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मुंशी प्रेमचंद की जीवनी | About Munshi Premchand Biography In Hindi

Premchand – मुंशी प्रेमचंद हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय प्रसिद्ध लेखक तथा उपन्यासकार में से एक हैं। उनका जन्म का नाम धनपत राय श्रीवास्तव था, उन्होंने अपने दुसरे नाम “नवाब राय” के नाम से अपने लेखन की शुरुवात की लेकिन बाद में उन्होंने अपने नाम को बदलकर “प्रेमचंद” रखा। वे एक सफल लेखक, देशभक्त नागरिक, कुशल वक्ता, ज़िम्मेदार संपादक और संवेदनशील रचनाकार थे। उपन्यास के क्षेत्र में उनके योगदान को देखकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें ‘उपन्यास सम्राट’ कहकर संबोधित किया था।

About Munshi Premchand Biography In Hindi

मुंशी प्रेमचंद का परिचय –  Hindi Writer Munshi Premchand Biography in Hindi

प्रेमचंद ने अपने जीवन में एक दर्जन से भी ज्यादा उपन्यास, तक़रीबन 300 लघु कथाये, बहुत से निबंध और कुछ विदेशी साहित्यों का हिंदी अनुवाद भी किया है। प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने पूरी सदी के साहित्य का मार्गदर्शन किया। आगामी एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक प्रभावित कर प्रेमचंद ने साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव रखी। वे एक संवेदनशील लेखक, सचेत नागरिक, कुशल वक्ता तथा सुधी (विद्वान) संपादक थे।

प्रारंभिक जीवन – Early Life of Munshi Premchand 

प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी केनिकट लमही गाँव में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी था। व पिता का नाम मुंशी अजायबराय था। उनके पिता लमही में डाकमुंशी (पोस्ट ऑफीस) थे। उनके पूर्वज विशाल कायस्थ परिवार से संबंध रखते थे, जिनके पास अपनी खुद की छह बीघा जमीन भी थी। उनके दादा गुर सहाई राय पटवारी थे। प्रेमचंद अपने माता-पिता के चौथे पुत्र थे। उनके माता-पिता ने उनका नाम धनपत राय रखा, जबकि उनके चाचा महाबीर ने उनका उपनाम “नवाब” रखा। प्रेमचंद द्वारा अपने लिए चुना गया पहला नाम “नवाब राय” था।

शिक्षा और शादी – Munshi Premchand Education

उनकी शिक्षा का आरंभ उर्दू, फारसी से हुआ और जीवनयापन का अध्यापन से पढ़ने का शौक उन्‍हें बचपन से ही लग गया। जब मुंशी प्रेमचंद 7 साल के थे तभी उन्होंने लालपुर की मदरसा में शिक्षा प्राप्त करना शुरू किया। मदरसा में प्रेमचंद ने मौलवी से उर्दू और फ़ारसी भाषा का ज्ञान प्राप्त किया।

जब प्रेमचंद 8 साल के हुए तो उनके माँ की एक लंबी बीमारी के चलते मृत्यु हो गयी यही। उनकी दादी, ने बाद में प्रेमचंद को बड़ा करने की जिम्मेदारी उठाई, लेकिन वह भी कुछ दिनों बाद चल बसी। उस समय प्रेमचंद को अकेला महसूस होने लगा था, क्योकि उनकी बहन का भी विवाह हो चूका था और उनके पिता पहले से ही काम में व्यस्त रहते थे। और उनके पिता दोबारा शादी कर ली ताकि बच्चो की देखभाल हो सके लेकिन प्रेमचंद को अपने सौतेली माँ से उतना प्यार नही मिला जितना उन्हें चाहिये था। लेकिन प्रेमचंद को बनाने में उनकी सौतेली माँ का बहुत बड़ा हाथ रहा है।

13 साल की उम्र में ही उन्‍होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ ‘शरसार’, मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्‍यासों से परिचय प्राप्‍त कर लिया। उनके पिता के जमनिया में स्थानांतरण होने के बाद 1890 के मध्य में प्रेमचंद ने बनारस के क्वीन कॉलेज में एडमिशन लिया।

1895 मे उन दिनों की परंपरा के अनुसार मात्र 15 साल की आयु में ही उनका पहला विवाह हो गया। उस समय वे सिर्फ 9 वी कक्षा की पढाई कर रहे थे। पत्नी उम्र में प्रेमचंद से बड़ी और बदसूरत थी। पत्नी की सूरत और उसके जबान ने उनके उपर जले पर नमक का काम किया। इस बारे मे प्रेमचंद स्वयं लिखते हैं, “उम्र में वह मुझसे ज्यादा थी। जब मैंने उसकी सूरत देखी तो मेरा खून सूख गया” उसके साथ – साथ जबान की भी मीठी न थी। उन्होने अपनी शादी के फैसले पर पिता के बारे में लिखा है “पिताजी ने जीवन के अन्तिम सालों में एक ठोकर खाई और स्वयं तो गिरे ही, साथ में मुझे भी डुबो दिया: मेरी शादी बिना सोंचे समझे कर डाली।” हालांकि उनके पिताजी को भी बाद में इसका एहसास हुआ और काफी अफसोस किया।

1897 में एक लंबी बीमारी के चलते प्रेमचंद के पिता की मृत्यु हो गयी थी। लेकिन इसके बावजूद उन्होंने उस समय दूसरी श्रेणी में मेट्रिक की परीक्षा पास कर ही ली। लेकिन क्वीन कॉलेज में केवल पहली श्रेणी के विद्यार्थियों को ही फीस कन्सेशन दिया जाता था। इसीलिए प्रेमचंद ने बाद में सेंट्रल हिंदु कॉलेज में एडमिशन लेने की ठानी लेकिन गणित कमजोर होने की वजह से वहा भी उन्हें एडमिशन नही मिल सका। इसीलिये उन्होंने पढाई छोड़ने का निर्णय लिया।

वे आर्य समाज से प्रभावित रहे, जो उस समय का बहुत बड़ा धार्मिक और सामाजिक आंदोलन था। उन्होंने विधवा-विवाह का समर्थन किया और 1906 में दूसरा विवाह अपनी प्रगतिशील परंपरा के अनुरूप बाल-विधवा शिवरानी देवी से किया। उनकी तीन संताने हुईं- श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी श्रीवास्तव।

प्रेमचन्द की आर्थिक विपत्तियों का अनुमान इस घटना से लगाया जा सकता है कि पैसे के अभाव में उन्हें अपना कोट बेचना पड़ा और पुस्तकें बेचनी पड़ी। एक दिन ऐसी हालत हो गई कि वे अपनी सारी पुस्तकों को लेकर एक बुकसेलर के पास पहुंच गए। वहाँ एक हेडमास्टर मिले जिन्होंने उनको अपने स्कूल में अध्यापक पद पर नियुक्त किया।

सादा एवं सरल जीवन के मालिक प्रेमचन्द सदा मस्त रहते थे। उनके जीवन में विषमताओं और कटुताओं से वह लगातार खेलते रहे। इस खेल को उन्होंने बाज़ी मान लिया जिसको हमेशा जीतना चाहते थे। कहा जाता है कि प्रेमचन्द हंसोड़ प्रकृति के मालिक थे। विषमताओं भरे जीवन में हंसोड़ होना एक बहादुर का काम है। इससे इस बात को भी समझा जा सकता है कि वह अपूर्व जीवनी-शक्ति का द्योतक थे। सरलता, सौजन्य और उदारता की वह मूर्ति थे। जहाँ उनके हृदय में मित्रों के लिए उदार भाव था वहीं उनके हृदय में ग़रीबों एवं पीड़ितों के लिए सहानुभूति का अथाह सागर था। प्रेमचन्द उच्चकोटि के मानव थे।

लेखन कार्य – Munshi Premchand Novels

धनपत राय ने अपना पहला लेख “नवाब राय” के नाम से ही लिखा था। उनका पहला लघु उपन्यास असरार ए मा’ बीड़ (हिंदी में – देवस्थान रहस्य) था जिसमे उन्होंने मंदिरों में पुजारियों द्वारा की जा रही लुट-पात और महिलाओ के साथ किये जा रहे शारीरिक शोषण के बारे में बताया। उनके सारे लेख और उपन्यास 8 अक्टूबर 1903 से फ़रवरी 1905 तक बनारस पर आधारित उर्दू साप्ताहिक आवाज़-ए-खल्कफ्रोम में प्रकाशित किये जाते थे।

1908 मे प्रेमचंद का पहला कहानी संग्रह सोज़े-वतन अर्थात राष्ट्र का विलाप नाम से प्रकाशित हुआ। देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत होने के कारण इस पर अंग्रेज़ी सरकार ने रोक लगा दी और इसके लेखक को भविष्‍य में इस तरह का लेखन न करने की चेतावनी दी। सोजे-वतन की सभी प्रतियाँ जब्त कर जला दी गईं। इस घटना के बाद प्रेमचंद के मित्र एवं ज़माना पत्रिका के संपादक  मुंशी दयानारायण निगम  ने उन्हे प्रेमचंद के नाम से लिखने की सलाह दिया। इसके बाद धनपत राय, प्रेमचंद के नाम से लिखने लगे।

प्रेमचंद ने अपने जीवन में तक़रीबन 300 लघु कथाये और 14 उपन्यास, बहुत से निबंध और पत्र भी लिखे है। इतना ही नही उन्होंने बहुत से विदेशी साहित्यों का हिंदी अनुवाद भी किया है। प्रेमचंद की बहुत सी प्रसिद्ध रचनाओ का उनकी मृत्यु के बाद इंग्लिश अनुवाद भी किया गया है।

प्रेमचन्द की रचना-दृष्टि, विभिन्न साहित्य रूपों में, अभिव्यक्त हुई। वह बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे। प्रेमचंद की रचनाओं में तत्कालीन इतिहास बोलता है। उन्होंने अपनी रचनाओं में जन साधारण की भावनाओं, परिस्थितियों और उनकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण किया। उनकी कृतियाँ भारत के सर्वाधिक विशाल और विस्तृत वर्ग की कृतियाँ हैं।

मुंशी प्रेमचंद की मृत्यु –

सन् 1936 ई में प्रेमचन्द बीमार रहने लगे। उन्होने इस बीमार काल में ही आपने “प्रगतिशील लेखक संघ” की स्थापना में सहयोग दिया। आर्थिक कष्टों तथा इलाज ठीक से न कराये जाने के कारण 8 अक्टूबर 1936 में आपका देहान्त हो गया। और इस तरह वह दीप सदा के लिए बुझ गया जिसने अपनी जीवन की बत्ती को कण-कण जलाकर भारतीयों का पथ आलोकित किया। मरणोपरान्त, उनके बेटे अमृत राय ने ‘कलम का सिपाही’ नाम से उनकी जीवनी लिखी है जो उनके जीवन पर विस्तृत प्रकाश डालती है।

और अधिक लेख :-

  • स्टीव जॉब्स की प्रेरणादायी जीवनी
  • रबीन्द्रनाथ टैगोर जीवनी, निबंध
  • भारत के नोबेल पुरस्कार विजेता
  • योगा कैसे करे : पूरी जानकारी
  • रहीम के लोकप्रिय दोहे हिन्दी अर्थ सहित
  • गोस्वामी तुलसीदास की जीवनी
  • गुरु नानक देव जी की जीवनी

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Munshi Premchand Biography In Hindi – मुंशी प्रेमचंद की जीवनी

मुंशी प्रेमचंद का संछिप्त जीवन परिचय हिंदी में – (Munshi Premchand Biography in Hindi)

Munshi Premchand Biography in Hindi

नाम – धनपत राय श्रीवास्तव उर्फ़ नवाब राय उर्फ़ मुंशी प्रेमचंद पिता का नाम – अजीब राय माता का नाम – आनंदी देवी पत्नी – शिवरानी देवी व्यवसाय – अध्यापक, लेखक, पत्रकार जन्म स्थान – लमही, वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत जन्म तारीख – 31 जुलाई 1880 अवधि/काल – आधुनिक काल उल्लेखनीय कार्य – गोदान, कर्मभूमि, रंगभूमि, सेवासदन, निर्मला और मानसरोवर मृत्यु – 8 अक्टूबर, 1936 वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत

Munshi Premchand Biography in Hindi – मुंशी प्रेमचंद की जीवनी

Munshi Premchand Biography in Hindi – मुंशी प्रेमचंद हिन्दी और उर्दू में महान लेखक थे, जिनका जन्म 31 जुलाई 1880 को लमही, वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ था। इनको नवाब राय और मुंशी प्रेमचंद के नाम से भी जाना जाता था। इनके पिता का नाम अजीब राय और माता का नाम आनंदी देवी था, पत्नी शिवरानी देवी थी। उपन्यास के क्षेत्र में उनके योग्यदान को देखते हुए बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट कहा था। प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा को विकसित किया था, जिससे पूरी सदी के साहित्य को मार्गदर्शन मिला।

प्रेमचंद ने साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव रखी थी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य की एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी के विकास का अध्ययन अधूरा होगा। प्रेमचंद को संवेदनशील लेखक, सचेत नागरिक, कुशल वक्ता तथा सुधी (विद्वान) संपादक के रूप में जाना जाता है। 20वी सदी के पूर्वार्द्ध में, जब हिन्दी में की तकनीकी सुविधाओं का अभाव था, उस समय इनके योग्यदान को अतुलनीय माना गया था।

मुंशी प्रेमचंद की रचना-दृष्टि बहुत सारे साहित्य रूपों में प्रवृत्त हुई। इन्होने उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख, सम्पादकीय, संस्मरण आदि अनेक विधाओं में साहित्य की सृष्टि की। इनको “‘उपन्यास सम्राट” की उपाधि मिली है। प्रेमचंद कुल १५ उपन्यास, 300 से कुछ अधिक कहानियाँ, 3 नाटक, 10 अनुवाद,7 बाल-पुस्तकें तथा हजारों पृष्ठों के लेख सम्पादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र आदि की रचना की लेकिन नाम और यश उनको उपन्यास और कहानियों से प्राप्त हुई।

इनके बारे में भी पढ़ें –

प्रेमचंद्र की जीवनी अंग्रेजी में

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

गूगल के CEO सुन्दर पिचाई का जीवन परिचय

शुरुआती जीवन परिचय –

1880 में जन्मे मुंशी प्रेमचंद वाराणसी शहर में रहते थे, उनके पिता वहीं लमही गाव में ही डाकघर के मुंशी थे, मुंशी प्रेमचन्द को नवाब राय नाम से ज्यादा जाना जाता है। इनका जीवन बहुत ही दुखदायी और कास्टपूर्ण रहा है, प्रेमचंद जी जब साथ साल के थे तभी उनकी माता का देहांत हो गया , उसके बाद उनके पिता की नौकरी यानि ट्रांसफर गोरखपुर हो गया, जहाँ इनके पिता ने दूसरी शादी कर ली, इनको अपनी सौतेली माँ से उतना अच्छा प्यार और दुलार नहीं मिला, 14 वर्ष की उम्र में इनके पिता का भी देहांत हो गया इस तरह से इनके बचपन में मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था।

इन सब के बाद प्रेमचंद बहुत टूट चुके थे घर का सारा भार अब उनके कन्धों पर आ गया था, इतनी समस्या हो गयी थी की उनके पास पहनने के लिए कपडे तक नहीं हुआ करते थे ऐसी हालात में उन्होंने एक दिन अपनी सभी किताबों को बेचने के लिए एक पुस्तक की दुकान पर पहुंचे वहां उन्हें एक स्कूल के हेड मास्टर मिले, हेड मास्टर ने देखा प्रेमचंद अपनी पुस्तकों को बेच रहे है तो उन्होंने प्रेमचंद को अपने वहां स्कूल में नौकरी दे दी। अपनी गरीबी से लड़ते हुए प्रेमचन्द ने अपनी पढ़ाई मैट्रिक तक पहुंचाई। वे अपने गाँव से दूर बनारस पढ़ने के लिए नंगे पाँव जाया करते थे। आगे चलकर वकील बनना चाहते थे। मगर गरीबी ने तोड़ दिया।

1921 में गांधी के आह्वान पर उन्होने अपनी नौकरी छोड़ दी। इसके बाद उन्होने ने मर्यादा नामक पत्रिका में सम्पादन का कार्य किया। उसके बाद उन्होंने 6 साल तक माधुरी नामक पत्रिका में संपादन का काम किया। वर्ष 1930 से 1932 के बीच उन्होने अपना खुद का मासिक पत्रिका हंस एवं साप्ताहिक पत्रिका जागरण निकलना शुरू किया। उन्होने ने मुंबई मे फिल्म के लिए कथा भी लिखी थी।

उनके कहानी पर एक फिल्म बनी थी जिसका नाम मजदुर था, यह 1934 में प्रदर्शित हुई। लेकिन फ़िल्मी दुनिया उसको पसंद नहीं आयी और वो वापस बनारस आ गए। मुंशी प्रेमचंद 1915 से कहानियां लिखना शुरू कर दिए थे। वर्ष 1925 में सरस्वती पत्रिका में सौत नाम से प्रकाशित हुई। वर्ष 1918 ई से उन्होने उपन्यास लिखना शुरू किया। उनके पहले उपन्यास का नाम सेवासदन है। प्रेमचंद ने लगभग 12 उपन्यास 300+ के करीब कहानियाँ कई लेख एवं नाटक लिखे है।

मुंशी प्रेमचंद से जुड़े कुछ रोचक तक्थ –

  • उन्होंने अपने जीवनकाल में तक़रीबन 300 लघु कथाये और 14 उपन्यास, बहुत से निबंध और पत्र भी लिखे है।
  • बहु-भाषिक साहित्यों का हिंदी अनुवाद भी किया है।
  • उनकी प्रसिद्ध रचनाओ का उनकी मृत्यु के बाद इंग्लिश अनुवाद भी किया गया
  • प्रेमचंद एक उच्चकोटि के इंसान थे।
  • 1900 में मुंशी प्रेमचंद को बहरीच के सरकारी Dist School में Assistant Teacher का जॉब भी मिल गयी थी जहाँ वो महीने के 20 रूपये सैलरी पाते थे।
  • कुछ ही महीनों के बाद उनका स्थानान्तरण प्रतापगढ़ की जिला स्कूल में हुआ, जहा वे एडमिनिस्ट्रेटर के बंगले में रहते थे और उनके बेटे को पढ़ाते थे।
  • प्रेमचंद ने अपना पहला लेख “नवाब राय” के नाम से ही लिखा था।
  • प्रेमचंद के सारे लेख और उपन्यास 8 अक्टूबर 1903 से फेब्रुअरी 1905 तक बनारस पर आधारित उर्दू साप्ताहिक आवाज़-ए-खल्कफ्रोम में प्रकाशित किये जाते थे।
  • उनके जीवन का ज्यादातर समय बनारस और लखनऊ में गुजरा।
  • आगे चलकर वो आधुनिक कथा साहित्य के जन्मदाता कहलाए, उन्हें कथा सम्राट की उपाधि प्रदान की गई।
  • अपनी कहानियों में प्रेमचंद ने मनुष्य के जीवन का सच्चा चित्र खींचा है।
  • 8 अक्टूबर 1936 को जलोदर रोग से उनका देहावसान हो गया।
  • उनके नाम से डाक टिकट भी जारी हुआ था।

मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध पुस्तकें –

• गोदान 1936 • कर्मभूमि 1932 • निर्मला 1925 • कायाकल्प 1927 • रंगभूमि 1925 • सेवासदन 1918 • गबन 1928 • नमक का दरोगा • पूस की रात • पंच परमेश्वर • माता का हृदय • नरक का मार्ग • वफ़ा का खंजर • पुत्र प्रेम • घमंड का पुतला • बंद दरवाजा • कायापलट • कर्मो का फल • कफन • बड़े घर की बेटी • राष्ट्र का सेवक • ईदगाह • मंदिर और मस्जिद • प्रेम सूत्र • माँ • वरदान • काशी में आगमन • बेटो वाली विधवा

मुंशी प्रेमचंद Munshi Premchand Biography in Hindi से जुडी जानकारी आप को कैसे लगी ?

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मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय | Munshi Premchand Biography in Hindi (कहानियां, उपन्यास, रचनाएँ, दोहे, प्रसिद्ध कविता)

Munshi Premchand Biography in Hindi

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय (Munshi Premchand Biography in Hindi) हिंदी साहित्य के क्षेत्र में मुंशी प्रेमचंद की गिनती सबसे साहित्यकारों में की जाती है  उनके द्वारा रचित रचना समाज को एक सही दिशा देने का काम करते हैं। हम आपको बता दें कि मुंशी प्रेमचंद के द्वारा लिखी गई कहानी और उपन्यास पृष्ठभूमि आम लोगों के जीवन में घटित होने वाली घटना से संबंधित होती हैं। मुंशी प्रेमचंद की कलम ने समाज के सभी विषयों पर अपनी कलम चलाई थी और उनके द्वारा लिखे गए उपन्यास और कहानी का विषय हमारे जीवन से संबंधित थे | हिंदी साहित्य में 1918 से लेकर 1936 का समय प्रेमचंद युग के  नाम से जाना जाता हैं। मुंशी प्रेमचंद एक मशहूर उपन्यासकार कहानीकार और विचारक थे। उन्होंने कुल मिलाकर डेढ़ दर्जन उपन्यास और 300 कहानी लिखी थी |

ऐसे महान व्यक्तित्व के जीवन के बारे में जानने की उत्सुकता हर एक भारतीय के मन में रहती है कि आखिर में मुंशी प्रेमचंद कौन थे? प्रारंभिक जीवन’ शिक्षा ‘परिवार साहित्यिक करियर ‘प्रमुख रचनाएं’ विवाह मृत्यु  इत्यादि के बारे में अगर आप कुछ नहीं जानते हैं तो आज के आर्टिकल में हम आपको Munshi Premchand Jeevan Parichay के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी उपलब्ध करवाएंगे आपसे अनुरोध है कि आर्टिकल पर बने रहे हैं चलिए जानते हैं:-

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय हिंदी में | Munshi Premchand ji ka Jeevan Parichay- Overview

Also Read: कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान जीवन परिचय

मुंशी प्रेमचंद का शुरुआती जीवन ( Munshi Premchand Early Life)

मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को उत्तर प्रदेश, वाराणसी के लमही  गांव में हुआ था हम आपको बता देंगे  इनका वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था जब उनकी उम्र 6 साल की थी उनके मन का देहांत हो गया उसके बाद उनके पिताजी ने दूसरी शादी कर ली और उनकी सौतेली मां उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं करती थी  इसके बावजूद भी मुंशी प्रेमचंद अपना अधिकांश में पढ़ाई में व्यतीत करते थे और उन्हें बचपन में किताबें पढ़ने का बहुत ज्यादा शौक था  इसलिए मुंशी प्रेमचंद ने एक किताब की दुकान में काम कर लिया  जहां पर उन्हें किताबें पढ़ने के साथ-साथ पैसे भी मिला करते थे |

मुंशी प्रेमचंद की शिक्षा (Munshi Premchand Education)

बाल अवस्था में मुंशी प्रेमचंद को काफी आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा था  इसके बावजूद भी होगा लगातार अपनी शिक्षा पर ध्यान देते थ सन् 1898 में मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद इन्होंने एक स्थानीय स्कूल में शिक्षक का काम करना शुरू किया जहां परिवार बच्चों को पढ़ाई करते थे और अपनी शिक्षा भी इसी दौरान उन्होंने पूरी की 1910 में उन्होंने 12वीं की परीक्षा प्राप्त कर ली और उसके बाद  मुंशी जी ने फारसी, इतिहास और अंग्रेज़ी विषयों के क्षेत्र में उन्होंने 1919 में बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की।  इसके बाद उन्हें शिक्षा विभाग में इंस्पेक्टर का पद मिल गया लेकिन 1921 में गांधी जी के द्वारा संचालित असहयोग आंदोलन के कारण उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी |

Also Read: कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान जीवन परिचय | (शिक्षा, प्रमुख रचनाएँ, पुरस्कार व सम्मान)

मुंशी प्रेमचंद के बारे में व्यक्तिगत जानकारी

मुंशी प्रेमचंद का परिवार ( munshi premchand family), मुंशी प्रेमचंद का विवाह (munshi premchand’s marriage).

15 साल की उम्र में मुंशी प्रेमचंद ने शादी किया लेकिन शादी के बाद उनका वैवाहिक जीवन काफी असफल साबित हुआ उनकी पत्नी काफी झगड़ालू स्वभाव के लिए जिसके कारण उनके वैवाहिक जीवन में हमेशा लड़ाई झगड़ा हुआ करते थे जिसके कारण मुंशी प्रेमचंद ने अपनी पत्नी को तलाक दे दिया और उसके बाद  उन्होंने एक विधवा औरत से शादी की जिनका नाम शिवरानी देवी हैं।  विवाह के उपरान्त उन्हें तीन संतानें हुई जिनके नाम श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी श्रीवास्तव थे। 

मुंशी प्रेमचंद का साहित्यिक जीवन (Literary Life of Munshi Premchand)

एक दर्जन उपन्यासों और 300 कहानी मुंशी प्रेमचंद के द्वारा लिखी गई थी हम आपको बता दे कि उनकी कहानी की वास्तविकता जितनी मार्मिक आज है उतना उसे समय बिता हम आपको बताते हैं कि उसे वक्त उन्होंने ऐसी कई विषयों पर अपनी कलम चलाई थी | जो सामान्य लोगों के जीवन से संबंधित थे | उन्होंने कई पत्र पत्रिकाओं में भी अपनी कलम चलाई थी  जिसका विवरण नीचे दे रहा है:-

प्रेमचंद जी की प्रमुख रचनाओं के नाम | Names of Major Works of Premchand ji

प्रेमचंद ने अपने पूरे साहित्यिक जीवन काल में उपन्यास नाटक और कहानी लिखी थी जिसकी रचना का केंद्र बिंदु समाज में रहने वाला सामान्य नागरिकता और समाज में उसे समय जिस प्रकार की कुरीतियों और असमानता थी | उनका भी उन्होंने पुरजोर विरोध किया और अपने साहित्य के माध्यम से समाज में सामाजिक सुधार लाने का प्रयास किया था |

मुंशी प्रेमचंद जी की प्रमुख कहानियों की सूची

मुंशी प्रेमचंद ने कुल मिलाकर अपने साहित्यिक जीवन में 300 से अधिक कहानी लिखी हैं, उनके कहानियों का संग्रह मानसरोवर में संग्रहित है 1915 में प्रेमचंद की पहली कहानी सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित हुई थी उनके सभी प्रमुख कहानियों की सूची का विवरण हम आपको नीचे दे रहे हैं:-

 मुंशी प्रेमचंद जी के प्रमुख उपन्यासों की सूची

मुंशी प्रेमचंद जी के प्रमुख नाटक | major plays of munshi premchand ji.

2.  संग्राम

3.  प्रेम की विधि

प्रेमचंद के जीवन संबंधी विवाद

Munshi Premchand Wikibio:- मुंशी प्रेमचंद महान रचनाकार होने के बावजूद भी उनका जीवन विवाद से भरा हुआ था हम आपको बता दें कि प्रेमचंद के अध्‍येता कमलकिशोर गोयनका ने अपनी पुस्‍तक ‘प्रेमचंद : अध्‍ययन की नई दिशाएं’ में  उन्होंने प्रेमचंद पर कई प्रकार के गंभीर आरोप लगाए हैं ताकि उनके साहित्य के महत्व और उनकी छवि को खराब किया जा सके उन्होंने अपने रचना में आरोप लगाया है कि प्रेमचंद ने अपनी पहली पत्नी को बिना किसी कारण से छोड़ा था और दूसरे विवाह होने के बावजूद भी उनका संबंध कई महिलाओं के साथ रहा जैसा की उनकी उनके दूसरी पत्नी शिवरानी देवी ने ‘प्रेमचंद घर में’ में उद्धृत किया है), इसके अलावा कहा जाता है कि मुंशी प्रेमचंद ने’जागरण विवाद’ में विनोदशंकर व्‍यास के साथ धोखा किया था |

इसके अलावा प्रेमचंद ने अपनी प्रेस के वरिष्‍ठ कर्मचारी प्रवासीलाल वर्मा के धोखाधड़ी जैसी घटना को अंजाम दिया था  प्रेमचंद के बारे में कहा जाता था कि उन्होंने अपनी बेटी की बीमारी को ठीक करने के लिए झाड़ फूंक का सहारा लिया था जबकि उन्होंने अपने कई साहित्यिक रचना में झाड़ फूंक अंधविश्वास बताया था  इतने आरोप लगाने के बाद भी मुंशी प्रेमचंद की अहमियत हिंदी साहित्य में अधिक है और लोग उनकी काबिलियत को सलाम करते हैं |

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय PDF

मुंशी प्रेमचंद के जीवन परिचय का पीडीएफ (PDF) अगर आप प्राप्त करना चाहते हैं तो उसका विवरण हम आपको आर्टिकल में उपलब्ध करवाएंगे:-

Download PDF :

पुरस्कार व सम्मान (Awards And Honors)

मुंशी प्रेमचंद को अपने साहित्यिक जीवन में निम्नलिखित प्रकार के पुरस्कार और सम्मान दिए गए थे इसका विवरण हम आपको नीचे दे रहे हैं आई जानते हैं-

●  मुंशी प्रेमचंद के नाम का 30 पैसे डाक टिकट जारी किया गया है |

●  मुंशी प्रेमचंद के नाम पर प्रेमचंद साहित्य संस्थान की स्थापना की गई है जिसमें बचपन समय में मुंशी प्रेमचंद पढ़ाई करते थे |

प्रेमचंद के अनमोल वचन | (Premchand’s Precious Words)

प्रेमचंद के द्वारा रचित अनमोल वचन कौन-कौन से हैं इसका संक्षिप्त और विस्तार पूर्व विवरण  नीचे आपको उपलब्ध करवा रहे हैं  चलिए जानते हैं-

Faq’s: Munshi Premchand Biography in Hindi

Q.2 मुंशी प्रेमचंद का जन्म कब और कहां हुआ था.

मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई, 1880 लमही, वाराणसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था |

Q.3 मुंशी प्रेमचंद की कितनी रचनाएं हैं?

मुंशी प्रेमचंद ने कुल मिलाकर 300 से अधिक रचनाएं लिखी हैं। उनके सभी कहानियों का संग्रह मानसरोवर में संग्रहित किया गया है

Q.4 प्रेमचंद ने कौन सी भाषा लिखी थी?

प्रेमचंद अपनी रचना हिंदी और उर्दू में लिखा करते थे |

Q.5 प्रेमचंद का पहला उपन्यास कौन सा है?

प्रेमचंद का पहला उपन्यास सेवा सदन का जो 1918 में प्रकाशित हुआ था |

Q.6 मुंशी प्रेमचंद की मृत्यृ कब हुई?

1936 के बाद से मुंशी प्रेमचंद का  स्वास्थ्य खराब हो गया और पैसे की कमी के कारण उनका इलाज भी अच्छी तरह से नहीं हो पाया था  8 अक्टूबर 1936  को उन्होंने आखिरी सांस ली आज भले ही मुंशी प्रेमचंद इस दुनिया में नहीं है लेकिन हिंदी साहित्य में उनकी जगह कोई भी साहित्यकार ले नहीं सकता है और उन्होंने हिंदी साहित्य के क्षेत्र में जिस प्रकार का योगदान दिया हैं।

Summary: मुंशी प्रेमचंद जीवनी (Munshi Premchand Jivani)

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