मेरे जीवन का यादगार (स्मरणीय) दिन पर निबंध
मेरे जीवन का यादगार (स्मरणीय) दिन पर निबंध | Essay on A Memorable Day in My Life in Hindi!
पिछले वर्ष हर वर्ष की भाँति हमारे विद्यालय में बाल दिवस का समारोह धूम- धाम से मनाया गया । इस अवसर पर विद्यालय में एक चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था । यह जिला स्तर की प्रतियोगिता थी । इसमें जिले भर के विभिन्न छात्र-छात्राओं ने हिस्सा लिया था । मैंने भी प्रतिभागियों में अपना नाम लिखवाया था ।
अपराह्न 3 बजे प्रतियोगिता आरंभ हुई । लगभग पचास प्रतियोगी थे । हमें प्रधानाचार्य महोदय ने कोई प्राकृतिक दृश्य बनाने के लिए कहा । डेढ़ घंटे की अवधि निश्चित की गई थी । सभी प्रतियोगियों को कागज, ब्रुश और रंग दिए गए । सब तल्लीनता से अपने- अपने चित्र बनाने में जुट गए । मैंने सूर्योदयकालीन दृश्य का चित्रण करना आरंभ किया । मैंने उसमें बाल अरुण, पत्ती, आसमान, सुनहरे बादल, झील, पेड़ आदि दिखाए । इधर चित्र बना तो उधर समय भी व्यतीत हो चुका था । निर्धारित समय पर सभी प्रतिभागियों ने अध्यापक महोदय को अपने- अपने चित्र सौंप दिए ।
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अब परिणाम की बारी थी । विभिन्न विद्यालयों के तीन कला शिक्षकों की एक जूरी बैठी थी । लगभग एक घंटे बाद जूरी ने अपना निर्णय सुनाया । मुझे चित्रकला में प्रथम पुरस्कार मिला । अपने नाम की घोषणा सुनकर मैं फूला न समा रहा था । पिताजी ने मुझे हृदय से लगा लिया । प्राचार्य महोदय ने मुझे शाबाशी दी । अध्यापकों ने मेरी पीठ थपथपाई । यह मेरे जीवन का एक यादगार दिन बन गया ।
मेरी सफलता पर विद्यालय के सभी शिक्षक एवं छात्र गर्व का अनुभव कर रहे थे । जिले भर की प्रतियोगिता में प्रथम आना मेरे लिए भी गर्व की बात थी । मेरे अभिभावक भी बहुत खुश हो रहे थे । उन्हें मेरी योग्यता पर अब किसी प्रकार का संदेह नहीं रह गया था । संध्याकाल में सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए । जिले के डी.एम. को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था । उनके सम्मान में लाल कालीन बिछाई गई थी । सांस्कृतिक कार्यक्रम में नृत्य, संगीत, एकांकी, कविता पाठ, चुटकुले आदि प्रस्तुत किए गए । मैंने एकांकी ‘ अशोक का शस्त्र त्याग ‘ में सम्राट अशोक की भूमिका निभाई थी । मेरे अभिनय की भी सराहना हुई । मंच के सामने बैठे अतिथि महोदय, शिक्षक, छात्र एवं अभिभावक कार्यक्रम का भरपूर आनंद उठा रहे थे ।
समारोह की समाप्ति पर प्राचार्य महोदय तथा अतिथि महोदय का अभिभाषण हुआ । फिर पुरस्कारों की घोषणा की गई । सम्राट अशोक के जानदार अभिनय के लिए पुरस्कार सूची में मेरा नाम भी पढ़ा गया । मेरी खुशी दुगुनी हो गई ।
डी.एम. साहब ने मुझे पहले चित्रकला प्रतियोगिता का मैडल प्रदान किया, फिर अभिनय के लिए पुरस्कार दिया । पुरस्कारस्वरूप मुझे मैडल, प्रशस्तिपत्र और नेहरू जी की मूर्ति मिली । विद्यालय की ओर से मुझे पाँच सौ रुपये का नकद पुरस्कार भी मिला । मुख्य अतिथि ने मेरी सराहना की । उन्होंने मुझे जीवन में इसी तरह सफल होने तथा आगे बढ़ते रहने का आशीर्वाद दिया । प्राचार्य महोदय ने भी मंच से मेरी प्रशंसा में कुछ वाक्य कहे ।
वह दिन मेरे जीवन का सबसे यादगार दिन था । मैं उस दिन को याद करता हूँ तो मुझे चित्रकला और अभिनय के क्षेत्र में और भी अच्छा करने की प्रेरणा मिलती है । मैं चाहता हूँ कि लोग अच्छे कार्यों के लिए मुझे याद करें । मेरा मानना है कि चित्रकला, अभिनय, खेल-कूद भ्रमण आदि शिक्षा के ही अंग हैं । छात्र की जिस क्षेत्र में प्रतिभा हो, उसी में उसे ध्यान लगाना चाहिए । उसे हर काम उत्साह से करना चाहिए । ऐसा करने पर ही जीवन में कई यादगार दिन आ सकते हैं ।
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