं। इनमें दो-चार राष्ट्रीय स्तर के तथा शेष सभी क्षेत्रीय दल हैं। ये चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारते हैं। कुछ लोग निर्दलीय रूप से भी चुनाव लड़ते हैं। चुनाव की घोषणा होने पर राजनैतिक दल किसी क्षेत्र से एक उम्मीदवार को टिकट देता है।

टिकट पाने के लिए भीषण मारामारी होती है। उससे आपसी सद्भाव टूटता है, जातिवाद तथा सम्प्रदायवाद बढ़ता है, एक-दूसरे के विरुद्ध आरोप-प्रत्यारोप लगाये जाते हैं। इस प्रकार चुनाव शांति और गम्भीरता के साथ नहीं हो पाता।

चुनाव प्रचार- नामांकन पूरा होने के साथ ही प्रत्याशी तथा दल अपना प्रचार आरम्भ कर देते हैं। इसके लिए अखबारों तथा दूरदर्शन पर विज्ञापन दिए जाते हैं, जनसभाएँ होती हैं, झण्डा-बैनर आदि का प्रयोग होता है, जुलूस निकाले जाते. अन्त में प्रत्याशी अपने मतदाताओं से व्यक्तिगत सम्पर्क करता है।

उस समय वह विनम्रता की साकार मूर्ति बन जाता है। जनता के लिए यह समय बड़ा महत्त्वपूर्ण होता है। वैसे कोई उसे पूछे या न पूछे, इस समय नेतागण उसके घर की धूल ले लेते है। चुनाव प्रचार का समय बड़ा कठिन होता है।

इस समय दंगे तथा झगड़े होने का भय सदा बना रहता है। चुनाव से पूर्व प्रचार बन्द हो जाता है। कुछ स्वार्थी नेता रात के अंधेरे में वोटरों को नकद रुपया तथा शराब देकर उनको अपने पक्ष में वोट देने के लिए तैयार करते हैं।

चुनाव का दिन निर्वाचन आयोग चुनाव की व्यवस्था करता है। मतदान केन्द्र पर मतदान अधिकारी उपस्थित रहते हैं जो मतदान कराते हैं। अपने मतदान केन्द्र पर जाकर निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार मतदाता मतदान करता है।

आजकल ई. वी. एम. का बटन दबाकर मतदान कराया जाता है। इस मशीन में प्रत्येक प्रत्याशी का नाम तथा चुनाव-चिह्न अंकित होता है। उसके एक्सीलेण्ट सामने लगा बटन दबाने से उसको वोट मिल जाता है। अब सबसे नीचे एक बटन नोटा अर्थात् इनमें से कोई नहीं का भी होता है।

जिस मतदाता को कोई उम्मीदवार पसंद नहीं होता वह नोटा का बटन दबाता है। चुनाव शांतिपूर्वक कराने की कठोर व्यवस्था की जाती है तथा पुलिस और सुरक्षा बलों की ड्यूटी लगाई जाती है। किन्तु कुछ स्थानों पर मारपीट, बूथ कैप्चरिंग, गोलीबारी आदि की घटनाएँ होती हैं।

मतगणना- मतदान का काम समाप्त होने के पश्चात् मतगणना की जाती है। गणना में जिस उम्मीदवार को सबसे ज्यादा मत मिलते हैं उसे विजयी घोषित किया जाता है। जिस दल को बहुमत प्राप्त होता है, उसके विजयी उम्मीदवार अपना एक नेता चुनते हैं।

वही प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री नियुक्त किया जाता है और शासन-व्यवस्था सँभालता है।

उपसंहार- चुनाव में भाग लेने वाले मतदाता को जाति, धर्म अथवा अन्य दबाव से मुक्त होकर वोट करना चाहिए। उसे निष्पक्ष होकर सुयोग्य उम्मीदवार का ही चयन करना चाहिए। इधर ई. वी. एम. मशीन की प्रामाणिकता को लेकर, उत्तर-प्रदेश आदि राज्यों के चुनाव परिणामों के पश्चात्, शंका युक्त सवाल भी उठे हैं। किन्तु ये शंकाएँ वास्तविक कम और पराजय की पीड़ा को व्यक्त करने वाली ही अधिक प्रतीत होती हैं। कुल मिलाकर हमारा निर्वाचन आयोग अपनी सुव्यवस्था के लिए बधाई का पात्र सिद्ध होता है। निष्पक्ष और त्रुटिरहित मतदान ही लोकतंत्र का मूलाधार है।

लोकतंत्र की मूलभूत विशेषताएँ क्या हैं?

एक लोकतंत्र की कुछ मूलभूत विशेषताओं को निम्नलिखित बिन्दुओं में रखा जा सकता है : 

  • एक लोकतंत्र में प्रमुख निर्णय वहां की जनता द्वारा निर्वाचित लोग/ लोगों के समूह लेते हैं न कि राजतन्त्र या तानाशाही की तरह एक व्यक्ति ।
  • लोकतंत्र की एक अहम शर्त यह है कि चुनाव स्वतंत्र एवं निष्पक्ष हों (free and fair election) ।
  • एक व्यक्ति -एक वोट: एक सच्चे लोकतंत्र में प्रत्येक व्यक्ति के मत/वोट का बराबर मूल्य होता है । इसका निर्धारण मतदाता की जाति, धर्म, लिंग, भाषा, या सामाजिक -आर्थिक स्थिति से नहीं किया जाता ।  
  • लोकतंत्र की एक अन्य विशेषता कानून का शासन (rule of law) है । लोकतंत्र में देश एक निश्चित संहिता के आधार पर चलता है । यह संहिता / संविधान लिखित या अलिखित दोनों प्रकार के हो सकते हैं ।
  • लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वंत्रता (Freedom of expression) बुनियादी आवश्यकता है । वह समाज जो अपने नागरिकों को ऐसी आजादी न दे, वह अधिनायकवादी कहलाता है ।
  • इसी से सम्बद्ध लोकतंत्र की एक अन्य विशेषता है अधिकारों का संरक्षण (Respect for rights) ।
  • लोकतंत्र में न्यायपालिका की स्वतंत्रता का होना अत्यंत महत्वपूर्ण है । एक स्वतंत्र न्यायपालिका ही अपने नागरिकों को लोकतंत्र की गारंटी दे सकती है । आधुनिक युग में यह मुद्दा पूरे विश्व में एक केंद्र बिंदु बन गया है ।
  • हालाँकि लोकतंत्र में कई कमियां भी हैं लेकिन लोकतंत्र की यही विशेषता भी है कि यह उन कमियों के बारे में हम बोलने की आजादी देता है और उन्हें दूर करने के मंच भी प्रदान करता है ।

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लोकतंत्र क्या है?: अर्थ, परिभाषा, प्रकार और भारत में लोकतंत्र की चुनौतियाँ | What is Democracy in Hindi

संसार में अनेक प्रकार की शासन प्रणालियाँ प्रचलित हैं। सर्वाधिक लोकप्रिय व्यवस्था की बात करें तो लोकतान्त्रिक व्यवस्था की स्वीकृति सर्वमान्य है। भारत में लोकतंत्र आजादी के बाद आया, लेकिन ऐसा नहीं है कि लोकतंत्र भारत के लिए कुछ नया था। बुद्धकालीन भारत में ऐसे गणराज्य भी थे जहां राजा वंशानुगत न होकर प्रजा की सहमति से चुने जाते थे। मध्यकाल में बंगाल के पाल वंश की स्थापना लोगों की सहमति से हुई थी। आज इस ब्लॉग में आप जान सकेंगे What is Democracy- ‘लोकतंत्र क्या है, लोकतंत्र की परिभाषा, अर्थ और लोकतंत्र के प्रकार। इसके साथ ही लोकतंत्र के सामने क्या चुनौतियां हैं? जैसे मुद्दों पर चर्चा होगी। लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें।

लोकतंत्र क्या है?: अर्थ, परिभाषा, प्रकार और भारत में लोकतंत्र की चुनौतियाँ | What is Democracy in Hindi

What is Democracy in Hindi | डैमोक्रैसी क्या होती है?

लोकतंत्र शब्द बोलने में भले ही सामान्य लगे, लेकिन इसका अर्थ भी उतना ही महत्वपूर्ण और जटिल है। लोकतंत्र डेमोक्रेटिक है जिसमें ग्रीक भाषा डेमोस + क्रेटिया शामिल है। जिसका अर्थ है जनता और शासन, सरल अर्थ में जनता का शासन।

लोकतंत्र की परिभाषा के अनुसार यह “जनता का, जनता के लिए, जनता द्वारा शासन” है (अब्राहम लिंकन)। अर्थात् लोकतंत्र शासन की एक ऐसी व्यवस्था है, जिसके अन्तर्गत जनता अपनी सहमति से चुनाव में किसी भी दल के स्वतंत्र प्रतिनिधि को अपना मत (वोट) देकर अपना प्रतिनिधि चुन सकती है और लोकतांत्रिक सरकार बना सकती है। इस ब्लॉग के माध्यम से विस्तार से जानिए लोकतंत्र क्या है?

लोकतंत्र के विभिन्न पहलू

यूनानी दार्शनिक अरस्तू ने लोकतंत्र को शासन की एक विकृत प्रणाली के रूप में वर्णित किया, जिसमें गरीब वर्ग का बहुमत अपने वर्ग के लाभ के लिए सत्ता में आता है और भीड़तंत्र में बदल जाता है, और इसी समय अरस्तू के लोकतंत्र को राजनीति के रूप में जाना जाता है।

देश, काल और परिस्थितियों में भिन्न-भिन्न अवधारणाओं के प्रयोग के कारण लोकतंत्र की अवधारणा कुछ जटिल हो गई है। लोकतंत्र के सन्दर्भ में प्राचीन काल से ही कई प्रस्ताव आये हैं, लेकिन इनमें से कई कभी लागू नहीं किये जा सके हैं। लोकतंत्र न केवल राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था का प्रकार है, बल्कि जीवन के प्रति एक विशेष दृष्टिकोण में इसका नाम भी है। लोकतंत्र में सभी लोगों को एक-दूसरे के प्रति वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जैसा वे अपने प्रिय लोगों के साथ करते हैं।

डेमोक्रेसी शब्द दो ग्रीक शब्दों ‘डेमास’ और ‘क्रेटोस’ से मिलकर बना है। इस प्रकार ‘देमास’ का अर्थ है ‘लोग’ और ‘क्रेटोस’ का अर्थ है ‘शक्ति’ या शासन। इस प्रकार ‘लोकतंत्र’ का अर्थ है- ‘जनता की शक्ति’ या ‘जनता का शासन’। अतः लोकतन्त्र शासन की ऐसी व्यवस्था है जिसमें शासन की शक्तियाँ राजतंत्र और अभिजात वर्ग के स्थान पर या एक व्यक्ति या कुछ व्यक्तियों के हाथ में न होकर आम जनता में निहित होती हैं।

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लोकतंत्र की परिभाषा

अब्राहम लिंकन (अमेरिकी राष्ट्रपति) ने कहा है, “लोकतंत्र जनता का, जनता के द्वारा, जनता के लिए शासन है।”

सीले के अनुसार, “लोकतंत्र सरकार का एक रूप है जिसमें प्रत्येक नागरिक भाग लेता है।”

डायसी के अनुसार, “लोकतंत्र शासन की वह व्यवस्था है जिसमें शासक वर्ग कुल जनसंख्या का अपेक्षाकृत बड़ा भाग होता है।”

लार्ड ब्राइस के अनुसार, “लोकतंत्र शासन की वह व्यवस्था है जिसमें सत्ता किसी वर्ग या वर्ग विशेष में न होकर समाज के प्रत्येक नागरिक में निहित होती है।”

उपरोक्त परिभाषाओं के अध्ययन से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि विभिन्न विद्वानों ने लोकतंत्र की परिभाषा अलग-अलग ढंग से व्यक्त की है। जहाँ कुछ ने इसे शासन का प्रकार माना है, वहीं कुछ ने इसे राज्य का प्रकार और कुछ ने समाज का प्रकार माना है।

लोकतंत्र के प्रकार

लोकतंत्र सामान्यतः दो प्रकार का होता है (Types Of Democracy), जो इस प्रकार हैं…

1. प्रत्यक्ष लोकतंत्र:

जब एक आम आदमी प्रशासन और शासन के काम में सीधे तौर पर हिस्सा लेता है। और उनके कार्य प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी का चुनाव कर निर्माण के कार्य को नियंत्रित किया जाता है। इसे प्रत्यक्ष लोकतंत्र कहते हैं।

2. अप्रत्यक्ष लोकतंत्र:

अप्रत्यक्ष लोकतंत्र को प्रतिनिधि लोकतंत्र भी कहा जाता है। एक लोकतंत्र जिसमें लोगों को वास्तविक शासन शक्ति का प्रतीक माना जाता है। लेकिन जनता स्वतंत्र रूप से वह शक्ति अपने चुने हुए प्रतिनिधियों को देती है।

लोकतंत्र की विशेषताएं

लोकतंत्र में राजतन्त्र जैसे अनेक दोषों के होते हुए भी इसकी अनेक विशेषताएँ हैं, जिसके कारण यह राजतन्त्र से कहीं अधिक उत्तम व्यवस्था है। इसमें ये विशेषताएं हैं

1. शासन प्रणाली जो लोगों के व्यक्तित्व का निर्माण करती है

फील्ड के अनुसार, लोकतंत्र का अंतिम औचित्य इस तथ्य में निहित है कि यह नागरिकों के मन में कुछ दृष्टिकोण पैदा करता है। इसमें मन स्वतंत्र रूप से सोचता है, व्यक्ति सार्वजनिक कार्यों के बारे में सोचता है, उनमें रुचि लेता है, एक दूसरे के साथ चर्चा करता है, दूसरों के प्रति सहिष्णुता और समाज के प्रति जिम्मेदारी विकसित करता है। कार्य करने की स्वतंत्रता के कारण व्यक्ति के चरित्र के अनेक गुणों का विकास होता है।

2. नैतिक विकास में सहायक

अमेरिका के राष्ट्रपति लावल ने कहा है कि शासन की उत्कृष्टता की कसौटी शासन व्यवस्था, आर्थिक समृद्धि या न्याय नहीं है (आम आदमी इन्ही को आधार मानता है) बल्कि वह चरित्र है जो वह अपने नागरिकों में पैदा करता है। अंतत: वही सरकार श्रेष्ठ है जो अपने लोगों में नैतिकता, ईमानदारी, उद्योग, स्वावलंबन और साहस की प्रबल भावना के गुण उत्पन्न करती है। मतदान का अधिकार नागरिकों में विशेष गरिमा पैदा करता है, उनमें गर्व और स्वाभिमान जगाता है।

3. जन शिक्षा का सर्वोत्तम साधन

चुनाव के समय मीडिया द्वारा तरह-तरह की समस्याएं उठाई जाती हैं, जिससे शासन की कई बातें पता चलती हैं। कुछ चुने हुए जनप्रतिनिधियों द्वारा पिछले 5 वर्षों में किए गए कार्यों की जानकारी लेते हैं और उनसे सवाल भी करते हैं, वे लोगों के विचार और शिकायतें भी सुनते हैं। इससे आम जनता को भी काफी जानकारी मिलती है और उसे पता चलता है कि जनप्रतिनिधियों को क्या काम करना था, उन्होंने क्या किया और क्या नहीं किया। इस प्रकार लोग शासन की बातों को कम समय में और संक्षेप में समझ सकते हैं।

4. लोगों में देशभक्ति पैदा करता है

राजतंत्र में लोग यह नहीं जानते कि राजा का धन कहाँ से आया और कहाँ खर्च किया गया। वे राजा से कुछ भी नहीं मांग सकते हैं, लेकिन लोकतंत्र में उन्हें बहुत सारी जानकारी मिलती रहती है, वे अपने अधिकारों को समझते हैं और वे यह भी सोचते हैं कि उनका देश और राज्य प्रगति करे। इस प्रकार लोगों में स्वतः ही देशभक्ति उत्पन्न होने लगती है।

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5. सत्ता की निरंकुशता को रोकना

मंत्रियों पर संसद का दबाव होता है और विपक्षी दल भी सरकार की गलत नीतियों का विरोध करते हैं। चुनाव के समय मंत्रियों और जनप्रतिनिधियों को फिर से जनता से वोट मांगने जाना पड़ता है, जिससे सरकार का काम अधर में रहता है। मनमानी करने वाले मंत्रियों को जनता अगले चुनाव में हरा देती है।

6. जनता की इच्छा और विशेषज्ञता का खूबसूरत मेल

हॉकिन्स ने कहा है कि प्रत्येक शासन में वास्तविक शासक विशेषज्ञ होते हैं। आम आदमी यह नहीं बता सकता कि बजट में पैसा कहां से आएगा और लोगों की जरूरत के हिसाब से इसे कैसे खर्च किया जाए; यह कोई शायर ही बता सकता है जो अर्थशास्त्र जानता हो और बजट बनाना जानता हो। अगर सड़कें बननी हैं तो कितना खर्च होगा और कहां पहले सड़कें बनाना उचित होगा, यह कोई विशेषज्ञ ही बता सकता है, लेकिन वे जनता की भावनाओं और पीड़ा को नहीं समझते।

वहीं दूसरी ओर जनप्रतिनिधि लोगों की इच्छाएं और जरूरतें बताते हैं। आमतौर पर उसी के अनुसार योजनाएँ बनाई जाती हैं। इस प्रकार लोगों की इच्छा और विशेषज्ञों के ज्ञान के समन्वय से शासन चलाया जाता है।

7. जनहित का शासन

इसमें लोगों की इच्छा को ध्यान में रखकर योजनाएँ बनाई जाती हैं, जिससे लोगों को स्वाभाविक रूप से लाभ होता है।

8. राज्य सत्ता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अद्भुत संगम

राजतंत्र में राज्य शक्ति और व्यक्तिगत स्वतंत्रता एक दूसरे के विपरीत रही है। राजा सामंत केवल आदेश देना जानता था और किसी की बात नहीं सुनना जानता था। आम आदमी उन्हें कोई सुझाव देने की सोच भी नहीं सकता था। आज लोग जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में स्वतंत्र रूप से काम करते हैं, नई खोजें होती रहती हैं, नए-नए काम होते रहते हैं जिनके बारे में राजशाही में सोचा भी नहीं जा सकता था।

सरकारें अपनी कार्य क्षमता बढ़ाने के लिए उन नए आविष्कारों का प्रयोग करती रहती हैं और विकास नए आयाम स्थापित करता रहता है। पहले जहां लोग राजाओं के पास भी नहीं जा सकते थे, आज मीडिया मंत्रियों से सवाल ही नहीं करता, बल्कि टीवी चैनलों पर एंकर उन्हें डांटते हैं और उनका मजाक उड़ाते हैं और मंत्री खुद को धन्य मानते हैं कि उन्हें टीवी पर बुलाया गया है.

9. देशभक्ति की भावना का विकास

लोकतंत्र में लोगों की अपनी सरकार होती है, अपनी सरकार होने के कारण लोग उसे सफलतापूर्वक चलाने का प्रयास करते हैं, ऐसे में लोगों का अपने देश के प्रति प्रेम बढ़ता है और लोग राष्ट्र को अपना राष्ट्र मानते हैं और इसके लिए बड़े-बड़े त्याग करने से भी नहीं हिचकिचाते। हैं। जे.एस. मिल (जे.एस. मिल) के कथन के अनुसार लोकतंत्र लोगों की देशभक्ति को बढ़ाता है क्योंकि नागरिक महसूस करता है कि सरकार उसके द्वारा बनाई गई है और मजिस्ट्रेट उसका स्वामी नहीं, बल्कि उसका नौकर है।

10. नागरिकों के अधिकारों और स्वतंत्रता का संरक्षण

लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लोगों को अनेक प्रकार के महत्वपूर्ण अधिकार प्राप्त होते हैं। प्रभावशाली अधिकार जैसे विचार व्यक्त करना, सभा करना, सरकार की आलोचना करना, मतदान करना, चुनाव लड़ना आदि लोकतांत्रिक व्यवस्था में ही संभव है, क्योंकि सरकार जवाबदेह होती है और शासक एक निश्चित अवधि के लिए जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं। हैं।

इसलिए, शासक लोगों के अधिकारों और स्वतंत्रता का उल्लंघन करने की हिम्मत नहीं करते हैं। लोकतान्त्रिक व्यवस्था में लोगों के अधिकार एवं स्वतंत्रता की रक्षा होती है। प्रजातांत्रिक व्यवस्था में जनता के अधिकारों की रक्षा के लिए कानूनी व्यवस्था की जाती है।

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11. कानूनों का अधिक अनुपालन

लोकतंत्र में जनता के चुने हुए प्रतिनिधि कानून बनाते हैं। दूसरे शब्दों में, लोग अपने स्वयं के बनाए कानूनों के अधीन हैं। स्वाभाविक है कि जनता की इच्छा के अनुसार जनता के चुने हुए प्रतिनिधि द्वारा बनाए गए कानूनों का पालन अधिक होता है।

लोकतंत्र में समानता का महत्व

लोकतंत्र में समानता का बहुत महत्व है, किसी भी लोकतांत्रिक देश में वहां रहने वाले सभी लोगों को समान रूप से देखा जाता है। वहां कोई भी व्यक्ति, चाहे वह गरीब हो या अमीर, वह किसी भी जाति और किसी भी धर्म का हो, वह उस देश के लिए समान है।

न कोई बड़ा है और न कोई छोटा। ताकि कोई बड़ा व्यक्ति किसी छोटे व्यक्ति पर अत्याचार न करे। समानता का अधिकार लोकतांत्रिक व्यवस्था का प्रमुख अंग है।

विश्व के अधिकांश लोकतांत्रिक देशों में समानता के मुद्दे पर विशेष रूप से लड़ाई लड़ी जा रही है। उदाहरण के लिए:- संयुक्त राज्य अमेरिका में अफ्रीकी-अमेरिकी लोग जिनके पूर्वज गुलाम थे और अफ्रीका से लाए गए थे, वे अभी भी अपने जीवन को असमान बताते हैं।

जबकि 1964 में अधिनियमित नागरिक अधिकार अधिनियम ने नस्ल, धर्म और राष्ट्रीय मूल के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित किया। इससे पहले अफ्रीकी-अमेरिकियों के साथ बहुत ही असमान व्यवहार किया जाता था। और कानून भी उन्हें बराबर नहीं मानता था। उदाहरण के लिए:- बस से यात्रा करते समय उन्हें बस के पिछले हिस्से में बैठना पड़ता था, या जब भी किसी गोरे व्यक्ति को बैठना होता था तो उन्हें सीट से उठना पड़ता था।

1 दिसंबर, 1955 को एक अफ्रीकी-अमेरिकी महिला रोजा पार्क्स ने एक दिन के काम के बाद थक जाने के बाद बस में एक गोरे व्यक्ति को अपनी सीट देने से इनकार कर दिया। इसके बाद अफ्रीकी-अमेरिकियों के साथ असमानता को लेकर एक बहुत बड़ा आंदोलन शुरू हुआ, जिसे नागरिक अधिकार आंदोलन कहा गया। जिसके परिणामस्वरूप 1964 में ‘नागरिक अधिकार अधिनियम’ बनाया गया, जिसमें प्रावधान किया गया कि अफ्रीकी-अमेरिकी बच्चों के लिए सभी स्कूल के दरवाजे खोल दिए जाएंगे, उन्हें अलग-अलग स्कूलों में नहीं जाना होगा जो विशेष रूप से केवल उनके लिए खोले गए थे। .

इसके बावजूद, अधिकांश अफ्रीकी-अमेरिकी गरीब हैं, और उनके बच्चे केवल कम सुविधाओं और कम योग्य शिक्षकों वाले पब्लिक स्कूलों में भाग लेने का खर्च उठा सकते हैं, जबकि श्वेत छात्र निजी स्कूलों में जाते हैं या उन क्षेत्रों में रहते हैं, जहाँ सरकारी स्कूलों का स्तर उतना ही ऊँचा है निजी स्कूलों के रूप में।

1995 में भारत सरकार द्वारा अनुमोदित विकलांगता अधिनियम के अनुसार, विकलांग व्यक्तियों को भी समान अधिकार प्राप्त हैं। और यह सरकार का दायित्व है कि समाज में उनकी पूर्ण भागीदारी संभव हो। सरकार को उन्हें मुफ्त शिक्षा देने के साथ-साथ उन्हें स्कूलों की मुख्यधारा में शामिल करना है। है।

कानून यह भी कहता है कि सभी सार्वजनिक स्थानों, जैसे भवन, स्कूल आदि को ढलान के साथ बनाया जाना चाहिए, ताकि विकलांगों के लिए वहां पहुंचना आसान हो। समानता और सम्मान के लिए किसी भी समुदाय या व्यक्ति द्वारा उठाए गए सवाल और संघर्ष लोकतंत्र को नया अर्थ देते हैं।

लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका

आम चुनावों के बाद, राजनीतिक दलों से बहुमत प्राप्त करने वाली पार्टी या दलों का गठबंधन सरकार बनाता है या सत्तारूढ़ दल बन जाता है, जो दल बहुमत नहीं प्राप्त करता है उसे विपक्षी दल कहा जाता है। सरकार बहुमत वाली पार्टी द्वारा बनाई जाती है। सरकार के कार्यों पर विपक्षी दलों की नजर रहती है। संसदीय लोकतंत्र में, सत्ताधारी दल के कार्यों पर जनता का प्रत्यक्ष नियंत्रण नहीं होता है। केवल विपक्षी दल ही इस उद्देश्य की पूर्ति करते हैं। संसदीय लोकतंत्र पर आधारित हमारे देश में सत्ता पक्ष और विपक्षी दल दोनों का अपना महत्व है।

संसद और विधानसभाओं में विपक्षी दल की सक्रियता के कारण सरकार लोक कल्याणकारी कार्य सावधानी से करने के लिए बाध्य है। विपक्षी दल भी संसद और विधान सभाओं में सरकार की आलोचना करते हैं और नई नीतियों और कार्यों का सुझाव भी देते हैं।

विपक्ष की उपस्थिति के कारण सरकार जनता के प्रति अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन अधिक जागरुकता के साथ करती है। किसी भी कानून को विधायिका में पारित करने से पहले उस पर विचार-विमर्श और चर्चा की जाती है। कानून के दोषों को विपक्ष के सहयोग से दूर किया जा सकता है। विधानमंडल और संसद की बैठकों के दौरान विपक्ष की भूमिका बढ़ जाती है। विपक्ष सदन में प्रश्न पूछकर स्थगन प्रस्ताव लाकर सरकार पर दबाव बनाता है।

इस प्रकार विपक्ष जनता के सामने अपनी योग्यता स्थापित करता है, विपक्ष सरकार की त्रुटियों को जनता के सामने लाता है। सरकार की नीतियों और कार्यों की आलोचना करके सरकार को गलती सुधारने के लिए बनाया जाता है। विपक्ष के अपनी चाल चलने से सरकार प्रभावित होती है। http://www.histortstudy.in

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लोकतंत्र में विपक्षी दल की क्या भूमिका है।

लोकतंत्र में विपक्षी दल की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

  • विपक्ष का काम सरकार की उन कमियों को दूर करना है जिससे सरकार अच्छा काम करती है।
  • विपक्षी दल संसद और विधान सभाओं में सरकार की आलोचना करते हैं
  • विपक्षी दल सदन में प्रश्न पूछकर स्थगन प्रस्ताव लाकर सरकार पर दबाव बनाता है।
  • यह एक दबाव समूह के रूप में कार्य करता है।
  • यह सत्ताधारी दल के कामकाज पर नजर रखता है।
  • यह संसद में अलग-अलग विचार रखता है और अपनी विफलताओं या गलत नीतियों के लिए सरकार की आलोचना करता है।
  • विपक्ष सरकार की खामियों को जनता के सामने लाता है।

भारत में किस प्रकार का लोकतंत्र है

भारत दुनिया का दूसरा (जनसंख्या में) और सातवां (क्षेत्रफल में) सबसे बड़ा देश है। भारत दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है, फिर भी यह एक युवा राष्ट्र है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का निर्माण 1947 की आजादी के बाद इसके राष्ट्रवादी आंदोलन कांग्रेस के नेतृत्व में हुआ था।

लोकसभा के सदस्यों का चुनाव प्रत्येक 05 वर्ष में एक बार होता है। वर्तमान में, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी मंत्रिपरिषद के प्रमुख हैं, जबकि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू राज्य के प्रमुख हैं।

भारत एक संसदीय सरकार के साथ एक संप्रभु समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य है जो एकात्मक सुविधाओं के साथ संरचना में संघीय है। राष्ट्रपति को सलाह देने के लिए प्रधान मंत्री के साथ एक मंत्रिपरिषद है जो देश का संवैधानिक प्रमुख है।

लोकतंत्र सरकार की एक प्रणाली है जो नागरिकों को वोट देने और मतदाताओं को अपनी पसंद की विधायिका चुनने की अनुमति देती है। इसके तीन मुख्य अंग हैं: कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका। https://www.onlinehistory.in/

देश में दो मुख्य गठबंधन: राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन, संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन और सत्तारूढ़ दल 16; छह मुख्य राष्ट्रीय दल हैं: भारतीय जनता पार्टी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी), बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी। राज्य स्तर पर, कई क्षेत्रीय दल हर पांच साल में विधानसभा के लिए खड़े होते हैं।

भारत में लोकतंत्र की चुनौतियाँ

निरक्षरता, गरीबी, कट्टरता, जातिवाद, सांप्रदायिकता आदि को खत्म करने के लिए लोकतंत्र के सामने चुनौतियां हैं। गरीबी, स्वास्थ्य देखभाल, कम साक्षरता दर, जनसंख्या की अधिकता, बेरोजगारी भारत के अधिकांश हिस्सों में व्याप्त है, जो राष्ट्रीय प्रगति में बाधक है। भारतीय समाज में जाति और लैंगिक भेदभाव जारी है, जो प्रगति और विकास को धीमा कर रहा है।

भारत का लोकतंत्र निरक्षरता, गरीबी, महिलाओं के खिलाफ भेदभाव, जातिवाद और सांप्रदायिकता, क्षेत्रवाद, भ्रष्टाचार, राजनीति के अपराधीकरण और हिंसा की चुनौतियों का सामना कर रहा है। लोकतंत्र की सफलता काफी हद तक साक्षरता पर निर्भर करती है, लेकिन भारत में निरक्षरता को मिटाना अभी भी मुश्किल है।

निरक्षरता: निरक्षर जनता कभी भी एक मजबूत लोकतंत्र के निर्माण में योगदान नहीं दे सकती है। यह समस्या आजादी के समय से देश के साथ है।

गरीबी : बढ़ती गरीबी की समस्या लोकतंत्र की सबसे बड़ी चुनौती है। आर्थिक विकास के लिए यह आवश्यक है कि देश के लोगों में अमीर और गरीब के बीच की खाई को कम किया जाए।

साम्प्रदायिकता – साम्प्रदायिकता एक ऐसी बाधा है जिसके अनुसार समाज के कुछ लोग केवल अपने स्वार्थ के कारण लोकतन्त्र की परवाह नहीं करते। यह एक धार्मिक समुदाय में विभाजित हो जाता है।

जातिवाद: भारत में प्राचीन काल से जाति व्यवस्था रही है। जातिवाद के कारण दो समाजों के लोग अपने को एक दूसरे से अलग समझने लगते हैं और लोकतंत्र मजबूत नहीं हो पाता।

मीडिया की पक्षपाती प्रकृति: मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है लेकिन मीडिया जिस तरह से जाति, धर्म के मुद्दों पर पक्षपातपूर्ण खबरें परोसता है, वह लोकतंत्र को नष्ट कर रहा है।

धन बल का बढ़ता प्रचलन- भारत में जिस प्रकार धन और शक्ति की वृद्धि हो रही है उसने लोकतंत्र को धन व्यवस्था में बदल दिया है। अपराधी और गुंडे जबरन चुनाव जीत जाते हैं। https://studyguru.org.in

भारत में लोकतंत्र का भविष्य

15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ और 26 जनवरी 1950 को एक लोकतांत्रिक गणराज्य बना। संविधान निर्माताओं ने अतीत और भविष्य की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए भारत को एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया। भारत में जिस तरह से सोशल मीडिया के साथ-साथ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया धार्मिक मुद्दों को विवादास्पद रूप में उठा रहा है, वह लोकतंत्र के लिए खतरनाक साबित होगा।

Also Read – भारत के संविधान का निर्माण किस प्रकार हुआ : एक विस्तृत ऐतिहासिक विश्लेषण सामान्य परिचय

सरकार गुप्त रूप से सांप्रदायिकता का समर्थन करती है। इतिहास और ऐतिहासिक धरोहरों को जाति और धर्म के चश्मे से देखा जा रहा है. राजशाही में किए गए काम को लोकतंत्र में एकतरफा बदला जा रहा है। अदालतों की विश्वसनीयता भी घट रही है। सरकारी एजेंसियों द्वारा सरकार के विरोधियों को गिरफ्तार किया जा रहा है और कैद किया जा रहा है।

अंत में, हम लोकतंत्र की उपयोगिता से इनकार नहीं कर सकते। भारत में प्रजातांत्रिक प्रणाली प्राचीन काल से ही कई गणराज्यों द्वारा अपनाई गई है। लोकतंत्र जहां समाज के सबसे निचले तबके को राजनीतिक शक्ति प्रदान करता है, वहीं अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक भी करता है। लोकतंत्र तभी सफल होता है जब चुने हुए प्रतिनिधि और सरकार बिना किसी भेदभाव के निष्पक्ष रूप से काम करते हैं।

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लोकतंत्र और लोकतान्त्रिक दुनिया

लोकतंत्र अंग्रेजी शब्द डेमोक्रेसी (Democracy) का हिंदी रूपांतरण हैं. विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र, भारत के नागरिक होने के कारण आप इस शब्द से भलीभांति वाकिफ होंगे. आज के समय वैश्विक प्रशासन और राजनीति में लोकतंत्र का काफी महत्वपूर्ण स्थान है. कारण हैं- सभी कोई सत्ता में भागीदारी चाहते हैं, लेकिन सभी एक साथ शासक नहीं बन सकते. अधिकतर को शासित बनना ही होता हैं. किन्तु, लोकतान्त्रिक शासन-प्रणाली सत्ता में जन-भागीदारी सुनिश्चित कर देती है. यही इसकी सबसे बेहतर खासियत है. तो आइये हम सरल व आसान भाषा में लोकतंत्र से जुड़े सभी जरुरी पहलुओं को समझने की कोशिश करते हैं कि loktantra kya hai?

लोकतंत्र का अर्थ (Meaning of Democracy in Hindi)

अंग्रेजी शब्द Democracy दो ग्रीक शब्दों, Demos व Kratos से मिलकर बना हैं. Demos का मतलब हैं लोग या लोक (People) व kratos का मतलब है ‘शासन’ या शासन-तंत्र. इस तरह Democracy का सही अर्थ जनता का शासन होता हैं, जिसे हिंदी में लोकतंत्र कहते हैं.

वास्तव में, लोकतंत्र का मतलब होता है- न कोई राजा और न कोई गुलाम, सब एक समान. हर व्यक्ति को अपना बात रखने का अधिकार है. इसलिए, इसे आधुनिक व प्रगतिशील शासन-प्रणाली कहा जाता हैं. यह वह शासन प्रणाली है, जहाँ जनता शक्तिशाली होते है, और शासक उनके चुने हुए प्रतिनिधि मात्रा.

लोकतंत्र क्या है? (What is democracy in Hindi)

लोकतंत्र शासन की एक प्रणाली है, जिसमें लोगों के पास कानून बनाने की शक्ति होती है, यानी ‘प्रत्यक्ष लोकतंत्र ‘; और जिसमे लोग ये तय करते है कि शासन में उनका प्रतिनिधित्व कौन करेगा उसे अप्रत्यक्ष यानी ‘ प्रतिनिधि लोकतंत्र ‘ कहते है.

एक लोकतांत्रिक समाज में, समय के साथ जनसंख्या में आम तौर पर वृद्धि हुई है. हालाँकि, किसे ‘लोगों’ के रूप में माना जाता है और लोगों के बीच सत्ता कैसे वितरित या प्रत्यायोजित की जाती है, यह समय के साथ और अलग-अलग देशों में अलग-अलग रूप में विकसित हुआ है.

सभा की स्वतंत्रता, संघ, संपत्ति के अधिकार, बोलने की स्वतंत्रता, समावेशिता और समानता, नागरिकता, शासितों की सहमति, मतदान के अधिकार, जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार, अन्यायपूर्ण सरकारी वंचन से स्वतंत्रता, और अल्पसंख्यक व समाज के निचले तबके को अधिकार लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों में से हैं.

आधुनिक समय में, लोकतंत्र वह है जहाँ लोग मतदान के द्वारा अपने शासक का चुनाव करते है व उम्मीद रखते है कि अपने कार्यकाल के दौरान ये शासक सर्वश्रेष्ठ निति, योजना व कानून बनाकर राज्य को आगे बढ़ाने का काम करेंगे.

लोकतंत्र का शुरुआत और अरस्तू (Inception of Democracy in Hindi)

लोकतंत्र का शुरुआत पुनर्जागरण और फ़्रांस के गौरवपुर्ण क्रांति के साथ माना जाता है. पुनर्जागरण के प्रणेता, अरस्तु, प्लूटो, सुकरात जैसे संतवादियों ने ही आधुनिक लोकतंत्र कि बुनियाद रखी थी. इन्होंने लोकतंत्र के विभिन्न प्रकार के सिद्धांतो की व्याख्या कर जनता में लोकतंत्र के विकास का आधार तैयार किया था.

अरस्तू ने लोकतंत्र द्वारा शासन का कुछ कुलीनतंत्र / अभिजात वर्ग के शासन और एक अत्याचारी या निरंकुशता / पूर्ण राजशाही के शासन के साथ तुलना की. उन्होंने सभी में एक अच्छा और एक बुरा संस्करण पाया.

अपनी पुस्तक “ पॉलिटिक्स ” के पांचवें खंड के पांचवें अध्याय में अरस्तू ने कहा है कि लोग समाज में विशेषाधिकार और संपत्ति के वितरण में समानता चाहते हैं, जो कि सिर्फ लोकतंत्र में ही संभव है. अधिक समानता वाले समाज की लालसा लोगों को जनोन्मादी नेताओं को ठुकराने के लिए प्रेरित करेगी, इससे लोकतंत्र सरकार के सबसे टिकाऊ रूप में उभरेगा. हालांकि दोनों ही इस बात पर सहमत थे कि लोकतंत्र की अंतर्निहित कमज़ोरियों के कारण इस पर जनोन्माद फैलाने वाले नेताओं के कब्ज़े की आशंका हमेशा बनी रहती है.

प्लेटो के शिष्य (अरस्तु) का विवेचना (Aristotle’s Concept in Hindi)

अरस्तु के गुरु प्लेटो थे. हालाँकि, प्लेटो और अरस्तू ने लोकतंत्र की निरंतरता पर परस्पर विपरीत विचार व्यक्त किए थे. प्लेटो ने अपनी पुस्तक रिपब्लिक के आठवें खंड में लोकतंत्र को मूलत: अस्थाई बताया है. उनका कहना है कि लोगों को स्वतंत्रता दिए जाने पर उनके बीच जनोन्माद फैलाने वाले नेताओं के उभरने की परिस्थिति भी बनती है. सत्ता के लिए ऐसे नेताओं के बीच प्रतिस्पर्द्धा से निरंकुश शासन पैदा हो जाता है.

अरस्तू का सुझाया समाधान क्या था? अरस्तू का मानना था कि समानता की अवधारणा के इर्द-गिर्द बहुमत निर्मित करना हमेशा संभव होगा. यहां समानता से मतलब गिनी गुणांक से मापी जाने वाली संपत्ति या आय की समानता नहीं, बल्कि हैसियत, विशेषाधिकार, वस्तुओं और समाज में उपलब्ध अवसरों की समानता है.

अरस्तू ज़्यादा गलत भी नहीं थे. साथ ही अरस्तू, खुल कर ऐसा कहे बिना, यह भी मानते था कि जनोन्माद का मुकाबला जनोन्माद से ही हो सकता है, जो कि समतामूलक उद्देश्यों वाला जनोन्माद होगा. ध्यान दें कि यह गिनी गुणांक आधारित नवउदारवादी समानता नहीं है, बल्कि वास्तविक समानता है.

लोकतंत्र पर पुराने सोच (Old thoughts on Democracy in Hindi)

फिर भी अधिकतर प्रारंभिक और पुनर्जागरण रिपब्लिकन सिद्धांतकारों के बीच एक आम विचार यह था कि लोकतंत्र केवल छोटे राजनीतिक समुदायों में ही जीवित रह सकता है. इसके पक्ष में रोमन गणराज्य का तर्क दिया गया.

कहा गया कि इन राज्यों के बड़े होने के साथ यह राजशाही में बदल गया. जब तक ये राज्य छोटे रहे, लोकतंत्र कायम रहे. इन रिपब्लिकन सिद्धांतकारों ने माना कि क्षेत्र और जनसंख्या का विस्तार अनिवार्य रूप से अत्याचार का कारण बना.

इसलिए लोकतंत्र ऐतिहासिक रूप से अत्यधिक नाजुक और दुर्लभ था, क्योंकि यह केवल छोटी राजनीतिक इकाइयों में ही जीवित रह सकता था, जो अपने आकार के कारण बड़ी राजनीतिक इकाइयों से असुरक्षित थे.

मोंटेस्क्यू ने इसकी प्रसिद्ध व्याख्या करते हुए कहा, “यदि एक गणतंत्र छोटा है, तो इसे बाहरी ताकतों द्वारा नष्ट कर दिया जाता है; यदि यह बड़ा है, तो इसे आंतरिक उथल-पुथल द्वारा नष्ट कर दिया जाता है.”

रूसो ने जोर देकर कहा, “इसलिए लोकतंत्र छोटे राज्यों नैसर्गिक रूप से संभव है. माध्यम आकार का राज्य एक सम्राट के अधीन होने के लिए, और बड़े साम्राज्यों को एक निरंकुश राजकुमार द्वारा नष्ट किए जाने के लिए उपयुक्त हैं.”

लोकतंत्र की परभाषाएँ (Definitions of Democracy in Hindi)

लोकतंत्र की व्याख्या दुनिया के विद्वानों ने की हैं. इसमें सुविख्यात परिभाषा अमेरिका के 16वें राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन का है. उनके अनुसार, “लोकतंत्र जनता का, जनता के द्वारा तथा जनता के लिए शासन है”.

वास्तव में लिंकन ने यूनानी दार्शनिक वलीआन को दोहराया था. वलीआन के अनुसर, “लोकतंत्र वह होगा जो जनता का, जनता के द्वारा हो, जनता के लिए हो.”

लोकतंत्र की कुछ अन्य प्रसिद्ध परिभाषाएँ इस प्रकार है:-

  • डाइसी (Dicey) के अनुसार, “लोकतंत्र वह शासन प्रणाली है जिसमें शासक वर्ग राष्ट्र का एक प्रमुख हिस्सा हो.”
  • हॉल के कथन के अनुसार – “लोकतंत्र का मतलब एक ऐसी शासन से होनी चाहिए जिससे लोगों द्वारा आवश्यकता अनुसार भाग लिया जा सके तथा अपने मत व विचार प्रकट कर सके.”
  • जॉनसन ने लोकतंत्र को परिभाषित करते हुए कहा, “जनतंत्र शासन का वह रूप है जिसमें प्रभुसत्ता जनता में सामूहिक रूप से निहित हो.”
  • एंड्रयू हेवुड, के अनुसार, “लोगों द्वारा शासन; लोकतंत्र का तात्पर्य बड़े स्तर पर जनता की भागीदारी और जनहित में सरकार दोनों से है, और यह कई प्रकार के रूप में हो सकता है.”
  • सारटोरी ने कहा, “लोकतंत्रीय व्यवस्था वह है जो सरकार को उत्तरदायी तथा नियंत्रणकारी बनाती हो तथा जिसकी प्रभावकारिता मुख्यत: इसके नेतृत्व की योग्यता तथा कार्यक्षमता पर निर्भर हैं.”
  • डॉ जॉन हिर्स्ट कहते है, “लोकतंत्र एक ऐसा समाज है जिसमें नागरिक संप्रभु होते हैं और सरकार को नियंत्रित करते हैं.”
  • बाबा साहब डॉ भीमराव आंबेडकर के अनुसार, ‘लोकतंत्र का अर्थ है एक ऐसी जीवन पद्धति, जिसमे समता, स्वतंत्रता और बंधुता सामाजिक जीवन के मूल सिद्धांत होते हैं.’

लावेल के अनुसार, “लोकतंत्र शासन के क्षेत्र में केवल एक प्रयोग है.”

  • जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ने लोकतंत्र पर कहा, “लोकतंत्र, अपनी महंगी और समय बर्बाद करने वाली खूबियों के साथ सिर्फ़ भ्रमित करने का एक तरीका भर है, जिससे जनता को विश्वास दिलाया जाता है कि वह ही शासक है जबकि वास्तविक सत्ता कुछ गिने-चुने लोगों के हाथ में ही होती है.”
  • जोसेफ शुम्पीटर के अनुसार, “लोकतांत्रिक पद्धति राजनीतिक निर्णयों पर पहुंचने की वह संस्थागत व्यवस्था है जिसमें व्यक्तियों को लोगों के वोट के लिए प्रतिस्पर्धात्मक संघर्ष के माध्यम से निर्णय लेने की शक्ति प्राप्त होती है.”
  • सीले (Seeley) के कथनानुसार, “लोकतंत्र एक ऐसी सरकार है जिसमें हरेक व्यक्ति का एक हिस्सा हो.”
  • लॉर्ड ब्रायस (Lord Bryce) के मतानुसार, “वह शासन जिसमें राज्य की सत्ता पूरे समाज के हाथ में है, समाज के किसी विशेष वर्ग या श्रेणी के पास नहीं.”

यूूूूनान के प्रसिद्ध विद्वान् हेरोडोटस (Herodotus) ने, “लोकतंत्र को एक ऐसा शासन बताया है जिसमें सबसे ऊच शक्ति सभी लोगों के पास होती है.”

अमेरिकी फुटबॉल कोच और राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर रेमंड गारफील्ड गेटेल के अनुसार, “लोकतंत्र शासन का वह रूप है जिसमें जनसंख्या के बहुत बड़े भाग को शासन के सर्वोच्च शक्ति का उपयोग करने का अधिकार प्राप्त होता है. राजनीतिक महानता पर लोगों का विश्वास है और इस विचार के विरुद्ध है के किसी एक श्रेणी को विशेष राजनीतिक रवायतें प्राप्त हो या राजनीतिक शक्तियों पर उसी श्रेणी का एकाधिकार हो.

लोकतंत्र बहुमत के और लोगों की राय के अनुकूल कानून शासन करने पर जोर देता है. “लोकप्रिय बुद्धि और सदाचार इसके सबसे मूल्यवान परिणाम हैं. लोकप्रिय चुनाव, लोकप्रिय नियंत्रण और लोकप्रिय जिम्मेदारी न केवल सरकार में दक्षता बल्कि राज्य में स्थिरता भी सुनिश्चित करती हैं.”

प्रजातंत्र से जुड़ी शब्दावली (Democracy related Vacabulary in Hindi)

  • तर्कबुद्धिवादी लोकतंत्र – सिमोन चैम्बर्स
  • संघर्षपूर्ण लोकतंत्र – फिलिप पेटिट
  • विमर्शी लोकतंत्र – जॉन ड्राइजेक
  • संचरीय लोकतंत्र – आइरिश मेरियन यंग

लोकतंत्र कितने प्रकार के होते है? (Types of Democracy in Hindi)

वास्तव में लोकतंत्र के दो प्रकार होते हैं- प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष. इसके दो अन्य प्रकार है- संवैधानिक व निगरानी लोकतंत्र. इस तरह लोकतंत्र के चार प्रकार है-

1. प्रत्यक्ष लोकतंत्र (Direct Democracy in Hindi)

जैसा की नाम से ही सुस्पष्ट है, इस तरह के लोकतान्त्रिक सत्ता में जनता किसी मसले पर सामूहिक रूप से निर्णय लेती है. इसे विशुद्ध लोकतंत्र भी कहा जाता है. इसमें सभी लोग निश्चित तिथि या रात में एक जगह एकत्रित होते हैं और समस्या के समाधान से जुड़े निर्णय लेते हैं. लेकिन आबादी अधिक होने पर, सभी लोग कई मसलों पर तुरंत फैसला नहीं ले सकते हैं. यह इसकी सबसे बड़ी खामी है. प्रत्यक्ष लोकतंत्र को लोकतंत्र का सबसे पुराना रूप भी कहते हैं.

प्राचीन एथेंस के कई शहरों में प्रत्यक्ष लोकतंत्र को अपनाया गया था. हालाँकि इसमें भी सिर्फ सैन्य प्रेक्षण पूरा किये हुए व्यस्क पुरुषों को ही हिस्सा लेने दिया जाता था. केवल वयस्क पुरुष जिन्होंने अपना सैन्य प्रशिक्षण पूरा किया हो. महिलाऐं, गुलाम व सामान्य नागरिक को इसमें भाग लेने की अनुमति नहीं थी.

प्राचीन भारत के महाजनपदों में लिच्छवि गणराज्य में भी, कुलीनों के एक समूह द्वारा, शासन से जुड़े निर्णय सामूहिक रूप से ली जाती थी.

भारत में आयोजित की जानेवाली ग्राम-सभाएं भी प्रत्यक्ष लोकतंत्र का उदाहरण हैं. यहाँ मुखिया के अध्यक्षता में जनभागीदारी में ग्राम विकास के निर्णय लिए जाते है.

हाल ही में ब्रिटेन में ब्रेक्जिट के लिए किया गया मतदान भी प्रत्यक्ष लोकतंत्र का एक उदाहरण हैं.

2. अप्रत्यक्ष लोकतंत्र (Indirect Democracy in Hindi)

लोकतंत्र का यह प्रकार सबसे आधुनिक व लोकप्रिय हैं. इस प्रणाली में मतदाता एक निश्चित अवधि के लिए मतदान द्वारा अपने प्रतिनिधि का चुनाव करती है, जो शासन के जिम्मेदार होते है.

इस तरह के लोकतंत्र में सामान्यतः सभी वयस्कों को बिना किसी भेदभाव के मतदान का अधिकार दिया जाता है. इसे सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार भी कहा जाता हैं. इसके कुछ अपवाद भी होते है, जैसे कैदी व राजद्रोही. इसे ‘प्रतिनिधिक लोकतंत्र (Representative Democracy) के नाम से भी जाना जाता हैं.

भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका व इंग्लैंड में अप्रत्यक्ष लोकतंत्र हैं.

3. संवैधानिक लोकतंत्र (Constituitional Democracy in Hindi)

इसमें संविधान के अनुसार यह निर्णय लिया जाता है कि लोगों का प्रतिनिधित्व कौन और कैसे करेगा? भारत, अमेरिका व ऑस्ट्रेलिया के लोकतंत्र की यह एक विशेषता हैं.

4. निगरानी लोकतंत्र (Vigilance Democracy in Hindi)

राजनीतिक वैज्ञानिक जॉन कीन का सुझाव है कि लोकतंत्र का एक नया रूप विकसित हो रहा है. इसमें सार्वजनिक और निजी एजेंसियां, आयोग और नियामक तंत्रों की एक विशाल उपशाखा द्वारा सरकार की लगातार निगरानी की जाती है. भारत में इसका एक उदाहरण है कृषि कानूनों का किसानों के समूह द्वारा विरोध किए जाने के बाद इसे सरकार द्वारा वापस लिया जाना.

लोकतंत्र की विशेषताएं व यह क्यों जरूरी है? (Characteristics and Importance of Democracy in Hindi)

आधुनिक युग में लोकतंत्र सबसे अधिक लोकप्रिय है. लोकतंत्र में व्यापक नैतिक मूल्य शामिल हैं. इसलिए लोकतंत्र को एक नैतिक आचरण भी माना जाता है. लोकतंत्र में जनता के पास कई अधिकार होते हैं, लेकिन यह राजतन्त्र या तानाशाही में सम्भव नहीं होता हैं. इसकी कुछ खासियत हैं-

जनता के इक्षा पर निर्भर सरकार (Public Choiced Government)

आधुनिक लोकतंत्र में सत्ता संचालन के लिए जनता द्वारा चार या पांच वर्षों के लिए सरकार का चयन किया जाता हैं. ऐसा हरेक बार सरकार का कार्यकाल समाप्त होने से कुछ समय पहले किया जाता हैं. लेकिन एक बार चुनाव हो जाने के बाद चुनी हुई सरकार स्वायत हो जाती है व अपने शेष कार्यकाल के दौरान मनमानी कर सकती है. लेकिन जनता ऐसा होने पर आन्दोलनों का सहारा ले लेती हैं जिससे सरकार को अपना निर्णय बदलना पड़ता है.

दरअसल, ऐसे सरकार में शामिल लोग अगली बार भी चुनकर आना चाहते है. इसलिए वे कोई भी गलत निर्णय लेने से बचते है. इस तरह लोकतान्त्रिक सरकार कल्याणकारी व जनहितकारी फैसले लेती है. लेकिन राजतंत्र या तानाशाही प्रणाली में शासक का चुनाव नहीं किया जाता है, जिससे वे सामान्य जनता के कल्याण से अधिक खुद व अपने ख़ास लोगों के कल्याण पर ध्यान देती हैं.

लोक कल्याणकारी राज्य (Welfare State in Hindi)

प्रजातांत्रिक सरकार किसी विशेष जाति, वर्ग, पंथ, परंपरा, धर्म या समूह के हितों के लिए काम नहीं करती, बल्कि पुरे राज्य के हितों का ख्याल रखती है और सभी को उनके विकास के लिए समान अवसर प्रदान करती है. सरकार सभी के कल्याण के लिए आर्थिक, शैक्षणिक और सामाजिक योजनाएँ बनाती है. अगर सरकार ऐसा नहीं करती है, तो लोगों के पास इसे अगले चुनाव में बदलने का विकल्प होता हैं.

जवाबदेह सरकार (Responsible Government)

ऐसी सरकार में जनता द्वारा सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार चुने गए प्रतिनिधि शामिल होते है. ये जनता के प्रति उत्तरदायी रहते हैं और यदि वे अपना उत्तरदायित्व नहीं निभाते हैं, तो लोग उन्हें अगले चुनावों के दौरान बदल सकते हैं. इसलिए इसे जिम्मेदार सरकार माना जाता है.

अच्छे व विकासोन्मुखी नीति का निर्माण (Good Policy and Decision)

एक लोकतांत्रिक सरकार में प्रतिनिधियों का लोगों के साथ सीधा संबंध होता है. इसलिए वे उनकी समस्याओं और हितों को ठीक से समझते हैं. वे विधानसभाओं और संसद में लोगों के हितों का ठीक से रखते करते हैं और हमेशा अच्छे योजनाओं व नीतियों को बनवाकर पारित करने का प्रयास करते हैं. राजशाही व तानाशाही में ऐसा सिर्फ और सिर्फ राजा या तानाशाह के इक्षा पर निर्भर होता हैं.

राजनैतिक जागरूकता (Political Awareness)

जनता में जागरूकता इसका सबसे बड़ा शिक्षाप्रद नैतिक मूल्य है. चुनावों और अन्य राजनीतिक गतिविधियों में आम जनता भागीदार होती हैं. ऐसे में वे समकालीन व अन्य बहसों में हिस्सा लेते हैं. वे नीति व योजनाओं की व्याख्या भी करते हैं. वे गलत तथ्यों व नीतियों का आलोचना कर किसी सरकार या नेता के खिलाफ माहौल भी बनाते हैं. ये काम लोगों को बुद्धिमान और राजनीतिक रूप से जागरूक बनाती है.

लोगों का जागरूक और बुद्धिमान होना राज्य संचालन में बहुत मददगार होता है. इसलिए लोकतंत्र में शिक्षा का अधिकार प्रत्येक नागरिक को निःशुल्क उपलब्ध होनी चाहिए.

स्वतंत्रता, बंधुत्व और समानता का अस्तित्व (Liberty, Fraternity and Equality)

इसमें लोगों के अधिकारों और स्वतंत्रता की अच्छी तरह से रक्षा की जाती है. लोगों को बिना किसी डर के अपने विचार व्यक्त करने की आजादी दी गई है. वे सरकार की गलत नीतियों की आलोचना कर सकते हैं. यह स्वायत्तता लोगों को समानता भी प्रदान करती है. सभी नागरिकों को समान अवसर मिलते है. सरकार का सभी के प्रति सामान व्यवहार से समाज में कटुता कम हो जाती है और भाईचारा को बढ़ावा मिलता हैं.

कमजोर वर्ग व अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व (Representation of Weak and Minorities)

कमोबेश दुनिया के सभी लोकतान्त्रिक देशों में बहुसंख्यकों के साथ-साथ कमजोर व अल्पसंख्यक वर्ग मौजूद हैं. ऐसे में लोकतान्त्रिक सरकार से उम्मीद की जाती है कि वह कमजोर व अल्पसंख्यकों तबके के बहिष्कार या उत्पीड़न को कानून बनाकर रोके. लोकतान्त्रिक सरकार को हर संभव तरीके से जीवन और आजीविका में उनकी समान स्थिति रखने में सहायता करनी चाहिए.

अधिकांश लोकतंत्र ऐसे वर्ग को जनसंख्या के आकार के अनुपात में प्रतिनिधि व सरकारी सेवाओं में पदों को आरक्षित करते हैं. शेष पद सभी के लिए उपलब्ध होते है. SC ST Act व आरक्षण भारत में इसका एक उदाहरण है.

निर्णय की गुणवत्ता (Quality Decision Process)

सरकार परामर्श व व्यापक बहस के बाद निर्णय लेती हैं. निर्णय-प्रक्रिया में कई लोग हिस्सा लेते है व कोई भी निर्णय व्यापक चर्चा और बैठकों के बाद ही ली जाती हैं. इस तरह कई लोग मिलकर फैसले, नीति या योजनाओं में छोटी-छोटी खामी भी ढूंढ निकलते है.

यदि निर्णय गलत व जन-कल्याण के विपरीत हो तो, जनता को विरोध-प्रदर्शन करने की आजादी होती हैं. ऐसे अधिकतर मांगों को सरकार व्यापक अध्ययन के बाद मान भी लेती हैं. लेकिन अलोकतांत्रिक देशों में ऐसा नहीं होता हैं.

संवैधानिक कानून के भीतर नियम (Within Constituitional Ambit)

लोकतांत्रिक देश में सत्ताधारी सरकार नहीं, बल्कि संविधान सर्वोपरि होती है. सरकार एक विधायी निकाय होता है जो देश के संविधान द्वारा निर्धारित सर्वोच्च शक्ति इस्तेमाल करने का ताकत रखता है. एक नई सरकार एक निश्चित अवधि के बाद चुनी जाती है, उसके पास केवल कुछ स्थापित कानूनों में संशोधन करते हुए निर्णय लेने और उन्हें लागू करने की शक्तियां होती हैं. ऐसी सभी गतिविधियाँ देश के कानून और संविधान की देखरेख में ही की जा सकती हैं.

विवाद और भेदभाव का निपटान (Disposal of Dispute and Discrimination)

Nelson Mandela Casting His Vote

यह सभी नागरिकों को कुछ बुनियादी अधिकार प्रदान करता है जिसके माध्यम से वे अपनी राय दे सकते हैं. जैसे, संसद में सभी सदस्यों को अपनी राय देने का अधिकार होता है. जनता खुद भी पत्राचार के माध्यम से अपनी बात सरकार के सामने रख सकती है. लोकतंत्र नागरिकों को किसी भी धर्म का पालन करने का अधिकार प्रदान करता है और धार्मिक व जातीय भेदभाव नहीं किया जाता है. इस तरह अधिकांश सामजिक विवादों का निपटान हो जाता हैं.

गलती सुधारने का मौका (Opportunity to amend Mistakes)

इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि लोकतंत्र में शासको द्वारा गलतियाँ नहीं की जा सकतीं. सरकार का कोई भी रूप इसकी गारंटी नहीं दे सकता. लेकिन लोकतंत्र में यह लाभ है कि ऐसी गलतियों को लंबे समय तक छुपाया नहीं जा सकता है. अक्सर ये गलतियां सरकार बदलने पर सामने आ जाती है. साथ ही RTI जैसे कानून भी भ्रष्टाचार को बेपर्दा करते है. इन गलतियों पर सार्वजनिक चर्चा की गुंजाइश होती है और सुधार की भी.

लोकतंत्र के प्रमुख सिद्धांत (Main Theories of Democracy in Hindi)

स्वतंत्रता, समानता, भातृत्व व न्याय जैसे मूल्यों पर लोकतंत्र के चार प्रमुख सिद्धांत आधारित है. इसके अलावा भी इसके कई अन्य नैतिक मूल्य है, जिसके आधार पर यह शासन-प्रणाली विश्व के अधिकांश देशों में सुचारु रूप से लागु हैं. ये नैतिक मूल्य ही इस शासन व्यवस्था को सर्वोत्तम बनाती है.

1. लोकतंत्र का पुरातन उदारवादी सिद्धांत (Archaic Liberal Theory of Democracy in Hindi)

लोकतंत्र की उदारवादी परम्परा में स्वतंत्रता, समानता, मूल अधिकार, धर्मनिरपेक्षता और न्याय जैसे सर्व-स्वीकार्य मूल्यों पर आधारित है. इसके समर्थक इसे लोकतंत्र का सबसे बढियाँ प्रकार बताते है.

सामंतवाद के पतन के बाद इसे ही शासन का मूल आधार बनाया गया था. मैक्फर्सन के अनुसार, यूरोप में लोकतान्त्रिक व्यवस्था के आने से पहले ही इससे जुड़े मूल्यों का विकास हो गया. बाद में ये उदारवादी मूल्य, लोकतंत्र में बदल गए.

लोकतंत्र का विकास व विस्तार में कई दार्शनिकों, विचारकों, लेखकों, क्रांतिकारियों, सामान्य नागरिकों व उद्योगपतियों ने अपना योगदान दिया. लेकिन इसमें सबसे अधिक योगदान पुनर्जागरण के दौरान उपजे वैचारिक समृद्धि को दिया जाता है. इस दौरान कई चित्रकार, लेखक व अन्य क्षेत्रों में विशेषज्ञ पैदा हुए, जिन्होंने लोकतंत्र के विकास में योगदान दिया.

आरंभिक विचार

लोकतान्त्रिक भावना के आरम्भिक चिह्न टॉमसमूर के पुस्तक यूटोपिया (1616) और विंस्टैनले जैसे अंग्रेज विचारकों और अंग्रेज अतिविशुद्धतावाद (प्यूरिटैनिजन्म) के साहित्य में पाया जा सकता है. भारत के समाज सुधारक संत रैदास के बेगमपुरा शहर संकल्पना में भी लोकतान्त्रिक भाव पाया जाता हैं.

इसी क्रम में, थॉमस हॉब्स ने 1651 में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘लेवियाथन’ में प्रमुख लोकतान्त्रिक सिद्धान्त की वकालत करते हुए लिखा कि सरकार का निर्माण जनता द्वारा एक सामाजिक संविदा के तहत होता है. सामाजिक संविदा के इस सिद्धांत के बाद ही लोकतांत्रिक भावना का सही से विकास हुआ.

अंग्रेज दार्शनिक व राजनैतिक चिंतक जॉन लॉक ने प्रतिपादित किया कि सरकार जनता के द्वारा और उसी के हित के लिए होनी चाहिए. वहीं, पूंजीवाद समर्थक लेखक एडम स्मिथ ने मुक्त बाजार का सिद्धांत प्रस्तुत किया. यह भी लोकतान्त्रिक आधार पर आधारित था. उनके अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति को उत्पादन करने, खरीदने और बेचने की स्वतन्त्रता है.

मिल और बेंथम (Mill and Bentham)

प्रसिद्ध उपयोगितावादी दार्शनिक मिल और बेंथम ने ने अपने वाद इस माध्यम से लोकतंत्र को बौद्धिक आधार प्रदान किया. इनके अनुसार, लोकतंत्र अधिकतम लोगों के अधिकतम सुख को अधिकतम संरक्षण प्रदान करता है. शासक व जनता एक-दूसरे से संरक्षण की आशा रखते हैं. इस उपयोगिता को बनाए रखने के लिए लोकतंत्र में – प्रतिनिधिमूलक लोकतन्त्र, संवैधानिक सरकार, नियमित चुनाव, गुप्त मतदान, प्रतियोगी दलीय राजनीति और बहुमत के द्वारा शासन – जैसे विशेषताओं की वकालत की.

हालाँकि, अभी तक सार्वभौमिक मतदान को मान्यता नहीं मिली थी व दशकों को विश्व में सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार लागु हुआ. यहाँ तक कि मिल और बेन्थैम भी इसे लागु करने के पक्षधर नहीं थे. बाद में इसकी वकालत की गई, लेकिन आबादी के एक बड़े हिस्से को मतदान में शामिल नहीं किया गया. इस तरह उदारवादी लोकतंत्र के शुरुआती दौर में मताधिकार के अभाव में एक बड़े व कमजोर वर्ग की सत्ता से मोलभाव करने की क्षमता सिमित रही.

फिर भी, बाद के उदारवादी विचारक लोकतन्त्र का समर्थन करते रहे. खासकर, पश्चिमी यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका ने इसकी स्वीकार्यता को और आगे बढ़ाने का काम किया. आगे चलकर यह वर्त्तमान लोकतंत्र का आधार बना, जिसमें जनता के पास काफी अधिकार आ गए.

कुछ खामियों के बावजूद, लोकतंत्र के इस सिद्धांत की वकालत की गई और कहा गया-

  • मनुष्य एक विवेकशील प्राणी है. इसलिए अपना अच्छा बुरा व, उसके लिए सर्वोत्तम क्या है, जानता है,
  • राजनैतिक सत्ता जनता की अमानत होती है,
  • सराकर का उद्देश्य जनता का भलाई करना तथा राज्य का चंहमुखी विकास करना है,
  • सरकार सीमित व जनता के प्रति उत्तरदायी होना चाहिए,
  • विचार व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होनी चाहिए,
  • व सरकार द्वारा लोकमत का आदर किया जाना चाहिए इत्यादि.

लोकतंत्र के इस सिद्धांत के आलोचकों का मानना है कि-

  • इस सिद्धान्त के अनुसार, सभी मनुष्य विवेकशील होते है. इसलिए शासन के संचालन में जन सहभागिता होनी चाहिए. जबकि लार्ड ब्राइस, ग्राहम वाल्स इत्यादि विचारक मानते है कि मनुष्य उतना विवेकशील, तटस्थ व सक्रिय नहीं है, जितना कि इस सिद्धान्त के तहत उसे मान लिया गया है;
  • लोकतंत्र से यह अपेक्षा की जाती है कि प्रशासन सामान्य हित मे काम करेगा .लेकिन किसी भी समाज में सामान्य हित विभिन्न लोगों के लिए विभिन्न अर्थ हो सकते है;
  • यह सिद्धान्त मूल्यों तथा आदर्शों पर अधिक ध्यान देता है व राजनैतिक वास्तविकताओं पर कम. यह ऊंचे आदर्शों जैसे सामान्य इच्छा, लोगो का शासन, सामान्य कल्याण आदि से भरा पड़ा है, जिन्हें प्रयोगात्मक परीक्षण का विषय नहीं बनाया जा सकता, ये सभी शब्द भ्रामक है;
  • यह सिद्धान्त राजनीतिक समानता पर बल देता है, जबकि व्यावहारिक स्तर पर राजनैतिक समानता का हो पाना सम्भव नहीं होता है;
  • यह सिद्धान्त राजनीति में नेताओं, शासन करने वाले विशिष्ट वर्ग तथा संगठित संस्थाओं को उचित महत्व प्रदान नहीं करता.

2. लोकतंत्र का अभिजनभाजी या विशिष्टवर्गीय सिद्धांत (Aristocracy- Elite Theory of Democracy)

इस सिद्धांत के अनुसार ये माना जाता हैं कि लोकतंत्र में कुछ ख़ास लोग ही सारे निर्णय लेते हैं. जनता इसमें प्रत्यक्ष भाग नहीं लेती हैं. ये शक्तिशाली लोग जनमत को प्रभावित करने की क्षमता रखते है. इसलिए लोकतंत्र कुछ ख़ास लोगों (एलीट) के समूह का शासनतंत्र हैं. चूँकि इसमें एक छोटे से समूह या गुट का शासन पर नियंत्रण होता है, इसलिए इसे ‘गुट-तंत्र’ भी कहते है.

एरिस्टोक्रेसी (अभिजात्य वर्ग का शासन) था जिसका ग्रीक में मतलब “बेहतरीन लोगों की सरकार” है. इस स्वरूप में कुछ लोग अपनी पूरी ज़िंदगी नेता बनने के लिए तैयारी करते हैं. इन पर गणतंत्र को चलाने की ज़िम्मेदारी होती है ताकि ये लोग समाज के लिए बुद्धिमतापूर्ण फ़ैसले ले सकें.

एरिस्टोक्रेट पर प्लेटो (Plato on Aristocracy in Hindi)

प्लेटो का मानना था कि ये एरिस्टोक्रेट निःस्वार्थ भाव और बुद्धिमत्ता से शासन करेंगे. हालांकि, ये आदर्श समाज हमेशा पतन की कगार पर खड़ा रहेगा. उन्होंने आशंका जताई कि पढ़े लिखे और बुद्धिमान लोगों के बच्चे आख़िरकार आराम और विशेषाधिकारों की वजह से भ्रष्ट हो जाएंगे. इसके बाद वे सिर्फ अपनी संपत्ति के बारे में सोचेंगे जिससे एरिस्टोक्रेसी एक ओलिगार्की (सीमित लोगों में निहित सत्ता वाला शासन) में तब्दील हो जाएगी. ग्रीक में इसका मतलब ‘कुछ लोगों का शासन’ होता है. इसे ही गुटतंत्र भी कहते है.

आगे प्लेटो लिखते हैं, “जैसे-जैसे अमीर और अमीर होता जाएगा, वह और दौलत बनाने पर विचार करेगा और मूल्यों के बारे में कम सोचेगा.” जैसे-जैसे असमानता बढ़ती है, अशिक्षित ग़रीबों की संख्या अमीरों की संख्या से बढ़ने लगती है. और आख़िरकार ओलिगार्क की सत्ता ख़त्म हो जाएगी और राज्य एक वास्तविक लोकतंत्र में तब्दील हो जाएगा.

अन्य विचारक

इटली के दो महान समाज वैज्ञानिक विल्फ्रेडो पैरेटो व ग्रेटानो मोस्का, जर्मन इतालियन रॉबर्ट मिशेल्स और अमेरिकी लेखक जेम्स बर्नहाम तथा सी. राइट मिल्स इस सिद्धांत के प्रवर्तकों में गिने जाते है. इसका सुव्यवस्थित प्रतिपादन सर्वप्रथम जोसेफ शुंप्टर ने अपनी पुस्तक ‘कैपिटलिज्म, सोशलिज्म एंड डेमोक्रेसी‘ (पूंजीवाद, समाजवाद और लोकतंत्र, 1942) में किया है. बाद में सार्टोरी, रॉबर्ट डाल, इक्सटाईन, रेमंड अरोन, कार्ल मैन हियुमंड, सिडनी वर्बा आदि ने अपनी रचनाओं में इस मत का समर्थन किया है.

इस सिद्धांत की विशेषताएं है-

  • सत्ता संचालन समाज के सर्वोच्च सबके पास होता है, जो अपने विधा में महारत रखते है. इस तरह राज्य का बेहतर प्रबंधन हो पाता है.
  • अभिजनवर्ग में नए लोग शामिल होते हैं और पुराने लोग बाहर हो जाते है. इस तरह यह हमेशा एक जैसा नहीं रहता है और परिवारवाद, राजशाही जैसी समस्या पैदा नहीं हो पाती.
  • बहुसंख्यक वर्ग संतोषप्रद रहता है, क्योंकि वह जानता है कि राज्य के सर्वोत्तम व्यक्तियों का समूह सत्ता संचालन कर रहा है.
  • आम जनता समान रूप से योग्य नहीं होते है, इसलिए अभिजन वर्ग के पास सत्ता रहना श्रेयस्कर होता हैं.
  • बहुसंख्यक जनसमुदाय में अधिकांश भावशून्य, आलसी और उदासीन होते हैं. इसलिए एक ऐसा अल्पसंख्यक वर्ग का होना आवश्यक है जो राज्य को नेतृत्व प्रदान करे.
  • आज के युग में शासक अभिजनवर्ग में मुख्य रूप से बुद्धिजीवी, औद्योगिक प्रबंधक और नौकरशाह शामिल है.

अभिजनवाद की कई विचारकों ने आलोचना की है. इन आलोचलो में सी. बी. मैक्फर्सन, ग्रीम डंकन, बैरी होल्डन, रॉबर्ट डाल आदि प्रमुख हैं. इस सिद्धान्त के विरुद्ध मुख्य आपत्तियां निम्नलिखित हैं:

  • अभिजनवाद में जनता का काम केवल प्रतिनिधियों को चुनना भर होता है. इस तरह शासन संचालन में उनके पास बोलने-कहने को अधिकार नहीं रह जाता और ऐसी स्थिति में का मूल उद्देश्य ही गौण हो जाता है. इस तरह यह लोकतंत्र का अर्थ विकृत कर इसे अलोकतांत्रिक बना देता है. अभिजनवाद लोकतंत्र की आधारभूत विशेषताओं की उपेक्षा कर इसे स्वेच्छाचारी बना देता है.
  • लोकतंत्र के पुरातन अवधारणा के अनुसार इसका लक्ष्य लोक-कल्याण व मानवजाति का उन्नयन है. लेकिन अभिजन सिद्धान्त इस नैतिक पक्ष की अवहेलना कर देता है. इसमें अल्पसंख्यक अभिजनवर्ग के शासन की निष्क्रिय स्वीकृति हो जाती है और व जनता के जगह खुद के विकास में लग जाते हैं. इस तरह, यह सिद्धांत लोकतंत्र की परंपरागत पुरातन अवधारणा के नैतिक उद्देश्य को समाप्त कर देता है.
  • अभिजन सिद्धान्त सहभागिता का महत्त्व घटा देता है. अभिजन दावा करते है जनता के पास विशेषज्ञता नहीं है. इसलिए, सहभागिता संभव है ही नहीं. अभिजन द्वारा मनमाना योजना व कानून जनता पर थोप दिया जाता है. इस तरह जनता द्वारा शासन असंभव हो जाता है.
  • अभिजन सिद्धान्त एक सामान्य जनता को राजनीतिक दृष्टि से अक्षम और निष्क्रिय मानता है. जनता ऐसी होती है जो अपना जीवन-निर्वाह करता है, शाम में अपने परिवार या मित्रों के बीच अथवा मीडिया के साधनों के उपयोग में अपना समय बिताता है और श्रेष्ठी समूहों में से किसी एक को समय-समय पर चुनने के अतिरिक्त कुछ नही करता. इस तरह इस सिद्धांत में जनता को सिर्फ एक मतदाता के तौर पर देखा जाता है. इससे अधिक उसके पास कोई अधिकार नहीं होते है.
  • यह सिद्धांत लोकतांत्रिक प्रक्रिया के द्वारा मौलिक परिवर्तन लाने के बदले प्रणाली के स्थायित्व बनाए रखने पर जोर देता है. वह सामाजिक आन्दोलन को लोकतंत्र के लिए खतरा और अभिजनवर्ग द्वारा व्यवस्थित कानूनी प्रक्रिया के लिए विघटनकारी मानता है. इस तरह अभिजनवर्ग सामूहिक तानाशाही को जन्म देती है.

3. लोकतंत्र का बहुलवादी सिद्धांत (Pluralistic Theory of Democracy in Hindi)

यह समाज में एक छोटे से समूह तक सीमित करने के बदले उसे प्रसारित और विकेन्द्रीकृत कर देता है. बहुलवादी सिद्धांत की उत्पत्ति अभिजन सिद्धांत की आंशिक प्रतिक्रिया के रूप में हुई थी. इस सिद्धांत से उम्मीद की जाति है कि उदारवादी लोकतंत्र में अभिजनवाद की प्रवृत्ति को निष्प्रभावी कर देगा और सही जनाकांक्षा को प्रकट करेगा.

बहुलवादी मानते है कि लोकतंत्र में कई समूह अपने फायदे के लिए सक्रीय रहते है. ये है- व्यापारी घराने और उद्योगपति, सौदागर, श्रमिक संगठन, किसान संगठन, उपभोक्ता, मतदाता इत्यादि. ये खुद के लाभ के लिए संघर्षशील रहते है व अपने मांगो को मनवाने के लिए विभिन्न प्रकार के दवाब की रणनीति अपनाते है. जैसे हड़ताल, रोजगारमूलक निवेश, निर्यातोन्मुखी निवेश, धरना-प्रदर्शन, सड़क जाम इत्यादि.

इसके सिद्धनकारों का मानना है कि कई समूहों के सक्रीय रहने से ये एक-दूसरे का अत्यधिक प्रभावी क्षमता को सिमित कर देते है व लोकतंत्र का लाभ विस्तृत रूप में बड़े आबादी को मिलता है. चूँकि इसमें दवाब समूह सक्रिय होते है, जो सरकार पर अपनी बातों को मनवाने के ले दवाब डालते है. इसलिए बहुलवादी सिद्धान्तों को कभी-कभार अभिजनवर्ग सिद्धान्तों से आंशिक रूप में ही भिन्न समझा जाता है.

इस अवधारणा का विकास मुख्य रूप से अमेरिका में हुआ है. इसके प्रणेताओं में एस. एम. लिण्सेट, रॉबर्ट डाल, वी. प्रेस्थस, एफ. हंटर आदि प्रमुख विचारक व लेखक शामिल हैं.

इस तरह बहुलवादी सिद्धान्त की विशेषताएँ है-

  • यह सिद्धान्त राज्य को कई समुदायों का एकल समुदाय मानता है.
  • यह सिद्धान्त नागरिकों को दंड देने का अधिकार देता हैं जो राजनेताओं के व्यवहार को सन्तुलित बनाए रखने व उन्हें निरंकुश बनने से रोकता है.
  • इस सिद्धांत के अनुसार, लोकतंत्र सर्वोत्तम तरीके से तभी काम करता है जब नागरिक अपने विशेष हितों के समर्थक समूह से जुड़ जाते हैं.

हालाँकि, बहुलतावाद के कुछ आलोचनाएं भी है-

  • यह सिद्धान्त रूढ़िवाद को बढ़ावा देता है व यथास्थितिवादी है,
  • जब एक समूह-विशेष अपनी संपूर्ण कार्य सूची को मनवा लेता है तो अन्य समूह आक्रोशित हो उठते हैं. कभी-कभी स्थिति गंभीर हो जाति है.
  • कई बार लोग राष्ट्रवादी अथवा अन्य अभिप्रेरणाओं से अपने हित भूल जाते है, इसलिए इसे मानवीय विकास के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता है.

4. लोकतंत्र का सहभागिता सिद्धांत (Participatory Principle of Democracy in Hindi)

इस सिद्धांत ने आम जनता की राजनीतिक कार्यों में भागीदारी को जोरदार समर्थन किया जैसे – मतदान करना, राजनीतिक दलों की सदस्यता, चुनावों मे अभियान कार्य आदि. यह सिद्धांत 1960 के बाद विकसित हुआ. इसका विकास मूल रूप से विशिष्टतावादी व बहुलवादी सिद्धांतो के प्रतिक्रिया के रूप में हुई. इस सिद्धांत के आरंभिक मुख्य पैरोकार, कैरोल पेर्लमैन, सी. बी. मैक्फर्सन और एन. पॉलैन्ट, है.

सहभागिता सिद्धांत में माना जाता है कि सच्चे लोकतंत्र का निर्माण तभी हो सकता है जब नागरिक राजनीतिक दृष्टि से सक्रिय हों और सामूहिक समस्याओं में निरंतर अभिरूचि लेते रहें. इससे समाज की प्रमुख संस्थाओं के पर्याप्त विनिमय होगा और राजनीतिक दलों में अधिक खुलापन और उत्तरदायित्व के भाव विकसित होंगे.

जन सामान्य से निम्न कार्यों में सहभागी होने की आशा की जाती है-

  • चुनावों में मतदान व अभियान कार्य
  • राजनीतिक दलों की सदस्यता एवं गतिविधियों में शिरकत
  • संघों, स्वैच्छिक संगठनों और गैर-सरकारी संगठनों जैसे दबाव तथा लॉबिंग समूहों की सदस्यता और सक्रिय साझेदारी
  • प्रदर्शनों में उपस्थिति, औद्योगिक हड़तालों में शिरकत (विशेषकर जिनके उद्देश्य राजनीतिक हों अथवा जो सार्वजनिक नीति को बदलने अथवा प्रभावित करने को अभिप्रेत हों)
  • सविनय अवज्ञा आन्दोलन में भागीदारी, यथा- कर चुकाने से इन्कार इत्यादि
  • उपभोक्ता परिषद् की सदस्यता
  • सामाजिक नीतियों के क्रियान्वयन में सहभागिता
  • महिलाओं और बच्चों के विकास, परिवार नियोजन, पर्यावरण संरक्षण, इत्यादि सामुदायिक विकास के कार्यों में भागीदारी, इत्यादि.

सहभागी लोकतंत्र की खूबियां :

  • विधायिकाओं, लोकसेवाओं, राजनीतिक दलों का लोकतांत्रिकरण, जिससे लोकतंत्र उत्तरदायी बनते है
  • शक्तियों का विकेन्द्रीकरण व नीतियों के निर्माण व शासन कार्यों में लोगों की भागीदारी बढ़ने पर जोर
  • राजनीतिक मुद्दों व निर्णयों का समाजीकरण की मांग ताकि समाज के सभी व्यक्ति उसमें अपने हितों का निरीक्षण सके
  • लोकतांत्रिक निर्णय में नए आयामों की संभावना को सुरक्षित करने के लिए राज्य की संस्थात्मक व्यवस्था का कुछ हिस्सा खाली होनी चाहिए.
  • सहभागिता को बढ़ावा, किन्तु सहभागिता हमेशा सकारात्मक हो, ये इस सिद्धांत में आवश्यक नहीं.
  • सहभागिता बढ़ने से गुणात्मकता का अभाव व अव्यवस्था उतपन्न हो सकता है. इससे जल्द निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित हो सकती है.
  • अत्यधिक दवाब की स्थिति में कार्यपालिका सभी कार्यों को निपटाने में असक्षम हो सकती है.

5. लोकतंत्र का मार्क्सवादी सिद्धांत (Marxists Theory of Democracy in Hindi)

मार्क्सवादी लोकतंत्र के पैरोकार मानते है कि पूंजीवादी व्यवस्था में लोकतांत्रिक अधिकार सिर्फ साधन-संपन्न वर्ग के हाथ में होता है, इसलिए वे ऐसा लोकतंत्र चाहते हैं जो वास्तव में ‘जनता का लोकतंत्र‘ (People’s Democracy) हो. इसमें शासन के साथ-साथ धन व सम्पदा पर सभी जनता के समान नियंत्रण की वकालत कि गई है.

इस तरह, मार्क्सवादी लोकतंत्र में उत्पादन के साधनों पर पूंजीपतियों के स्वामित्व को खत्म करने और आम जनता द्वारा अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने के पश्चात् समाजवादी लोकतंत्र की स्थापना का उद्देश्य पूरा किया जाता है. इसमें, भूमि, कल कारखाने इत्यादि पर सरकार के माध्यम से जनता का स्वामित्व होता है.

राज्य के पास सारी उत्पादक पूंजीगत परिसंपत्तियों का नियंत्रण होता है. इस तरह उत्पादन से प्राप्त लाभ सभी को समान रूप से प्राप्त होता है. प्रत्येक नागरिक को आगे बढ़ने के समान अवसर उपलब्ध होते हैं.

मार्क्स और एंगेल्स (Marx and Angles on Democracy in Hindi)

अपनी रचना ‘द क्रिटिक ऑफ द गोथा प्रोग्राम‘ (गोथा कार्यक्रम की समीक्षा- 1875) में मार्क्स और एंगेल्स ने अपनी अवधारणा को स्पष्ट किया है. उनका मानना है कि शासक राज्य का अधिनायक होता है.

पूंजीवाद में अधिनायकवाद को संचालित करने वाला ‘संपन्न औद्योगिक और व्यापारी बुर्जुआ’ होता है. लेकिन साम्यवाद सर्वाहारा वर्ग केंद्रित होती है. इस तरह सर्वहारा (सभी वर्ग) अधिनायकवाद की स्थापना होती है.

मार्क्स व एंजेल्स के सिद्धांत पर आधारित पहले लोकतंत्र की स्थान का श्रेय रुसी क्रन्तिकारी लेनिन को जाता है. इन्होंने साल 1917 में रूस की सफल क्रांति के बाद रूस में इसकी स्थापना की. लेकिन उन्होंने संचालन सुविधा के लिए कुछ परिवर्तन किए व कुछ नए सिद्धांत जोड़ दिए.

लेनिन के अनुसार, सर्वहारा वर्ग का अधिनायकवाद विशाल सर्वहारा संगठन या साम्यवादी दल द्वारा ही प्रयोग में लाया जा सकता है. उन्होंने लोकतंत्र की तीन अवस्थाएं बताईः पूंजीवादी लोकतंत्र, समाजवादी लोकतंत्र और साम्यवादी लोकतंत्र.

कार्ल मार्क्स के अनुसार, मजदूर/ कामगार वस्तु को उत्पादित करते समय उसमें मूल्य निर्मित करता है. लेकिन उसे वह नहीं मिलता जिसका वह उत्पादन करता है. उसे वेवल वेतन मिलता है और वेतन से उपर जो कुछ भी होता है वह मालिक ले जाता है. यह अतिरिक्त मूल्य है. अतिरिक्त मूल्य श्रमिक द्वारा उत्पादित मूल्य और उसे प्राप्त होने वाले वेतन के बीच का अंतर है.

आसान भाषा में (Easily Described in Hindi)

सरल शब्दों में मजदूर को वेतन प्राप्त होता है और मालिक को लाभ. यह अतिरिक्त मूल्य धनी को और धनी और निर्धन को और निर्धन बनाता है. अतिरिक्त मूल्य के दम पर ही पूँजीपति पनपते हैं. मार्क्सवादी लोकतंत्र में, पूंजीपति को प्राप्त होने वाले लाभ मजदूरों को हस्तांतरित की जाती है.

वी . आई. लेनिन का मानना था कि बुर्जुआ वर्ग काफी शक्तिशाली होता है. इसलिए समाजवादी लोकतंत्र के आरंभिक दौर में ही सर्वहारा वर्ग बलपूर्वक पूंजीवादी वर्ग का उन्मूलन कर दे. उन्होंने सर्वहारा अधिनायकवाद के दो लक्ष्य- क्रांति को बचाना, और एक नई सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था को संघटित करना बताया है.

मार्क्सवादी लोकतंत्र की विशेषताएं:-

(1) इसमें राजकीय एवं आर्थिक व्यवस्था के अधिकार अल्पसंख्यक उद्योगपतियों और व्यापारिक घरानों के हाथों से श्रमिकों के हाथ आ जाता हैं.

(2) उत्पादन के साधनों – भूमि, कल कारखानें इत्यादि- पर जनता का स्वामित्व होता है. सभी नागरिक के लिए नियोजन के समान अवसर होते हैं.

(3) समाजवादी लोकतंत्र में सारे कार्मिक सीधे तौर पर चुने जाते हैं तथा पुलिस और सैन्य बल का स्थान नागरिक सेना ले लेती है. सारे सरकारी सेवक श्रमिक के रूप में समान वेतन पाते हैं.

(4) सामाजिक स्तर पर विरासत का चलन समाप्त हो जाता है. राज्य निःशुल्क शिक्षा प्रदान करती हैं. चूँकि उत्पादन के साधनों पर राज्य का नियंत्रण व सम्पत्ति का समान वितरण होता है. इससे गांवों और शहरों के बीच आबादी का न्यायसंगत वितरण हो जाता है.

(5) मार्क्सवादी विश्लेषण के अनुसार जब समाजवादी समाज धीरे-धीरे पूर्ण साम्यवाद की ओर अग्रसर होने लगता है. इस अवस्था में राज्य व्यवस्था का अंत हो जाता है और उसके स्थान पर एक प्रकार का स्व-शासन कायम हो जाता है.

इसमें साम्यवादी दलों के शीर्ष पर कुछ दबग व ताकतवर लोग ही पहुँच पाते है. इससे विशाल जनसमुदाय का अधिनायकवाद के बदले विशाल जनसमुदाय पर अधिनायकवाद स्थापित हो जाता है.

उत्पादन का सम्पूर्ण नियंत्रण राज्य के हाथों में रहता है. इस तरह प्रतिद्वंदी उत्पादक समाप्त हो जाते है. इससे रचनात्मकता व नवीन प्रद्योगिकी के विकास में बाधा उत्पन्न हो जाती है.

लोगों में खुद के बदले राज्य के विकास के लिए काम करने की भावना जगाई जाती है. लेकिन लोग अपना जीवन सुधारने के लिए काम करना चाहते है. इससे लोग अकर्मण्यता का शिकार हो जाते है. इस तरह लोगों को काम पर समय बिताने के बदले मेहताना कमा रहे होता है.

लोकतंत्र के सैद्धांतिक स्तम्भ हैं (Theoretical Pillars of Democracy in Hindi)

जनभागीदारी या सहभागिता: लोकतंत्र में नागरिकों की भागीदारी का एक महत्वपूर्ण भूमिका है. यह उनका अधिकार ही नहीं कर्तव्य भी है. नागरिकों की भागीदारी में- चुनाव के लिए उम्मीदवार होना, चुनाव में मतदान करना, मुद्दों पर बहस करना, समुदाय या नागरिक बैठकों में भाग लेना, निजी स्वैच्छिक संगठनों के सदस्य होने, करों का भुगतान करना आदि शामिल हैं. विरोध करना भी नागरिक भागीदारी का हिस्सा है. जन-भागीदारी एक बेहतर लोकतंत्र का निर्माण करती है.

मानवाधिकार (Human Rights)

लोकतंत्र नागरिकों के मानवाधिकारों का सम्मान और रक्षा करने का गारंटी देता हैं. मानवाधिकार से तात्पर्य उन मूल्यों से है जो मानव जीवन और मानव गरिमा के प्रति सम्मान को दर्शाते हैं. लोकतंत्र हर इंसान के स्वतंत्रता व गरिमा को सम्मान देता है. मानवाधिकारों के उदाहरणों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, संगठन बनाने की (संघ) स्वतंत्रता, सभा की स्वतंत्रता, समानता का अधिकार और शिक्षा का अधिकार शामिल हैं.

बहुदलीय प्रणाली (Multi-Party System)

इसमें, एक से अधिक राजनीतिक दलों को चुनावों में भाग लेने की स्वतंत्रता होता है और विजेता दल या दलों के संगठन को सरकार में भागीदार होना पड़ता है. बहुदलीय व्यवस्था में विजेता दल की नीतियों के विरोध की अनुमति होती है. यह सरकार को मुद्दों पर विभिन्न दृष्टिकोण प्रदान करने में मदद करता है.

एक बहुदलीय प्रणाली, मतदाताओं को वोट देने के लिए उम्मीदवारों, पार्टियों और नीतियों का विकल्प प्रदान करती है. ऐतिहासिक रूप से, जब किसी देश में केवल एक ही पार्टी होती है, तो इसका परिणाम तानाशाही रहा है.

समानता (Equality)

लोकतांत्रिक समाज इस सिद्धांत पर जोर देता है कि सभी लोग समान हैं. समानता का अर्थ है कि सभी व्यक्तियों को समान महत्व दिया जाएं व सबके लिए एक समान कानून हो. समान अवसरों पर, व्यक्तियों के साथ उनकी जाति, धर्म, जातीय समूह, लिंग या यौन अभिविन्यास के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता है. हालाँकि सरकार गरीब व कमजोर लोगों के समूह के झुकाव में नीतियां बनाती हैं, तो इसे उचित व लोककल्याणकारी माना जाता हैं.

लोकतंत्र में, व्यक्ति को अपने पसंद के अनुसार संस्कृतियों, व्यक्तित्वों, भाषाओं और विश्वासों को चुनने की आजादी होती है. लेकिन भारत में इसका एक अपवाद है, वह हैं जाति. कोई व्यक्ति अपनी जाति अपने अनुसार नहीं चुनता, बल्कि इसे जन्म से ही निर्धारित कर दिया जाता हैं.

शासन की जवाबदेही (Responsible Administration)

लोकतंत्र में निर्वाचित और नियुक्त अधिकारी जनता के प्रति जवाबदेह होते है. वे अपने कार्यों के लिए खुद जिम्मेदार होते हैं. अधिकारी अपने लिए नहीं बल्कि जनता की हित में निर्णय लेते है. इस तरह विधायिका और कार्यपालिका अपने कर्तव्यों का पालन करते है.

राजनीतिक सहिष्णुता (Political Tolerance in Hindi)

लोकतांत्रिक समाज राजनीतिक रूप से सहिष्णु होता हैं. इसका मतलब यह है कि जब लोकतंत्र में बहुमत का शासन होता है, तो अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए. जो सत्ता में नहीं हैं उन्हें संगठित होने और बोलने की अनुमति दी जानी चाहिए. व्यक्तिगत नागरिकों को भी एक दूसरे के प्रति सहिष्णु होना सीखना चाहिए.

एक लोकतांत्रिक समाज अक्सर विभिन्न संस्कृतियों के लोगों से बना होता है; नस्लीय, धार्मिक और जातीय समूह जिनका दृष्टिकोण बहुसंख्यक आबादी से भिन्न होता है. एक लोकतांत्रिक समाज विविधता से समृद्ध होते है. यदि बहुमत अपने विरोधियों को अधिकारों से वंचित करता है, तो वे लोकतंत्र को भी नष्ट कर देते हैं. लोकतंत्र के लक्ष्यों में से एक समाज के लिए सर्वोत्तम सम्भाव्य निर्णय लेना है.

पारदर्शिता (Transparency)

सरकार को जवाबदेह बनाने के लिए लोगों को इसके प्रति जागरूक होना चाहिए कि देश में क्या हो रहा है. यदि जनता सरकार के कार्यों तक पहुँच रख पा रही हैं तो इसे सरकार में पारदर्शिता माना जाता है. एक पारदर्शी सरकार सार्वजनिक बैठकें करती है और नागरिकों को भाग लेने की अनुमति देती है. पारदर्शी लोकतंत्र में प्रेस और जनता यह जानने में सक्षम होती है कि कौन से निर्णय, किसके द्वारा और क्यों लिए जा रहे हैं?

आर्थिक स्वतंत्रता (Economic Freedom)

लोकतंत्र में लोगों को किसी न किसी रूप में आर्थिक स्वतंत्रता होनी चाहिए. इसका मतलब है कि सरकार संपत्ति और व्यवसायों के कुछ निजी स्वामित्व की अनुमति देती है और लोगों को अपनी नौकरी और श्रमिक संघों को चुनने की अनुमति होती है.

सत्ता के दुरूपयोग पर नियंत्रण (Control on Misuse of Power in Hindi)

लोकतांत्रिक समाज किसी भी अधिकारी या निर्वाचित प्रतिनिधि को अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने से रोकने की कोशिश करते हैं. सत्ता के सबसे आम दुरुपयोगों में से एक भ्रष्टाचार है. भ्रष्टाचार तब होता है जब सरकारी अधिकारी जनता के पैसे का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए करते हैं या सत्ता का दुरूपयोग कर लाभ कमाते हैं.

इन दुर्व्यवहारों से बचाव के लिए विभिन्न देशों में विभिन्न तरीकों का इस्तेमाल किया है. किसी ख़ास स्वायत या अर्द्ध-स्वायत संगठन या सरकार की शाखा को किसी भी अवैध कार्रवाई के खिलाफ कार्रवाई करने की शक्ति प्राप्त होती है. लोकायुक्त की अवधारणा ऐसी ही एक मांग है.

सार्वजनिक शिक्षण (Public Education)

एक शिक्षित नागरिक बेहतर निर्णय ले सकता है. इसलिए सरकार को निःशुल्क व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सभी नागरिकों को उपलब्ध करवाना चाहिए. सामुदायिक लाइब्रेरी उपलब्ध करवाना भी इस दिशा में एक कोशिश है.

अधिकारों का बिल (Bill of Rights)

कई लोकतांत्रिक देश लोगों को सत्ता के दुरुपयोग से बचाने के लिए अधिकारों का बिल लागू करते हैं. अधिकारों का कानून देश के सभी लोगों को प्राप्त गारंटीकृत अधिकारों और स्वतंत्रता की एक सूची है. जब अधिकारों का बिल किसी देश के संविधान का हिस्सा बन जाता है, तो अदालतों के पास इन अधिकारों को लागू करने की शक्ति होती है. अधिकारों का विधेयक सरकार की शक्ति को सीमित करता है और अवमानना पर व्यक्तियों और संगठनों पर अर्थदंड भी लगा सकता है.

भाषण, अभिव्यक्ति और पसंद की स्वतंत्रता (Liberty to speech, express and choice)

वह शासन जो जनता की आवाज को दबाता या रोकता है, वह अलोकतांत्रिक होता है. लोकतंत्र में सभी को भाषण,अभिव्यक्ति व पसंद की आजादी होती है. कोई विचार या भाषण भले ही वह सत्ताधारी पार्टी के लिए खिलाफ हो, उसे प्रसारित होने से नहीं रोकना लोकतंत्र की एक बड़ी खूबी है. लोगों को ये आजादी उत्पीड़न के डर के बिना उपलब्ध होना चाहिए.

इसी तर्ज पर, एक लोकतांत्रिक देश के नागरिक को अपने विवेक के आधार पर स्वतंत्र निर्णय लेने में सक्षम होना चाहिए. लेकिन यह उस सीमा तक ही उपलब्ध होना चाहिए जहाँ तक यह देश के कानूनों या किसी अन्य व्यक्ति के लिए खतरा पैदा न करें. कार्यों की यह स्वतंत्रता ही लोकतंत्र को फलदायी व लोकप्रिय बनाती है.

किसी व्यक्ति को सरकार का जो निर्णय गलत लगता है, उसका विरोध की आजादी एक कानूनी अधिकार होना चाहिए. मूल रूप से यही एकमात्र चीज है जो सत्ताधारी दलों को गलत कार्यों और नीतियों को लागू करने से रोके रखती है.

निष्पक्ष व स्वतंत्र मीडिया (Fair and Independent Media in Hindi)

पत्रकारिता, प्रेस व समाचार को “लोकतंत्र का चौथा खम्भा” कहा जाता है. मीडिया यानी जनसंचार सेवाएं ही सरकार के फैसलों व नए नीतियों का सम्प्रेषण आम जनता तक करती है. इसके बाद ही जनता फैसले का विश्लेषण करती है व नए सिरे से जनमत का निर्माण होता है. अतः मीडिया को सरकार से जुड़े ख़बरों को प्रसारण करने की पूरी आजादी होनी चाहिए.

स्वायत्त न्यायपालिका: न्यायपालिका ही कार्यपकिला व विधायक के फैसलों का समीक्षा करती है. इसलिए लोकतंत्र में इस पर सरकार का नियंत्रण नहीं होना चाहिए अपितु इसे सरकार की भांति राज्य के एक अंग के रूप में काम करना चाहिए.

सामान्यतः लोकतान्त्रिक देशों में न्यायपालिका को कानूनों के व्याख्या का अधिकार होना चाहिए. हालाँकि, इसमें भी विधायिका व कार्यपालिका के भांति सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व हो तो, अच्छा माना जाता है.

स्वतंत्र, निष्पक्ष व क्रमिक चुनाव (Free, Fair and Regular Elections in Hindi)

देश के नागरिक अपनी इच्छा के अनुसार सरकार में उनका प्रतिनिधित्व करने के लिए राजनेताओं का चुनाव करते हैं. एक स्वास्थ्य व सुचारु लोकतंत्र में ये निर्वाचित जन-प्रतिनिधि स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से चुने जाते हैं और शांतिपूर्वक पद से हटा दिए जाते हैं. इनका चुनाव गुप्त सार्वभौमिक वयस्क मतदान द्वारा होता है.

चुनाव के दौरान या चुनाव से पहले नागरिकों को धमकाना, भ्रष्टाचार से जनमत को अपने पक्ष में करना और जनता को डराना लोकतंत्र के सिद्धांतों के खिलाफ है. अपवादों को छोड़कर सभी नागरिकों को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव में उम्मीदवार बनने का अधिकार होता है.

कानून का शासन: लोकतंत्र में कानून से ऊपर कोई नहीं है, यहां तक ​​कि राजा या निर्वाचित राष्ट्रपति भी नहीं. इसे ‘कानून का राज’ कहते हैं. इसका मतलब यह है कि हर किसी को कानून का पालन करना चाहिए और अगर वे इसका उल्लंघन करते हैं तो उन्हें जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए.

इसे कभी-कभी “कानून की उचित प्रक्रिया” के रूप में भी जाना जाता है. अधिकांश पुलिस व सरकारी विभाग के अन्य एजेंसियां इसे धरातल पर लागु करवाने में सरकार का सहयोग करते हैं.

लोकतंत्र के पक्ष व विपक्ष में तर्क (Pros and Cons of Democracy in Hindi)

जनतंत्र के पक्ष में तर्क इस प्रकार हैं:-.

  • प्रजातंत्र में लोग समसामयिक मुद्दों पर बहस करते है. वे अपने देश को आगे बढ़ाने की बात भी करते है. इससे नागरिकों में देश प्रेम की भावना का विकास होता है.
  • राजनैतिक दल अपने संचालन के लिए चंदा एकत्रित करते है. इससे दानदाता जनता में विश्वास एवं उत्तरदायित्व की भावना का विकास होता है.
  • एक प्रजातांत्रिक सरकार को राजतन्त्र व तानाशाही से सबसे बेहतर माना जाता है. जन-दवाब में यह देश को विकास की ओर ले जा सकती है.
  • इसमें जनता के पास सरकार बदलने का विकप होता है. इस तरह यह क्रांति से सुरक्षा प्रदान करता है.
  • लोकतंत्र मतभेदों और सामाजिक व अन्य संघर्षों से निपटने का तरीका प्रदान करता है.
  • लोकतांत्रिक निर्णय से पहले व बाद में हमेशा चर्चाएं और बैठकें होती हैं. अतः लोकतंत्र, निर्णय लेने की गुणवत्ता में भी सुधार करता है.
  • यह प्रणाली राजनीतिक समानता के सिद्धांत पर आधारित है. नागरिक शासन में भागीदार होते है. इसलिए यह नागरिकों की गरिमा को बढ़ाता है.
  • यह निति-निर्माताओं व सरकार को अपनी गलतियों को सुधारने की अनुमति देता है.

प्रजातंत्र के विरोध में तर्क इस प्रकार हैं:

  • बार-बार चुनाव के वजह से यह एक खर्चीला शासन है. राजनैतिक दल भी व्यापक खर्च करते है, जिसकी भरपाई भ्रष्टाचार से होती है. साथ ही, लोकतंत्र में नेता व सरकार बदलते रहते हैं, जिससे अक्सर अस्थिरता पैदा होती है.
  • कई बार जन-प्रतिनिधि को लोगों के सर्वोत्तम हितों का पता नहीं होता है, इस तरह वे गलत निर्णय ले सकते हैं.
  • लोकतंत्र सभी को शासक बनने का अवसर उपलब्ध करवाता है. इसे राज्य में एक बड़ा वर्ग पैदा हो जाता है, जिनमे राजनीतिक प्रतिस्पर्धा और सत्ता पाने की भावना होती है. उच्च प्रतियोगिता के दौर में, नैतिकता की कोई गुंजाइश नहीं होती है.
  • प्रजातंत्र गुणों पर नहीं बल्कि संख्या पर बल देता है. कपटी पेशेवर राजनीतिक लोग बेवकूफ लोगों का मत प्राप्त कर सत्तासीन हो जाते है. इसलिए लोकतंत्र को जुगाड़ का शासन भी कह दिया जाता है.
  • मतदान में वे लोग भी भाग लेते है, जिन्हे सही व गलत का पता नहीं होता है. कई बार जनता गलत नेता का चयन भी कर लेते है. इसलिए इसे ‘मूर्खों का शासन’ भी कहा जाता हैं.
  • चुनाव जितने के लिए कई तरह के जतन नेताओं को करने पड़ते है. यह चुनावी प्रतिस्पर्धा राज्य को भ्रष्टाचार की ओर ले जाता है.
  • लोकतंत्र में बहुत सारे दवाब समूह होते है. इसलिए कई लोगों से परामर्श लेना पड़ता है, जिससे उचित निर्णय लेने में देरी होती है. इसलिए इसे संकट काल के लिए अनुपयुक्त माना जाता है.

लोकतंत्रीय शासन प्रणाली के प्रकार (Types of Democratic Governance System in Hindi)

आधुनिक युग में लोकतंत्रीय शासन प्रणाली के प्रकार के दो प्रकार है, एक संसदीय प्रणाली व दूसरा अध्यक्षीय प्रणाली. अधिकतर देशों ने संसदीय प्रणाली को अपनाया गया है. इसमें सभी निर्वाचित जनप्रतिनिधि संसद के सदस्य होते है. कुछ लोगों को संविधान के अनुसार नामित भी किया जाता है. भारत व ब्रिटेन ने जहाँ संसदीय प्रणाली अपनाया है, वहीं अमेरिका ने अध्यक्षीय प्रणाली को अपनाया है. हालाँकि, दोनों में संसद उपलब्ध है.

1. संसदात्मक प्रणाली (parliamentary system)

इसमें कार्यपालिका अपनी लोकतांत्रिक वैधता विधायिका के माध्यम से प्राप्त करती है और विधायिका के प्रति उत्तरदायी होती है. इस प्रकार संसदीय प्रणाली में, कार्यपालिका और विधायिका, एक-दूसरे से परस्पर संबंधित होते हैं. इस प्रणाली में राज्य का मुखिया (राष्ट्रपति) तथा सरकार का मुखिया (प्रधानमंत्री) अलग-अलग व्यक्ति होते हैं.

भारत की संसदीय व्यवस्था में राष्ट्रपति और ब्रिटेन के महाराज नाममात्र की कार्यपालिका है तथा प्रधानमंत्री तथा उसका मंत्रिमंडल वास्तविक कार्यपालिका है. इसमें प्रधानमंत्री देश की शासन व्यवस्था का सर्वोच्च प्रधान होता है. हालाँकि संविधान के अनुसार राष्ट्र का सर्वोच्च प्रधान राष्ट्रपति होता है. लेकिन देश की शासन व्यवस्था की बागडोर प्रधानमंत्री के हाथों में ही होती है. राष्ट्रपति सिर्फ मंत्रिमंडल के निर्णय को लागू करने का आदेश जारी करते है. आम (भारत में लोकसभा व ब्रिटेन में हाउस ऑफ़ कॉमन्स) चुनाव में सर्वाधिक सीटों पर जीत दर्ज करने वाला राजनीतिक दल सरकार बनाता है.

2. अध्यक्षीय प्रणाली (presidential system)

लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था के इस प्रणाली में प्रायः राज्य का प्रमुख (राष्ट्राध्यक्ष) सरकार (कार्यपालिका) का भी अध्यक्ष होता है. इसमें कार्यपालिका अपनी लोकतांत्रिक वैधता के लिये विधायिका पर निर्भर नहीं रहती है एवं राष्ट्रपति वास्तविक कार्यपालिका प्रमुख होता है.

अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में राज्य का मुखिया तथा सरकार का मुखिया एक ही व्यक्ति होते हैं. इस प्रणाली में कार्यपालिका और विधायिका एक-दूसरे से संबंधित नहीं होते हैं. कार्यपालिका अपनी नीतियों एवं कार्यों के लिये विधायिका के प्रति उत्तरदायी नहीं होती है. परिणामस्वरूप कार्यपालिका निर्धारित समय तक अपना कार्य करती है. इस प्रणाली में राष्ट्रपति शासक होता है, न की जनप्रतिनिधियों का समूह यानि संसद.

लोकतंत्र के विकास के चरण (Stages of Democracy’s Development in HIndi)

लोकतंत्र के विकास को 5 चरणों में विभाजित किया जाता है. ये है- आरंभिक व प्राचीन, मध्यकाल व शुरुआती आधुनिक काल, द्वितीय विश्व युद्ध व सोवियत का पतन, व आधुनिक काल में नेपाल की क्रांति व अरब स्प्रिंग.

प्राचीन व आरंभिक (Ancient and Inception of Democracy in Hindi)

क्लिस्थनीज ने 508-507 ईसा पूर्व में एथेंस में लोकतंत्र स्थापित किया था. इसलिए क्लिस्थनीज को “एथेनियन लोकतंत्र का जनक” कहा जाता है. लोकतंत्र शब्द का पहला प्रमाणित उपयोग 430 ईसा पूर्व के गद्य कार्यों, जैसे हेरोडोटस के ‘हिस्ट्री’ में पाया जाता है. लेकिन इसे और भी प्राचीन माना जाता है.

470 के दशक में पैदा हुए दो एथेनियाई लोगों को डेमोक्रेट्स नाम दिया गया था. संभावित लोकतंत्र के समर्थन में यह एक नया राजनीतिक नाम था. यह नाम एथेंस में संवैधानिक मुद्दों पर बहस के समय दिया गया. एस्किलस ने 463 ईसा पूर्व में अपने नाटक “द सप्लिएंट्स” में भी इस शब्द का उल्लेख किया है, जहां उन्होंने “डेमोस रूलिंग हैंड” (demou kratousa cheir-डेमो क्रेटौसा चीयर) का उल्लेख किया है. उस समय से पहले, क्लिस्थनीज की नई राजनीतिक व्यवस्था को परिभाषित करने के लिए “आइसोनोमिया” शब्द का इस्तेमाल किया जाता था, जिसका अर्थ “राजनीतिक समानता” है.

मध्य व शुरुआती आधुनिक काल (Medieval and Initial Modern Era)

15 जून 1215 ईस्वी में इंग्लैंड के राजा जॉन ने थेम्स नदी के किनारे स्थित रनीमीड स्थान पर मैग्नाकार्टा या अधिकार पत्र जारी किया था. यह वास्तव में सामंतो दी गई कुछ अधिकार थे. लेकिन इसमें अन्य लोगों को भी कई अधिकार दे दिए गए थे. इसलिए इसके प्रति लोगों का सम्मान काफी समय तक कायम रहा. बाद में मध्यकाल व आधुनिक काल में इसकी चर्चा होती रही व इसी से मौलिक अधिकार के अवधारणा का विकास हुआ.

मध्यकाल तक यूरोप के अधिकांश देशों में निरंकुश राजतंत्र स्थापित था, जिसका आधार राजत्व के दैवी सिद्धान्त था. इसमें सामंती प्रणाली लागु थी व आम जनों को नाममात्र के अधिकार प्राप्त थे. इस कालावधि में ही रूसो, प्लूटो, अरस्तु, कार्ल मार्क्स, एंजेल्स, नेपोलियन बोनापार्ट, वाल्तेयर व मॉन्टेस्क्यू जैसे अनगिनत महान व्यक्तित्वों का जन्म हुआ. इन्होंने आम जनता को लोकत्रांत्रिक शासन-व्यवस्था के लिए प्रेरित किया.

फ़्रांस और अमेरिका की क्रांति (Revolution of France and America)

इसी दौर में फ़्रांस और अमेरिका में जनक्रांति हुए. फ़्रांस की क्रांति ने समानता, स्वतंत्रता व बंधुता का जो सन्देश दिया, वह धीरे-धीरे पुरे यूरोप व दुनिया में फ़ैल गया. फ़्रांसिसी क्रांति का ये नैरा ही बाद में लोकतंत्र का 3 मूल आधार बन गए.परिणाम ये हुआ कि 1926 के आते-आते 30 से अधिक देशों ने लोकतंत्र को अपना लिया. इनमे अमेरिका, फ़्रांस, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड, व जर्मनी जैसे देश शामिल थे. इसे लोकतंत्र का पहला लहर या चरण कहा जाता है. ग्रीस दुनिया का पहला देश है, जिसने लोकतान्त्रिक पद्धति अपनाया था.

मध्यकाल में हुए इन परिवर्तनों का उद्देश्य स्वेच्छाचारी राजतन्त्र से मुक्ति पाना था. इन देशों के विकास को देखकर अन्य देशों में भी लोकतंत्र कि मांग उठने लगी.

द्वितीय विश्व युद्ध व सोवियत का पतन (2nd World War and Dissolution of Soviet)

द्वितीय विश्व युद्ध में यूरोप के देश आपस में लड़ मिटे. इससे कई नए व स्वतंत्र राष्ट्रों का उदय हुआ. इनमे ऑस्ट्रिया, भारत, पाकिस्तान, इटली, पश्चिमी जर्मनी, जापान व इजराइल जैसे देश शामिल थे. इन देशों ने भी लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली को अपना लिया. इसे लोकतंत्र का दूसरा लहर कहा गया.

1970 और 1980 के दशक में पुर्तगाल, स्पेन, चिली ,अर्जेंटीना, पूर्वी यूरोप व जर्मनी और दक्षिण अमेरिका में कई सैन्य तानाशाही अंत हुआ. यहां लोकतंत्र लागु हुआ व ये देश नागरिक शासन के तहत आ गए. सोवियत को द्वितीय विश्व युद्ध इ बाद मिलें इलाकों में भी इसी दौरान लोकतंत्र स्थापित हुआ. इस दौरान ही इस दौर को लोकतंत्र की तीसरी लहर का दौर कहा जाता है.

सोवियत संघ के पतन के बाद रूस से कई देश स्वतंत्र हो गए. इनमे अधिकांश देशों ने लोकतंत्र को अपनाया. यूक्रेन व लाटविया ऐसे देश है.

नेपाल की क्रांति व अरब स्प्रिंग (Nepal Revolution and Arab Spring in Hindi)

21वीं सदी के शुरुआती दौर में हुए ये क्रांति लोकतंत्र के विकास के लिहाज से काफी महत्वूर्ण है. इस समय तक कई देशों में दशकों से लोकतंत्र स्थापित थे व दुनिया के लोग इसके नैतिक मूल्यों से सुपरिचित थे. ऐसे में ये क्रांति लोकतान्त्रिक मूल्यों व मुल्क अधिकारों को लागू करवाने के मांग के साथ हुए. लोकतंत्र के इस “चौथी लहर” का शुरुआत ‘अरब स्प्रिंग’ के साथ माना जाता है.

अरब स्प्रिंग के दौरान, मोरक्को, इराक, अल्जीरिया, लेबनान, जॉर्डन, कुवैत, ओमान और सूडान में लगातार व गंभीर सड़क प्रदर्शन हुए. जिबूती, मॉरिटानिया, फिलिस्तीन, सऊदी अरब और मोरक्को के कब्जे वाले पश्चिमी सहारा में मामूली विरोध प्रदर्शन हुए. अरब जगत में इन प्रदर्शनकारियों का एक प्रमुख नारा है अश-शब यूरीद इस्क़ां अन-निशाम, इसका अर्थ है लोग शासन को नीचे लाना चाहते हैं.

इसका शुरुआत यह असमानता, भ्रष्टाचार और आर्थिक गतिरोध के विरोध में सबसे पहले ट्यूनीशिया से हुआ. फिर पांच अन्य देशों – लीबिया, मिस्र, यमन, सीरिया और बहरीन – में यह फैल गया. साल 2012 के आते-आते सम्पूर्ण अरब जगत इसके चपेट में थे.

लोकतंत्र की सफलता के लिए आवश्यक शर्तें व चुनौतियाँ (Conditions for Success of Democracy and Threats to it in Hindi)

लोकतंत्र में जनता का महत्व काफी अधिक होता है. इसलिए इसके सामने कई चुनौतियाँ भी है, जिससे पर पाकर एक सफल लोकतंत्र की स्थापना की जा सकती है-

  • शिक्षित नागरिक जागरूक व राजनीतिक में रुचि रखते है. इसलिए लोकतंत्र में नागरिक का शिक्षित होना निहायत जरुरी है.
  • देश में शांति और सुव्यवस्था का वातावरण बनाए हो, इससे देश आर्थिक प्रगति की और अग्रसारित होता है.
  • आर्थिक समानता और सामाजिक न्याय की स्थापना करने सामाजिक सद्भाव कायम होता है. जनता की जीवन-स्तर जितना ऊँचा होगा, वह उतना ही बिना किसी दबाव के शासन के कार्यों में भाग ल सकेगा.
  • निर्वाचन समय पर एवं निष्पक्ष होना लोकतंत्र की सफलता के लिए बहुत ही आवश्यक है.
  • निष्पक्ष न्यायपालिका, मीडिया व चुनाव तंत्र लोकतंत्र की सफलता के लिए अहम भूमिका निभाता है.
  • जनमत निर्माण के साधन जैसे समाचार पत्र ,पत्रिकाएं, सभा, संगठन ऐसी कई सारे प्रकार के चीजे, जो लोकतंत्र को प्रभावित करता है, पर किसी वर्ग विशेष का अधिकार ना हो.
  • स्थानीय स्वशासन लोकतंत्र की प्राथमिक पाठशाला होती है. इसलिए इसका विकास बहुत ही आवश्यक है.
  • लिखित संविधान और उसका अनुपालन लोकतंत्र में अहम भूमिका निभाते हैं.
  • प्रभावशाली और शक्तिशाली विरोधी दल के अभाव में सरकार निर्गुण और लापरवाह हो जाती है. साथ ही सत्ता का दुरुपयोग करने लगती है. इसलिए मजबूत विपक्ष लोकतंत्र के लिए आवश्यक होता है.

लोकतंत्र की महत्ता (Importance of Democracy in Hindi)

प्रजातान्त्रिक शासन अनेक प्रकार की आलोचना और दोषों के होते हुए इसका अपना एक अलग ही महत्व है. लोकतांत्रिक शासन पद्धति बाकी सभी पद्धति से बेहतर है क्योंकि:-

  • लोगों की जरूरत के अनुरूप आचरण करने के मामले में यह शासन प्रणाली किसी अन्य शासन प्रणाली से बहुत ही बेहतर है.
  • यह शासन का अधिक जवाबदेही वाला स्वरूप होता है.
  • बेहतर निर्णय देने की संभावना बढ़ाने के लिए लोकतंत्र सबसे अलग भूमिका निभाता है.
  • मतभेदों और टकराव को संभालने का सबसे बेहतर तरीका उपलब्ध कराता है.
  • जनता एवं नागरिकों का सम्मान बढ़ाता है.
  • इसमें जनता को अपनी गलती ठीक करने का अवसर भी दिया जाता है.

लोकतंत्र और राजशाही/ तानाशाही के बीच अंतर क्या हैं? (Difference between Democracy and Dictatorship)

राजशाही व तानाशाही के पतन के बाद ही लोकतंत्र का उदय हुआ है. दोनों की तुलना किसी भी स्तर पर नहीं किया जा सकता. हालाँकि दुनिया के कई देशों में आज भी तानाशाही है. हरेक राजशाही में एक तानाशाह हो, ऐसा नहीं होता. लेकिन तानाशाही में राजतन्त्र के गन भी कई बार समाहित हो जाते है. इसका सबसे बेहतर उदाहरण है उत्तरी कोरिया.

फ़िलहाल, अफगानिस्तान, घाना, म्यांमार और वेटिकन सिटी किसी न किसी रूप में लोकतंत्र की परिधि से बाहर के देश हैं. इसके अलावा सऊदी अरब, जार्डन, मोरक्को, भूटान, ब्रूनेई, कुवैत, यूएई, बहरीन, ओमान, कतर, स्वाजीलैंड आदि देशों में राजतंत्र है. हाल ही में नेपाल से राजतन्त्र समाप्त हुआ है व उसने लोकतंत्र को अपना लिया है. तो आइये जानते है लोकतंत्र और तानाशाही के बीच अंतर क्या हैं-

  • लोकतंत्र नागरिकों को समानता प्रदान करता है. नागरिकों को अपना शासक या प्रतिनिधि चुनने का अधिकार है. हालाँकि, तानाशाही में देश के तानाशाह के नियमों और इच्छाओं के आदेशों का नागरिकों को आँख बंद करके पालन करना होता है.
  • लोकतंत्र में नागरिक संघर्षों को हल करने के लिए उचित तौर-तरीके शामिल हैं, चाहे वह देश के भीतर या देश के बाहर का मामला हो; जबकि तानाशाही में अपने नागरिकों के बीच संघर्ष समाधान के लिए ऐसी कोई विशेषता नहीं है.
  • जनतांत्रिक सरकार को वैध सरकार का एक रूप माना जाता है, क्योंकि यह जनता द्वारा चुना गया होता है. दूसरी ओर, तानाशाही अक्सर वंशानुगत होती है, जिसका चुनाव तानाशाह के परिजन करते है या पूर्व तानाशाह करके गए होते है. ये तानाशाह अक्सर क्रूर होते है, जिस वजह से देश को अकारण बदनामी झेलनी पड़ती है.

जनहितकारी सरकार (Public Interest Government)

लोकतान्त्रिक सरकारें सुव्यवस्थित होती है. सभी तरह के समस्याओं से निपटने के लिए पूर्व-निर्धारित कानून व नियम होते है. कई बार तो सरकार ऑनलाइन माध्यम से जनता से सुझाव भी मांग लेती है. इस तरह ये सरकारें संकट के समय बेहतरीन काम करती है. दूसरी ओर, तानाशाही अपने मन के अनुसार निर्णय लेता है, इन जनता के पास नियमों या फैसलों पर सवाल उठाने का कोई अधिकार नहीं होता है.

लोकतंत्र एक जवाबदेह राजनीतिक व्यवस्था है. सरकार को अपने फैसलों के लिए जवाबदेह ठहराया जा सकता है और प्रदान किए गए अधिकारों के जरिए नागरिक सवाल कर सकते हैं और पूछताछ कर सकते हैं कि ख़ास निर्णय लेने के मामले में क्या हो रहा है. तानाशाह अपने निजी हितों को जनता से अधिक तरजीह देता है. अधिकारविहीन जनता आवाज भी उठा नहीं पाती है.

तानाशाही: जीवन का उत्पीड़न (Dictatorship: Threat to Life)

आज के समय में भी कई देश ऐसे हैं जो शासन के तानाशाही रूप के दौर से गुजर रहे हैं. वे देश हैं ईरान, चीन, उत्तर कोरिया, वेनेजुएला, सीरिया, मिस्र, कंबोडिया, कजाकिस्तान, अफगानिस्तान और म्यांमार. विभिन्न देशों पर शासन करने वाले कुछ क्रूर तानाशाह हैं, अयातुल्ला खामेनेई, बशर अल असद, किम जोंग उन, नूरसुल्तान नज़रबायेव, अब्दुल फतेह अल सीसी, शी जिनपिंग और हुन सेन.

तानाशाही में कभी-कभार बिना किसी चुनाव के एक पार्टी का शासन होता है, जबकि लोकतंत्र में नियमित और लगातार चुनाव होते हैं जिसमें सभी नागरिकों के वोट शामिल होते हैं.

लोकतंत्र में, जनता की आवाज को शासन के मामलों में प्राथमिक प्राथमिकता दी जाती है, जबकि एक तानाशाही में लोगों को प्रभावी ढंग से खामोश कर दिया जाता है और सरकार के लिए उनकी कोई प्रासंगिकता नहीं होती है. कई बार तानाशाही शासन में आवाज उठाने के कारण सैकड़ो लोग अपना जान तक गावं बैठते है. यह लोकतंत्र और तानाशाही के बीच एक बड़ा अंतर है.

तानाशाही में, सरकार के पास नीतियों और विनियमों को लागू करने के लिए अनियंत्रित शक्ति होता है. वह सिर्फ और सिर्फ अपनी इच्छा के अनुसार व्यवहार करती है. लेकिन लोकतंत्र में जनता का अंकुश होता है और सरकार जनहित का सम्मान करती है और इसको ख़ास तरजीह देती है.

लोकतंत्रमें सबसे ज्यादा वोट और जनसमर्थन पाने वाला व्यक्ति नेता बनता है. दूसरी ओर, तानाशाही में केवल एक ही शासक होता है जिसने अवैध रूप से सत्ता हथिया ली है और पूरे देश पर लोहे के हाथ से (क्रूर तरीके से) शासन करता है.

विश्व के प्रमुख प्रजातान्त्रिक देश और उनके संसद के नाम क्या हैं? (Main Democratic Countries and its Parliament in Hindi)

  • भारत और ब्रिटेन (UK) – संसद और पार्लियामेंट (parliament)
  • नेपाल – राष्ट्रीय पंचायत
  • स्पेन – कॉर्टेक्स
  • रूस – ड्यूमा(duma)
  • मिस्र – पीपुल्स असेंबली(people’s assembly)
  • चीन – नेशनल पीपुल्स कांग्रेस(national people’s Congress)
  • जर्मनी – बुड्स टेग
  • फ्रांस – नेशनल असेंबली(national assembly)
  • मंगोलिया – खुरल
  • बांग्लादेश – जातीय संसद
  • ईरान – मजलिस
  • आयरलैंड – डेल आयरन(del iron)
  • ताइवान – युवान
  • मलेशिया – दीवान निगारा
  • इजराइल – नेसेट
  • पाकिस्तान – नेशनल असेंबली
  • जापान – डायट
  • स्विट्जरलैंड- फेडरल असेंबली
  • मालदीव – मजलिस
  • तुर्की – ग्रैंड नेशनल असेंबली
  • स्वीडन – रिक्सडॉग
  • ऑस्ट्रेलिया – पार्लियामेंट
  • नार्वे – स्टार्टिंग
  • यूएसए(संयुक्त राज्य अमेरिका) – कॉन्ग्रेस
  • भूटान – त्सोनंडगू
  • डेनमार्क – फॉल्केटिंग
  • पोलैंड – शोजिम
  • कनाडा – पार्लियामेंट
  • फिनलैंड – एडु सकुस्ता
  • इटली – सीनेट
  • कुवैत – नेशनल असेंबली
  • केन्या – नेशनल असेंबली
  • उत्तरी कोरिया – सुप्रीम पीपुल्स असेंबली
  • आइसलैंड – एलपिंगी
  • सऊदी अरब – मजलिस अस शूरा
  • अजरबैजान – मेंली मजलिस
  • श्रीलंका – श्रीलंका पार्लीअमेंथुआ
  • लिथुआनिया – सीमस

भारत में लोकतंत्र (Democracy of India in Hindi)

भारत में 26 जनवरी 1950 को संविधान को लागु किया गया था, जिसमे लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली को अपनाया गया था. इसे तैयार करने में डॉ भीमराव आंबेडकर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इसलिए उन्हें भारतीय प्रजातंत्र का जनक भी कहा जाता है. भारतीय संविधान विश्व का सबसे बड़ा और विस्तृत संविधान है.

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जहां राष्ट्रपति राज्य के प्रमुख होता है. लेकिन, प्रधानमंत्री देश की केंद्र सरकार और कार्यपालिका के देश का वास्तविक प्रधान होता है. भारत में शासन के लिए संघीय ढांचे को अपनाया गया है.

केंद्र-राज्य ढांचा (Centre-State Structure in Hindi)

संघीय ढांचे में द्वि-स्तरीय सरकार होती है, जिसमें दोनों की शक्तियों और कार्यों का स्पष्ट दायरा होता है. इस व्यवस्था में केन्द्र की सरकार तथा इकाइयों की सरकारें एक सुस्पष्ट क्षेत्र में कार्य करती हैं तथा अपने कार्यों में समन्वय स्थापित करती हैं. वे सभी विषय, जो किसी को आवंटित न हुए हो, केंद्र के लिए आरक्षित होती है.

अंतर्राष्ट्रीय व अतिमहत्वपूर्ण राष्ट्रिय मामले केंद्र के अधीन, शेष राज्यों के अधीन आते है. कुछ मामले जैसे स्वास्थ्य व शिक्षा, दोनो के अधीन आते हैं. ऐसा बंटवारा शासन के सुचारु संचालन को ध्यान में रखकर किया गया है. सरकार का एक तीसरा रूप भी होता है जिसे पंचायत या नगर-निकाय कहा जाता है. स्थानीय मसलों का हल अधिकतर राज्य व पंचायत ही करती है. इसलिए जनता इनसे अधिक लगाव महसूस करते है व लोकतंत्र के प्रति जनता में आस्था का विकास होता है.

सबसे बड़ा लोकतंत्र (The Largest Democracy in Hindi)

भारत का लोकतंत्र दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. ऐसा इसलिए, क्योंकि भारत में लगभग 70 करोड़ लोग अपने मत का प्रयोग करके सरकार को चुनते हैं. मतदाताओं की विशाल संख्या दुनिया के किसी अन्य लोकतंत्र में नह मिलती है.

भारत के लोकतंत्र में सामाजिक लोकतंत्र का समावेश है. इसका तात्पर्य है कि समाज में नस्ल, रंग (वर्ण), जाति, धर्म, भाषा, लिंग, धन, जन्म आदि के आधार पर व्यक्तियों के बीच भेद नहीं किया जाएगा और सभी व्यक्तियों को व्यक्ति के रूप में समान समझा जाता है.

बहुदलीय प्रणाली (Multi-Party System in Hindi)

भारत ने लोकतंत्र के बहुदलीय प्रणाली को अपनाया है. इससे विभिन्न विचारधारा के समूह, आसानी से अपना राजनैतिक दल बना पते है. इन्हे चुनाव में भाग लेने की पूर्ण आजादी होती है. भारत में कोई भी व्यक्ति चुनाव में उम्मीदवार हो सकता है. इस तरह भारत में कोई खास विचारधारा मनवाने के लिए क्रांति का सहारा नहीं लेना पड़ता है. विचारक अपने विचार जनता में ले जाते है, जहाँ चुनाव में उनके विचार पर मतदान द्वारा आमजन राय व्यक्त कर देते है. इस तरह भारतीय लोकतंत्र राजनीतिक समानता पर आधारित है.

भारत में सभी दलों को एक राष्ट्रीय, राज्य या स्थानीय व छोटे पार्टी के रूप में वर्गीकृत किया जाता है. इसके लिए कानून में कुछ खास प्रावधान किए गए है. साथ ही, किसी पार्टी को चुनाव लड़ने के लिए, उसे भारत के चुनाव आयोग के साथ पंजीकृत होनाआवश्यक है. न्यायपालिका के भांति, यह एक स्वतंत्र निकाय है जिसे सरकार द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता है.

केंद्र सरकार में सदनों का विभाजन (Division of Assemblies)

चुने हुए जनप्रतिनिधियों के लिए केंद्र में द्विसदनीय विधायिका है- राज्यसभा और लोकसभा. राज्य सभी को उच्च सदन और लोकसभा को निचला सदन कहते है.

लोकसभा के सदस्यों का चुनाव देश के आम मतदाता करते है. पुरे देश को फिलहाल 543 लोकसभा क्षेत्रों में विभाजित किया गया है. जो दल या दलों का समूह 272 या इससे अधिक मत प्राप्त करती है, उसे सामान्य बहुमत प्राप्त हो जाता है. ये दल ही सरकार का गठन करती है. सरकार में न शामिल होने वाले दल विपक्षी दल कहलाते है. विपक्षी दलों का मुख्य काम सरकार के नीतियों की खामियों को जनता तक ले जाना व जनता के लिए आवाज उठाना है.

राज्य सभा के 245 सदस्य होते है. इनमें से 233 सदस्य अप्रत्यक्ष रूप से राज्य विधान सभा के प्रतिनिधियों द्वारा चुने जाते हैं. शेष 12 का मनोनयन भारत के राष्ट्रपति कला, साहित्य, खेल आदि जैसे विभिन्न क्षेत्रों में उनके विशेष योगदान के लिए करते हैं.

अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस (International Day of Democracy in Hindi)

8 नवम्बर 2007 को संयुक्त राष्ट्र कि महासभा ने हरेक वर्ष 15 सितम्बर को अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस मनाने कि घोषणा की थी. इसके बाद सबसे पहले साल 2008 में अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस मनाया गया. इसकी 2020 की थीम ‘कोविड -19 : ए स्पॉटलाइट ऑन डेमोक्रेसी’ थी. वहीं, 2019 में थीम ‘भागीदारी’ थी. लोकतंत्र के प्रति जागरूकता फैलाना ही ‘अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस’ का उद्देश्य है.

चलते-चलते (Conclusion)

संक्षेप में, लोकतंत्र का मतलब लोगों को निर्णय लेने में भाग लेने के लिए सशक्त बनाना, व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करना और अल्पसंख्यक अधिकारों का सम्मान करते हुए बहुमत का शासन सुनिश्चित करना है. यह शासन-तंत्र समय के साथ विकसित और समृद्ध हुआ है. फिर भी इसे आज कई चुनौतियों का सामना पड़ रहा है. लेकिन इसके मूल सिद्धांत न्यायपूर्ण और समावेशी समाज के लिए आवश्यक है.

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speech on democracy in hindi

यह लेख इंदौर इंस्टीट्यूट ऑफ लॉ, इंदौर के छात्र Aditya Dubey ने लिखा है। इस लेख में लेखक ने भारत के संविधान के तहत परिभाषित अभिव्यक्ति और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन) की अवधारणा के साथ-साथ इसके महत्व और उन आधारों पर चर्चा की है जिन पर भारत सरकार द्वारा इसे प्रतिबंधित किया जा सकता है। इस लेख का अनुवाद Revati Magaonkar ने किया है।

Table of Contents

परिचय (इंट्रोडक्शन)

भाषण और अभिव्यक्ति (फ्रीडम ऑफ स्पीच एंड एक्सप्रेशन) की स्वतंत्रता को भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत परिभाषित किया गया है जिसमें कहा गया है कि भारत के सभी नागरिकों को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है। इस अनुच्छेद के पीछे का दर्शन भारत के संविधान की प्रस्तावना (प्रिएंबल) में दिया गया है- ‘जहां अपने सभी नागरिकों को उनके विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सुरक्षित करने के लिए एक गंभीर संकल्प किया जाता है। हालाँकि, इस अधिकार का प्रयोग भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के तहत लगाए गए कुछ उद्देश्यों के लिए उचित प्रतिबंधों (संक्शन्स) के अधीन है।

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भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मुख्य तत्व क्या हैं (व्हाट आर द मैन एलीमेंट्स ऑफ़ स्पीच एंड एक्सप्रेशन)

ये वाक्/बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के निम्नलिखित आवश्यक तत्व हैं:

  • यह अधिकार पूरी तरह से भारत के एक नागरिक के लिए उपलब्ध है, न कि अन्य देशों के व्यक्तियों यानी विदेशी नागरिकों के लिए।
  • अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत बोलने की स्वतंत्रता में किसी भी तरह के मुद्दे के बारे में अपने विचार और राय व्यक्त करने का अधिकार शामिल है और इसे किसी भी तरह के माध्यम से किया जा सकता है, जैसे मुंह के शब्दों से, लिखकर, छपाई द्वारा, चित्रांकन (पोर्ट्रेचर) के माध्यम से या किसी फिल्म के माध्यम से किया जा सकता है।
  • यह अधिकार सम्पूर्ण रूप से नहीं है क्योंकि यह भारत सरकार को ऐसे कानून बनाने की अनुमति देता है जो भारत की संप्रभुता और अखंडता (सोवर्गिनिटी एंड इंटिग्रिटी) या राज्य की सुरक्षा, या विदेशी राष्ट्रों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों (फ्रैंडली रिलेशन), शालीनता और नैतिकता (डीसेंसी एंड मोरालीटी) और अदालत की अवमानना (कंटेंप्ट ऑफ़ कोर्ट), मानहानि और अपराध के लिए उकसाना यहां तक ​​कि सार्वजनिक व्यवस्था (पब्लिक आर्डर) से जुड़े मामलों में उचित प्रतिबंध लगा सकते हैं।  
  • किसी भी नागरिक की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर इस तरह का प्रतिबंध राज्य की कार्रवाई से उतना ही लगाया जा सकता है जितना कि उसकी निष्क्रियता (इनेक्शन) से लगाया जा सकता है। इस प्रकार, यदि राज्य की ओर से अपने सभी नागरिकों को वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार (फंडामेंटल राइट) की गारंटी देने में विफलता पाई जाती है, तो यह भी अनुच्छेद 19 (1) (a) का उल्लंघन होगा।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कैसे महत्वपूर्ण है (हाउ इज फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन इज इंपॉर्टेंट)

भारत जैसे लोकतंत्र (डेमोक्रेटिक) में, भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अवधारणा (एक्रीडिटेशन) मुद्दों की स्वतंत्र चर्चा के द्वार खोलती है। भाषण की स्वतंत्रता पूरे देश में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मामलों पर जनमत के बनाने और प्रदर्शन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह अपने दायरे के भीतर, विचारों के प्रसार और आदान-प्रदान से संबंधित स्वतंत्रता, सूचना के प्रसार को सुनिश्चित करता है, जो बाद में, कुछ मुद्दों पर उनके दृष्टिकोण (पॉइंट ऑफ व्यू) के साथ-साथ किसी की राय बनाने में मदद करता है और उन मामलों पर बहस को जन्म देता है जिनमें जनता शामिल होती है। जब तक अभिव्यक्ति राष्ट्रवाद, देशभक्ति और राष्ट्र प्रेम तक सीमित है, तब तक राष्ट्रीय ध्वज का उन भावनाओं की अभिव्यक्ति के रूप में उपयोग एक मौलिक अधिकार होगा।

भारत की स्वतंत्र न्यायपालिका ने माना है और कहा है कि यह एक राय है कि किसी भी जानकारी को प्राप्त करने का अधिकार भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का एक और हिस्सा है और किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप (इंटरफेरेंस) के बिना किसी भी प्रकार की जानकारी को संप्रेषित (ट्रांसमिट) करने और प्राप्त करने का अधिकार एक महत्वपूर्ण है। इस अधिकार का पहलू ऐसा इसलिए है, क्योंकि कोई व्यक्ति पर्याप्त जानकारी प्राप्त किए बिना एक सूचित राय नहीं बना सकता है, या एक सूचित विकल्प (ऑप्शन) नहीं बना सकता है और सामाजिक, राजनीतिक या सांस्कृतिक (कल्चरल) रूप से प्रभावी ढंग से भाग ले सकता है।

देश के किसी भी नागरिक को किसी भी प्रकार की सूचना प्रसारित करने के लिए प्रिंट माध्यम एक शक्तिशाली उपकरण है। इस प्रकार, संविधान के तहत किसी व्यक्ति के भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की संतुष्टि के लिए मुद्रित सामग्री (प्रिंटेड मटेरियल) तक पहुंचना बहुत महत्वपूर्ण है। यदि राज्य की ओर से वैकल्पिक सुलभ प्रारूपों (अल्टरनेटिव फॉर्मेट) में सामग्री के प्रिंट हानि वाले लोगों तक पहुंच को सक्षम करने के लिए विधायी प्रावधान (लेजिस्लेटिव प्रोविजन) करने में कोई विफलता पाई जाती है, तो यह भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित होगा और इस तरह की निष्क्रियता राज्य (इनएक्टिवीटी स्टेट ) संविधान (कंस्टीट्यूशन) के गलत स्थान पर गिर जाएगा। यह सुनिश्चित करना राज्य की ओर से एक दायित्व है कि कानून में पर्याप्त प्रावधान किए गए हैं जो प्रिंट हानि वाले लोगों को सुलभ प्रारूपों में मुद्रित सामग्री तक पहुंचने में सक्षम बनाता है।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत प्रेस की स्वतंत्रता की कोई अलग गारंटी नहीं है क्योंकि यह पहले से ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में शामिल है, जो देश के सभी नागरिकों को दी जाती है।

प्रेस की स्वतंत्रता का क्या अर्थ है (व्हाट इज मींट बाय फ्रीडम ऑफ प्रेस)

भारत के संविधान में कहीं भी प्रेस की स्वतंत्रता का उल्लेख नहीं है। हालाँकि, यह संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत निर्धारित भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (हालांकि सीधे व्यक्त नहीं) के अर्थ के तहत एक अधिकार के रूप में मौजूद है। यदि लोकतंत्र का अर्थ यह है कि सरकार देश की जनता की है, जनता की है और जनता के लिए है, तो यह आवश्यक है कि प्रत्येक नागरिक को राष्ट्र की लोकतांत्रिक प्रक्रिया (डेमोक्रेटिक प्रोसेस) में सक्रिय रूप से भाग लेने का अधिकार हो। स्वतंत्र प्रेस के बिना कुछ मामलों पर मुक्त बहस और खुली चर्चा संभव नहीं है।

प्रेस की स्वतंत्रता में लोकतंत्र का एक स्तंभ शामिल है और वास्तव में यह लोकतांत्रिक संगठन की नींव पर बना हुआ है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कई निर्णयों में यह माना गया है कि प्रेस की स्वतंत्रता भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक हिस्सा है और भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (a) के तहत कवर किया गया है, इसका कारण यह है कि प्रेस की स्वतंत्रता और कुछ नहीं बल्कि भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक पहलू है। इसलिए, यह ठीक ही समझा गया है कि प्रेस यह लोगों के विचारों को सभी तक पहुँचाने के लिए एक माध्यम माना जाता है और फिर भी इसे उन सीमाओं से जुड़े रहना पड़ता है जो संविधान द्वारा अनुच्छेद 19 (2) के तहत उन पर थोपी गई हैं।

मामला (केस)

इंडियन एक्सप्रेस न्यूजपेपर्स (बॉम्बे) प्राइवेट लिमिटेड बनाम यूनियन ऑफ इंडिया.

इस मामले में यह देखने के बाद स्थापित किया गया था कि “प्रेस की स्वतंत्रता” शब्द का प्रयोग अनुच्छेद 19 के परिभाषा के तहत नहीं किया गया है, लेकिन यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के भीतर इसके सार के रूप में दिया गया है, और इसलिए, प्रेस की स्वतंत्रता में कोई हस्तक्षेप (इंटर्फियरांस) नहीं हो सकता है जिसमें जनहित और सुरक्षा शामिल है। इसलिए, यह निष्कर्ष निकाला गया कि किसी पत्रिका (मैगज़ीन) के सेंसरशिप को लागू करना या किसी समाचार पत्र को किसी भी मुद्दे के बारे में अपने विचारों को प्रकाशित करने से रोकना जिसमें जनहित शामिल है, ऐसा कृत्य प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध होगा।

वे कौन से आधार हैं जिन पर इस स्वतंत्रता को प्रतिबंधित किया जा सकता है (व्हाट आर द ग्राउंड्स ऑन व्हिच धिस फ्रीडम कैन बी रेस्ट्रिक्टेड)

ऐसे कई आधार हैं जिन पर राज्य द्वारा कुछ उचित प्रतिबंधों तक भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित किया जा सकता है। इस तरह के प्रतिबंधों को भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 के खंड (क्लॉज) (2) के तहत परिभाषित किया गया है जो निम्नलिखित के तहत स्वतंत्र भाषण पर कुछ प्रतिबंध लगाता है:

  • राज्य की सुरक्षा
  • विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध
  • सार्वजनिक व्यवस्था
  • शालीनता और नैतिकता
  • न्यायालय की अवमानना
  • किसी अपराध के लिए उकसाना, और
  • भारत की संप्रभुता और अखंडता।

राज्य की सुरक्षा (सिक्युरिटी ऑफ़ स्टेट)

राज्य की सुरक्षा से जुड़े वर्गों में भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कुछ उचित प्रतिबंध (रिस्ट्रिक्शन) लगाए जा सकते हैं। ‘राज्य की सुरक्षा’ शब्द को ‘सार्वजनिक व्यवस्था’ शब्द से अलग करने की आवश्यकता है क्योंकि वे समान हैं लेकिन उनकी तीव्रता (इंटेंसिटी) के मामले कई और भिन्न हैं। इसलिए, राज्य की सुरक्षा सार्वजनिक अव्यवस्था (पब्लिक डिसऑर्डर) के गंभीर रूपों को बताती है, इसका एक उदाहरण विद्रोह (रेबेलियन) हो सकता है, जैसे कि राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ना, भले ही वह राज्य के एक हिस्से के खिलाफ हो, आदि।

केस : पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (एआईआर 1997 एससी 568)

यह मामला , देश में हो रहे टेलीफोन टैपिंग के लगातार मामलों के खिलाफ पीयूसीएल द्वारा भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई थी और इस प्रकार भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 की धारा 5(2) की वैधता को चुनौती दी गई। तब यह देखा गया कि “सार्वजनिक आपातकाल की घटना” और “सार्वजनिक सुरक्षा के हित में” धारा 5(2) के तहत दिए गए प्रावधानों (प्रोविजन) के आवेदन के लिए एक अनिवार्य शर्त है। यदि इन दोनों में से कोई भी शर्त मामले से अनुपस्थित है, तो भारत सरकार को इस धारा के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करने का कोई अधिकार नहीं है। इसलिए, टेलीफोन टैपिंग अनुच्छेद 19(1)(a) का उल्लंघन होगा जब तक कि यह अनुच्छेद 19(2) के तहत उचित प्रतिबंधों के आधार पर नहीं आता है।

विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध (फ्रैंडली रिलेशन विथ फोरेन स्टेटस्)

प्रतिबंध के लिए यह आधार 1951 के संविधान (प्रथम संशोधन) अधिनियम द्वारा जोड़ा गया था। राज्य को बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध लगाने का अधिकार है यदि यह अन्य राज्यों के साथ भारत के मैत्रीपूर्ण संबंधों को नकारात्मक (नेगेटिव) रूप से प्रभावित कर रहा है।

सार्वजनिक व्यवस्था (पब्लिक ऑर्डर)

प्रतिबंध के लिए यह आधार संविधान (प्रथम संशोधन) अधिनियम, 1951 द्वारा भी जोड़ा गया था, यह रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य (AIR 1950 SC 124) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से उत्पन्न स्थिति को पूरा करने के लिए किया गया था। भारत के सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, सार्वजनिक व्यवस्था कानून, व्यवस्था और राज्य की सुरक्षा से बहुत अलग है। ‘सार्वजनिक व्यवस्था’ शब्द सार्वजनिक शांति, सार्वजनिक सुरक्षा और शांति की भावना को दर्शाता है। जो कुछ भी सार्वजनिक शांति को भंग करता है, बदले में, जनता को परेशान करता है। लेकिन सिर्फ सरकार की आलोचना (क्रिटिसिजम) से लोक व्यवस्था (पब्लिक ऑर्डर) भंग नहीं हो जाती। एक कानून जो किसी भी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को दुखाता है, उसे सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के उद्देश्य से वैध (वेलिड) और उचित प्रतिबंध माना गया है।

शालीनता और नैतिकता (डिसेंसी एंड मोरालिटी)

इन्हें भारतीय दंड संहिता 1860 (इंडियन पीनल कोड) की धारा 292 से 294 के तहत परिभाषित किया गया है, जो शालीनता और नैतिकता के आधार पर भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध के उदाहरण बताता है, और यह अश्लील शब्दों (ऑब्सेंस वर्ड्स) की बिक्री या वितरण या प्रदर्शन (डिलीवरी ऑर डिस्प्ले) को प्रतिबंधित करता है।

न्यायालय की अवमानना (कंटेंप्ट ऑफ़ कोर्ट)

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार किसी भी तरह से किसी व्यक्ति को अदालतों की अवमानना ​​करने की अनुमति नहीं देता है। अदालत की अवमानना ​​की अभिव्यक्ति को न्यायालय की अवमानना ​​अधिनियम, 1971 की धारा 2 के तहत परिभाषित किया गया है। ‘अदालत की अवमानना’ शब्द अधिनियम के तहत दीवानी अवमानना (सिविल कंटेंप्ट) ​​​​या आपराधिक अवमानना (क्रिमिनल कंटेंप्ट) ​​​​से संबंधित है।

मानहानि (डिफेमेशन)

भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 का खंड (2) किसी भी व्यक्ति को ऐसा बयान देने से रोकता है जिससे समाज की नजर में दूसरे की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचे। मानहानि भारत में एक गंभीर अपराध है और इसे भारतीय दंड संहिता की धारा 499 और 500 के तहत परिभाषित किया गया है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार अनिवार्य (मंडेटरी) रूप से पूर्ण नहीं है। इसका मतलब किसी अन्य व्यक्ति की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने की आजादी नहीं है (जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित है)। हालांकि ‘सत्य’ को मानहानि के खिलाफ बचाव माना जाता है, लेकिन बचाव तभी मदद करेगा जब ‘बयान (स्टेटमेंट) जनता की भलाई के लिए’ दिया गया हो और यह स्वतंत्र न्यायपालिका (इंडिपेंडेंट ज्यूडिशियरी) द्वारा मूल्यांकन (एवालूएशन) किए जाने वाले तथ्य (फैक्ट) का सवाल है।

अपराध के लिए उकसाना (इनसाइटमेंट टू एन ऑफेंस)

यह एक और आधार है जिसे 1951 के संविधान (प्रथम संशोधन) अधिनियम द्वारा भी जोड़ा गया था। संविधान किसी व्यक्ति को ऐसा कोई भी बयान देने से रोकता है जो अन्य लोगों को अपराध करने के लिए उकसाता है या प्रोत्साहित करता है।

भारत की संप्रभुता और अखंडता (सोवर्गीनिटी एंड इंटिग्रिटी ऑफ़ इंडिया)

इस आधार को बाद में 1963 के संविधान (सोलहवां संशोधन) अधिनियम द्वारा जोड़ा गया था। इसका उद्देश्य केवल किसी को भी ऐसे बयान देने से रोकना या प्रतिबंधित करना है जो देश की अखंडता और संप्रभुता को सीधे चुनौती देते हैं।

निष्कर्ष (कंक्लूज़न)

भाषण के माध्यम से किसी की राय व्यक्त करना भारत के संविधान द्वारा गारंटीकृत मूल अधिकारों में से एक है और आधुनिक (मॉडर्न) संदर्भ में, भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार केवल शब्दों के माध्यम से अपने विचारों को व्यक्त करने तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसमें लेखन के संदर्भ (रेफरेंस) में, या दृश्य-श्रव्य (ऑडियो विजुअल) के माध्यम से, या संचार (कम्युनिकेशन) के किसी अन्य तरीके के माध्यम से विचार उन लोगों का प्रसार भी शामिल है। इस अधिकार में प्रेस की स्वतंत्रता का अधिकार, सूचना का अधिकार आदि भी शामिल है। इसलिए इस लेख से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि एक लोकतांत्रिक राज्य के समुचित कार्य (प्रॉपर फंक्शनिंग) के लिए स्वतंत्रता की अवधारणा बहुत आवश्यक है।

भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत बताए गए “सार्वजनिक व्यवस्था के हित में” और “उचित प्रतिबंध” शब्दों का उपयोग यह इंगित (पॉइंट) करने के लिए किया जाता है कि इस धारा के तहत प्रदान किए गए अधिकार पूर्ण नहीं हैं और उन्हें अन्य लोगों की सुरक्षा राष्ट्र की और सार्वजनिक व्यवस्था और शालीनता बनाए रखने के लिए के लिए प्रतिबंधित किया जा सकता है। 

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लोकतंत्र में मतदान का महत्व पर निबंध (Importance Of Voting In Democracy Essay In Hindi)

मतदान हमारे देश में किसी उत्सव से कम नहीं है। भारत एक लोकतान्त्रिक देश है, जहाँ हर एक नागरिक को अपनी राय देने का अधिकार है। वह स्वतंत्र होकर देश के लिए जिम्मेदार प्रतिनिधि का चयन कर सकते है। प्रत्येक नागरिक का फ़र्ज़ बनता है कि वह अपनी जिम्मेदारी को समझकर सही से मतदान करे।

मतदान देना है सर्वोपरि

मतदान ना करने का अर्थ है देश का नुकसान

जिस नागरिक की उम्र अठारह साल या उससे ज़्यादा हो, वह मतदान में हिस्सा ले सकता है। वोट देने के लिए अठारह साल का होना ज़रूरी है।

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What is Democracy – लोकतंत्र क्या है?

What is Democracy in Hindi – लोकतंत्र का शाब्दिक अर्थ है “लोगों का शासन”। संस्कृत में लोक का अर्थ है, “जनता” तथा तंत्र का अर्थ है, “शासन” या प्रजातंत्र। यह एक ऐसी शासन व्यवस्था है जिसमें जनता अपना शासक खुद चुनती है।

लोकतंत्र क्या है? What is democracy in hindi

Table of Contents

लोकतंत्र क्या है? (Democracy in Hindi)

Democracy Definition in Hindi : लोकतंत्र का मतलब बस एक ऐसी सरकार है जो अपने लोगों द्वारा चुनी गई है और जो बिना भेदभाव के समाज के सभी सदस्यों से समान भागीदारी सुनिश्चित करती है।

एक लोकतांत्रिक देश अपने नेताओं को चुनता है और उन्हें अपनी नीतियों और कार्यालय में आचरण के लिए जिम्मेदार ठहराता है। हालांकि लोकतंत्र में समान विशेषताएं हैं, लोकतंत्र का एक भी मॉडल नहीं है।

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लोकतंत्र अपने नागरिकों के लिए एक आवाज और शक्ति देता है ताकि वे अपने देश के लिए उपयुक्त बदलाव ला सकें। इसी तरह, अगर हालात ठीक चल रहे हों तो नागरिक यथास्थिति बनाए रख सकते हैं।

Democracy Meaning in Hindi

Democracy (डिमॉक्रॅसि / डेमोक्रेसी) का मतलब – लोकतंत्र, प्रजातंत्र, स्वराज्य, जनतंत्र, संचालन इत्यादी होता है।

What is Democracy in India – भारत में लोकतंत्र क्या है?

What is Democracy in India : भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। विभिन्न राजाओं और सम्राटों द्वारा शासित और सदियों से यूरोपीय लोगों द्वारा उपनिवेशित, भारत वर्ष 1947 में अपनी स्वतंत्रता के बाद एक लोकतांत्रिक राष्ट्र बन गया।

इसके बाद, भारत के नागरिकों को वोट देने और अपने नेताओं का चुनाव करने का अधिकार दिया गया। दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश और क्षेत्रफल के हिसाब से सातवां सबसे बड़ा देश, भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है।

1947 में देश को आजादी मिलने के बाद भारतीय लोकतांत्रिक सरकार का गठन किया गया था। केंद्र और राज्य सरकारों के चुनाव के लिए संसदीय और राज्य विधानसभा चुनाव हर 5 साल में होते हैं।

भारत एक संघीय संसदीय लोकतांत्रिक गणराज्य है जिसमें भारत का राष्ट्रपति राज्य का प्रमुख होता है और भारत का प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख होता है।

भारत एक सफल लोकतांत्रिक प्रणाली के लिए जाना जाता है। हालांकि, कुछ खामियां हैं जिन पर काम करने की जरूरत है।

अन्य बातों के अलावा, सरकार को सच्चे अर्थों में लोकतंत्र को सुनिश्चित करने के लिए गरीबी, अशिक्षा, सांप्रदायिकता, लैंगिक भेदभाव और जातिवाद को खत्म करने पर काम करना चाहिए।

Interesting facts about Democracy – लोकतंत्र के बारे में रोचक तथ्य

  • सऊदी अरब, वेटिकन सिटी, बर्मा और ब्रुनेई एकमात्र ऐसे देश हैं जो लोकतांत्रिक होने का दावा नहीं करते हैं।
  • आधुनिक दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र अमेरिका है। देश ने 1787 में अपने लोकतांत्रिक संविधान को अपनाया।
  • सरकार का एक लोकतांत्रिक रूप स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव आयोजित करता है जहां उसके नागरिकों को वोट डालने की अनुमति दी जाती है, वे कैसे और किसको चाहते हैं।
  • लोकतंत्र लोगों के उचित प्रतिनिधित्व का एक सही रूप नहीं है। कार्यालय के लिए दौड़ना महंगा है, और इसलिए, केवल अमीर ज्यादातर शीर्ष पदों तक पहुंचने का प्रबंधन करते हैं।
  • डेमोक्रेसी दुनिया में सबसे धनी हैं। इनमें अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, चीन, स्कैंडिनेवियाई देश शामिल हैं।

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मतदान का महत्व पर निबंध

Essay on Importance of Voting in Democracy in Hindi : हम सब जानते हैं, हमारा भारत लोकतांत्रिक देश है। यहां पर हर व्यक्ति जो अपनी 18 साल की उम्र पूरी कर चुका है, उसे वोट डालने का अधिकार है।

speech on democracy in hindi

हम यहां पर मतदान की अनिवार्यता पर निबंध पर निबंध शेयर कर रहे है। इस निबंध में मतदान का महत्व के संदर्भित सभी माहिति को आपके साथ शेयर किया गया है। यह निबंध सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए मददगार है।

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मतदान का महत्व पर निबंध | Importance of Voting in Democracy in Hindi

मतदान का महत्व पर निबंध 100 शब्द (matdan ki anivaryata par nibandh).

लोकतंत्र में मतदान का महत्व बहुत अधिक है। लोकतांत्रिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए मतदान ही एक अनूठा जरिया है, जिसमें जनता का मूल अधिकार होता है। लोग मतदान के जरिए अपने प्रत्याशी को चुनते हैं। मतदान की प्रक्रिया की वजह से ही जनता का खुद का शासक चुना जाता है और वही शासन करता है। 26 जनवरी 1950 को भारत में संविधान लागू हुआ, उससे पहले देश ब्रिटिश सरकार के गुलाम था और ब्रिटिश सरकार से पहले देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था नहीं थी।

देश के राजाओं के द्वारा शासन चलाया जाता था और वहां पर सभी को समान अधिकार नहीं मिलता था। राजा के बेटे की राजा बनते थे। ऐसे में 26 जनवरी 1950 को जब देश में संविधान लागू हुआ तो देश में लोकतंत्रिक व्यवस्था लागू की गई। जिसकी वजह से देश भर में हर आम आदमी को अपना शासक चुनने का अधिकार और हर आम आदमी को उम्मीदवार के रूप में खड़े होने का अधिकार है।

मतदान का महत्व पर निबंध 200 शब्द (matdan ka mahatva nibandh)

जनता के द्वारा अपने खुद के प्रतिनिधि को मतदान करके चुना जाता है। मतदान का महत्व जनता और प्रतिनिधि दोनों के लिए बहुत अधिक होता है। इसके अलावा देश के लिए और देश के विकास के लिए भी मतदान का महत्व अधिक है। भारत जो विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। जहां हर व्यक्ति के 1 वोट का मुख्य योगदान रहता है, जो देश विकास के लिए और देश के शासन की दिशा को तय करने में जरूरी है।

क्योंकि शासक के बिना शासन चलाना संभव नहीं है और शासक का चयन जनता करती है। जनता के मध्य के योगदान से ही देश में शासक चुना जाता है। लोकतांत्रिक व्यवस्था को मतदान के बिना कायम रखना संभव नहीं है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता के द्वारा ही हर शासक को चुना जाता है। कौन सत्ता में रहेगा, कौन जीतेगा और कौन नहीं जीतेगा। इनका निर्धारण जनता के द्वारा और देश के नागरिक के द्वारा किया जाता है।

मतदान का एक महत्व हर व्यक्ति को समझना चाहिए। हर व्यक्ति के पास अपने वोट की शक्ति को अपने देश के प्रति इस्तेमाल करना अनिवार्य है और इमानदारी के साथ अपने देश के ईमानदार और नेक शासक उम्मीदवार को वोट देकर उसे विजय बनाना चाहिए ताकि देश के विकास में सुधार आ सके और देश प्रगति की राह पर आगे बढ़ सके।

मतदान का महत्व पर निबंध (250 शब्द)

26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लिखा गया था, जिसमें यह भी लिखा गया था कि अब से भारत एक लोकतांत्रिक देश है। हम सभी जानते हैं कि लोकतांत्रिक देश में सभी नागरिक को वोट देने का अधिकार होता है। परंतु कुछ नागरिक ऐसे होते हैं, जो अपना वोट कीमती नहीं समझते हैं और मतदान के समय वोट नहीं करते हैं।

ऐसे लोगों को यह जानना बहुत ही अधिक जरूरी है कि एक वोट भी कितना कीमती हो सकता है। भारत में सभी नागरिक चाहे तो एक वोट की कीमत को बता सकते हैं। उदाहरण के तौर पर फ्रांस एक ऐसा देश है, जहां पर पूर्णता मतदान डाले जाते हैं और हर नागरिक अपनी जिम्मेदारी समझता है कि उसको मतदान देना चाहिए। इसीलिए वह लोकतांत्रिक देश का सबसे बड़ा उदाहरण है।

हमारे भारत में सबसे बड़ा उदाहरण वोट ना देने का यह देखा गया, जब अटल बिहारी वाजपेई की सरकार बनी थी। तब 13 दिनों के बाद ही वापस मतदान करने पड़े थे। क्योंकि उस समय आम जनता ने सही प्रकार से मतदान नहीं किए थे, जिसकी वजह से सरकार को भी परेशानी उठानी पड़ी थी।

देखा जाए तो मतदान में इतनी शक्ति होती है कि वह अपनी मातृभाषा तक निर्धारित कर सकती हैं। वोट के आधार पर ही मातृभाषा चुनी जाती है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण अमेरिका है, इसीलिए मतदान केवल सरकार के लिए ही नहीं होता है बल्कि आम नागरिक के लिए भी बहुत ज्यादा जरूरी होता है।

हमारे भारत में या देश में 5 वर्ष में एक बार मतदान किया जाता है। कई लोग इसको बेकार समझते हैं और इसके चलते सरकार को हर बार मतदान जागरूकता अभियान चलाना पड़ता है। कई जगह रैली निकाली जाती है और मतदान का प्रचार किया जाता है।

matdan ka mahatva

मतदान का महत्व पर निबंध 500 शब्द (matdan ka mahatva par nibandh)

लोकतंत्र में हर व्यक्ति को अपना वोट देने का हक होता है और हर व्यक्ति को अपना वोट देना भी चाहिए ताकि व्यक्ति अपने इच्छा अनुसार देश के शासक को चुन सकें। मतदान देश के हर नागरिक को करना चाहिए। मतदान प्रक्रिया में भाग लेना देश के हर नागरिक का मुख्य कर्तव्य है। 18 वर्ष से ऊपर का हर व्यक्ति मतदान कर सकता है।

20 जनवरी 1950 को भारत का संविधान देशभर में लागू हुआ। इस संविधान में भारत एक लोकतांत्रिक देश है। इस बात का जिक्र किया गया। लोकतंत्र की व्यवस्था को बनाए रखने के लिए मतदान बहुत ही जरूरी है। हर नागरिक को मतदान को जिम्मेदारी समझते हुए मतदान करना चाहिए ताकि हमारा देश लोकतांत्रिक देश बना रहे।

मतदान क्यों जरूरी है?

किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए मतदान बहुत ही जरूरी है। देश में देश के नागरिक के द्वारा शासक का चयन करना मतदान की प्रक्रिया की वजह से ही होता है। मतदान की वजह से ही आम आदमी अपने इच्छा अनुसार इमानदार और नेक प्रतिनिधि को चुन सकता है और देश को अच्छी सरकार मिल सकती है।

मतदान करने से देश के विकास में बढ़ोतरी होती है। यदि देश को अच्छी सरकार मिलेगी तो देश के विकास में बढ़ोतरी होगी। देश की जनता के पास ताकत आएगी और देश के हर शहर और हर गांव में विकास की लहर उठेगी।

अगर मतदान नहीं किया जाता है और कम लोगों द्वारा मतदान किया जाता है तो ऐसे में कहीं बाहर गलत प्रतिनिधि विजेता बन जाता है, जिसकी वजह से देश को बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है। जनता को भी गलत शासक बन जाने की वजह से समस्याओं का सामना करना पड़ता है, इसलिए मतदान करना जरूरी है। मतदान के प्रति हर व्यक्ति को जागरूक होना चाहिए। अपने आसपास मतदान के प्रति लोगों को जागरूकता फैलानी चाहिए।

मतदान देने की प्रक्रिया

हमारे देश में मतदान की प्रक्रिया को बेहद ही सरल बनाया गया है। हालांकि आज से कुछ सालों पहले मतदान के रूप में आपको पन्नों पर स्टांप लगाकर डब्बे में डालना होता था और उसके पश्चात उन सभी पन्नों को कमेंट किया जाता था। लेकिन आज के समय में ईवीएम मशीन के माध्यम से वोटिंग और मतदान की प्रक्रिया को सुचारू रूप से चलाया जा रहा है।

इन मशीनों के जरिए आपको हर प्रतिनिधि की फोटो और नाम के आगे एक बटन दिखाई देता है। उस बटन पर क्लिक करके आप अपना वोट प्रतिनिधि को डाल सकते हैं। इसके अलावा आपको नोटा का बटन भी देखने को मिलता है। यदि आप किसी भी प्रतिनिधि या उम्मीदवार को अपना वोट नहीं देना चाहते हैं तो ऐसे में आप नोटा बटन को दबा सकते हैं।

मतदान करना आपका कर्तव्य है। मतदान आप अपनी इच्छा अनुसार किसी भी व्यक्ति को कर सकते हैं। इसके लिए कोई भी जोर जबरदस्ती नहीं है। आपने किस को वोट डाला है यह हमेशा गुप्त रखें किसी को भी इसके बारे में नहीं बताए।

जीवन में मतदान की अहमियत

हर आम आदमी के जीवन में मतदान बहुत ही जरूरी होता है। इसकी वजह यह है कि देश का संविधान हर व्यक्ति को खड़े होने वाले उम्मीदवार को चुनने का हक देती है और जनता के द्वारा चुने गए उम्मीदवार को ही शासन की डोर सौंपी जाती है। अब जाहिर सी बात है कि यदि सही व्यक्ति के हाथ में देश को चलाने की शक्ति होगी तो वह देश के विकास में और जनता के विकास में कई अहम कार्य करेगा।

जिससे हमारे जीवन में भी कई तरह से बदलाव देखने को मिलेंगे। लेकिन यदि गलत उम्मीदवार चयनित होता है तो उसे हमारा जीवन भी प्रभावित होता है। अतः हर मनुष्य के जीवन में मतदान की अहमियत बहुत अधिक होती है। हर व्यक्ति को मतदान एक कर्तव्य है।

यह सोचकर मतदान की प्रक्रिया को सुचारु रुप से चलाना चाहिए। हर व्यक्ति को मतदान के प्रति जागरूकता फैल आनी चाहिए। मतदान ही एक सर्वश्रेष्ठ ताकत है, जो आज देश को चला रही है। देश के विकास के लिए और देश की प्रगति के लिए मतदान बहुत ही जरूरी है।

हर आम आदमी को अपना प्रतिनिधि चुनने का हक है। मतदान किसी के चेहरे पर नहीं करना चाहिए। यह आपका खुद का अधिकार है और आप अपनी इच्छा अनुसार किसी भी उम्मीदवार को अपना वोट दे सकते हैं।

मतदान का महत्व पर निबंध (850 शब्द)

भारत एक लोकतांत्रिक देश है। 26 जनवरी 1950 को भारत को लोकतांत्रिक देश घोषित किया गया था। लोकतांत्रिक देश में सभी नागरिकों को मतदान देने का अधिकार होता है, किंतु कुछ नागरिक अपने कर्तव्य से पीछे हटते हैं।

ऐसे में हमें क्या करना चाहिए? मतदान हमारे लिए बहुत ही जरूरी है। यह केवल सरकार की ही प्रगति नहीं करते हैं, बल्कि आम नागरिक की भी प्रगति इसके पीछे छिपी होती है। हमारे भारत में मतदान को भी एक उत्सव की तरह मनाया जाता है।

क्या होती है नागरिकों की क्षमता?

किसी भी आम नागरिक की सबसे बड़ी क्षमता यही होती है कि उसको मतदान देना चाहिए। उसको अपने प्रतिनिधित्व को चुनने का पूरा अधिकार है। हर किसी का सोच विचार अलग होता है। इसी के चलते लोग अपनी मर्जी से प्रतिनिधित्व को चुन सकते हैं।

हर नागरिक को अपने मन के विचार प्रकट करने चाहिए। यह केवल सरकार के लिए ही नहीं बल्कि अपनी भी प्रगति के लिए करना चाहिए। इससे उन्हें राजनीतिक दुनिया के बारे में भी पता चलता है।

मतदान देना क्यों है जरूरी?

किसी भी देश को यही चाहिए कि उसके देश के नागरिक ईमानदारी रहे। देश का नेता चुनने के लिए आम नागरिक को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। इसीलिए आम नागरिक को अपने कर्तव्य को समझते हुए सही प्रतिनिधित्व को चुनना चाहिए, जिससे उनके देश को अच्छे सरकार मिल सके।

भारत में हर नागरिक को सबसे सर्वोपरि माना जाता है। क्योंकि जो ताकत जनता के पास होती है वह ताकत सरकार के पास भी नहीं होती है। इसीलिए आम नागरिक को यह अंदाजा होना चाहिए कि मतदान कितना जरूरी है। गांव हो या शहर हो हर नागरिक को जागरूक होना चाहिए। अपने मतदान के लिए अगर ऐसा नहीं करते हैं तो उनकी प्रगति में रुकावट आती है।

अगर हम सही प्रतिनिधित्व नहीं चुनेंगे तो देश की सरकार किसी गलत हाथों में चली जाएगी। इससे देश को भी नुकसान होगा और वहां रहने वाली जनता को भी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। इसीलिए अपने अधिकार के, चलते हर नागरिक को अपनी सत्ता चुनने का अधिकार मिला हुआ है तो वह उसका पूर्णता लाभ उठाएं।

कैसे चुने प्रतिनिधित्व?

जब भी आम जनता सरकार को वोट देना चाहती है तो वह इस असमंजस में रहती है कि हमारे लिए कौन सा प्रतिनिधित्व सही है? कौन प्रतिनिधित्व हमारे देश में विकास कर सकता है या कौन सा भ्रष्टाचार हो सकता है।

अगर आप भी इस विषय में असमंजस में पड़ जाते हैं तो आपको चाहिए कि आप यह जांच पड़ताल करे कि सबसे ज्यादा देश के प्रति अपने कर्तव्य कौन निभा रहा है, जो देश की सेवा को सर्वोपरि रखता है, वहीँ सही प्रतिनिधित्व होता है।

हमारे जीवन में क्या है मतदान की अहमियत?

अगर आम जनता के द्वारा सही से प्रतिनिधित्व नहीं चुना गया तो देश की बागडोर गलत हाथों में चली जाती है। इससे देश को खतरा भी हो सकता है। क्योंकि कुछ ऐसे प्रतिनिधित्व होते हैं, जो सरकार बनाकर उसका गलत फायदा उठाते हैं और एक भ्रष्ट नेता के रूप में उभरते हैं।

सबसे बड़ी बात तो यही है कि आम नागरिक मतदान देने में डरते हैं। अगर वह अपने वोट को कीमती समझे तो सही प्रतिनिधि का चुनाव कर सकते हैं। अन्यथा भ्रष्ट नेता अपने ही लोगों को पैसे देकर चुनाव जीत जाते हैं और देश को नुकसान पहुंचाते हैं।

ईमानदार और योग्य सरकार कैसे बनती है?

यह बात भी आम जनता पर ही निर्भर करती है। क्योंकि हर 5 वर्ष में चुनाव होता है, जिसके चलते आम नागरिक को अपनी सरकार का गठन करने का कर्तव्य होता है। आम जनता ही निर्धारित करती है कि राज्य और केंद्र सरकार पर कौन स्थापित होगा।

हमें मतदान देने का मौका कब मिलता है?

जब प्रत्येक नागरिक 18 वर्ष की आयु पूरी कर लेता है तब हमें मतदान देने का मौका मिलता है और यह मौका हमें पूरे जीवन मिलता है। लेकिन इस मौके का अवसर हमें हर 5 साल में उठाना चाहिए या जब भी चुनाव होते हैं। इस मौके का अवसर जरूर लेना चाहिए।

देश का नुकसान कैसे होता है वोट ना करने से?

वोट देना हमारा हक है। इस हक का हमें फायदा उठाना चाहिए, क्योंकि भ्रष्ट नेता अपने ही लोगों से वोट गिरवाते हैं और चुनाव जीत जाते हैं। जिसके चलते देश को बहुत बड़ा नुकसान हो जाता है और यह साबित नहीं हो पाता है कि कौन ईमानदार है और कौन भ्रष्ट नेता है।

मतदान देने की प्रक्रिया क्या होती है?

  • मतदान देने के लिए किसी को से भी जोर जबरदस्ती नहीं किया जाता, वह अपने पसंदीदा उम्मीदवार को मत दे सकता है।
  • अपनी मत को हमेशा गुप्त रखें, किसी को भी यह नहीं बताएं कि आप किसके समर्थन हैं।
  • सबकी मत की सहमति अलग-अलग होती है, इसीलिए जरूरी नहीं है कि वह एक समान ही सोचे।
  • जिस राजनीतिक पार्टी का बोलबाला ज्यादा होता है, उसी उम्मीदवार को अधिक वोट प्राप्त होते हैं।

वोट देने के लिए कौन कौन से दस्तावेज जरूरी हैं?

  • सबसे पहले आपके लिए पहचान पत्र जरूरी है, जो कि सरकार द्वारा बनाए जाते हैं।
  • इसके पश्चात आपका नाम वोटर लिस्ट में होना आवश्यक है।
  • वोटर आईडी कार्ड या आधार कार्ड अन्यथा वोटर स्लिप होनी जरूरी है।

देश की सफलता किन बातों पर निर्भर करती है?

  • आम नागरिक अपने कर्तव्य को समझते हुए हर साल वोट अवश्य दें।
  • देश से भ्रष्टाचार खत्म करें क्योंकि आम जनता ही है, जो यह काम कर सकती है।
  • जितनी ताकत सरकार के पास नहीं होती है, उससे कहीं अधिक ताकत जनता के पास होती है क्योंकि अगर जनता मतदान नहीं करेगी तो सरकार नहीं बन पाएगी।
  • देश के विकास के लिए सभी को एक मत रहना आवश्यक होता है, यही तय करता है कि देश का नेता भ्रष्टाचार ना हो।
  • आम नागरिक को अपनी सरकार के प्रति सक्रिय रहना चाहिए, जनता को अपने सरकारी कामों के बारे में पता रहना चाहिए।
  • मतदान करने से पहले आप इंटरनेट से अपने प्रतिनिधित्व के बारे में जांच-पड़ताल भी कर सकते हैं, इससे आप को मत देने में आसानी होगी।
  • हमारा देश लोकतांत्रिक देश है और हम बहुत खुशनसीब लोग हैं कि हमें वोट देने का अधिकार मिला है। अपनी सरकार खुद चुनने का अधिकार दिया गया है।

हमारे देश की जितनी भी परेशानियां और समस्याएं हैं, अगर सरकार चाहे तो उन समस्याओं को खत्म कर सकती है। परंतु अकेले सरकार के चाहने से कुछ नहीं होगा, इसमें आम जनता को पूर्ण सहयोग करना होगा।

तभी हमारे देश की गरीबी, बेरोजगारी, दिन प्रतिदिन बढ़ती महंगाई, इन सब को हम रोक पाएंगे। क्योंकि वोट देने से देश में बहुत से परिवर्तन आ सकते हैं। इसीलिए आपको अपना अधिकार समझना चाहिए और अपने देश के प्रति जागरूक रहना चाहिए।

आज के आर्टिकल में हमने मतदान का महत्व पर निबंध (Importance of Voting in Democracy in Hindi) के बारे में बात की है। मुझे पूरी उम्मीद है कि हमारे द्वारा लिखा गया यह आर्टिकल आपको पसंद आया होगा। यदि आपका इससे जुड़ा कोई सवाल या सुझाव है तो कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।

  • मौलिक अधिकार पर निबंध
  • चुनाव पर निबंध
  • डोमिनेशन पर निबंध

Rahul Singh Tanwar

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Essay on Democracy in India for Students and Children

500+ words essay on democracy in india.

Essay on Democracy in India – First of all, democracy refers to a system of government where the citizens exercise power by voting. Democracy holds a special place in India. Furthermore, India without a doubt is the biggest democracy in the world. Also, the democracy of India is derived from the constitution of India. After suffering at the hands of British colonial rule, India finally became a democratic nation in 1947 . Most noteworthy, Indian democracy since independence is infused with the spirit of justice, liberty, and equality.

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Features of Indian Democracy

Sovereignty is a vital feature of Indian democracy. Sovereignty refers to the full power of a governing body over itself without outside interference. Moreover, people can exercise power in Indian democracy . Most noteworthy, people of India elect their representatives. Moreover, these representatives remain responsible for common people.

The democracy in India works on the principle of political equality. Furthermore, it essentially means all citizens are equal before the law. Most noteworthy, there is no discrimination on the basis of religion , caste, creed, race, sect, etc. Hence, every Indian citizen enjoys equal political rights.

Rule of the majority is an essential feature of Indian democracy. Moreover, the party which wins the most seats forms and runs the government. Most noteworthy, no-one can object to support of the majority.

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Another feature of Indian democracy is federal. Most noteworthy, India is a union of states. Furthermore, the states are somewhat autonomous. Moreover, the states enjoy freedom in certain matters.

Collective responsibility is a notable feature of Indian democracy. The council of Ministers in India is collectively responsible to their respective legislatures. Therefore, no minister alone is responsible for any act of their government.

Indian democracy works on the principle of formation of opinion. Furthermore, the government and its institutions must work on the basis of public opinion. Most noteworthy, public opinion must be formed on various matters in India. Moreover, the Legislature of India provides an appropriate platform to express public opinion.

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Ways to Strengthen Democracy in India

First of all, people must stop having a blind belief in the media. Many times the news reported by media is out of context and exaggerated. Most noteworthy, some media outlets may propagate the propaganda of a particular political party. Therefore, people must be careful and cautious when accepting media news.

Another important way to strengthen the Indian democracy is to reject the consumer mentality in elections. Several Indians view national elections like consumers buying a product. Most noteworthy, elections should make Indians feel like participants rather than separatists.

People in India should make their voices heard. Furthermore, people must try to communicate with their elected official all year-round instead of just during elections. Therefore, citizens must write, call, email, or attend community forums to communicate with their elected official. This would surely strengthen Indian democracy.

Huge voter turnouts is really an efficient way to strengthen democracy in India. People must avoid hesitation and come out to vote. Most noteworthy, large voter turnout would signify a substantial involvement of the common people in Indian politics.

In conclusion, the democracy in India is something very precious. Furthermore, it is a gift of the patriotic national leaders to the citizens of India. Most noteworthy, the citizens of this country must realize and appreciate the great value of democracy. The democracy in India is certainly unique in the world.

{ “@context”: “https://schema.org”, “@type”: “FAQPage”, “mainEntity”: [{ “@type”: “Question”, “name”: “State any two features of Indian democracy?”, “acceptedAnswer”: { “@type”: “Answer”, “text”: “Two features of Indian democracy are the rule of the majority and collective responsibility.” } }, { “@type”: “Question”, “name”: “State any one way to strengthen democracy in India?”, “acceptedAnswer”: { “@type”: “Answer”, “text”:”One way to strengthen democracy in India is to reject the consumer mentality in elections.”} }] }

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2 and 3 Minute Speech On Democracy in English

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  • Updated on  
  • Jun 27, 2024

Speech on democracy

In circa 508 BCE, the concept of democracy and constitutional form of government originated in Athens. Today, over 120 countries across the world have a democratic form of government. And do you know which country has the largest democracy? The answer is India. Since 1947, a total of 18 Lok Sabha elections have been held in India, where every Indian citizen above the age of 18 was entitled to vote. Today, we will discuss 2 and 3-minute speeches on democracy for students.

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2 Minute Speech on Democracy

‘Good morning, respected teachers and dear friends. Today, I stand before you to celebrate one of humanity’s most cherished ideals: democracy. Democracy is more than just a system of governance; it is the embodiment of our collective aspiration for freedom, equality, and justice. It is a system where the power lies with the people, where each citizen has an equal say in shaping the future of their nation. This fundamental principle ensures that every voice, no matter how small, is heard and valued.

At the heart of democracy is the belief in the dignity and worth of every individual. It recognizes our right to express our opinions, to assemble peacefully, and to seek change through dialogue and debate. These freedoms are the lifeblood of a democratic society, fostering an environment where ideas can flourish and innovation can thrive.

Democracy, however, is not without its challenges. It demands vigilance, participation, and a commitment to the common good. It requires us to engage actively in the political process, to educate ourselves about the issues, and to vote with both our hearts and our minds. It calls on us to hold our leaders accountable and to ensure that they govern in the best interests of all.

In a world where autocracy and tyranny still exist, democracy stands as a beacon of hope. It reminds us that, despite our differences, we are united in our desire for a better, fairer world. It is a testament to our enduring belief in the power of the people to effect change and to create a society that reflects our highest ideals.

As we reflect on the significance of democracy, let us recommit ourselves to its principles. Let us strive to build bridges of understanding and cooperation, defend the rights of the marginalized, and ensure that our democratic institutions remain strong and resilient.

Democracy is not just a destination but a journey. It is a continuous effort to create a more just and equitable society. Let us walk this path together, with courage and conviction, knowing that in doing so, we honour the legacy of those who fought for our freedoms and paved the way for future generations.

Thank you.

Also Read: Speech on Personal Hygiene

3 Minute Speech on Democracy

‘Good morning, respected teachers and dear friends. Today, I am honoured to speak about one of the most profound achievements in human history: democracy. Democracy is more than just a political system; it is the embodiment of our collective aspirations for freedom, justice, and equality.
At its core, democracy is founded on the principle that power resides with the people.

It ensures that every individual, regardless of their background, has an equal voice in shaping the policies and decisions that govern their lives. This principle is enshrined in the fundamental right to vote, a right that many have fought and sacrificed for throughout history. It is through the act of voting that we exercise our power, express our opinions, and hold our leaders accountable.

But democracy is more than just voting. It is about the freedom to speak our minds, to assemble peacefully, and to seek redress when we feel wronged. These freedoms are the cornerstones of a vibrant democratic society, fostering an environment where ideas can be exchanged freely, and innovation can thrive. In a democracy, diversity of thought and opinion is not only tolerated but celebrated. It is through the clash of ideas that we find common ground and solutions to the challenges we face.

Democracy, however, is not without its challenges. It requires constant vigilance, active participation, and a commitment to the common good. It demands that we stay informed about the issues, engage in constructive dialogue, and work collaboratively to address the needs of all citizens. It calls on us to look beyond our interests and consider the well-being of our communities and future generations.

In a world where autocracy and authoritarianism still threaten the freedoms we cherish, democracy stands as a beacon of hope. It is a testament to our enduring belief in the power of the people to create a just and equitable society. It reminds us that, despite our differences, we are united in our desire for a better future. Democracy is the mechanism through which we can achieve that future, but it requires our active and ongoing participation.

As we reflect on the significance of democracy, let us also remember the sacrifices made by those who came before us. Let us honour their legacy by recommitting ourselves to the principles of democracy. Let us strive to protect and strengthen our democratic institutions, to defend the rights of the marginalized, and ensure that every voice is heard and valued.

Democracy is not a destination but a journey. It is a continuous effort to build a more just, equitable, and inclusive society. It is a journey that requires courage, conviction, and a steadfast commitment to the principles of freedom and equality. Let us walk this path together, knowing that in doing so, we honour the legacy of those who fought for our freedoms and paved the way for future generations.
Thank you.’

Also Read: Speech on Corruption in Business and Corporate Practices

Ans: Democracy helps maintain law and order with the concept of power-sharing. Democracy allows citizens to choose their leaders to run the government by free and fair elections. Democracy provides equal rights among citizens based on caste, religion and sex.

Ans: Democracies deliver. They deliver stronger, more resilient economies. They deliver better opportunities for citizens and outcomes for communities. And they deliver freer, more inclusive, more just societies.

Ans: A weakness of democracy is its susceptibility to the “tyranny of the majority,” where the desires and interests of the majority population can override and potentially harm the rights and interests of minority groups. This can lead to policies and decisions that are unjust or discriminatory toward those who are not part of the majority.

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Assistant Attorney General Jonathan Kanter Delivers Keynote at Open Markets Institute's “Fixing the Information Crisis Before It's Too Late (for Democracy)”

Washington , DC United States

Thank you for the introduction, Kai. Thank you to the Open Markets Institute and The Guardian US for organizing today’s event. I am happy to be here for this important conversation. I could not imagine a more important topic.

The free flow of information and the exchange of ideas is the lifeblood of our cultural lives and our democracy. Humans need connections to one another like they need air and water. And a democracy needs citizens to exchange information and ideas. That is what democracy is all about: competing ideas in a debate that plays out freely over time. With freedom of thought and expression, democracy thrives. In contrast, the first goal of the tyrant is to control thought and information.

That is why the Founders made freedom of speech the very first right protected in our Bill of Rights. They understood deeply and personally the threats that government could pose to the marketplace of ideas on which democracy depends.

Ben Franklin was not just a champion of a free press and free speech, but a journalist and publisher himself. He committed to that work because he believed in “the sacred liberty of the press” and “the liberty of discussing the propriety of public measures and political opinions.” [1] So the Constitution fervently protected the public from government control of the press and of speech.

In the modern era, there are new threats to the marketplace of ideas. The Founders could not have imagined private corporations with the power to shape, control, or stifle freedom of speech on a national scale. It was just inconceivable in an era when the town square was … a square in the middle of town.

The only electric bottleneck Ben Franklin ever encountered was tied between a kite and a key. He could not have imagined that one day that wire would carry every Federalist Paper, all of journalism, all debate, every kind of connection between citizens. 

If he had, Franklin would have immediately seen the threat we face today. If a single platform of 1’s and 0’s hosts the marketplace of ideas, whoever controls that platform controls our thoughts, and our democracy will not survive .

Today we are confronting that challenge. The rise of dominant platforms in the marketplace of ideas threatens journalism, the exchange of information, and the marketplace of ideas. Powerful corporations that stand between citizens and writers, musicians, artists, and journalists exert enormous control and influence.

This is a dynamic that is playing out in many different areas. I would like to talk today about journalism, publishing, and AI in particular. These are industries where dominant intermediaries act as gatekeepers to the information commons. And as gatekeepers, they have the ability to extract more than their fair share from both sides of the market.

But this is about so much more than the price or output of these products and services. What is at stake is speech itself. Private corporations decide what ideas are worthy, whose voices are amplified, and what messages are disseminated and to whom. What is at stake is the very way in which people gather information and make decisions, and the very existence of the people who live to share their ideas, thoughts, and creations.  

Franklin might have also seen the solution to this problem. In a world where information flows over cables between silicon chips, we need more than just the one strand he tied to his kite and key.

Competition between many platforms means a small number of dominant platforms do not have outsized power over speech. And when there are more competitors, journalists and content creators have more opportunities to bargain for the value of their content, while consumers have the ability to vote with their feet.

That is a world where private citizens can benefit from different viewpoints and make informed decisions about how they want to live their lives. Where competition among many online platforms flourishes, no one company can exercise control over the flow of information in our democracy.

In the absence of competition, there are few if any incentives to compete to offer solutions for common problems. But competition can constrain behavior and even facilitate market-based solutions—whether it be how to fairly compensate creators of content, or how to combat the spread of false information and harmful content online.

Today, I would like to talk about three areas where this dynamic is playing out.

Journalism is under threat in large part due to consolidation in the advertising market.

The statistics are staggering. In 2023, an average of 2.5 newspapers closed each week. [2] Since 2005, the country has lost one-third of its newspapers. [3] And it has lost two-thirds of its newspaper journalists in that same period. [4]

This is in no small part due to the ripple effects from changes in how advertising works. Traditionally, news organizations have relied on subscriptions and advertising to fund their reporting and to pay their journalists. But with the rise of the Internet, readers increasingly turned to online aggregators for news.

Today, the majority of Americans prefer to get their news on a digital device, rather than from TV, radio, or print. [5] Americans now get their news from news websites, searches, and from social media. [6] Social media is especially prominent. According to a recent survey, about half of U.S. adult today get news from social media at least sometimes. [7]

This means that powerful platforms are acting as middlemen between newspapers and readers. Digital advertising dollars now go to these middlemen, rather than to the journalists and news organizations that do the reporting.

In turn, newspapers now depend on these platforms for the distribution of their content. They need the platforms to reach the readership, and they have little negotiating power. And without sufficient advertising revenue, independent journalism suffers.

Competition is a key piece of the puzzle toward a solution to these problems. Competition paves the way for innovation and the development of new business models and new economic relationships.

Inter-platform competition could shift the balance of power and create different bargaining dynamics for newspapers. Competition among digital advertisers can lead the way toward a fairer compensation structure for those who do the on-the-ground reporting and write the articles.

Again, what is at stake here is not just the price of the newspaper. It is about journalism itself. It is about whether our society can support the journalists that do the hard work of separating truth from falsehood to shed light on the most important issues of our day. Without the journalists who do this work, our democracy cannot thrive.

The trend toward consolidation has threatened another industry necessary for ideas to flourish — publishing.

The Antitrust Division brought a successful challenge to halt the merger between Penguin Random House and Simon & Schuster. These are two of the largest book publishers in the industry. The proposed merger would have consolidated the “big 5” publishers into the “big 4” — further tightening the oligopoly that authors faced.

But our challenge to that merger was not just based on a theory that the price of books would increase due to reduced competition. It was that the merger meant that authors would receive lower advances. That would not only harm authors, but ultimately, it could lead to fewer books and a diminished diversity of viewpoints as fewer authors would invest the time and effort to write the next best-seller.

Authors and books are more than just economic units. They are vital to the marketplace of ideas and the public discourse.

Our victory in that case protected the vital competition for books. It was a victory for authors, for readers, and for the free exchange of ideas.

  • Artificial Intelligence

Last but not least, let me turn to AI.

AI will reshape all of the information and content industries. It will change the way we consume our news. It will affect the way in which content is created. And it will change the way that we interact with information.

Without meaningful competition, the same threats that plague journalism will spread to all other content creation markets.

Generative AI leverages human creations. Journalists, authors, artists, musicians — all types of human creativity become inputs into large-scale AI models that can swallow up and regurgitate their work.

AI carries the potential to create dominant companies that can exploit monopsony power at levels we have never seen before — a dominant buyer for all of the world’s ideas.

But what incentives will there be to create if the ideas of our writers, actors, and entertainers, can simply be taken without just compensation and through the exercise of monopsony power? What incentives will there be for journalists to seek out the truth when their work is uncompensated?

What does it mean for our society if we cannot protect those who live to share the ideas and creativity with the world?

The future of free expression depends on how we answer these questions as a society. Our democratic values depend on our ability to save ideas. We must do all we can to promote competition and innovation in the industries necessary for ideas and democracy to flourish.

[1] Benjamin Franklin, An Account of the Supremest Court of Judicature in Pennsylvania, viz., The Court of the Press , The Founders’ Constitution, https://press-pubs.uchicago.edu/founders/documents/amendI_speechs16.html (emphasis and capitalization omitted).

[2] David Bauder, Decline in Local News Outlets is Accelerating Despite Efforts to Help , Associated Press (Nov. 16, 2023, 10:30 AM), https://apnews.com/article/local-newspapers-closing-jobs-3ad83659a6ee070ae3f39144dd840c1b.

[5] News Platform Fact Sheet , Pew Research Center (Nov. 15, 2023), https://www.pewresearch.org/journalism/fact-sheet/news-platform-fact-sheet.

[7] Social Media and News Fact Sheet , Pew Research Center (Nov. 15, 2023), https://www.pewresearch.org/journalism/fact-sheet/social-media-and-news-fact-sheet.

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  • सामान्य अध्ययन-II
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यह एडिटोरियल 29/11/2021 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Making the House Work” लेख पर आधारित है। इसमें भारत जैसे देश में संसदीय विपक्ष के महत्त्व की चर्चा की गई और इसके महत्त्व में गिरावट पर विचार करते हुए संबंधित उपाय सुझाए गए हैं।

संसदीय लोकतंत्र की विशेषता सत्तारूढ़ दल और विपक्षी दल की पारस्परिक जवाबदेही की प्रणाली और एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण विचार-विमर्श प्रक्रिया में प्रकट होती है।

संसदीय विपक्ष लोकतंत्र के वास्तविक सार के संरक्षण और लोगों की आकांक्षाओं व अपेक्षाओं के प्रकटीकरण में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।  

किंतु, वर्तमान में भारत का संसदीय विपक्ष न केवल खंडित है, बल्कि अव्यवस्थित या बेतरतीबी का शिकार भी नज़र आता है। ऐसा प्रतीत होता है कि शायद ही हमारे पास कोई विपक्षी दल है, जिसके पास अपने संस्थागत कार्यकलाप के लिये या समग्र रूप से ‘प्रतिपक्ष’ के प्रतिनिधित्व के लिये कोई विजन या रणनीति हो।

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में भारत के संसदीय विपक्ष को पुनर्जीवित करना और उसे सशक्त करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो जाता है, विशेषकर जब लोकतंत्र का मूल्यांकन करने वाले विभिन्न सूचकांकों में इसकी वैश्विक रैंकिंग में लगातार गिरावट आ रही है।

भारत में संसदीय विपक्ष

  • "आधिकारिक विपक्ष" (Official Opposition) का दर्जा आमतौर पर विपक्ष में बैठे सबसे बड़े दल को प्राप्त होता है और इसके नेता को "विपक्ष के नेता" की उपाधि दी जाती है।
  • विपक्ष संसद एवं उसकी समितियों के अंदर और संसद के बाहर मीडिया में और जनता के बीच दिन-प्रतिदिन आधार पर सरकार के कामकाज पर प्रतिक्रिया करता है, सवाल करता है और उसकी निगरानी करता है।  
  • विपक्ष की भूमिका यह सुनिश्चित करना है कि सरकार संवैधानिक सुरक्षा-घेरा बनाए रखे। 
  • सरकार नीतिगत उपाय और कानून के निर्माता के रूप में जो भी कदम उठाती है, विपक्ष उसे अनिवार्य रूप से आलोचनात्मक दृष्टिकोण से देखता है। 
  • इसके अलावा, विपक्ष संसद में केवल सरकार के कामकाज पर नज़र रखने तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि विभिन्न संसदीय साधनों (Parliamentary Devices) का उपयोग करते हुए अपने निर्वाचन क्षेत्रों की विशिष्ट आवश्यकताओं, संशोधनों और आश्वासनों के संबंध में भी मांग और अपील प्रस्तुत करता है।  
  • इसमें कम्युनिस्टों सहित विपक्ष के व्यापक वर्गों-समूहों को भी शामिल किया गया था।  
  • इतिहास में संसदीय विपक्ष ने भारत के संसदीय लोकतंत्र को रचनात्मकता और विदग्धता प्रदान की थी। 
  • एक कमज़ोर विपक्ष का सरल निहितार्थ यह होता है कि एक बड़ी आबादी (जिन्होंने सत्तारूढ़ दल को वोट नहीं दिया) की राय/मांगों को बिना किसी समाधान के छोड़ दिया गया।
  • इसके अलावा, संसद द्वारा पारित किये जाते कई कानूनों को लगातार अस्वीकार्य के रूप में देखा जा रहा है।
  • ये उदाहरण स्पष्ट रूप से एक अप्रभावी और कमज़ोर विपक्ष का भी संकेत देते हैं।

संसदीय विपक्ष के साथ संबद्ध समस्याएँ

  • विपक्ष का समकालीन संकट मुख्य रूप से इन दलों की प्रभावशीलता और चुनावी प्रतिनिधित्व का संकट है।  
  • राजनीतिक दलों में भरोसे की कमी और नेतृत्व का अभाव भी है।  
  • विपक्षी दल कुछ विशिष्ट सामाजिक समूहों तक सीमित प्रतिनिधित्व के संहत स्वरूप में अटके रह गये हैं और अपने दायरे को कुछ पहचानों या अस्मिताओं की सीमितता से परे ले जाने में असमर्थ रहे हैं।  
  • प्रतिनिधित्ववादी दावे ने विपक्ष को गठित, विस्तारित और समेकित होने में तो सक्षम बनाया है, लेकिन इस दृष्टिकोण या परिघटना की समाज के सभी वर्गों के अंदर वास्तविक प्रतिनिधित्व साकार कर सकने की असमर्थता ने विपक्ष के लिये अवसर को संकुचित करने में भी योगदान किया है।   
  • सरकार की कई विफलताओं पर भी उसे घेर सकने में विपक्ष की असमर्थता से इसकी पुष्टि होती है।
  • विपक्षी दलों को सतत् बारहमासी अभियान और लामबंदी की आवश्यकता है। किसी शॉर्टकट या "कृत्रिम प्रोत्साहन" का विकल्प मौजूद नहीं  है जो एक प्रभावी विपक्ष का निर्माण कर सके। 
  • विपक्षी दलों को अपनी अर्जित पहचान (समूह, जाति, धर्म, क्षेत्र पर आधारित) को त्यागने और नई पहचानों को अपनाने की ज़रूरत है, जो धारणा और व्यवहार में व्यापक और गहरी हों। 
  • शैडो कैबिनेट ब्रिटिश कैबिनेट प्रणाली की एक अनूठी संस्था है जहाँ सत्ताधारी कैबिनेट को संतुलित करने के लिये विपक्षी दल द्वारा शैडो कैबिनेट का गठन किया जाता है।
  • ऐसी व्यवस्था में कैबिनेट मंत्री की प्रत्येक कार्रवाई शैडो कैबिनेट के मंत्री द्वारा प्रतिहस्ताक्षरित की जानी चाहिये।
  • आवश्यकता यह है कि पार्टी संगठन में सुधार किया जाए, लामबंदी के लिये आगे बढ़ा जाए और जनता को संबंधित पार्टी कार्यक्रमों से परिचित कराया जाए। इसके साथ ही, पार्टियों में आंतरिक लोकतंत्र के समय-समय पर मूल्यांकन के लिये एक तंत्र भी अपनाया जाना चाहिये।     
  • प्रतिनिधित्व का उत्तरदायित्व:  वर्तमान मोड़ पर विपक्ष का एक महत्त्वपूर्ण उत्तरदायित्व यह है कि वह साझा मुद्दों पर समन्वय सुनिश्चित करे, संसदीय प्रक्रियाओं पर रणनीति तैयार करे, और इनसे अधिक महत्त्वपूर्ण, दमित अभिव्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करने का प्रयास करे।   
  • यह विरासत से सबक ग्रहण कर स्वयं को लोकतांत्रिक और समतावादी आग्रह की प्रतिनिधि आवाज़ के रूप में स्थापित कर सकता है ।  
  • यह नए तरीकों के बारे में विचार करने का उपयुक्त संदर्भ भी हो सकता है, जिसके द्वारा एक नई मीडिया-प्रेरित सार्वजनिक संस्कृति (जो निरपवाद रूप से विनम्रता और अनुपालन का संपोषण करता है) में असंतोष और विरोध को कायम रखा जा सकता है।  
  • जब पार्टियों में गुट होते हैं तो वे अपने आंतरिक कार्यकरण में लोकतांत्रिक हो जाते हैं।
  • संसद अपने प्रतिनिधि स्वरूप को पुनः प्राप्त करे, इसके लिये आवश्यक है कि सत्ताधारी दल के सदस्य भी संसदीय प्रणाली के प्रति अधिक ईमानदार बनें।

जहाँ हमारी राजव्यवस्था 'फर्स्ट पास्ट द पोस्ट' प्रणाली का पालन करती हो, विपक्ष की भूमिका विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण हो जाती है। भारत के लिये एक सच्चे लोकतंत्र के रूप में कार्य करने हेतु एक संसदीय विपक्ष—जो राष्ट्र की अंतरात्मा है, को संपुष्ट करना महत्त्वपूर्ण है।

अभ्यास प्रश्न: भारत के लिये एक सच्चे लोकतंत्र के रूप में कार्य करने हेतु एक संसदीय विपक्ष—जो राष्ट्र की अंतरात्मा है, को संपुष्ट करना महत्त्वपूर्ण है। चर्चा कीजिये।

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Sengol face-off reignites, President Murmu invokes Emergency in her speech, more

India Today Video Desk

The controversy over the Sengol, a sceptre from the Chola dynasty, has reignited with Opposition parties calling for its removal from the parliament. The Congress party, Samajwadi Party and others argue that the Sengol belongs in a museum, not in 'the temple of democracy'. 

The BJP has dismissed this as mindless criticism, accusing the Opposition of being not just anti-Tamil, but anti-Indian culture. And after Speaker, now President Droupadi Murmu invoked the Emergency in her joint address of Parliament and said the country plunged into chaos during the Emergency imposed in 1975 and said attempts to "tarnish" democracy should be condemned by everyone.

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Harsh Jain shares why India's cultural DNA gives startups winning edge

Harsh Jain said that while advanced economies like the UK and the US have fewer problems to solve, India's limitless opportunities make it an ideal place for startups.

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Rahul Gandhi meets Speaker Om Birla, raises concerns over reference to Emergency

Leader of the Opposition Rahul Gandhi, along with other Opposition leaders, today met Lok Sabha Speaker Om Birla in his chamber and voiced his concerns over the reference to the Emergency made by him in the House.

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Over 10 tons of fish found mysteriously dead on shores of Hyderabad lake

Sample were collected to investigate the cause.

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Congress's youth wing members storm NTA office, lock it from inside

National Students' Union of India (NSUI) members on Thursday staged a protest and locked the National Testing Agency (NTA) in Delhi's Okhla demanding action against the alleged irregularities in the NEET medical entrance examinations.

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India’s Rahul Gandhi named official leader of the opposition in boost for ‘robust democracy’

  • Gandhi’s new role means he will now have the same rank as that of a cabinet minister and be able to challenge PM Modi directly on policy issues

Biman Mukherji

The decision to name Rahul Gandhi the official leader of the opposition in India’s parliament signifies a potential revitalisation of the country’s “robust democracy”, with analysts suggesting this move could balance the political landscape after a decade without a strong opposing voice in the government.

The Indian National Congress, the country’s main opposition party, announced on Tuesday that Gandhi would assume the official role this week after a meeting with their coalition partners.

“In the 18th Lok Sabha, the House of the People shall truly reflect the aspirations of the last person standing, with Rahul Gandhi becoming their voice,” Congress party president Mallikarjun Kharge posted on X on Wednesday.

“As Congress President, I am confident that a leader who has traversed the length and breadth of the country from Kanyakumari to Kashmir, and from Manipur to Maharashtra shall raise the voice of the people – especially the marginalised and the poor.”

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Congress had been unable to secure the position during the two previous governments under the ruling Bharatiya Janata Party (BJP) because it fell marginally short of the requirement of having 10 per cent of the seats in the parliament’s lower house required to name an official opposition leader.

In the country’s recent general election, Congress won 99 seats, nearly double the 52 it earned in 2019, after the opposition INDIA coalition made surprising inroads into the country’s Hindi-speaking belts that had traditionally been the BJP’s stronghold.

Conversely, Prime Minister Narendra Modi’s ruling party, which lost the outright majority it had during his two previous terms, is now dependent on coalition partners.

“Having a Congress party [representative] as the leader of opposition is very significant for a robust democracy. We were missing that in the last two terms,” Priyanca Mathur, professor of political science and international relations at JAIN University.

“We were simply a majoritarian democracy, We had no other voice,” she said. “We have seen Rahul Gandhi emerge as the face of young India because there has been a huge shift in voting.”

With the elevation of Gandhi to the role of an opposition leader, he will now have the same rank as that of a cabinet minister and be able to challenge Modi directly on a gamut of policy issues.

He will also have a say in key appointments, such as India’s election regulator and the chief of the country’s human rights commission.

“That a Congress person will have a say is a very heartening move. We saw the credibility of major democratic institutions being hugely eroded [in the last 10 years],” Mathur said.

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Inauguration of India’s Ayodhya temple tipped to whip up Hindu nationalism ahead of elections

Critics and opposition parties have accused Modi of undermining India’s secularism and democratic traditions, saying authorities have clamped down on opposition political leaders, NGOs and human rights activists. The BJP has denied the charges.

Once known as India’s grand old party, Congress was on the cusp of being marginalised by the BJP before the most recent election. Despite its gains this year, Congress still faces an arduous task before it can hope to return to power, analysts say.

“Gandhi can be more assertive because the number of seats for Congress has gone up,” said Yashwant Deshmukh, an independent political commentator.

“But there is a danger of misreading this too much. After 10 years of the BJP’s incumbency, its vote share is still almost double that of the Congress.”

Deshmukh said Congress still had to “revive itself in states where it is in direct confrontation with the BJP”, adding that its gains had mostly been a result of support from around two dozen regional parties that joined the opposition INDIA alliance formed to take on the BJP.

Gandhi has been credited with holding together the alliance’s disparate partners and also crafted a political campaign that played up to voters’ concerns about the BJP modifying the Indian constitution.

The role of an opposition leader would be even more demanding, analysts say.

“He has to keep conflicting alliance partners together,” said Nilanjan Mukhopadhyay, an author and independent political commentator, pointing out that the Trinamool Congress, influential in the state of West Bengal, already had indicated that it wanted Congress to forsake its left-leaning partners.

“How Rahul Gandhi circumvents these issues remains to be seen,” he said. “It is a challenging task also because he will have to devise a parliamentary strategy constantly to make it difficult for the BJP. He has to be very innovative.”

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Sibling act

Gandhi is likely to rely on support from his sister Priyanka Gandhi Vadra, who is expected to be elected as a member of parliament if she wins the by-election for Wayanad in the southern state of Kerala.

Gandhi had won both the Wayanad and Raebareli seats in the election, but opted to retain only Raebareli in Uttar Pradesh.

Priyanka spearheaded Congress’ surprisingly successful election campaigns in Uttar Pradesh and other parts of the country’s Hindi-speaking belts. The 52-year-old has often been compared to her grandmother and former Indian prime minister Indira Gandhi.

“Irrespective of the role given to her, she can play a supportive role. She has a good voice and articulates issues in a fairly proper manner,” Mukhopadhyay said.

The Gandhi siblings are expected to present a formidable front to the BJP, which had earlier been able to easily push through key decisions because of a weak opposition.

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Analysts pointed to how Rahul’s two cross-country marches strengthened his connection with residents, while Priyanka’s speeches during election rallies roused up voters.

Rahul Gandhi had, in 2014 and 2019, refused the position of Congress leader in the lower house of parliament in the two previous terms of the government, said Smita Gupta, an independent political commentator.

“In this election, he has actually contributed to the party’s performance in a substantial way. I think Rahul Gandhi himself felt it was OK to take up the job [of opposition leader],” she said.

Gandhi’s elevation comes at a time when the BJP is facing the heat over the leaking of exam papers for nationwide admission to medical colleges – an issue that fits with one of his key election campaign narratives centring around education for youth and employment.

“The Gandhi siblings did put their heart and soul in the election campaigning and they have definitely succeeded. I am sure that Rahul Gandhi knows that he has the weight of the entire opposition on him. He has to deliver on all those who did not vote for the BJP,” Mathur said.

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Bowman Falls to Latimer in a Loss for Progressive Democrats

Representative Jamaal Bowman of New York, a member of the House’s left-wing “squad,” was defeated by George Latimer in a race that exposed Democratic fissures.

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Representative Jamaal Bowman, wearing a red Bowman T-shirt, makes a fist as he speaks to a crowd.

By Nicholas Fandos

  • June 25, 2024

Representative Jamaal Bowman of New York, one of Congress’s most outspoken progressives, suffered a stinging primary defeat on Tuesday, according to The Associated Press, unable to overcome a record-shattering campaign from pro-Israel groups and a slate of self-inflicted blunders.

Mr. Bowman was defeated by George Latimer, the Westchester County executive, in a race that became the year’s ugliest intraparty brawl and the most expensive House primary in history.

It began last fall when Mr. Bowman stepped forward as one of the leading critics of how Israelis were carrying out their war with Hamas. But the contest grew into a broader proxy fight around the future of the Democratic Party, exposing painful fractures over race, class and ideology in a diverse district that includes parts of Westchester County and the Bronx.

Mr. Bowman, the district’s first Black congressman and a committed democratic socialist, never wavered from his calls for a cease-fire in Gaza or left-wing economic priorities. Down in the polls, he repeatedly accused his white opponent of racism and used expletives in denouncing the pro-Israel groups as a “Zionist regime” trying to buy the election.

His positions on the war and economic issues electrified the national progressives, who undertook an 11th-hour rescue mission led by Representative Alexandria Ocasio-Cortez of New York. But they ultimately did little to win over skeptical voters and only emboldened his adversaries.

A super PAC affiliated with the American Israel Public Affairs Committee, a pro-Israel lobby, dumped $15 million into defeating him , more than any outside group has ever spent on a House race.

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