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भगत सिंह पर निबंध (Bhagat Singh Essay in Hindi)

क्रांतिवीरों की जब भी बात होगी उस श्रेणी में भगत सिंह का नाम सबसे ऊपर होगा। गुलाम देश की आज़ादी के लिए अपनी जवानी तथा सम्पूर्ण जीवन भगत सिंह ने देश के नाम लिख दिया। सदियों में ऐसा एक वीर पुरुष जन्म लेकर धरती को कृतार्थ करता है। देश भक्ति के भाव से ओत-प्रोत शहीद भगत सिंह का जन्म पंजाब के जिला लायलपुर गांव बंगा (वर्तमान पाकिस्तान) में, 28 सितम्बर 1907 को एक देशभक्त सिख परिवार में हुआ। इनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह तथा माता का नाम विद्यावती कौर था। परिवार के आचरण का अनुकूल प्रभाव सरदार भगत सिंह पर पड़ा।

भगत सिंह पर छोटे-बड़े निबंध (Short and Long Essay on Bhagat Singh in Hindi, Bhagat Singh par Nibandh Hindi mein)

भगत सिंह पर निबंध – 1 (250 – 300 शब्द).

कहते हैं ‘पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं’ भगत सिंह के बचपन के कारनामों को देख कर लोगों को यह प्रतीत होने लगा था की वह वीर, धीर और निर्भीक हैं। भगत सिंह के जन्म के समय पर उनके पिता “सरदार किशन सिंह” व उनके दोनों चाचा “सरदार अजित सिंह” तथा “सरदार स्वर्ण सिंह” ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ होने के वजह से जेल में बंद थे।

भगत सिंह की शिक्षा दीक्षा

भगत सिंह का जन्म वर्तमान पाकिस्तान के लायलपुर, बंगा गांव में हुआ था। उनका परिवार स्वामी दयानंद के विचारधारा से अत्यधिक प्रभावित था। भगत सिंह की प्रारंभिक शिक्षा गांव के प्राइमरी स्कूल में हुई। प्राथमिक शिक्षा के पूर्ण होने के पश्चात 1916-17 में उनका दाखिला लाहौर के डीएवी स्कूल में करा दिया गया। भगतसिंह का संबंध देशभक्त परिवार से था वह शूरवीरों की कहानियां सुन कर बड़े हुए थे।

आजादी के लिए संघर्ष और शहादत

विद्यालय में उनका संपर्क लाला लाजपत राय तथा अंबा प्रसाद जैसे क्रांतिवीरों सें हुआ। उनकी संगति में भगत सिंह के अंदर की शांत ज्वालामुखी सक्रिय अवस्था में आ रही थी और इन सब के मध्य 1920 में हो रहे गांधी जी के सविनय अवज्ञा आंदोलन ने भगत सिंह में देशभक्ति को चरम पर पहुँचा दिया। 13 अप्रैल 1919, पंजाब में स्वर्ण मंदिर के समीप जलियांवाला बाग नामक स्थान पर बैसाखी के दिन जनरल डायर(ब्रिटिश ऑफिसर) द्वारा अंधाधुन गोलियां चला कर हजारों लोगों की हत्या कर दी गई तथा अनेक लोगों को घायल कर दिया गया। इस घटना का भगत सिंह पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा एवं यही घटना ही भारत में ब्रिटिश सरकार के पतन की शुरुआत का कारण बना। 23 मार्च 1931 को भगत सिंह और उनके दोनों साथियों सुखदेव व राजगुरु को फाँसी दे दी गई।

23 वर्षीय नौजवान भगत सिंह ने जीते जी तथा मरने के बाद भी अपना सब कुछ देश के नाम कर दिया। उनकी जीवनी पढ़ते समय लोगों में जोश का उत्पन्न होना उनके साहस के चरम को दर्शाता है। भगत सिंह के बलिदान और त्याग को पहचान कर हमें उनसे सीख लेते हुए देश की प्रगति में योगदान देना चाहिए।

इसे यूट्यूब पर देखें : भगत सिंह

भगत सिंह पर निबंध – 2 (400 शब्द)

निःसंदेह भगत सिंह का नाम भारत के क्रांतिकारियों के सूची में उच्च शिखर पर विद्यमान है। उन्होंने केवल जीवित रहते ही नहीं अपितु शहीद होने के बाद भी देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया तथा अपने शौर्य से अनेक नौजवानों को देश भक्ति के लिए प्रेरित किया है।

भगत सिंह को लोग क्यों साम्यवाद तथा नास्तिक कहने लगे ?

भगत सिंह उन युवाओं में शामिल थे जो देश की आज़ादी के लिए गांधीवाद विचारधारा में नहीं बल्कि लाल, बाल, पाल के पद चिन्हों पर चलने में विश्वास रखते थे। उन्होंने उन लोगों से हाथ मिलाया जो आज़ादी हेतु अहिंसा का नहीं बल्कि ताकत का प्रयोग करते थे। इस वजह से लोग उन्हें साम्यवाद, नास्तिक तथा समाजवादी कहने लगे।

प्रमुख संगठन जिनसे भगत सिंह जुड़े

सर्वप्रथम भगत सिंह ने अपनी पढ़ाई को बीच में ही छोड़कर भारत की आज़ादी के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना की। तत्पश्चात राम प्रसाद बिस्मिल के फांसी से वह इतने क्रोधित हुए की चद्रशेखर आजाद के साथ मिल कर हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ गए।

लाला लाजपत राय के मृत्यु का प्रतिशोध

साइमन कमीशन के भारत आने के वजह से पूरे देश में विरोध प्रदर्शन प्रारंभ हो चुका था। 30 अक्टूबर 1928 के दिन एक दुखद घटना घटित हुई जिसमें लाला लाजपत राय के नेतृत्व में साइमन कमीशन के खिलाफ विरोध कर रहें युवाओं तथा लाला लाजपत राय की लाठी से पीट-पीट कर हत्या कर दी गई। उन्होंने अपने अंतिम समय में भाषण में कहा था- “मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक चोट ब्रिटिश साम्राज्य के कफ़न की कील बनेगी” और ऐसा ही हुआ। इस दुर्घटना से भगत सिंह को इतना आहात पहुंचा की उन्होंने चद्रशेखर आज़ाद, राजगुरु, सुखदेव व अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर लाला लाजपत राय के मृत्यु के ठीक एक महिने बाद ब्रिटिश पुलिस ऑफिसर सांडर्स को गोली से उड़ा दिया।

केंद्रीय असेंबली में बम फेंकना

8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह तथा बटुकेश्वर दत्त ने ब्रिटिश सरकार के क्रूरता का बदला केंद्रीय असेम्बली पर बम फेंक कर लिया तथा गिरफ़्तारी के बाद गांधी जी समेत अन्य लोगों के अनेक आग्रह करने पर भी उन्होंने मांफी मांगने से इनकार कर दिया। 6 जून 1929 दिल्ली के सेशन जज लियोनॉर्ड मिडिल्टन के अदालत में भगत सिंह ने अपना ऐतिहासिक बयान दिया और उन्हें राजगुरु तथा सुखदेव के साथ फांसी की सजा सुनाई गई।

भगत सिंह के साहस का अनुमान हम उनके आखरी बयान से लगा सकते हैं जिसमें उन्होंने साफ तौर पर केंद्रीय असेंबली पर बम फेंकने की बात को कबूला और उन्होंने ऐसा क्यों किया यह सरेआम सबके समक्ष, लोगों के भीतर की ज्वाला को जगाने के लिए बताया।

Bhagat Singh par Nibandh– 3 (500 शब्द)

भगत सिंह वीर क्रांतिकारी के साथ-साथ एक अच्छे पाठक, वक्ता तथा लेखक भी थे। उनकी प्रमुख रचनाएँ- ‘एक शहीद की जेल नोटबुक’, ‘सरदार भगत सिंह’, ‘पत्र और दस्तावेज़’, ‘भगत सिंह के सम्पूर्ण दस्तावेज’ तथा बहुचर्चित रचना ‘द पीपल में प्रकाशित होने वाला लेख – मैं नास्तिक क्यों हूँ’ हैं।

भगत सिंह की बहुचर्चित लेख “मैं नास्तिक क्यों हूँ”

27 सितम्बर 1931 में द पीपल नामक अखबार में शहीद भगत सिंह का ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ’ लेख प्रकाशित हुआ। समाजिक कुरीति, समस्या तथा मासूम लोगों के शोषण से दुखी होकर इस लेख के माध्यम से उन्होंने ईश्वर के अस्तित्व पर तर्कपूर्ण सवाल खड़े किए। यह लेख उनके प्रसिद्ध रचनाओं में से एक है।

शहीद भगत सिंह के पत्र

“उन्हें यह फ़िक्र है हरदम,

नयी तर्ज़-ए-जफ़ा क्या है?

हमें यह शौक है देखें,

सितम की इम्तहा क्या है?”

शहीद भगत सिंह ने जेल से अपने छोटे भाई कुलतार सिंह के नाम एक ख़त लिखा उसमें इस कविता की चार लाइन लिखी। यह कविता उनकी रचना नहीं है पर उनके हृदय के करीब थी। उनके पत्र में ब्रिटिश सरकार के अतिरिक्त समाज में रंग, भाषा तथा क्षेत्र के अधार पर लोगों मे व्याप्त भेद-भाव के प्रति चिंता पाया जाता था।

भगत सिंह की फांसी रुकवाने के प्रयास

भगत सिंह को धारा 129, 302 तथा विस्फोट पदार्थ अधिनियम 4 और 6 एफ तथा अन्य कई धाराओं के तहत भारतीय दण्ड सहिंता के आधार पर राजगुरु तथा सुखदेव के साथ फांसी की सजा सुनायी गई। उस समय के कांग्रेस अध्यक्ष पं. मदन मोहन मालवीय ने 14 फरवरी 1931 को वायसराय के समक्ष भगत सिंह के माफ़ी का आग्रह किया पर इस माफ़ीनामे पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया गया। इसके बाद 17 फरवरी 1931 को गांधी जी ने भगत सिंह की माफ़ी के लिए वायसराय से मुलाकात की पर इसका भी कोई फायदा नहीं हुआ। यह सब भगत सिंह के इच्छा के विरूद्ध हो रहा था, उनका कहना था “इन्कलाबियों को मरना ही होता है, क्योंकि उनके मरने से ही उनका अभियान मज़बूत होता है, अदालत में अपिल से नहीं”।

भगत सिंह की फांसी तथा उनका दाह संस्कार

23 मार्च 1931 की शाम को भगत सिंह, राजगुरु तथा सुखदेव को फांसी दे दी गई। कहा जाता है वह तीनों फांसी तक जाते समय ‘मेरा रंग दे बसंती चोला’ गीत मस्ती में गाते हुए जा रहे थे। फांसी के वजह से लोग कहीं किसी प्रकार के आन्दोलन पर न उतर आए इसके भय से अंग्रेजों ने उनके शरीर के छोटे टुकड़े कर बोरियों में भर दूर ले जाकर मिट्टी के तेल से जला दिया। लोगों की भीड़ को आते देख अंग्रेजों ने उनकी लाश को सतलुज नदी में फेंक दिया। फिर लोगों ने उनके शरीर के टुकड़ों से उनकी पहचान कर उनका विधिवत दाह संस्कार किया।

यदि शहीद भगत सिंह को फांसी नहीं होती तो क्या होता ?

शहीद भगत सिंह के साथ बटुकेश्वर दत्त भी थे उन्हें काले पानी की सजा सुनायी गई थी। देश की आजादी के उपरांत उन्हें भी आज़ाद कर दिया गया पर उसके बाद क्या? उनसे स्वतंत्रता सेनानी होने के सबूत मांगे गए और अंत में जाकर वह किसी सिगरेट की कम्पनी में सामान्य वेतन पर नौकरी करने लगे। फिर यह क्यों नहीं माना जा सकता है की भगत सिंह को यदि फांसी नहीं दी गई होती तो लोग उनका इतना सम्मान कभी न करते।

जिस वक्त शहीद भगत सिंह को फांसी दी गई तब वह सिर्फ 23 वर्ष के थे। उन्होंने स्वयं से पहले सदैव देश तथा देशवासियों को रखा। संभवतः इसीलिए उनके बलिदान के इतने वर्षों पश्चात भी वह हम सब में जीवित हैं।

Essay on Bhagat Singh

FAQs: भगत सिंह पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

उत्तर. अप्रैल 1929 में भगत सिंह द्वारा दिया गया नारा ‘इंकलाब जिंदाबाद’ था।

उत्तर. भगत सिंह ने मार्च 1929 में भारतीय राष्ट्रवादी युवा संगठन की स्थापना की थी।

उत्तर. भगत सिंह के गुरु करतार सिंह सराभा थे और भगत सिंह हमेशा उनकी तस्वीर अपने साथ रखते थे।

उत्तर. भारत की संसद में भगत सिंह की प्रतिमा 2008 में स्थापित की गई थी।

उत्तर. 1954 में भगत सिंह पर बनी पहली फिल्म थी “शहीद-ए-आजाद भगत सिंह”।

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भगत सिंह पर निबंध – Bhagat Singh Essay in Hindi

by StoriesRevealers | Jun 4, 2020 | Essay in Hindi | 0 comments

bhagat singh essay in hindi

Bhagat Singh Essay in Hindi : उन्हें हम सभी भारतीयों द्वारा शहीद भगत सिंह के नाम से जाना जाता है। वह एक उत्कृष्ट और अप्राप्य क्रांतिकारी थें। उनका का जन्म 28 सितंबर, 1907 को पंजाब के दोआब जिले में एक संधू जाट परिवार में हुआ था। वह बहुत कम उम्र में स्वतंत्रता के संघर्ष में शामिल हो गए और केवल 23 वर्ष की आयु में देश के लिए शहीद हो गए।

Bhagat Singh Essay in Hindi

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भगत सिंह बचपन के दिन

भगत सिंह अपने वीर और क्रांतिकारी कृत्यों के लिए लोकप्रिय हैं। उनका जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ था जो भारतीय स्वतंत्रता के संघर्ष में पूरी तरह शामिल था। उनके पिता, सरदार किशन सिंह और चाचा, सरदार अजीत सिंह दोनों उस समय के लोकप्रिय स्वतंत्रता सेनानी थे। दोनों गांधीवादी विचारधारा का समर्थन करने के लिए जाने जाते थे।

उन्होंने हमेशा लोगों को अंग्रेजों का विरोध करने के लिए जनता के बीच आने का निर्णय किया। इससे भगत सिंह गहरे प्रभावित हुए। इसलिए, देश के प्रति निष्ठा और इसे अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त करने की इच्छा भगत सिंह में जन्मजात थी। यह उसके खून और नसों में दौड़ रहा था।

भगत सिंह की शिक्षा

उनके पिता महात्मा गांधी के समर्थन में थे और बाद में जब सरकारी सहायता प्राप्त संस्थानों का बहिष्कार करने का आह्वान किया गया। तब, भगत सिंह ने 13. वर्ष की आयु में स्कूल छोड़ दिया और फिर उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज में प्रवेश लिया। कॉलेज में, उन्होंने यूरोपीय क्रांतिकारी आंदोलनों का अध्ययन किया जिससे उन्हें काफी प्रेरणा मिली। 

स्वतंत्रता संग्राम में भगत सिंह की भागीदारी

भगत सिंह ने यूरोपीय राष्ट्रवादी आंदोलनों के बारे में कई लेख पढ़े। जिसके कारण वह 1925 में स्वतंत्रा आंदोलन के लिए प्रेरित हुऐ। उन्होंने अपने राष्ट्रीय आंदोलन के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना की। बाद में वह हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन में शामिल हो गए। जहाँ वह सुखदेव, राजगुरु और चंद्रशेखर आजाद जैसे कई प्रमुख क्रांतिकारियों के संपर्क में आए।

उन्होंने कीर्ति किसान पार्टी की पत्रिका के लिए भी योगदान देना शुरू किया। हालाँकि उनके माता-पिता चाहते थे कि वे उस समय शादी करें, लेकिन उन्होंने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। उन्होंने उनसे कहा कि वह अपना जीवन पूरी तरह से स्वतंत्रता संग्राम में समर्पित करना चाहते हैं।

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विभिन्न क्रांतिकारी गतिविधियों में इस भागीदारी के कारण, वह ब्रिटिश पुलिस के लिए रुचि के व्यक्ति बन गए। इसलिए पुलिस ने मई 1927 में उसे गिरफ्तार कर लिया। कुछ महीनों के बाद, उसे जेल से रिहा कर दिया गया और फिर से उसने खुद को समाचार पत्रों के लिए क्रांतिकारी लेख लिखने में शामिल कर लिया।

भगत सिंह के लिए महत्वपूर्ण मोड़

ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों के लिए स्वायत्तता पर चर्चा करने के लिए 1928 में साइमन कमीशन का आयोजन किया। लेकिन कई राजनीतिक संगठनों द्वारा इसका बहिष्कार किया गया क्योंकि इस आयोग में किसी भी भारतीय प्रतिनिधि को शामिल नहीं किया गया था।

लाला लाजपत राय ने उसी का विरोध किया और एक जुलूस का नेतृत्व किया और लाहौर स्टेशन की ओर मार्च किया। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज किया। लाठीचार्ज के कारण पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को बेरहमी से मारा। लाला लाजपत राय गंभीर रूप से घायल हो गए और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। कुछ हफ्तों के बाद लाला जी शहीद हो गए।

इस घटना ने भगत सिंह को नाराज कर दिया और इसलिए उन्होंने लाला जी की मौत का बदला लेने की योजना बनाई। इसलिए, उन्होंने ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन पी सॉन्डर्स की हत्या कर दी। बाद में उन्होंने और उनके सहयोगियों ने दिल्ली में केंद्रीय विधान सभा पर बमबारी की। पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और भगत सिंह ने इस घटना में अपनी संलिप्तता स्वीकार कर ली।

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परीक्षण अवधि के दौरान, भगत सिंह ने जेल में भूख हड़ताल की। उन्हें और उनके सह-षड्यंत्रकारियों, राजगुरु और सुखदेव को 23 मार्च 1931 को फासी दे दी गई।

भगत सिंह वास्तव में एक सच्चे देशभक्त थे। न केवल उन्होंने देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी बल्कि इस घटना में अपनी जान तक दे दी। उनकी मृत्यु ने पूरे देश में उच्च देशभक्ति की भावनाएं पैदा कीं। उनके अनुयायी उन्हें शहीद मानते थे। हम आज भी उन्हें शहीद भगत सिंह के रूप में याद करते हैं।

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शहीद भगत सिंह पर निबंध | Essay on Bhagat Singh in Hindi

शहीद भगत सिंह पर निबंध | Essay on Bhagat Singh in Hindi

Table of Contents

भगत सिंह (Bhagat Singh) एक महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने अपनी जान की आहुति देकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए संघर्ष किया। वे एक ऐसे योद्धा थे जो अपने आत्मबलिदान के लिए प्रसिद्ध हैं और उनका नाम आज भी भारतीय जनता के दिलों में बसा हुआ है। निम्नलिखित निबंध में हम भगत सिंह के जीवन और उनके महत्वपूर्ण कार्यों के बारे में विस्तार से जानेंगे:

भगत सिंह (Bhagat Singh) का जन्म 28 सितंबर 1907 को पंजाब के बंगा गांव में हुआ था। वे एक साधारण पंजाबी परिवार से थे, लेकिन उनकी प्रतिभा और संघर्ष ने उन्हें देश के महान स्वतंत्रता सेनानियों में से एक बना दिया।

भगत सिंह का युगदृष्टि सोच और कर्म में था। उन्होंने गांधीजी के नेतृत्व में विभाजन और सट्टाधारी नेताओं के खिलाफ जागरूकता फैलाई और युवा पीढ़ियों को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया।

भगत सिंह (Bhagat Singh) का नाम जलियांवाला बाग में हुए बर्बर हत्याकांड के बाद भी बड़े पौर्णिक रूप से जाना जाता है। उन्होंने इस हत्याकांड के खिलाफ खुलकर आवाज उठाई और अंग्रेज साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष का हिस्सा बने।

भगत सिंह, सुखदेव, और राजगुरु के साथ मिलकर सांध से आगे बढ़कर 1929 में लाहौर में सांध में आगवण की घोषणा की थी। सांध के समय उन्होंने बॉम्ब के साथ एक पैम्फलेट भी छोड़ा था, जिसमें उन्होंने अपने संघर्ष के मकसद को स्पष्ट किया था: “सांध के खिलाफ नहीं, बल्कि आजाद भारत के लिए जंग के लिए हमने इस कदम उठाया है।”

23 मार्च 1931 को भगत सिंह (Bhagat Singh), सुखदेव, और राजगुरु को फाँसी की सजा दी गई, लेकिन उनका संघर्ष और बलिदान आज भी हमारे देश के युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत है।

भगत सिंह (Bhagat Singh) एक महान योद्धा, स्वतंत्रता सेनानी, और एक महान देशभक्त थे। उनकी शहादत ने हमें एक सशक्त और स्वतंत्र भारत की ओर अग्रसर करने का संकेत दिया और उन्होंने देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। भगत सिंह को हमेशा याद रखा जाएगा और उनकी अद्भुत यात्रा को सतत प्रेरणा के रूप में माना जाएगा।

शहीद भगत सिंह का देश के लिए योगदान | Bhagat Singh Ka Desh Ke Liye Yogdaan

शहीद भगत सिंह (Bhagat Singh) ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए अपना जीवन समर्पित किया और देश के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनका योगदान विभागीय रूप से निम्नलिखित प्रकार से था:

  • जलियांवाला बाग में योगदान: शहीद भगत सिंह ने जलियांवाला बाग मास्साकर के खिलाफ उठी आवाज को मजबूती से सुनाया और इस घमंडी और बर्बर हत्याकांड के खिलाफ खरीदने का प्रमोशन किया।
  • सांध का आलंब: उन्होंने सांध के समय अपने दोस्त सुखदेव और राजगुरु के साथ बम बनाने और उनका आलंब रखने का प्रयास किया, जिसका उपयोग स्वतंत्रता संग्राम के लिए किया जा सकता था।
  • शहादत की तय की योजना: भगत सिंह ने अपनी शहादत की तय की योजना बनाई और उन्होंने अपने आवासीय स्थल में एक आधिकारिक ब्योरा छोड़ा, जिसमें उन्होंने अपने कारणों और लक्ष्य को स्पष्ट किया। उनकी शहादत ने स्वतंत्रता संग्राम को और भी अधिक मजबूती से जिन्दगी दी।
  • युवाओं को प्रेरित करना: भगत सिंह ने युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। उनका उदाहरण और उनके योगदान ने देश के युवाओं को उनके दायित्व के प्रति जागरूक किया और उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने की प्रेरणा दी।

भगत सिंह (Bhagat Singh) का योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अमूल्य माना जाता है। उन्होंने अपने अद्वितीय उपहार और बलिदान के माध्यम से देश को स्वतंत्रता की दिशा में मोड़ने का महान काम किया। उनका योगदान हमें याद दिलाना चाहिए कि स्वतंत्रता के लिए हमें कभी भी तैयार रहना चाहिए और देश की सेवा करने के लिए अपने को समर्पित करना चाहिए।

शहीद भगत सिंह का बलिदान | Bhagat Singh Ka Balidan

भगत सिंह (Bhagat Singh) का बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण और अद्वितीय है। उन्होंने अपने जीवन को देश के लिए समर्पित किया और आजादी के लिए अपनी जान की आहुति दी।

  • जलियांवाला बाग में सहीदों के लिए आवाज उठाना: जलियांवाला बाग मास्साकर के बाद, भगत सिंह ने इस घमंडी हमले के खिलाफ खुलकर आवाज उठाई और अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से लोगों को समझाया कि यह घटना कितनी बड़ी अन्याय था। उन्होंने जलियांवाला बाग के शहीदों के लिए न्याय मांगा और इस घातक हमले के खिलाफ आंदोलन चलाया।
  • सांध का संगठन और आवाज बुलंद करना: भगत सिंह, सुखदेव, और राजगुरु के साथ, वे सांध का संगठन करके ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक महत्वपूर्ण कदम उठाया। उन्होंने बम बनाने का काम किया और उसे सांध रेलवे स्थान पर फेंका, जिससे ब्रिटिश शासन के खिलाफ यह संकेत मिला कि भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों का संघर्ष तेज हो रहा है।
  • शहादत की तय की योजना और शहादत: भगत सिंह ने अपनी शहादत की योजना बनाई और उन्होंने अपने बचाव के दिन अपने आवासीय स्थल पर एक विचारशील ब्योरा छोड़ा। इसमें उन्होंने अपने कारणों और लक्ष्य को स्पष्ट किया और देश के लिए अपना आखिरी समर्पण किया।

शहीद भगत सिंह (Bhagat Singh) का बलिदान देश के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण था, और उन्होंने अपने आत्मबलिदान के माध्यम से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को मजबूती से सपोर्ट किया। उनकी शहादत ने स्वतंत्रता संग्राम को नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया और भारतीय जनता को उनके उदाहरण से प्रेरित किया। उनका योगदान हमें हमारे देश के स्वतंत्रता संग्राम के महत्व को समझने का अवसर देता है और हमें याद दिलाता है कि स्वतंत्रता के लिए हमें सबकुछ समर्पित करने की तय करनी चाहिए।

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भगत सिंह के प्रसिद्ध नारे | Bhagat Singh Ke Diye Huye Naare

भगत सिंह (Bhagat Singh), भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी में से एक थे और उन्होंने कई प्रसिद्ध नारे दिए जो स्वतंत्रता संग्राम की भावना को व्यक्त करते थे। ये नारे उनके संघर्ष के महत्वपूर्ण हिस्से थे और उनकी आवाज को देशभक्ति और स्वतंत्रता के प्रति उनके समर्पण को प्रकट करने में मदद करते थे।

  • “इंकलाब जिंदाबाद”: यह नारा भगत सिंह के संघर्ष की भावना को सबसे अच्छी तरह से प्रकट करता है। “इंकलाब” का अर्थ होता है “क्रांति” या “परिवर्तन,” और “जिंदाबाद” का अर्थ होता है “लंबे समय तक जीवित रहो”। यह नारा स्वतंत्रता संग्राम के उत्कृष्ट स्पर्श को सूचित करता है और भगत सिंह और उनके साथी स्वतंत्रता सेनानियों की संकल्पशक्ति को दिखाता है।
  • “सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है”: इस नारे में भगत सिंह और उनके साथी स्वतंत्रता सेनानियों की आक्रांति और इच्छा को व्यक्त किया गया है कि वे अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए कुछ भी कर सकते हैं।
  • “इंकलाब जिंदाबाद, सारे आलम में इंकलाब”: यह नारा स्वतंत्रता संग्राम की उस भावना को दर्शाता है कि स्वतंत्रता की आकांक्षा दुनियाभर के लोगों के दिलों में है और यह एक विश्वव्यापी क्रांति का संकेत है।
  • “इंकलाब जिंदाबाद, वीर भगत सिंह जिंदाबाद”: इस नारे में भगत सिंह की महानता और उनके स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को महत्वपूर्ण बनाते हैं और उन्हें एक वीर के रूप में स्वागत करते हैं।

ये नारे और उनके संघर्ष के साथ, भगत सिंह (Bhagat Singh) और उनके साथी स्वतंत्रता सेनानियों का योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण हिस्सा था और उनकी शहादत ने देश की आजादी के लिए उनके संकल्प को साबित किया।

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भगत सिंह पर निबंध। bhagat singh essay in hindi

Bhagat Singh Essay in Hindi

शहीद भगत सिंह जी गुलाम भारत के एक महान क्रन्तिकारी थे। भारत की आज़ादी के लिए उनका बलिदान भारत कभी नहीं भूल सकता है। भगत सिंह भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए अपने प्राण की आहुति देने वाले क्रांतिकारियों में से एक थे। आज हम आपके लिए इस पोस्ट में bhagat singh essay in hindi ले कर आये है । इस भगत सिंह पर निबंध को आप स्कूल और कॉलेज इस्तेमाल कर सकते है । इस हिंदी निबंध को आप essay on bhagat singh in hindi for class 1, 2, 3 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 तक के लिए थोड़े से संशोधन के साथ प्रयोग कर सकते है।

  क्रांतिकारियों मे क्रांति की पहचान थे वो, देश के लिए जान देने वाले जवान थे वो,

स्वाभिमान भी उनसे आगे बढ़ने की होड़ करता रहा,  अंग्रेजों को घुटनो पर टिका देने  वाले भगत महान थे वो। 

भारत के स्वतंत्रता सैनानी में सबसे प्रिय वीर भगत सिंह जी थे। आत्मविश्वास, बहादुरी, स्वाभिमान एवं विरोध की मिसाल थे भगत सिंह। वे एक ऐसा चरित्र है जिनके बारे में हम जितना भी जान ले कम ही होगा। आज जो भी लोग भगत सिंह के बारे में नही जानते उनके हृदय में देश के साथ आज भगत सिंह के प्रति भी प्रेम उमड़ आएगा। ऐसी शख्शियत भगवान ने करोड़ों में से एक बनाई है। जो देश के युवा के लिए एक रौचक उदहारण बनकर उभरते हैं। भगत सिंह सभी स्वतंत्रता सैनानियों में से एक अहम किरदार थे।इन्होंने देश के लोगो को जो सीख दी वह स्वतंत्रता के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण व अहम थी। 

प्रस्तावना-  भगत सिंह के जीवन के बारे में जानने से पहले उनके कुछ विचारों से रुबरूं होने की आवश्यकता है। भगत सिंह ईट का जवाब पत्थर से देने वाले व्यक्ति थे। वे देश के लोगो की जान का बदला जान से लेते थे। अपने देश मे अपने ही लोगों के साथ ज्यातकी उन्हें बर्दाश नही थी। वे अपने जीवन के किस्सों से उदहारण देना चाहते है कि हमारा देश सिर्फ हमारा है। कोई और का इसपर कोई अधिकार नही।वे इतने साहसी थे कि वे जिये भी शान से और आज़ाद भी शान से हुए।उन्होंने अपनी बहादुरी से व अपने दृढ़ संकल्प से अंग्रेजों को अपनी जिद की आगे झुका दिया था। भगत सिंह का जीवन उनके प्रति आत्मीयता का भाव पैदा करता है। गर्व देश की भूमि के साथ देश के जवानों की कुर्बानियों का होता है। जिन्होंने अपना सर्वस्व देश को त्याग कर स्वराज की माँग की। 

 बचपन- 28 सितम्बर 1907 को पंजाब के लयालपुल जिले के बंगा गांव में भगत सिंह का जन्म हुआ। सरदार किशन सिंह व विद्यावती कौर की खुशी आज दुगनी थी। आज उनके यहां पुत्र भी हुआ और भगत सिंह के चाचाजी को आज जेल से रिहा किया गया था। भगत सिंह का परिवार भी देश भक्त था। ऐसे महान परिवार में महान क्रांतिकारी भगत सिंह का जन्म हुआ। जिन्होंने अपने जीवन से सबको अचंभे में डाल कर रख दिया। मिसाल हो तो भगत सिंह जैसी जिन्होंने देश के लिए जीने व देश के लिए ही मारने की ठानी थी। वे अंग्रेजों के बचपन से ही विरोधी थे। उस समय ब्रिटिश सरकार थी। और उस वक़्त सरकारी विद्यालय भी ब्रिटिश सरकार के ही थे। उन्होंने वो विद्यालय में पढ़ाई ना करके आर्य समाज के दयानंद वैदिक विद्यालय से शिक्षा ग्रहण की।बचपन से ही ब्रिटिशर्स के प्रति उनके हृदय में आक्रोश था। उनके बचपन की एक घटना उनके पिता जी को हैरान करने वाली थी। एक बार भगत सिंह अपने पिताजी के साथ खेत पर गए। वहां उन्होंने अपने पिता जी से पूछा की आप ये अनाज बोते हो आपको इससे क्या मिलता है। पिताजी ने कहा कि बेटा इससे ढेर सारी फसल उगती है। इसे हम बेच देते है। तभी भगत सिंह सिंह 12 वर्ष के भी नही थे। भगत सिंह ने अपने पिता जी से कहा फिर आप बंदूक क्यों नही बोते, उससे बहुत सारी बंदूक उग जाएगी फिर अंग्रेजों पर हम उसे चला देंगे।भगत सिंह जी की बात में नादानी थी क्योंकि उन्हें ये नही पता था कि बंदूकें खेत से नही उगती। लेकिन उनकी बात से उनके पिताजी बड़े हैरान हो गए। इतनी छोटी सी उम्र में उनके हृदय में अंग्रेजों के प्रति आक्रोश था।उन्हें इस बात की खुशी थी कि भगत सिंह देश प्रेमी है।

भगत सिंह का जीवन महज 23 वर्ष 5 माह व 23 दिन का था। उनके जीवन के महत्वपूर्ण सालों से हम उनके जीवन और उनके योगदान के बारे में जानेंगे। 

13 अप्रैल 1919- इस दिन जलियावाला बाघ में हत्या कांड हुआ था। जहाँ हज़ारों की संख्या में भारतीय लोगो को अंग्रेजों ने गोलियों से भुनवा दिया। अंग्रेजों द्वारा का एक एक्ट लाया गया था कि किसी भी भारतीय पर बिना मुकदमा चलाये उसे गिरफ्तार किया जा सकता है। उस एक्ट का नाम था रॉलेट एक्ट। इसके खिलाफ भारतीय जलियावाला बाघ में विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। जनरल डायर ने हजारों प्रदर्शनकारियों को गोलियोन से भुनवा दिया। ये घटना को देखने के लिए भगत जी 20 किलोमीटर पैदल चलकर जलियावाला बाघ पहुंचे।वहां पहुँच कर जो उन्होंने देखा उसने उनकी रूह को झंझोड़ कर रख दिया। हज़ारों की संख्या में लाशें थी।खून से रंगी हुई भूमि थी।उन्होंने वहां की खून से रंगी हुई मिट्टी उठायी और शपत ली कि वह इसका बदला अंग्रेजों से ज़रूर लेंगे। उस दिन वह मिट्टी को लेकर घर आगये।

 1 अगस्त 1920 में भगत सिंह ने असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया। जिसमे गांधी जी अहिंसक रूप से सभी को अंग्रेजों के यहां से नौकरी छोड़ने,टैक्स ना देने, अंग्रेज़ी वस्तु व कपड़े जलाने के लिए प्रेरित कर रहे थे। तभी भगत सिंह जी ने भी बचपन मे अंग्रेज़ी किताबों को जलाया व इस आंदोलन में भूमिका निर्धारित की।

 5 फरवरी 1922  इस वर्ष चौरी-चौरा कांड हुआ जिसमें भारतीय ने अंग्रेजों  के पुलिस थाने में आग लगा दी थी। जिसमे पुलिस वालों की मृत्यु हुई थी। गांधी जी  हिंसात्मक आंदोलन के पक्ष में नही थे। इसीलिए उन्होंने आंदोलन वापिस ले लिया। ये बात भगत सिंह जी को पसंद नही आयी। 

इसके बाद भगत जी स्वयं क्रांतिकारी दल में शामिल हुए। जिसके प्रमुख भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, सुखदेव व राजगुरु थे ।1928 में उन्होंने नौजवान भारत सभा “हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन” का विलह कर ” हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन” नाम रखा। 

30 अक्टूबर 1928- 17 दिसंबर 1928-  साइमन कमीशन के द्वारा लाठी चार्ज में 30 अक्टूबर 1928 को लाला लाजपत राय घायल हुए। 17 नवंबर 1928  को उनकी मृत्यु हो गयी। देश को इसका बड़ा सदमा पहुंचा।इस बार भगतसिंह, चंद्रशेखर, राजगुरु, जयगोपाल ने 17 दिसंबर 1928 को लाहौर कोतवाली पर ब्रिटश के एक प्रमुख जॉन सॉन्डर्स की हत्या की। इस प्रकार लाला लाजपतराय जी की मृत्यु का बदला लिया। इस घटना के बाद भगत जी ने अपनी दाड़ी व बाल कटवा लिए ताकि कोई उन्हें पहचान न सके।

8 अप्रैल 1929- अंग्रेज़ो द्वारा मजदूर विरोधी बिल पास किया जाने वाला था। ब्रिटिश सरकार को गरिबों से व व्यापारियों से कोई मतलब नही था। वे मनमानी कर रहे थे। ये भगतसिंह व चंद्रशेखर आज़ाद को मंजूर नही था। भगतसिंह ने बटुशेखर दत्त के साथ दिल्ली की केंद्रीय असेंबली में बम फेंके। उन्होंने उसमे कोई भी नुकसानदायक पदार्थ नही मिलाया था। उनका उद्देश्य नुकसान पहुंचाना नही बल्कि अंग्रेजों को नींद से जगाना और विरोध करना था।उन्होंने खाली जगह बम फेंके थे। इसके बाद खुद अपने आप को ब्रिटिश सरकार के हवाले इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगा कर किया।उन्होंने अपनी जान से बढ़ कर अंग्रेजों के अत्याचारों का विरोध करना व उनके अत्याचारों को सामने लाना समझा। 

जेल में क्रांति- भगतसिंह जी देश के लिए ही जीना और मरना चाहते थे। इसीलिए उन्होंने कभी अपनी जान की परवाह नही की। जब वह जेल में आये तब उन्होंने देखा कि यहां भी अंग्रेज़ी कैदी और भारतिय कैदियों के बीच भेद- भाव हो रहा है। भारतीय कैदियों की रसोई में कॉकरोच, चुहे व बहुत गंदगी थी। वही अंग्रेज़ी कैदियों के लिए सब साफ सफाई थी। कपड़े भी उनको समय पर बदलने नही दिए जाते थे। भगतसिंह जी ने ठान लिया कि जब तक ये भेद भाव खत्म नही होगा तब तक व भोजन ग्रहण नही करेंगे। जून 1929 में भगतसिंह और उनके दल के लोगो ने भूख हड़ताल करवाई। जिसे तुड़वाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने अथक प्रयास किये। बर्फ की सिल्लियों पर लेटा कर उन्हें कौड़ियों से मारा गया। उनके मुह में दूध डालने का प्रयास किया। पर उन्होंने एक बूंध भी दूध नही पिया था। बाद में उन्हें लाहौर जेल में रखा गया। उनकी हड़ताल को देख सभी भूख हड़ताल का हिस्सा बने। जिसमे सुखदेव व राजगुरु भी थे। 13 सितंबर को जितेंद्रदास नाथ की 63 दिन भूखे रहने पर मृत्यु हो गयी। देश ने इसपर बहुत दुख जताया। इसके बाद 5 अक्टूबर 1929 को अंग्रेजों को भगत सिंह के दृढ़ संकल्प के आगे घुटने टेकने पड़े। भगतसिंह ने ब्रिटिश सरकार को मजबूर कर दिया।ब्रिटिश सरकार को उनकी शर्तें माननी पड़ी। भगतसिंह ने इस प्रकार जेल में समानता लाने की शुरुवात की। वे 116 दिन बीना खाएं पिये रहे। पर अपने संकल्प को पूरा किया। 5 अक्टूबर 1929 को जब उनकी शर्तें मान ली गयी तब उन्होंने अपनी हड़ताल तोड़ी।

26 अगस्त 1930 को अदालत ने उन्हें विस्फोट की वजह से अपराधी सिद्ध किया और 7 अक्टूबर को 68 पेज का निर्णय दिया। जिसमें भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव को फांसी की सजा सुनाई। बाकी लोगो को आजीवन कारावास की सजा दी। 

23 मार्च 1931-  ये वो दिन था जब देश के लिए भगतसिंह ने जान न्योछावर की। उनकी ख्वाइश  थी की वे देश के लिए ही अपने प्राण दे। उनके मुख पर फांसी का जरा भी दुख नही था। वे आज के दिन सबसे ज़्यादा खुश थे। भगतसिंह,राजगुरु व सुखदेव तीनो इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे। खुशी से झूम रहे थे। और देश के प्रति अपने समर्पण को अपना सौभाग्य समझ रहे थे। उस दिन ये भूमि भी रोई होगी जिस दिन भगतसिंह ने अपने आप का समर्पण  किया। पूरे देश मे इसका दुख था। इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगा कर वे फांसी पर चढ़े। लेकिन उस दिन वह अपने जैसे सेंकडो भगतसिंह देश को दे गए। उन्हें देख ना जाने कितने लोग आज भी प्रेरित होते है। 23 साल की उम्र में देश को अपनी जान समर्पण की। 

उपसंहार-  भगतसिंह ने हमें यह सीखाया कि जीवन चाहे छोटा जियो पर सार्थक जियो । देश के लिए वे एक मिसाल हैं। अपने चेहरे पर एक शिकन लेकर भी वो शहीद नही हुए। वो सदा साहस व स्वाभिमान से जिये। मानो स्वाभिमान भी उनके रूप को देख हैरान होगा। 23 साल जीने वाले भगत सिंह को 23000 वर्ष तक या इससे भी ज़्यादा वक़्त तक याद रखा जाएगा। वे हमारे दिलों में, युवा पीढ़ी में व सीमा पर तैनात हर सैनिक में प्रेरणा के रूप में रहते है। उन्ही के कारण हमारा मनोबल आज भी कायम है। वे देश के लिए शहीद हुए और सैंकड़ो भगतसिंह के आगमन का इशारा दे गए। 

भूमि ऋणि है ऐसे वीरों की जो जिये भी देश के लिए और शहीद भी देश के लिए हुए।

आपका और मेरा सौभाग्य है जो मैं इतने बड़े क्रांतिकारी के बारे में लिख पा रही हु और आप पढ़ पा रहे है। तहे दिल से सलामी है ऐसे वीरों को, हम बहुत आभारी होंगे व नम आंखों से आज उन्हें याद कर रहे होंगे। भगत सिंह विश्वास, प्रेरणा, मनोबल, स्वाभिमान बनकर आज भी देश के हर युवा में झलकते है जो गलत के खिलाफ आवाज उठाते है… 

” मेरे सीने में जो जख्म है वो सब फूलों के गुच्छे है,

 हमें तो पागल ही रहने दो हम पागल ही अच्छे है” 

                                          -भगतसिंह

              (इंकलाब जिंदाबाद….!)

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भगत सिंह पर निबंध | bhagat singh hindi essay.

भगत सिंह को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान वीर और योद्धा के रूप में याद किया जाता है।

उनका योगदान भारतीय इतिहास में अविस्मरणीय है, और उनके विचारों और क्रांतिकारी धर्म की उपासना आज भी हमारे दिलों में बसी है।

"भगत सिंह पर निबंध" इस ब्लॉग पोस्ट में, हम उनके जीवन और कार्य के बारे में गहराई से जानेंगे, जिससे हमें उनके योगदान का असली महत्व समझने में मदद मिलेगी।

चलिए, हम उन्हें समर्पित इस यात्रा में साथ चलें और उनके विचारों के गहरे संदर्भ में बात करें।

भगत सिंह: एक क्रांतिकारी योद्धा

भूमिका: स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी जिनके विचार और बलिदान ने देश को गौरवान्वित किया, उनमें से एक नाम है - भगत सिंह।

उनका योगदान भारतीय इतिहास में अमर है।

उनकी शौर्य और वीरता ने देशवासियों को एक साथ आक्रोशित किया और उन्हें स्वतंत्रता की ओर अग्रसर किया।

इस निबंध में, हम भगत सिंह के जीवन, उनके विचार, और उनके प्रेरणादायक क्रांतिकारी योद्धा होने के बारे में विस्तार से जानेंगे।

1. जीवनी:

भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर, 1907 को पंजाब के जलंधर जिले के इकारा नामक गाँव में हुआ था।

उनके पिता का नाम किशन सिंह था और माता का नाम वीद्यावती देवी था।

उनका बचपन से ही राष्ट्रीय और सामाजिक मुद्दों में गहरा रूचि था।

उन्होंने अपनी शिक्षा को निरंतर अविरल बनाया और विद्यालय में ही सामाजिक कार्यों में भाग लिया।

2. विचारधारा:

भगत सिंह ने गर्व से कहा था, "ज़िन्दगी तो अपने दम पर ही जी जाती है, दूसरों के कंधे पर तो सिर्फ जनाज़े उठाए जाते हैं।"

उनके विचारों में स्वतंत्रता, समाज सेवा, और राष्ट्रभक्ति की ऊर्जा थी।

उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध सजग और साहसिक संघर्ष किया।

उन्होंने अपने विचारों के माध्यम से लोगों को जागरूक किया और उन्हें स्वतंत्रता की महत्वपूर्णता को समझाया।

3. क्रांतिकारी कार्य:

भगत सिंह, सुखदेव, और राजगुरु के साथ मिलकर उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए अपने जीवन की कड़ी मेहनत और बलिदान किया।

उनका संघर्ष अंग्रेजों को हिला दिया और उन्हें उनकी गलियों से भागने के लिए मजबूर किया।

उनके योगदान के बिना, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की कहानी अधूरी होती।

4. प्रेरणास्त्रोत:

महात्मा गांधी ने भगत सिंह के योगदान को बड़ाई और उनके वीरता को सराहा।

उन्होंने कहा, "भगत सिंह ने अपने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी और स्वतंत्रता संग्राम को नया जीवन दिया।"

उनके शौर्य और उनकी प्रेरणादायक कहानी हर किसी के दिल में एक नया जज्बा भरती है।

5. संक्षिप्त निष्कर्ष:

भगत सिंह के वीर और अदम्य संघर्ष ने हमें यह सिखाया कि स्वतंत्रता के लिए लड़ना और बलिदान देना कोई सपना नहीं होता।

उनकी शौर्यगाथा हमें यह याद दिलाती है कि हमें अपने मातृभूमि के प्रति कर्तव्य निभाना है।

भगत सिंह का संदेश आज भी हमें स्वतंत्रता की महत्वपूर्णता को समझाता है और हमें उन्हें समर्पित रहने के लिए प्रेरित करता है।

भगत सिंह पर निबंध हिंदी में 100 शब्द

भगत सिंह, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान योद्धा थे।

उन्होंने अंग्रेज़ों के खिलाफ अपने जीवन की आहुति दी और देश को स्वतंत्रता की ओर अग्रसर किया।

उनकी वीरता और निष्ठा ने लोगों को प्रेरित किया।

उनके विचार और योगदान ने भारतीय जनता को एक साथ लिया और स्वतंत्रता की लड़ाई में साथी बनाया।

भगत सिंह का योगदान हमें सदैव प्रेरित करता है।

भगत सिंह पर निबंध हिंदी में 150 शब्द

भगत सिंह, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अमर शूरवीर थे।

उनकी शौर्य और वीरता ने लोगों को आत्मनिर्भरता की ओर प्रेरित किया।

उन्होंने अपने जीवन का बलिदान करके देश के लिए स्वतंत्रता की लड़ाई में योगदान दिया।

उनके विचार और क्रांतिकारी धारणाएं हमें स्वतंत्रता के महत्व को समझने के लिए प्रेरित करती हैं।

भगत सिंह के बलिदान ने हमें एक सशक्त और गर्वशील भारत की ओर अग्रसर किया है।

उनका योगदान हमें स्वतंत्रता के लिए समर्पण और साहस की महत्वपूर्णता को सिखाता है।

भगत सिंह जैसे वीरों की अमर यादें हमें हमेशा प्रेरित करती रहेंगी।

भगत सिंह पर निबंध हिंदी में 200 शब्द

भगत सिंह एक ऐसा नाम है जो भारतीय इतिहास में अमर रहेगा।

उनकी बहादुरी, उनका जज्बा और उनकी आत्मा में आजादी के प्रति अटूट समर्पण ने उन्हें एक सच्चे क्रांतिकारी बना दिया।

भगत सिंह ने अपने जीवन का प्रत्येक क्षण देश की स्वतंत्रता के लिए समर्पित किया।

उनका प्रेरणादायक योगदान हमें आज भी अपने देश के प्रति समर्पित रहने की प्रेरणा देता है।

भगत सिंह ने अंग्रेजों के विरुद्ध खड़े होकर उनसे जंग लड़ी और अपने जीवन की कीमत चुकाई।

उनके सोचने का तरीका, उनकी विचारधारा और उनकी आदर्शों ने हमें स्वतंत्रता के महत्व को समझाया।

उनकी शहादत की गाथा हमें हमेशा साहस और समर्पण की ओर प्रेरित करेगी।

भगत सिंह जैसे महान क्रांतिकारियों का समर्पण हमें अपने देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी सहने के लिए प्रेरित करता है।

उनका योगदान अटूट रहेगा और हमें सदैव आदर्शों के साथ चलने की प्रेरणा देगा।

भगत सिंह पर निबंध हिंदी में 300 शब्द

भगत सिंह, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के वीर योद्धा और क्रांतिकारी, एक ऐसा नाम है जिसने अपने बलिदान से देश को गौरवान्वित किया।

  • उनका जन्म 28 सितंबर 1907 को पंजाब के इकारा गाँव में हुआ था।

उनके पिता का नाम किशन सिंह और माता का नाम वीद्यावती देवी था।

बचपन से ही उन्हें राष्ट्रवाद और स्वतंत्रता के प्रति गहरा आदर्श था।

भगत सिंह ने अपनी उच्च शिक्षा को छोड़कर आंदोलन में शामिल होने का निर्णय लिया और उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ अपनी आवाज़ उठाई।

उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के लिए अपना सर्वस्व नियत किया और उसके लिए खुद को कुर्बानी देने को तैयार किया।

भगत सिंह की अमर यादें हमें उनके बलिदान का महत्व समझाती हैं।

उनके विचार, उनकी बातें, और उनकी क्रांतिकारी आत्मा हमें स्वतंत्रता की महत्वपूर्णता को समझाती है।

उन्होंने अपने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी और स्वतंत्रता संग्राम को नई ऊचाइयों तक ले जाने में अहम भूमिका निभाई।

उनकी शहादत ने हमें स्वतंत्रता की महत्वपूर्णता को और भी महसूस कराया।

भगत सिंह की यादें हमें सदैव उनकी वीरता और बलिदान को समर्पित रहने का संकल्प लेने के लिए प्रेरित करती हैं।

उनका योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अमूल्य है और हमें हमेशा प्रेरित करता रहेगा।

भगत सिंह पर निबंध हिंदी में 500 शब्द

भगत सिंह एक ऐसा नाम है जो भारतीय इतिहास में स्वतंत्रता संग्राम के महान योद्धा के रूप में अमर रहेगा।

उनके परिवार में संगठित और प्रेरणास्त्रोत थे, जो उनकी व्यक्तित्व विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया।

भगत सिंह की शैक्षिक यात्रा उन्होंने अपने आदर्शों के साथ जारी रखी, हालांकि उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा को पूरा नहीं किया।

उनके जीवन का मुख्य उद्देश्य भारत की स्वतंत्रता के लिए समर्पित रहा।

उन्होंने अपने जीवन के हर क्षण को देश के लिए सेवारत किया।

भगत सिंह ने अंग्रेज़ों के विरुद्ध सशक्त और साहसिक संघर्ष किया।

उन्होंने हिंसा का सामना किया, लेकिन उनका उद्देश्य केवल स्वतंत्रता के लिए था।

उन्होंने अपने आत्म-बलिदान से लोगों को जागरूक किया और उन्हें स्वतंत्रता की महत्वपूर्णता को समझाया।

उनकी विचारधारा, उनका संघर्ष और उनका समर्पण भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अमूल्य हैं।

भगत सिंह का जीवन प्रेरणादायक है।

उनकी वीरता, उनका समर्पण और उनका विचार आज भी हमें स्वतंत्रता के महत्व को समझाते हैं।

उनके विचारों में स्वतंत्रता, सामाजिक न्याय और राष्ट्रभक्ति की भावना समाहित थी।

भगत सिंह की शहादत ने भारत के लोगों में एक नई ऊर्जा का संचार किया।

उनका संघर्ष हमें याद दिलाता है कि स्वतंत्रता का महत्व क्या है और हमें उसके लिए कैसे समर्पित होना चाहिए।

भगत सिंह की यादें हमें सदैव प्रेरित करती रहेंगी और हमें उनके विचारों का अनुसरण करने के लिए प्रेरित करेंगी।

उनका योगदान भारतीय इतिहास में स्थायी रहेगा और हमें हमेशा उनके समर्थन में सजग रहना चाहिए।

भगत सिंह पर 5 लाइन निबंध हिंदी

  • भगत सिंह एक महान क्रांतिकारी थे जिन्होंने अपने जीवन को स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्पित किया।
  • उनकी वीरता और उनकी बलिदानी भावना ने लोगों को आत्मनिर्भरता की ओर प्रेरित किया।
  • भगत सिंह का संघर्ष हमें यहाँ तक पहुँचाया कि स्वतंत्रता के लिए कोई भी बलिदान छोटा नहीं होता।
  • उनके विचार और आदर्श हमें आज भी स्वतंत्रता की महत्वपूर्णता को समझने के लिए प्रेरित करते हैं।
  • भगत सिंह जैसे महान योद्धाओं का योगदान हमारे देश के इतिहास में अविस्मरणीय है और हमें हमेशा उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करनी चाहिए।

भगत सिंह पर 10 लाइन निबंध हिंदी

  • भगत सिंह एक वीर योद्धा थे जिन्होंने अपने जीवन को देश की स्वतंत्रता के लिए समर्पित किया।
  • उनकी शौर्य और वीरता ने लोगों को उनके देशप्रेम में प्रेरित किया।
  • भगत सिंह ने अपने युवा जीवन में ही आजादी के लिए लड़ने का निश्चय किया।
  • उन्होंने अंग्रेज साम्राज्य के खिलाफ उत्साह से संघर्ष किया।
  • उनकी विचारधारा और क्रांतिकारी आत्मा ने देशवासियों को साहस और उत्साह दिया।
  • भगत सिंह ने उस समय की अंधाधुंध राजनीति के खिलाफ उठाई आवाज़।
  • उनके बलिदान ने देश को स्वतंत्रता की राह पर अग्रसर किया।
  • भगत सिंह का योगदान हमें स्वतंत्रता के महत्व को समझाता है।
  • उनकी वीरता और प्रेरणा की कहानी हर भारतीय के लिए प्रेरणास्त्रोत है।
  • भगत सिंह जैसे महान योद्धा की यादें हमें हमेशा देश प्रेम और निष्ठा में बढ़ावा देती रहेंगी।

भगत सिंह पर 15 लाइन निबंध हिंदी

  • भगत सिंह, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अद्वितीय वीर योद्धा थे।
  • उनके परिवार में देशप्रेम की भावना संपूर्ण थी।
  • भगत सिंह ने अंग्रेज़ों के खिलाफ निष्ठा और साहस से संघर्ष किया।
  • उन्होंने शहादत के रास्ते को अपनाकर देश को स्वतंत्रता की ओर ले जाने का संकल्प लिया।
  • भगत सिंह ने अपने विचारों और बलिदान से देश को प्रेरित किया।
  • उनके संघर्ष ने लोगों को आत्मनिर्भरता की ओर प्रेरित किया।
  • उनका विचार और आदर्श हर भारतीय के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं।
  • भगत सिंह की वीरता और समर्पण ने देश को स्वतंत्रता की राह पर अग्रसर किया।
  • उनका योगदान हमें स्वतंत्रता के महत्व को समझाता है।
  • भगत सिंह की शहादत ने लोगों के दिलों में आत्मविश्वास की भावना जगाई।
  • उनकी वीरगाथा हमें सदैव प्रेरित करती रहेगी।
  • भगत सिंह जैसे महान योद्धा का योगदान हमें हमेशा गर्व महसूस कराएगा।
  • उनकी विचारधारा और साहस हमें आज भी अपने देश के प्रति समर्पित रहने की प्रेरणा देते हैं।
  • भगत सिंह का संघर्ष हमें आज भी स्वतंत्रता के मूल्य को समझाता है।

भगत सिंह पर 20 लाइन निबंध हिंदी

  • भगत सिंह, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान योद्धा और क्रांतिकारी थे।
  • उन्होंने अपने बचपन से ही राष्ट्रप्रेम के प्रति आदर्शों को अपनाया।
  • भगत सिंह की शिक्षा में देशप्रेम के विचारों का महत्वपूर्ण स्थान था।
  • उन्होंने आंदोलनों में सक्रिय भाग लिया और अंग्रेज़ों के खिलाफ संघर्ष किया।
  • उनकी क्रांतिकारी आत्मा ने लोगों को स्वतंत्रता के लिए जागरूक किया।
  • भगत सिंह ने अपने संघर्ष से विश्वास दिलाया कि स्वतंत्रता मुक्ति का मार्ग है।
  • उनकी शहादत ने लोगों को साहस और समर्पण की शिक्षा दी।
  • उनके विचारों और आदर्शों ने नई पीढ़ियों को प्रेरित किया।
  • भगत सिंह का संघर्ष हमें यहाँ तक ले आया कि स्वतंत्रता के लिए कोई भी कठिनाई छोटी नहीं है।
  • उनकी वीरता और प्रेरणा हमें सदैव आत्मनिर्भर और समर्पित रहने की सीख देती है।
  • भगत सिंह की अमर यादें हमें हमेशा उनके बलिदान को समर्पित रहने के लिए प्रेरित करेंगी।
  • उनका संघर्ष हमें दिखाता है कि सच्चे देशभक्त कभी नहीं हारते।
  • उनकी विचारधारा और क्रांतिकारी भावना ने आज भी लोगों को प्रेरित किया है।
  • भगत सिंह के संघर्ष ने भारतीय समाज को जागरूक किया और सामाजिक उत्थान में सहायक बना।
  • उनके प्रेरणादायक विचारों ने लोगों को सामाजिक न्याय की ओर उत्साहित किया।
  • भगत सिंह की शहादत ने भारतीय जनता को एकत्रित किया और स्वतंत्रता की लड़ाई में सहयोग प्रदान किया।
  • उनका योगदान हमें स्वतंत्रता के महत्व को समझाता है और हमें स्वतंत्रता के लिए समर्पित रहने की प्रेरणा देता है।
  • उनके बलिदान ने हमें आत्मनिर्भरता की महत्वपूर्णता को समझाया।
  • भगत सिंह के संघर्ष और बलिदान ने भारतीय समाज को स्वतंत्रता के लिए उत्साहित किया और एक नये भारत की ओर अग्रसर किया।

इस ब्लॉग पोस्ट में हमने देखा कि भगत सिंह एक महान क्रांतिकारी थे जो अपने वीरता और समर्पण से देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया।

उनकी क्रांतिकारी भावना और उनका संघर्ष हमें यह सिखाते हैं कि जिस प्रकार से वे अपने जीवन को स्वतंत्रता के लिए समर्पित किया, हमें भी अपने देश के लिए कुछ करने की प्रेरणा लेनी चाहिए।

उनके बलिदान का महत्व हमें यह समझाता है कि हमें अपने स्वतंत्रता को महानतम समर्पण के साथ संरक्षित रखना है।

भगत सिंह जैसे महान योद्धा का योगदान हमें सदैव गर्वान्वित करेगा और हमें अपने देश के प्रति समर्पित बनाए रखने के लिए प्रेरित करेगा।

इसलिए, आज हमें उनके योगदान को समर्थन देना और उनके आदर्शों का अनुसरण करना चाहिए।

इस ब्लॉग पोस्ट में हमने भगत सिंह के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त की और उनके योगदान को समझा।

इस साथ, हमने उनकी वीरता और समर्पण की सराहना की है, जो हमें एक नया उत्साह और साहस प्रदान करते हैं।

"भगत सिंह पर निबंध" इस ब्लॉग पोस्ट ने हमें उनके जीवन और क्रांतिकारी योगदान को समझने में मदद की है और हमें उनकी वीरता को समर्थन देने के लिए प्रेरित किया है।

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Freedom Fighter Bhagat Singh Essay In Hindi | भगत सिंह पर निबंध 2024

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Table of Contents

भगत सिंह पर निबंध (Freedom Fighter Bhagat Singh Essay In Hindi)

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान योद्धा भगत सिंह का नाम विशेष गर्व और सम्मान के साथ याद किया जाता है। उनकी शौर्यगाथा, निष्ठा, और देशप्रेम ने उन्हें एक अद्वितीय राष्ट्रनायक बना दिया। इस निबंध में, हम भगत सिंह के उद्दीपक जीवन से उनके महत्वपूर्ण क्षणों को छूने का प्रयास करेंगे, जिससे हमें एक सशक्त राष्ट्रनायक के प्रति आदर और समर्पण की भावना मिलेगी।

सरदार भगत सिंह का जीवन परिचय

भारत के युवा क्रांतिकारी सरदार भगत सिंह का जन्म पाकिस्तान में मौजूद पंजाब के लायलपुर जिले के बाँध गाँव में 28 सितम्बर 1907 ई. में हुआ था। भगत सिंह के पिता का नाम किशन सिंह और माता जी का नाम विद्यावती था। इनके परिवार में देशभक्ति की भावना बहुत ज्यादा थी, इसीलिए भगत सिंह को देशभक्ति और क्रान्ति की भावना विरासत में मिली थी। इनके पिता, चाचा और दादी में राष्ट्रीयता की भावना होने के कारण भगत सिंह भी बचपन में ही वीर, निडर, साहसी और देशभक्त बन गए थे।

भगत सिंह की प्रारंभिक शिक्षा

भगत सिंह ने अपने गाँव के सरकारी स्कूल से अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूर्ण की थी। प्रारंभिक शिक्षा पूर्ण करने के उन्होंने डी. ए. वी. कॉलेज से वर्ष 1917 में हाईस्कूल की परीक्षा पास की। उसके बाद भगत सिंह ने नेशनल कॉलेज से बी. ए और एफ. ए. की परीक्षा पास की थी। पढाई के साथ साथ वह कई सारे देशभक्ति संगठनों में शामिल रहे थे।

चंद्रशेखर आजाद के साथ बनाई पार्टी

भगत सिंह ने देश के लिए नौजवान संस्थान की स्थापना भी की थी, उसी समय पर-पर प्रसिद्ध कुकरी कांड हुआ था। कूकरी कांड में शामिल राम प्रसाद बिस्मिल और उनके साथ चार महान क्रांतिकारियों को फांसी की सजा सुनाई गई, इसके अलावा इस कांड में शामिल अन्य 16 क्रान्तिकारियो को करावास की सजा दी गई। इस घटना ने भगत सिंह को बहुत ज्यादा परेशान और क्रोध से भर दिया, फिर वह चंद्रशेखर आजाद से मिले और आजाद की पार्टी हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के साथ जुड़ गए। कुछ समय बाद आजाद की पार्टी का नाम हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएश रख दिया गया।

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लाला लाजपत राय की मौत का बदला

ब्रिटिश शासन के विरोध में भारत में अनेको आंदोलन हुए थे, वर्ष 1928 में साइमन कमीशन का बहिष्कार करने के लिए बहुत भयानक विरोध प्रदर्शन किया गया था। इस विरोध प्रदर्शन में भगत सिंह के दोस्त लाला लाजपत राय ने भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था। ब्रिटिश शासन ने प्रदर्शन करने वाले सभी क्रांतिकारियो को भगाने के लिए लाठीचार्ज की गई, जिसमे अनेको क्रांतिकारियो को काफी गहरी चोटें आई। लाला लाजपत राय के सिर में लाठी लगने से उनकी मृत्यु हो गई थी।

भगत सिंह को जब इस घटना की जानकारी हुई तो वह बहुत ज्यादा क्रोधित हो गए और उन्होंने लाला की मौत का बदला लेने का निर्णय लिया। भगत सिंह ने लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने के लिए एक योजना बनाई, योजना के तहत भगत सिंह ने पुलिस सुपरिटेंडेंट मारने का फैसला किया। अपनी इस योजना में भगत सिंह ने राज गुरु को भी साथ में लिया, फिर दोनों ने 17 दिसम्बर 1928 को एसपी सांडर्स की गोली मार कर लाला लाजपत राय की मौत का बदला लिया था।

भगत सिंह की गिरफ्तारी

जलियांवाला बाग हत्याकांड और लाला लाजपतराय की मृत्यु से भगत सिंह को गहरा आघात पहुँचा। भगत सिंह से ब्रिटिश क्रूरता सहन नहीं हो पा रही थी, इसीलिए उन्होंने देश की जनता को जगाने का निर्णय लिया। भगत सिंह ने अपने चार साथियो के साथ संसद पर हमला करके गिरफ्तार होने का निर्णय लिया। उसके बाद भगत सिंह ने अपने साथियो के साथ विधानसभा सत्र के दौरान केंद्रीय संसद में बम फेंके, हालाँकि इन बम धमाकों में किसी प्रकार नुक्सान नहीं हुआ। उसके बाद ब्रिटिश शासन ने भगत सिंह और उनके साथियो को गिरफ्तार कर लिया।

गिरफ्तार होने के बाद भगत सिंह और उनके साथियो को कोर्ट में पेश किया गया। भगत सिंह ने कोर्ट में सुनवाई के दौरान बम बनाने के बारे में भी बताया। दरसल भगत सिंह चाहते थे की बम बनाने के तरीके के बारे में देश के अधिक से अधिक लोग जाने। कोर्ट में भगत सिंह और उनके चारो साथियो को दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।

भगत सिंह की मृत्यु

भगत सिंह को सजा मिलने के बाद देश में क्रांति की लहार दौड़ गई, पूरे देश में ब्रिटिश शासन के खिलाफ आंदोलन तेज होने लगें। बढ़ते आंदोलन को देख ब्रिटिश शासन डरने लगा ऐसे में ब्रिटिश शासन ने भगत सिंह और उनके साथियो को फांसी देने का निर्णय लिया। ब्रिटिश शासन ने नियमों के विरुद्ध 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा दे दी गयी। फांसी के समय पर सभी क्रांतिकारियो के चेहरे पर जरा-सा भी मृत्यु का भय नहीं था। उसके बाद आजादी के दीवाने ‘मेरा रंग दे बसंती चोला’ बोलते और हँसते हुए फांसी पर झूल गए।

ब्रिटिश शासन को पता था कि फांसी की खबर सुनने के बाद देश में क्रांति आ सकती है, इसीलिए ब्रिटिश शासन ने इन सभी के शरीर के छाए छोटे टुकड़ो में काट कर नदी में फेंक दिया था। भगत सिंह की मृत्यु की खबर देशवासियो को मिली तो पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई थी।

इस निबंध के माध्यम से हमने देखा कि भगत सिंह, एक सशक्त राष्ट्रनायक और अद्वितीय क्रांतिकारी थे, जिनकी शौर्यगाथा और देशप्रेम ने उन्हें आदर्श बना दिया। उनका जीवन एक योद्धा की भूमिका में सजीव हो उठा और उनकी बलिदानी मृत्यु ने देशभक्ति की नई ऊचाइयों की ओर पथ प्रदर्शित किया। भगत सिंह की शौर्यगाथा ने देश के युवाओं को सजग और साहसी बनाने का संदेश दिया, जिसे हमें सदैव याद रखना चाहिए। उनका आदर और समर्पण हमें अपने देश के प्रति अपने कर्तव्यों के प्रति सजग रहने का प्रेरणा स्रोत प्रदान करता है। इस प्रकार, भगत सिंह की शौर्यगाथा हमारे देश के स्वतंत्रता संग्राम की महक को हमारी यादों में सजीव रखती है।

ऊपर हमने आपको भारत के महान क्रांतिकारी भगत सिंह पर निबंध (Freedom Fighter Bhagat Singh Essay In Hindi) के बारे में जानकारी दी है। हम उम्मीद करते है कि आपको हमारे लेख में दी गई जानकारी पसंद आई हो तो इस लेख को अधिक से अधिक शेयर करके ऐसे बच्चो के पेरेंट्स तक पहुँचाने में मदद करें जिन्हे भगत सिंह पर निबंध लिखना हो।

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शहीद भगत सिंह पर निबंध Essay on Shaheed Bhagat Singh in Hindi

शहीद भगत सिंह पर निबंध Essay on Shaheed Bhagat Singh in Hindi

क्या आप भगत सिंह पर निबंध (Essay on Shaheed Bhagat Singh in Hindi) खोज रहे हैं यदि हां तो इस लेख को पढ़ने के बाद आपकी सारी तलाश पूरी होने वाली है। इस लेख में शहीद भगत सिंह पर निबंध बहुत ही सरल शब्दों में लिखा गया है।

Table of Contents

प्रस्तावना (शहीद भगत सिंह पर निबंध Essay on Shaheed Bhagat Singh in Hindi)

भारत  की पवित्र माटी पर एक बार नहीं बल्कि कई बार महान आत्माओं ने जन्म लिया है और भारत को महान बलिदानों की भूमि बनाया है। ऐसे ही महापुरुषों में से एक भारत माता के प्यारे शहीद भगत सिंह ने देश के लिए खुद को बलिदान कर दिया।

भगत सिंह का ताल्लुक एक किसान परिवार से था। उनके माता पिता आर्य समाज के विचारों से बहुत प्रभावित थे और उनकी राह पर ही चलते थे। जिसका असर बचपन से ही भगत सिंह पर होने लगा था।

उन्होंने अपनी शिक्षा छोटे से गांव से प्रारंभ की और प्रारंभिक शिक्षा पूरा करने के बाद उनका दाखिला लाहौर में स्थित एक कॉलेज में हुआ।

भगत सिंह के पिता तथा चाचा ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आंदोलन करते थे जिसके लिए जेल भी जाना पड़ा था। ऐसे देश भक्ति माहौल में जन्म लेने से बचपन से भगत सिंह के अंदर देश प्रेम की भावना जागने लगी थी।

जब भगत अपनी कॉलेज की पढ़ाई कर रहे थे उसी समय पूरे देश में ब्रिटिश सरकार के विरोध मैं कई उग्र आंदोलन चलाए जा रहे थे। हिंदुस्तान को अंग्रेजी हुकूमत से स्वतंत्र करने के लिए भगत सिंह ने अपना सब कुछ त्याग दिया और देश हित में चलाए जाने वाले संगठन में जुड़ गए।

देश के लिए लड़ते लड़ते भगत सिंह को आखिर में ब्रिटिश सरकार द्वारा फांसी पर चढ़ा दिया गया। आज भले ही भगतसिंह हमारे बीच नहीं है किंतु उनके विचार उनके द्वारा किए गए काम सदा ही हमारे दिल में जीवित रहेंगे।

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प्रारंभिक जीवन Early life of Bhagat Singh in Hindi

भगत सिंह का जन्म वर्तमान पाकिस्तान के पंजाब में लायलपुर जिला के बंगा गांव में 27 सितंबर 1907 में हुआ था। भगत सिंह के पिता का नाम सरदार किशन सिंह तथा माता का नाम विद्यावती कौन था।

 भगत सिंह के जन्म से पहले उनके पिता और दो चाचा अजीत सिंह और स्वर्ण सिंह को अंग्रेजो के खिलाफ प्रदर्शन करने के जुर्म में जेल में बंद कर दिया गया था। 

जिस समय भगत सिंह का जन्म हुआ उसी समय उनके पिता और चाचा भी जेल से रिहा हुए थे। उस समय भगत के घर में  जैसे खुशियों का लहर छा गया था।  भगत सिंह की दादी ने उनका नाम  भागो वाला रखा था जिसका अर्थ होता है भाग्यशाली। बाद में उन्हें भगत सिंह कहकर पुकारा जाने लगा।

देशभक्ति का  रंग शुरुआत से ही भगत सिंह पर पड़ने लगा था। ब्रिटिश सरकार की भारतीयों के प्रति किए जाने वाले क्रूर जुल्म से भगत सिंह इतने आहत थे कि उनके मन में अंग्रेजों के प्रति  घृणा की आग जलने लगी थी।

शिक्षा Education of Bhagat Singh in Hindi

भगत सिंह को स्कूल जाना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था। जब उनसे पूछा जाता था की वह क्यों स्कूल नहीं जाते हैं तो उनका एक ही जवाब होता था की ब्रिटिश हुकूमत में चलने वाली स्कूलों में पढ़ कर उनकी नौकरी करने से बेहतर है कि देश के स्वतंत्रता में खुद को तपा दिया जाए।

भगत सिंह की प्रारंभिक शिक्षा उनके ही गांव के एक प्राइमरी स्कूल से हुई। प्राथमिक शिक्षा पूर्ण होने के बाद उनका दाखिला लाहौर के डी.ए.वी  कॉलेज  में हुई थी।भगत सिंह ने अपनी कॉलेज की पढ़ाई करने के बाद नेशनल कॉलेज से  बीए. की पढ़ाई  की।

कॉलेज में पढ़ने के दौरान ही उनकी मित्रता बटुकेश्वर दत्त से हुई। इसके बाद भगत की मुलाकात कई अन्य नौजवानों से हुई जो देश के स्वतंत्रता में योगदान देना चाहते थे।।

क्रांतिकारी के रूप में उनके महान कार्य Bhagat Singh as A Revolutionary

13 अप्रैल 1999 को बैसाखी के दिन अमृतसर में स्थित स्वर्ण मंदिर के पास जलिया वाले बाग में रोलेट एक्ट के विरोध में एक सभा आयोजित की गई थी।

इस सभा के बारे में पता लगने के बाद अंग्रेजी ऑफिसर जनरल डायर ने अपने कुछ लोगों के साथ आकर बिना किसी चेतावनी के सभी लोगों पर गोलियों की बौछार कर दी। जिससे कई लोगों की जान गई और बहुत सारे लोग घायल भी हुए।

भगत सिंह को इस बात का पता लगा तो वह केवल 12 वर्ष के थे और अपने स्कूल से 12 मील दूर पैदल चलकर जलिया वाले बाग पहुंच गए। उन्होंने अपने ही लोगों की लाशों की ढेर देखी भगत सिंह अपने आंसू रोक नहीं पाए।

जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद भगत सिंह ने वहीं खड़े रहकर जमीन से कुछ लाभ उठाकर अपने सिर पर लगा लिया और कसम खाई कि वह देश को स्वतंत्रता दिला कर ही रहेंगे।

1 अगस्त 1920 में इस घटना के विरोध में गांधी जी तथा उनके साथियों द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाया गया जिसमें पश्चिमी देशों में बनने वाले हर एक चीज का बहिष्कार किया जाने लगा।

गांधी जी के विदेशी बहिष्कार विचारधारा से  भगत सिंह बहुत प्रभावित हुए। गांधीजी को आदर्श मानकर उनके समर्थन में आ गए थे।

4 फरवरी 1922 में अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में स्वयंसेवकों द्वारा  उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले  के चौरी चौरा में जुलूस निकाला जा रहा था।

इसी दौरान पुलिस और स्वयंसेवकों के बीच हिंसक झड़प  हो गई और पुलिस वालों ने भीड़ पर गोलियां चला दी जिससे कुछ लोगों की जान चली गई और कई लोग घायल हो गए।

हिंसक हुई भीड़ ने यहां के पुलिस स्टेशन में आग लगा दिया जिससे 22 पुलिसकर्मियों की मौत हो गई। इस घटना के बाद गांधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन को वापस ले लिया। आंदोलन वापस लेने के बाद भगत सिंह को गहरा सदमा पहुंचा और उन्होंने गांधी जी से मनभेद कर लिया।

भगत सिंह ने  लाहौर में अपने नेशनल कॉलेज की पढ़ाई पूरी किए बिना ही राष्ट्रवादी संगठनों में जुड़ गए और नौजवान भारत सभा की स्थापना की।  इसका उद्देश्य नौजवानों को इकट्ठा  करना था।

कुछ समय बाद भगत सिंह चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में स्थापित किए गए गदर दल से जुड़े जहां उनकी मुलाकात राम प्रसाद बिस्मिल तथा अन्य कई क्रांतिकारी से हुई।

काकोरी कांड को अंजाम देने के बाद राम प्रसाद बिस्मिल जैसे अपने ही 4 क्रांतिकारियों साथियों के फांसी के बाद देश प्रेम की भावना इनमें इतनी बढ़ गई कि भगत ने चंद्रशेखर आजाद के साथ उनकी पार्टी हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन से जुड़ गए और उसे हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन नया नाम दिया।

1928 में साइमन कमीशन के विरोध में लोगों का प्रदर्शन हुआ था जिसमें अंग्रेजी सैनिकों ने लोगों पर लाठीचार्ज किया जिसमें लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई। बदला लेने के लिए 17 दिसंबर 1928 को भगत सिंह राजगुरु और जयगोपाल ने योजना बनाकर अंग्रेजी ऑफिसर सॉरडर्स की गोली मारकर हत्या कर दी।

8 अप्रैल 1929 को केंद्रीय असेंबली में अपने साथियों के साथ मिलकर बम फेंक दिया जिसके बाद इन्हें और उनके क्रांतिकारी साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया।

निजी जीवन Personal Life of Bhagat Singh in Hindi

भगत सिंह का हृदय केवल और केवल भारत माता के लिए ही धड़कता था। एक बार इनके माता-पिता ने इनसे बिना राय लिए ही इनकी शादी करने का फैसला कर लिया जिसका पता लगने पर भगत सिंह ने बिना किसी को बताए घर से भाग गए और क्रांतिकारी संगठनों में जुड़ गए।

 भगत सिंह एक नास्तिक थे। उन्हें ईश्वर में बिल्कुल भी विश्वास और श्रद्धा नहीं था। जेल में रहने के दौरान ही भगत सिंह ने कई डायरिया और किताबें भी लिखी। 

उन्होंने अंग्रेजी भाषा में एक लेख भी लिखा था जिसका शीर्षक था ‘मैं नास्तिक क्यों हूं?’ जो उस समय कई लेखों में चर्चा का केंद्र बना हुआ था।  

मृत्यु Death of Bhagat Singh in Hindi

1929 में केंद्रीय असेंबली में  बम फेंकने से पहले ही इन्होंने सोच लिया था कि उन्हें जो भी सजा दी जाएगी उसे स्वीकार कर लेंगे। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने मिलकर जानबूझकर ऐसी जगह बम फेंका था जहां पर लोग मौजूद न हो।

घटना के बाद अंग्रेजी ऑफिसर द्वारा सभी को गिरफ्तार कर लिया गया। 26 अगस्त 1930 को भारतीय दंड संहिता के आधार पर भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा सुना दी गई।

देश के कई भारतीय वकीलों ने इस सजा को टालने की कोशिश की किंतु ब्रिटिश सरकार द्वारा उन्हें नजरअंदाज कर दिया गया। 

 23 मार्च 1930 की शाम को उन तीनों अमर क्रांतिकारियों को फांसी दे दी गई। उस समय वहां पर जो भी भारतीय उपस्थित थे वे अपने आंसू रोक नहीं पाए। 

ऐसा बताया जाता है कि जब भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु फांसी के लिए ले जाए जा रहे थे तब वह एक ही गीत गुनगुना रहे थे –  मेरा रंग दे बसंती चोला..

फांसी होने के बाद अंग्रेजी सरकार  लोगों के उमड़ रहे भीड़ को देखकर इतना खौफ में आ गई थी के उन शहीदों के मृत शरीर के टुकड़े करके बोरी में भरकर फिरोजपुर ले जाकर मिट्टी के तेल से जला दिया।

जब लोगों को इस बात का पता लगा तो उसी दिशा में आगे बढ़ने लगे। लोगों की भीड़ आते देख अंग्रेजों ने बचे कुचे टुकड़ों को नदी में फेंक दिया और वहां से भाग गए।

जब गांव वाले पास आए तब उन्होंने उनके मृत शरीर के टुकड़ों को एकत्रित करके विधिवत दाह संस्कार किया। 

शहीद भगत सिंह पर 10 लाइन 10 lines on Shaheed Bhagat Singh in Hindi

  • भगत सिंह का जन्म वर्तमान पाकिस्तान के पंजाब में लायलपुर  जिला के बंगा गांव में 27 सितंबर 1907 में हुआ था। 
  • शहीद भगत सिंह के पिता का नाम सरदार किशन सिंह तथा माता का नाम विद्यावती कौन था।
  • उनका पूरा परिवार दयानंद सरस्वती से प्रभावित होकर आर्य विचारधारा को अपने जीवन में अपना लिया था। 
  •  भगत सिंह के जन्म से पहले उनके पिता और दो चाचा अजीत सिंह और स्वर्ण सिंह को अंग्रेजो के खिलाफ प्रदर्शन करने के जुर्म में जेल में बंद कर दिया गया था। 
  • शहीद भगत सिंह की दादी ने उनका नाम  भागो वाला रखा था जिसका अर्थ होता है भाग्यशाली। बाद में उन्हें भगत सिंह कहकर पुकारा जाने लगा।
  •  भगत सिंह की प्रारंभिक शिक्षा उनके ही गांव के एक प्राइमरी स्कूल से हुई। प्राथमिक शिक्षा पूर्ण होने के बाद उनका दाखिला लाहौर के डी.ए.वी  कॉलेज  में हुई थी।
  • शहीद भगत सिंह को जलियांवाला बाग हत्याकांड बात का पता लगा तो वह केवल 12 वर्ष के थे और अपने स्कूल से 12 मील दूर पैदल चलकर जलिया वाले बाग पहुंच गए।
  •  गांधी जी के विदेशी बहिष्कार विचारधारा से  भगत सिंह बहुत प्रभावित हुए। गांधीजी को आदर्श मानकर उनके समर्थन में आ गए थे।
  • भगत ने चंद्रशेखर आजाद के साथ उनकी पार्टी हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन से जुड़ गए और उसे हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन नया नाम दिया।
  • उन्होंने एक लेख भी लिखा था जिसका शीर्षक था ‘मैं नास्तिक क्यों हूं?’ जो उस समय कई लेखों में चर्चा का केंद्र बना हुआ था।  

निष्कर्ष conclusion

इस लेख में आपने भगत सिंह पर निबंध (Essay on Shaheed Bhagat Singh in Hindi) हिंदी में पढ़ा। आशा है यह लेख आपको पसंद आया होगा अगर यह लेख आपको अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरुर करें।

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भगत सिंह पर निबंध (Bhagat Singh Essay In Hindi)

भगत सिंह पर निबंध (Bhagat Singh Essay In Hindi Language)

आज के इस लेख में हम भगत सिंह  पर निबंध (Essay On Bhagat Singh In Hindi) लिखेंगे। भगत सिंह पर लिखा यह निबंध बच्चो और class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए लिखा गया है।

भगत सिंह पर लिखा हुआ यह निबंध (Essay On Bhagat Singh In Hindi) आप अपने स्कूल या फिर कॉलेज प्रोजेक्ट के लिए इस्तेमाल कर सकते है। आपको हमारे इस वेबसाइट पर और भी कही विषयो पर हिंदी में निबंध मिलेंगे, जिन्हे आप पढ़ सकते है।

प्रस्तावना 

भारत को आजाद कराने के लिए बहुत से ही स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया। ऐसे ही स्वतंत्र सेनानियों में भगत सिंह का नाम भी आता है, जो भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी रहे थे।

भगत सिंह ने चंद्रशेखर आजाद और उनकी पार्टी के साथ मिलकर देश की आजादी के लिए बड़े साहस पूर्वक ब्रिटिश सरकार का मुकाबला किया था। भगत सिंह ने सबसे पहले सांडर्स की हत्या कर दी, उसके बाद में दिल्ली संसद में बम विस्फोट किया।

यह बम विस्फोट ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध था। भगत सिंह ने असेंबली में बम फेंका और उसके बाद वहां से भागने से मना कर दिया। जिसके कारण इन्हें और उनके साथियों को राजगुरु और सुखदेव के साथ में फांसी पर लटका दिया गया था।

आज सारा देश इनके बलिदान की गाथा गाता हैं। भगत सिंह का दिया हुआ बलिदान आज भी इतिहास में लिखा गया है। इन्होंने देश को आजाद कराने के लिए अपने प्राणों तक की परवाह नहीं की।

भगत सिंह का जन्म

भगत सिंह का जन्म 19 अक्टूबर 1996 हुआ था। भगत सिंह के पिता जी का नाम सरदार किशन सिंह संधू था और उनकी माता का नाम विद्यावती कौन था। भगत सिंह जाट समाज से संबंध रखते थे।

जब अमृतसर में 13 अप्रैल 1919 को जग जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ, तो भगत सिंह की सोच पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। भगत सिंह जी ने जलिया वाले बाग हत्याकांड के बाद लॉकिंग नेशनल कॉलेज की पढ़ाई को छोड़कर भारत को आजादी दिलाने के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना कर दी थी।

काकरोली कांड

जब काकरोली कांड हुआ तो उसमें राम प्रसाद बिस्मिल के साथ में चार क्रांतिकारियों को फांसी दे दी और 16 अन्य लोगों को कारावास की सजा दी। जिसके कारण भगत सिंह को अधिक गुस्सा आया और उन्होंने चंद्र शेखर आजाद के साथ में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन में जुड़ गए।

उन्होंने इसका एक नया नाम दिया हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन। भगत सिंह द्वारा इस एसोसिएशन में जुड़ने के बाद इस संगठन का उद्देश्य सेवा त्याग पीड़ा झेल सकने वाले नव युवकों को आजादी की लड़ाई के लिए तैयार करना था।

भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर 14 दिसंबर 1926 में लाहौर में अंग्रेज अधिकारी के पुलिस अधीक्षक सांडर्स को मार दिया था। सांडर्स को मारने के लिए चंद्रशेखर आजाद ने इनकी मदद की थी।

जब उन्होंने सेंट्रल असेंबली के संसद भवन के अंदर बम फेंकने की योजना बनाई, तब बटुकेश्वर दत्त ने इनका साथ दिया था। और भगत सिंह ब्रिटिश सरकार के सेंट्रल असेंबली में जो कि दिल्ली में स्थित थी 4 अप्रैल 1929 को बम और पर्चे देखे थे।

बम फेंकने के बाद भी भगत सिंह ने वहां से भागने से मना कर दिया और उन्हें और उनके दोनों साथियों को ब्रिटिश पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया।

जलियांवाला बाग हत्याकांड

भारत में जब जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ था। तब भगत सिंह की उम्र करीब 12 वर्ष की थी। इस बात की सूचना मिलते ही भगत सिंह ने अपने स्कूल को छोड़कर 12 मील की पैदल यात्रा करके जलियांवाला बाग पहुंच गए थे।

जब भगत सिंह 12 साल के थे तब वह अपने चाचा की क्रांतिकारी किताबों को पढ़ा करते थे। भगत सिंह हमेशा विचार करते थे कि यह रास्ता सही है या नहीं। जब गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को रद्द कर दिया था तो इनके अंदर थोड़ा गुस्सा उत्पन्न हुआ था, परंतु यह पूरे देश की तरह गांधी जी का सम्मान करते थे।

इन्होंने बहुत से जुलूस में भाग लेना शुरू कर दिया था और बहुत से क्रांतिकारी दलों के सदस्य बन चुके थे। इनके क्रांतिकारी दोनों में से चंद्रशेखर आजाद, सुखदेव और राजगुरु खास थे।

साइमन कमीशन का बहिष्कार

जब देश में साइमन कमीशन का बहिष्कार चल रहा था, तब ब्रिटिश सरकार ने प्रदर्शन करने वाले लोगों पर लाठी चार्ज कर दी थी। इस लाठीचार्ज के अंदर लाला लाजपत राय जी की मृत्यु हो गई थी। लाला लाजपत राय जी की मृत्यु के बाद इनसे रहा नहीं गया था और एक गुप्त योजना बनाई, उन्होंने पुलिस सुपरीटेंडेंट स्कॉट को मारने की योजना बना ली।

इनके द्वारा सोची गयी योजना के अनुसार भगत सिंह और राजगुरु दोनों कोतवाली के सामने घूम रहे थे और दूसरी तरफ जय गोपाल अपनी साइकिल को ठीक करने का बहाना कर रहे थे।

सोची गई योजना के अनुसार जय गोपाल ने जब भगत सिंह और राजगुरु को इशारा किया तो दोनों सचेत हो गए। इस योजना के अंदर चंद्रशेखर आजाद भी शामिल थे जो चारदीवारी के पीछे छिपकर घटना को अंजाम देने वाले लोगों की रक्षा का काम कर रहे थे।

जैसे ही एसपी सांडर्स आते हुए दिखे तो सतगुरु ने गोली सीधी सर के अंदर मारी जिसके बाद सांडर्स बेहोश हो गया। वीर भगत सिंह ने तीन चार गोलियां दागकर उन्हें मार दिया। जब यह भाग रहे थे तो एक सिपाही चरण सिंह ने उनका पीछा किया।

चंद्रशेखर जी ने सावधान किया और कहा आगे बढ़े तो गोली मार दूंगा। परंतु चरण सिंह ने उनकी बात नहीं मानी तो चंद्रशेखर आजाद ने उन्हें गोली मार दी इस तरह भगत सिंह ने लाला लाजपत राय की मोत का बदला लिया।

जेल के अंदर की कहानी

भगत सिंह ने जब असेंबली के अंदर बम फेंका उसके बाद वहां से भागे नहीं, जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तार करने के बाद भगत सिंह को करीब 2 साल तक जेल में रखा गया। जेल के अंदर भगत सिंह अपने क्रांतिकारी विचारों से व्यक्त सभी विचारों को लेख में लिखते थे।

जब भगत सिंह जेल में रहते थे तब भी उन्होंने अपना अध्ययन लगातार जारी रखा। उनके द्वारा लिखे गए लेखों को उनके संबंधियों को भेज दिया गया था, जो आज भी उनकी जान को दर्पण देते हैं।

भगत सिंह ने बहुत से पूंजी पतियों को अपना दुश्मन बताया था, उन्होंने लिखा था कि चाहे मजदूरों का शोषण करने वाले कोई भी हो। उनके दुश्मनों पर उन्होंने जेल में अंग्रेजी में एक लेख लिख दिया जिसका नाम था मैं नास्तिक क्यों हूं।

जेल के अंदर भी भगत सिंह ने अपने साथियों के साथ में 64 दिनों तक भूख हड़ताल कर ली। इस भूख हड़ताल के अंदर उनके साथी यतींद्र नाथ दास ने अपने प्राण दे दिए।

फांसी के लिए माफी

भगत सिंह को 26 अगस्त 1930 में अदालत में भारतीय कानून के अनुसार धारा 129 व 302 के तहत और धारा चार और 6 कि धारा 120 के तहत अपराध करने के जुर्म में प्रति घोषित कर दिया।

7 अक्टूबर 31 को अदालत में 68 पन्नों का निर्णय लिया गया, जिसके अंदर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी सुनाने का फैसला किया गया। इन्होंने फांसी की सजा सुनाई जाने के साथ ही लाहौर में धारा 144 लगा दी।

इसके बाद में भगत सिंह ने फांसी की माफी के लिए हाई परिषद में भी अपील कि परंतु 10 जनवरी 1931 को इसे खारिज कर दिया गया। इसके बाद में कांग्रेस के अध्यक्ष मदन मोहन मालवीय के द्वारा वायसराय से माफी मांगने का निर्णय लिया।

जब 14 फरवरी 1931 को उन्होंने माफी के लिए अपील दायर करी, तो उन्होंने अपने विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए मानवता के लिए फांसी की सजा माफ करने के लिए अपील की।

भगत सिंह की फांसी की सजा रोकने के लिए महात्मा गांधी ने भी वायसराय से बात की। यह सब कुछ भगत सिंह की इच्छा के खिलाफ हो रहा था और भगतसिंह नहीं चाहते थे कि उनकी सजा माफ की जाए।

फासी का समय

जब 23 मार्च 1931 को शाम 7:00 बचकर 33 मिनट पर भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी दे दी गई, तब उन्होंने फांसी पर चढ़ने से पहले उनकी आखिरी इच्छा पूछी गई। तो उन्होंने कहा कि वह लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे, बस उन्हें उसे पूरा करने का समय दिया जाए।

परंतु फांसी का समय नजदीक आ चुका था तो उन्होंने मना कर दिया। पहले उन्होंने कहा रुको क्रांतिकारियों को एक दूसरे से मिलने दो फिर 1 मिनट बाद में उन्होंने किताब को ऊपर छत पर रेखा और कहां ठीक है और भगत सिंह और उनके साथी ने मस्ती से गीत गया।

वह गीत था मेरा रंग दे बसंती चोला। फांसी के बाद में कोई आंदोलनकारी भड़क ना जाए इसलिए अंग्रेजों ने डरकर पहले भगत सिंह और उनके साथियों के टुकड़े किए फिर बोरी में भर के फिरोजपुर गए।

वहां पर जाकर उन्होंने मिट्टी का तेल डालकर जलाया। जब गांव वालों ने आंखों देखा तो पास में आए। जब गांव वालों को पास आता देखकर अंग्रेजों को डर लगा तो उनको आधा जलाकर सतलुज नदी के अंदर फेंक कर भाग गए। जब सभी गांव वाले पास में आए तो उन्होंने उन टुकड़ों को इकट्ठा किया और विधिवत रूप से उनका दाह संस्कार किया।

आज भी जब भगत सिंह जी के इस बलिदान को पढ़ा जाता है या सुना जाता है, तो भारत के हर उस नौजवान के अंदर अंग्रेजो के खिलाफ गुस्सा पैदा हो जाता है। भगत सिंह के बलिदान को भारत कभी नहीं भूल सकता। भगत सिंह ने प्राण देकर देश को आजाद कराने में अपनी भूमिका निभाई थी। आज भगत सिंह का नाम सुनहरे अक्षरों में इतिहास में लिखा गया है।

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तो यह था भगत सिंह पर निबंध, आशा करता हूं कि भगत सिंह पर हिंदी में लिखा निबंध (Hindi Essay On Bhagat Singh ) आपको पसंद आया होगा। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा है, तो इस लेख को सभी के साथ शेयर करे।

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essay on freedom fighter bhagat singh in hindi

Essay on Bhagat Singh in Hindi

भारत एक ऐसा देश है जो कई बार गुलाम बन चुका है परंतु इसकी आजादी गर्व पूर्ण हम सबको प्राप्त हुई है। इसकी आन बान शान बचाने के लिए ना जाने कितनी ही वीर शहीद हो गए परंतु देश को कभी कोई आंच नहीं आने दी। ऐसे ही एक क्रांतिकारी अमर शहीद भगत सिंह की बात हम आज कर रहे हैं। अमर शहीद भगत सिंह (Essay on Bhagat Singh in Hindi) का नाम सुनकर ही छाती गर्व से चोरी हो जाती है एक सिख थे वह परंतु हमेशा के लिए लोगों के दिलों में बस कर रह गए।

अमर शहीद भगत सिंह का जन्म 1907 में 27 सितंबर को लायलपुर जिला के बांदा में हुआ था जो कि डिवीजन के बाद पाकिस्तान हो गया है। उनके पिता का नाम किशन सिंह था जो अंग्रेजों के अंदर में कार्य करते थे। उनकी माता विद्यावती उनके साथ और भी पुत्रों को एक साथ भारत की वीर कहानियां सुनाया करती थी। भगत सिंह बचपन से ही भारत को अपनी माता व जननी समझते थे जिस कारण भारत के खिलाफ एक भी शब्द सुनना पसंद नहीं करते थे। उनकी यही इच्छा पढ़कर उन में समाती गई और उन्हें शहीद होने के लिए प्रेरित करती गई। धीरे-धीरे उनका यह जिज्ञासा बढ़कर उनकी रूचि बन गई अब वह अपनी सारी जिंदगी को भारत पर न्योछावर करने के लिए तत्पर रहते थे। अंग्रेजों द्वारा भारत को और भारत वासियों को कष्ट दिया जाता।

Table of Contents

क्रांतिकारी आंदोलन (Revolutionary Movement)

उस वर्ष भगत सिंह केवल 12 साल के थे जब जलिया वाले बाग की कांड की घटना सामने आई। उस वर्ष भारत के हजारों क्रांतिकारी आंदोलन में जलियांवाला बाग के मैदान में बैठे थे अचानक ही अंग्रेजों ने उन पर हमला कर दिया देखते-देखते जलिया वाले बाग की मिट्टी लाल हो गई वहां का कुआं लाशों से भर गया। बच्चे बूढ़े आदमी औरत अंग्रेजों ने किसी को नहीं बख्शा वह सब पर विस्फोट और गोलियां चलाते गए। जो बच गया उसके घर में पहुंचकर उसको मार दिया गया और जो भी आंदोलन में बैठा उसे मौत की नींद सुला दिया गया। उस समय शहीद (Essay on Bhagat Singh in Hindi) अपने स्कूल में थे जब उन्हें यह बात पता चली वह अपने बसते को छोड़कर दौड़ते हुए जलिया वाले बाग की ओर चले गए ओर वहां पहुंचकर जो उन्होंने देखा उनकी आंखें नम हो गई।

जो जलियांवाला बाग हरा भरा हर आवाजाही से व्यस्त रहता था आज वह सुनसान और भयावह लग रहा था, और लाशें बिखरी पड़ी थी कहीं किसी का शव निरंता पड़ा हुआ था तो वहीं कहीं किसी के शव पर उसके परिजन फूट-फूट कर रो रहे थे। जलिया वाले बाग की मिट्टी को देखकर ऐसा लग रहा था मानो वह खून की होली खेली गई हो यह सब सोच सोच कर ही शहीद की आंखें आंसुओं की धारा से भर उठी। उनके मन में यह सवाल उठने लगा कि क्या हिंदुस्तानी होना जुर्म है क्या वे आजादी से कभी नहीं जी पाएंगे और यदि कोई उन्हें आजादी नहीं मिला पाया तो क्या वह हमेशा गुलाम बन कर रह जाएंगे। भारत हमारा देश है हम इसे ऐसे नहीं छोड़ सकते उनके मन में ऐसे ऐसे विचार आने लगे मानो आज ही वही अंग्रेजों द्वारा किए गए अत्याचारों का बदला ले लेंगे परंतु उन्होंने अपने आप को युवा होने तक प्रतीक्षा की।

भगत सिंह का युवा दौर (Bhagat Singh Youth Era)

शहीद वीर भगत सिंह बचपन से ही अपने भारत पर होते जुल्मों को देख कर बड़े होते हुए| जब युवा दौर में आए तो उन्हें कॉलेज के समय कई सारे नाटक में भूमिका निभाने का भार मिला। जब भी वे किसी नाटक में भाग लेते तो उन्हें हमेशा अंग्रेजों का किरदार मिलता जिस चीज से भगत सिंह के मन में यह बैठ गया कि जिस दिन में अंग्रेजों को दूर कर दूंगा उस दिन मेरा यह नाटक किसी कार्य नहीं आएगा और यह होकर रहेगा। भगत सिंह (Essay on Bhagat Singh in Hindi) ने बहुत सारे निबंधों की रचना की है जोकि अब भी विद्यमान है उन सब में उन्होंने केवल अपने भारत के ऊपर होते जुल्मों के बारे में विस्तार पूर्ण लिखा है जिसे पढ़कर आपको ऐसा लगे की मानो यह सब हमारी आंखों के सामने हो रहा है। युवा दौर में कदम रखते ही वे अपने देश को आजाद कराने के सपने देखने लगे धीरे-धीरे उनका मनोबल बढ़ता गया और उन में विद्रोह की भावना जागने लगी।

स्वतंत्रता में भगत सिंह का सहयोग (Bhagat Singh Coperation in Independence)

देखा जाए तो आजादी के लिए बहुत सारे क्रांतिकारियों ने अपने सहयोग दिए हैं परंतु यह कम आयु क्रांतिकारी ऐसे थे जिन्होंने आजादी को ही अपना भाई बंधु पत्नी व दुनिया मान लिया था। उनके लिए आजादी सब कुछ थी बचपन से देखते आए अत्याचारों का बदला उन्हें अंग्रेजों से लेना था परंतु इसके लिए उन्हें सैन्य की आवश्यकता थी।

यदि आजादी मिल के सहयोग की बात की जाए तो इनके कारण ब्रिटिश को यह अंदाजा हो गया था कि हिंदुस्तानी यदि चाहे तो क्या नहीं कर सकते वह आजादी के लिए जान दे भी सकते हैं और जान ले भी सकते हैं। डर की भावना उनके मन में भगत सिंह द्वारा उत्पन्न की गई थी।

चंद्रशेखर से मिलाप (Meeting With Chadrashekhar Azad)

सन् 1926 मैं नौजवान भारत सभा में भगत सिंह को सेक्रेटरी बना दिया और इसके बाद सन् 1928 में उन्होंने हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) को ज्वाइन किया। यह आंदोलन वीर शहीद चंद्रशेखर आजाद द्वारा 28 अक्टूबर 1928 में बनाया गया था। जिसके अंतर्गत भारतीयों को सोशलिस्ट के खिलाफ आंदोलन करना था इस एसोसिएशन में वे हिंदुस्तान की सर जमी को आजाद करना चाहते थे।

इसी दौरान भगत सिंह की मित्रता आजाद से हुई परंतु आजाद को इस रिपब्लिक आंदोलन के कारण गिरफ्तार करने की घोषणा कर दी गई। आजाद का कहना था कि यदि मरो तो वीरों की मौत मरो। आजाद को जब चारों तरफ से घेर लिया गया तो उन्होंने खुद को ही एक गोली मार ली क्योंकि उनकी बंदूक में केवल एक गोली बची थी और ब्रिटिश कई सारे थे।

लाहौर वापसी:

उन ही सालों भगत सिंह जब खोजबीन के लिए ब्रिटिश के ऑफिस में थे तो गलती से उनके हाथों एक ब्रिटिश हवलदार की हत्या हो गई जिसके बाद उनके वेशभूषा को पहचानने वाले उनकी खोज करने लगे। सीख की तो अलग ही पहचान होती है। लंबे बाल लंबी दाढ़ी और कुर्ता पजामा का पोशाक भगत सिंह को पहचानना कोई कठिन कार्य नहीं था। इन्हीं दौरान शहीद राजगुरु और सुखदेव से मिल चुके थे उनकी मदद से उन्होंने लाहौर वापस जाने का फैसला किया।

लाहौर जाने के लिए उन्हें रेलगाड़ी की जरूरत होती परंतु वेशभूषा को पहचान जाने पर उनकी हत्या कर दी जाती। इसलिए उन्होंने अपने देश को बचाने के लिए अपनी बाल व दाढ़ी कटवा ली। अंग्रेजों की पोशाक पहनी और आराम से लाहौर वापस लौट आए।

भगत सिंह की गिरफ्तारी (Bhagat Singh Arrest)

अभी भगत सिंह ने आंदोलन शुरू ही किया था कि उनकी गिरफ्तारी करा दी गई। गिरफ्तारी भी कैसी खुद के द्वारा। उन दिनों कोर्ट में बटुकलाल केस की छानबीन हो रही थी। तब ही 7 अक्टूबर 1930 में अदालत में किए गए नाटकीय द्वारा भगत सिंह को गिरफ्तार किया गया। उस दिन भगत सिंह ने एक योजना बनाई जिसके अंतर्गत उन्होंने कोर्ट के खाली मैदान पर केवल आवाज करने वाली बम फेंके जो केवल आवाज करते हैं किसी को हानि नहीं पहुंचा सकते उनका मकसद क्या था कि वह अंग्रेजों को दिखा सके कि उनके जमीन पर भी आंदोलन कर सकते हैं। परंतु जब वे इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगा रहे थे तभी उन्हें अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार कर लिया और राजगुरु सुखदेव संग शहीद को जेल की और फांसी की सजा दे दी गई।

शहीद को जेल और फांसी:

भारतवासी को गिरफ्तार करना वह भी क्रांतिकारी को अंग्रेजों के लिए गर्व की बात थी। परंतु जेल में शहीद के साथ ऐसी ऐसी वेतन आएगी जो देखने व सुनने से ही भयावह लगता है। शहीद को 3 दिन तक खाना नहीं दिया जाता पानी नहीं पिलाया जाता यहां तक की उन्हें मारा और गालियां दी जाती है ताकि वे अपने हिंदुस्तान को और अपने सर जमी को छोड़ दे। परंतु भगत सिंह बचपन से ही अपने आप को भारत का अभिन्न मानते थे उन्होंने यह सब सह लिया।

अब वह दिन आ गया था जब शहीद को फांसी दी गई थी उस समय लाहौर में धारा 144 लगा दी गई थी ताकि कोई विद्रोह ना कर सके। शहीद को 23 मार्च 1931 को शाम के करीब 7:00 बजे फांसी देनी थी जोकि नियमों के खिलाफ था परंतु तब अंग्रेजों का शासन हुआ करता था कौन क्या बोलता। जब सहित फांसी के लिए चलने को कहा गया और उनकी आखिरी इच्छा पूछी तो उन्होंने कहा कि मैं जो पुस्तक अभी पढ़ रहा हूं मुझे उसको पूरा करने दिया जाए इसके बाद वह सब उन्हें उस तक पूरा होने का समय देकर चले गए। जैसे पुस्तक पूरी हुई शहीद (Essay on Bhagat Singh in Hindi) को फांसी के लिए ले गए और तीनों को एक साथ फांसी के तख्ते पर लटकाने के लिए लाया गया। तीनों मित्र मिलकर खुश हुए इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाए और गर्व पूर्वक फांसी के तख्ते पर लटक गए।

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Essay on Shaheed Bhagat Singh in Hindi – भगत सिंह पर निबंध

December 26, 2017 by essaykiduniya

Get information about Bhagat Singh in Hindi. Here you will get Paragraph and Short Essay on Shaheed Bhagat Singh in Hindi Language for Students and Kids of all Classes in 150, 300 and 800 words. यहां आपको सभी कक्षाओं के छात्रों के लिए हिंदी भाषा में भगत सिंह पर निबंध मिलेगा।

Essay on Shaheed Bhagat Singh in Hindi – भगत सिंह पर निबंध

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Short Essay on Shaheed Bhagat Singh in Hindi Language – भगत सिंह पर निबंध ( 150 words )

भगत सिंह एक युवा भारतीय क्रांतिकारी थे जिन्हें “शहीद भगत सिंह” के नाम से जाना जाता है। वह एक महान स्वतंत्रता सेनानी और एक राष्ट्रीय नायक थे। भगत सिंह सबसे कम उम्र के स्वतंत्र आश्रयों में से एक हैं जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता के लिए अपनी जान का त्याग किया। वह सिर्फ 23 वर्ष का था जब उसे फांसी दी गई थी। भगत सिंह और उनके सहयोगी ने कुछ ब्रिटिश अधिकारियों को मार डाला और उन लोगों में से एक थे जिन्होंने लालापत राय पर लाठी चार्ज का आदेश दिया था। बाद में उन्होंने खुद को पुलिस अधिकारियों को आत्मसमर्पण कर दिया। भगत सिंह जेल की खराब परिस्थितियों से दुखी थे। वह जेल की स्थितियों में सुधार के लिए भूख हड़ताल पर था। भगत सिंह को 23 मार्च 1931 को दोषी ठहराया गया और फांसी दी गई। भारतीय स्वतंत्रता में उनके प्रयासों के कारण भगत सिंह ने बहुत सम्मान अर्जित किया था।

Essay on Shaheed Bhagat Singh in Hindi – भगत सिंह पर निबंध ( 300 words )

भारत में बहुत से क्रांतिकारी वीर हुए है जिनमें से भगत सिंह सबसे कम उमर के जोश से भरपूर युवक थे। उनका जन्म 28 सितंबर, 1907 को पंजाब के लयालपुर के बंगा नामक गाँव में हुआ था। वे एक सिक्ख परिवार में जन्में थे जिन्होंने आर्य समाज के उसूलों को अपना लिया था और उनके घर के लोग क्रांतिकारी थे। उनके पिता का नाम सरदार किशन सिँह और माता का नाम विद्यावती कौर था। भगत सिँह के जन्म के दिन ही उनके पिता और चाचा जेल से रिहा हुए थे और तभी उनकी दादी ने उनका नाम भागोवाला रखा था।

उन्होंने नौवीं तक की पढ़ाई स्थानीय डी.एवी. स्कूल से पूरी की और 1923 में इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की। 13 अप्रैल,1919 को हुए जलियावाल बाग हत्याकांड ने उन्हें पूरी तरह से झकझोर दिया था। बाद में उन्होंने लाहौर के नैशनल कॉलेज की पढ़ाई छोड़ दी थी और क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़ गए थे। उन्होंने महात्मा गाँधी के असहयोग आंदोलन में भी सहयोग दिया था। लेकिन उन्हें अहिंसा का मार्ग पसंद नहीं आया और उन्होंने हिंसा का रास्ता चुन लिया। उन्होंने चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक पब्लिकेशन पार्टी की स्थापना की।

अंग्रेजी सरकार को जगाने के लिए भगत सिंह ने राजगुरू के साथ मिलकर दिल्ली स्थित सैंट्रल असैंबली में बम फेंका और वहीं पर खड़े रहें और अपनी गिरफ्तारी दी। उन्हें लाहौर ष्डयंत्र में फसाँ कर जेल भेज दिया गया और फाँसी की सजा सुनाई गई। 23 मार्च, 1931 को उन्हें फाँसी दे दी गई थी। उन्होंने इंकलाब जिंदाबाद के नारे के साथ अपनी जिंदगी बलिदान कर दी थी। वह मरने को बाद भी अमर है। उन्हें आज भी बड़े गर्व के साथ याद किया जाता है। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी भारत को अंग्रेजी शासन से आजादी दिलाने में निकाल दी थी और देश की खातिर हँसते हँसते फाँसी चढ़ गए थे।

Essay on Shaheed Bhagat Singh in Hindi – भगत सिंह पर निबंध ( 800 words )

भगत सिंह शहीद-ए-आज़म (शहीदों के सम्राट) के रूप में प्रसिद्ध हैं। भगत सिंह की फांसी ने भारतीय युवाओं पर स्वतंत्रता संग्राम के दौरान मजबूत प्रभाव डाला था। भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर, 1907 को एक जाट-सिख परिवार में सरदार किशन सिंह संधू और विद्यावती के जन्म में हुआ था। चाक नंबर 105 में, जिसे ल्यालपुर (अब फैसलाबाद) जिले (अब पाकिस्तान में) में बेंज के रूप में जाना जाता है वह एक देशभक्त परिवार से आया था। उनके परिवार के कुछ सदस्यों ने भारत की आजादी के समर्थन में सक्रिय रूप से आंदोलन में भाग लिया। अर्जुन सिंह, स्वामी दयानंद सरस्वती के हिंदू सुधारवादी आंदोलन, आर्य समाज का अनुयायी थे, उनके चाचा और उनके पिता गदर पार्टी के सदस्य थे। स्कूल में भगत सिंह बहुत अच्छे और अनुशासित छात्र थे।

पंजाब हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा इसने अपने महासचिव सहित पंजाब हिंदी साहित्य सम्मेलन के सदस्यों का ध्यान खींचा। भगत सिंह ने एक बहुत कुछ कविता और साहित्य पढ़ा जो पुंज ने लिखा था अबी लेखकों और उनके पसंदीदा कवि अल्लामा इकबाल थे जब वह नौवीं कक्षा में पढ़ रहे थे, तो भगत ने असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। उन्होंने डीएवी में अध्ययन किया। हाई स्कूल और कॉलेज, लाहौर लाला लाजपत राय और भाई परमानंद ने उस कॉलेज में पढ़ाया। उन्होंने युवा भगत को गहराई से प्रभावित किया। वहां उन्होंने एक छात्र संघ का आयोजन किया। 1923 में, वह गुप्त क्रांतिकारी पार्टी में शामिल हुए बाद में, इसे हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचएसआरए) के रूप में जाना जाने लगा।

वह अपनी अग्रणी सदस्य बन गए| 1925 में, भगत सिंह ने आतंकवादी युवा संगठन, पंजाब की नौवहन भारत सभा की शुरुआत की। इंटरमीडिएट परीक्षा पूरी करने के बाद, भगत सिंह को शादी करने पर दबाव डाला गया था, लेकिन वह घर से भाग गया और कानपुर आया उन्हें अखबारों, प्रताप और अर्जुन में रोजगार मिला। उन्होंने किर्ति नाम की एक समाजवादी पत्रिका के संपादकीय स्टाफ के रूप में भी काम किया भगत सिंह ने इन अख़बारों में एक छद्म नाम के तहत भगत सिंह को एक कार्यकर्ता और एक बौद्धिक दोनों के रूप में लिखा था। 1926 में, वह आजाद और कुंदनलाल की निरर्थक योजना में शामिल हो गए। यह काकूरी केस के कैदियों को बचाने के लिए था फिर, भगत सिंह ने अपने क्रांतिकारी मित्रों सुखदेव और राजगुरू के साथ 17 दिसंबर, 1928 को सॉन्डर्स (जो लाला लाजपत राय पर पुलिस हमले के लिए जिम्मेदार थे) को मार डाला।

लाहौर में विरोधी साइमन आयोग के आंदोलन के दौरान, लाला लाजपत राय गंभीर रूप से घायल हो गए थे पुलिस के हमले के कारण उनकी मृत्यु हुई। इसलिए, हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचएसआरए) ने उनकी मृत्यु पर बदला लिया। भगत सिंह बहुत शक्तिशाली वक्ता थे उनके सरगर्मी भाषण बहुत उत्साहजनक थे। जब 8 अप्रैल 1929 को दिल्ली विधानसभा में लोक सुरक्षा विधेयक पेश किया गया था, भगत सिंह और बट्टुकेश्वर दत्ता ने मध्य विधानसभा में बम विस्फोट कर दिया। बम न मारे गए और न ही किसी को भी घायल; सिंह और दत्ता ने दावा किया कि यह उनके हिस्से पर एक जानबूझकर कार्य था। यह ब्रिटिश फोरेंसिक जांचकर्ताओं द्वारा साबित हुआ जो पाया गया कि बम चोट के कारण पर्याप्त शक्तिशाली नहीं था, और इस तथ्य से कि लोगों से बम फेंक दिया गया था। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और जीवन के लिए सजा सुनाई गई। अपने सहयोगियों के साथ भगत सिंह बोरस्टल विंग जेल, लाहौर में एक भूख हड़ताल पर गए थे।

उन्होंने ब्रिटिश राजनीतिक कैदियों के समकक्ष जेल में बेहतर रहने की स्थिति की मांग की। यह तेजी 63 दिनों के लिए जारी है उपवास के दौरान, उनके सहयोगियों में से एक जतिन दास का निधन हो गया। फिर बड़े पैमाने पर आंदोलन ने जेल अधिकारियों को अपनी मांग पूरी करने के लिए मजबूर किया। जुलाई 1929 में लाहौर षड़यंत्र केस शुरू हुआ। इस मामले में, भगत सिंह पर आरोप लगाया गया था। उसे मौत की सजा सुनाई गई 23 मार्च, 1931 को भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को फांसी दी गई थी। उन्होंने खुशी से चंचलता इन्कुलैब जिंदाबाद जप कर ‘। भगत सिंह फांसी पर अपने साथियों के साथ मर गया। उनकी मृत्यु ने उन्हें एक किंवदंती बनाया। एक क्रांतिकारी युवा के रूप में शहीद भगत सिंह की गतिविधियों ने उन्हें बहुत लोकप्रिय बना दिया। गोदी से उनके भावुक बयान, ब्रिटिश न्याय के लिए उनकी अवमानना, “इन्कीलैब जिंदाबाद” का उनका नारा अपने देशवासियों में फंस गया और युवाओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। आज भी पूरा देश भगत सिंह के बलिदान को याद करता है।

हम आशा करते हैं कि आप इस निबंध (  Essay on Shaheed Bhagat Singh in Hindi – भगत सिंह पर निबंध ) को पसंद करेंगे।

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essay on freedom fighter bhagat singh in hindi

Bhagat Singh Essay for Students and Children

500+ Words Essay on Bhagat Singh

He is referred to as Shaheed Bhagat Singh by all Indians. This outstanding and unmatchable revolutionary was born on the 28th of September, 1907 in a Sandhu Jat family in Punjab’s Doab district. He joined the struggle for freedom at a very young age and died as a martyr at the age of only 23 years.

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Childhood Days:

Bhagat Singh is popular for his heroic and revolutionary acts. He was born in a family that was fully involved in the struggle for Indian Independence . His father, Sardar Kishan Singh, and uncle, Sardar Ajit Singh both were popular freedom fighters of that time. Both were known to support the Gandhian ideology.

They always inspired the people to come out in masses to oppose the British. This affected Bhagat Singh deeply. Therefore, loyalty towards the country and the desire to free it from the clutches of the British were inborn in Bhagat Singh. It was running in his blood and veins.

Bhagat Singh’s Education:

His father was in support of Mahatma Gandhi at and when the latter called for boycotting government-aided institutions. So, Bhagat Singh left the school at the age of 13. Then he joined the National College at Lahore. In college, he studied the European revolutionary movements which inspired him immensely.

Bhagat Singh’s Participation in the Freedom Fight:

Bhagat Singh read many articles about the European nationalist movements . Hence he was very much inspired by the same in 1925. He founded the Naujavan Bharat Sabha for his national movement. Later he joined the Hindustan Republican Association where he came in contact with a number of prominent revolutionaries like Sukhdev, Rajguru and Chandrashekhar Azad.

He also began contributing articles for the Kirti Kisan Party’s magazine. Although his parents wanted him to marry at that time, he rejected this proposal. He said to them that he wanted to dedicate his life to the freedom struggle completely.

Due to this involvement in various revolutionary activities, he became a person of interest for the British police. Hence police arrested him in May 1927. After a few months, he was released from the jail and again he involved himself in writing revolutionary articles for newspapers.

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The Turning Point for Bhagat Singh:

The British government held the Simon Commission in 1928 to discuss autonomy for the Indians. But It was boycotted by several political organizations because this commission did not include any Indian representative.

Lala Lajpat Rai protested against the same and lead a procession and march towards the Lahore station. Police used the Lathi charge to control the mob. Because of Lathi charge police brutally hit the protestors. Lala Lajpat Rai got seriously injured and he was hospitalized. After few weeks Lala Ji became shaheed.

This incident left Bhagat Singh enraged and therefore he planned to take revenge of  Lala Ji’s death. Hence, he killed British police officer John P. Saunders soon after. Later he and his associates bombed the Central Legislative Assembly in Delhi. Police arrested them, and Bhagat Singh confessed his involvement in the incident.

During the trial period, Bhagat Singh led a hunger strike in the prison. He and his co-conspirators, Rajguru and Sukhdev were executed on the 23rd of March 1931.

Conclusion:

Bhagat Singh was indeed a true patriot . Not only he fought for the freedom of the country but also he had no qualms giving away his life in the event. His death brought high patriotic emotions throughout the country. His followers considered him a martyr. We still remember him as Shaheed Bhagat Singh.

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Bhagat Singh Speech in Hindi

Bhagat Singh Speech in Hindi: भगत सिंह पर भाषण

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Bhagat Singh Speech in Hindi

यहां हम आपको “Bhagat Singh Speech in Hindi” उपलब्ध करा रहे हैं. इस निबंध/ स्पीच को अपने स्कूल या कॉलेज के लिए या अपने किसी प्रोजेक्ट के लिए उपयोग कर सकते हैं. इसके साथ ही यदि आपको किसी प्रतियोगिता के लिए भी Speech on Bhagat Singh in Hindi तैयार करना है तो आपको यह आर्टिकल पूरा बिल्कुल ध्यान से पढ़ना चाहिए. 

Bhagat Singh Speech In Hindi (1 minute speech on bhagat singh)

भगत सिंह जी एक महान राष्ट्र प्रेमी थे। जिन्होंने अपने देश के लिए अपने प्राण कुर्बान कर दिए थे। इनका जन्म सन 1907 में 28 सितंबर के दिन हुआ था। भगत सिंह जी पंजाब के एक संधू जाट परिवार से ताल्लुक रखते थे। बचपन से ही भगत सिंह जी के अंदर देश को आजाद कराने को लेकर एक जूनून था। आजादी की लड़ाई के दौरान भगत सिंह जी ने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था। उन्हें अपने देश से इतना प्रेम था कि उन्होंने इसके लिए विवाह भी नहीं किया। मात्र 23 साल की उम्र में अपने देश के लिए शहीद होने वाले भगत सिंह जी को हम शहीद-ए-आजम के नाम से जानते हैं। 

आत्मनिर्भर भारत पर निबन्ध Essay on Bhagat Singh in Hindi नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर निबंध Subhash Chandra Bose Essay in Hindi 15 August Speech in Hindi आजादी का अमृत महोत्सव पर निबंध स्वतंत्रता दिवस पर निबंध हर घर तिरंगा पर निबंध Speech on Independence Day 2023 in Hindi एक भारत श्रेष्ठ भारत पर निबंध Meri Mati Mera Desh Speech Meri Mati Mera Desh Slogan

My Favorite Freedom Fighter Bhagat Singh Speech (2 minute speech on bhagat singh)

भगत सिंह भारतीय इतिहास का एक ऐसा नाम है, जो आज भी देश प्रेमी के दिलों पर राज करता है। भगत सिंह जी एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी और समाजवादी क्रांतिकारी थे। इन पर बचपन से ही देश प्रेम और स्वतंत्रता संग्राम को लेकर जुनून सवार था। भगत सिंह जी का जन्म पंजाब में सन 1960 को 28 सितंबर के दिन हुआ। इनकी माता जी का नाम विद्यावती और पिताजी का नाम किशन सिंह था। आजादी की लड़ाई का जुनून इन्हें अपने परिवार से ही लगा था क्योंकि इनके परिवार के कुछ सदस्य भी स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी थे।

भगत सिंह जी स्वंतत्रता संग्राम के दौरान चंद्रशेखर आजाद जी से मिले, जो सोने पर सुहागा जैसा था। भगत सिंह जी ने आज़ाद के साथ मिलकर अंग्रेजी हुकूमत की नाक में दम कर दिया। जिसके बाद अंग्रेजों को भगत सिंह जी का इतना खौफ बैठ गया कि अंग्रेजी हुकूमत ने भगत सिंह जी पर आरोप लगाकर उन्हें जल्द से जल्द फांसी देने का मन बना लिया, और 23 मार्च 1931 को भगत सिंह जी को फांसी दे दी गई। मात्र 23 साल की छोटी उम्र में भारत का वीर सपूत अपनी मातृभूमि के खातिर शाहिद हो गया। भगत सिंह जी हम सब युवाओं के लिए एक प्रेरणा हैं, नमन है ऐसे सपूत को जो मौत को सामने देखकर भी अपने इरादों से डिगा नहीं और हंसते हंसते देश के लिए शहीद हो गया।  

Bhagat Singh Speech In Hindi (3 minute speech on bhagat singh)

भारत के इतिहास की तरफ अगर नजर डाली जाए, तो यह कई प्रसिद्ध और देश भक्त चरित्रों से भरा पड़ा है। उन्हीं में से एक भगत सिंह जी हैं। भगत सिंह जी जैसे परिवार से ताल्लुक रखते थे उसमें कई ऐसे सदस्य थे जो पहले से ही स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय थे जिसके कारण भगत जी पर बचपन से ही देशभक्ति और देश प्रेम की भावना निहित थी। सन 1919 में हुए विभत्सक इंडिया वाले बाग कांड के बाद भगत सिंह में देश को अंग्रेजों से आजाद करने की ज्वाला भड़क पड़ी। भगत सिंह जी सिर्फ 14 वर्ष की उम्र से ही क्रांतिकारी संस्थानों में कार्य करने लगे थे। भगत जी गरम दल के सहयोगी थे वे गांधी जी द्वारा अपनाए गए अहिंसा के मार्ग का विरोध करते थे क्योंकि चौरा चौरी कांड में कई बेकसूर लोग मारे गए थे।

यह घटना जब भगत जी के सुनने में आई तो वे 50 किलोमीटर पैदल चलकर घटना स्थल पर पहुंचे और उस स्थान की खून से सनी मिट्टी अपने साथ ले लाए, जो उन्हें हमेशा अंग्रेजों के जुल्म की याद दिलाता रहा। भगत सिंह जी चंद्रशेखर आज़ाद से काफी प्रभावित थे उन्होंने सन 1926 में नौजवान भारत सभा की स्थापना की थी। अंग्रेजी हुकूमत ने भगत सिंह को 1947 में हिरासत के लिया, अंग्रेजों द्वारा भगत जी पर आरोप लगाया गया की वे 1926 में हुए लाहौर बम धमाके में शामिल थे। इसके पांच 5 हफ्ते बाद ही भगत जी को जमानत मिल गई थी। भगत सिंह जी ने सन 1929, 8 अप्रैल को ब्रिटिश सेंट्रल असेंबली में बम फेंका था, जिसका मकसद केवल अंग्रजी हुकूमत को डराना था।

इसके बाद भगत जी और उनके साथियों ने स्वयं से अंग्रेजी हुकूमत के सामने समय पर भी कर दिया था। इसके पीछे का कारण था की, भगत जी स्वयं को गिरफ्तार करवा कर देश के नौजवानों के सीने में स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी को और भड़काना चाहते थे। इस वाक्य के बाद भगत की अंग्रेजी हुकूमत की नजरों में चढ़ गए और उन्होंने भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव जी को फांसी की सजा सुना दी। सन 1931 23 मार्च को भारत के 3 वीर सपूतों भगत सिंह जी राजगुरु जी और सुखदेव जी को फांसी दे दी गई। मरते समय भगत जी की आंखों में जरा भी डर नहीं था क्योंकि वह अपने पीछे एक पूरा कुनबा छोड़ गए थे जो देश को आजाद करने के लिए मर मिटने को तैयार था और उन्हीं की बदौलत आज हम आजाद भारत में सांस ले रहे हैं।

Speech on Bhagat Singh in Hindi (5 minute speech on bhagat singh)

यहां उपस्थित सभी लोगों में, ऐसा कोई नहीं होगा, जिसे भगत सिंह जी के बारे में न पता हो। इनका नाम देश के बुर्जुग से लेकर बच्चे भी जानते हैं। भगत सिंह जी एक प्रख्यात और प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और देश प्रेमी हैं, जिन्होंने अपने देश के प्रति अपने प्रेम को प्राण देकर सिद्ध किया है। भगत सिंह जी का जन्म सन 1907 में 28 सितंबर के दिन हुआ था। भगत सिंह जी एक ऐसे परिवार में जन्मे थे जहां पहले से ही लोग स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी थे। इस दिन भगत सिंह जी का जन्म हुआ, उसी दिन उनके चाचा जेल से रिहा हुए थे। जिसके कारण भगत सिंह जी के परिवार की खुशियां दोगुनी हो गई थी इसे देखते हुए ही उनकी दादी ने उनका नाम भागो वाला यानी की किस्मत वाला रखा, जो बाद में भगत हो गया।

भगत जी अपने परिवार के लिए ही नहीं बल्कि देश के लिए भी भाग्यशाली थे जिनके प्रयास एवं बलिदान के स्वरूप उसे समय के युवाओं में देश के लिए प्रेम और स्वतंत्रता संग्राम के लिए जुनून और भी बढ़ गया था, जिसका परिणाम यह निकला की आज हम सभी स्वतंत्र देश के वासी हैं। 1919 में हुए जलियांवाला बाग और चौरा चोरी की घटना ने भगत जी को अंदर से झकझोर के रख दिया और उन्होंने अंग्रेजों से बदला लेने की ठान ली। भगत जी केवल 14 वर्ष की उम्र से ही स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलनों में भाग लेने लगे।

भगत जी ने महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन में भी भाग लिया, लेकिन भगत जी के उग्र विचारों के कारण असहयोग आंदोलन अहिंसा की जगह हिंसा के आंदोलन में बदल गया। जिसके कारण महात्मा गांधी ने इस आंदोलन को बंद कर दिया। इस आंदोलन के बंद होने के बात जब भगत जी अपने घर लौटे तो उनकी मां ने उनके सामने शादी का प्रस्ताव रखा जिसके लिए इंकार करते हुए भगत जी ने कहा कि अगर देश की आजादी से पहले मैं शादी करूंगा तो मेरी दुल्हन मौत होगी। ऐसे विचारों के थे भगत जी, वे चाहते तो एक आम इंसान 

की तरह जी सकते थे लेकिन उन्हें अधीनता स्वीकार न थी और उनके लिए देश से अधिक महत्वपूर्ण और कुछ नहीं था। भगत जी हमेशा से ही अंग्रेजों के विरोधी रहे हैं, और उन्होंने खुलकर अंग्रेजों का विरोध किया है। भगत जी सबसे नौजवान भारत सभा में शामिल हुए थे। उन्होंने कीर्ति मैगजीन के लिए कार्य करते हुए अपने विचारों को लोगों तक पहुंचाया ताकि वे भी आजादी के लड़ाई में हिस्सा लेने सन 1926 में भगत सिंह जी को नौजवान भारत सभा में सेक्रेटरी का पद दिया गया। इसके बाद सन 1928 में उन्होंने चंद्रशेखर द्वारा स्थापित हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन ज्वाइन कर ली। इसी दौरान 30 अक्टूबर सन 1928 को सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन की पार्टी ने मिलकर साइमन कमीशन का विरोध करने की योजना बनाई इस योजना में लाला लाजपत राय पार्टी के अन्य लोगों का नेतृत्व कर रहे थे।

साइमन कमीशन के विरोध के दौरान अंग्रेजों द्वारा लाठी चार्ज कर दिया गया जिसमें लाला लाजपत राय बुरी तरह घायल होकर मृत्यु को प्राप्त हुए। इस घटना से आहत भगत सिंह जी ने पुलिस सहायक जेपी सांडर्स की हत्या कर दी। इसके बाद सन 1929 भगत सिंह जी ने अपने साथी के साथ मिलकर असेंबली में बम हमला कर दिया और इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाए। इस विस्फोट का उद्देश्य अंग्रेजों को डराना था। भगत सिंह जी के विद्रोह और एक के बाद एक हमलों से परेशान अंग्रेजी हुकूमत ने पूरी योजना के साथ भगत सिंह और उनके साथियों को गिरफ्तार कर लिया। जेल में भगत सिंह जी और उनके साथियों को कई यातनाएं दी लेकिन भगत सिंह जी के मन में हमेशा अपने देश के लिए प्रेम बना रहा।

कोर्ट के आदेश के अनुसार भगत सिंह जी को 24 मार्च 1931 को फांसी दी जानी थी, लेकिन जन आक्रोश और फांसी का फैसला बदल जाने के डर से अंग्रेजों ने 23 मार्च को आधी रात में ही भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव जी को फांसी दे दी गई। एक 23 वर्ष के नौजवान का अंग्रेजी हुकूमत को इतना डर था की उन्होंने सारी हदें पार कर दी। भगत सिंह और उनके साथियों के बलिदान को कभी भुला नहीं जायेगा और हर एक देश प्रेमी को कभी ईनो बलिदान भूलना भी नहीं चाहिए। हमें गर्व है की हमारे भारत में ऐसे महान व्यक्तित्व ने जन्म लिया और इस भूमि को धन्य किया।

दिल से निकलेगी न मर कर भी वतन की उलफत, मेरी मिट्टी से भी खुशबू-ए-वतन आएगी।

“मेरी गर्मी के कारण राख का एक-एक कण जलन में है

मैं ऐसा पागल हूं जो जेल में भी स्वतंत्र है।”

Bhagat Singh Shayari in Hindi

लिख दो लहू से अमर कहानी वतन के खातिर, कर दो कुर्बान हंसकर ये जवानी वतन के खातिर.

सीने में आग और हृदय में देशभक्ति का जूनून रखते है, क्योंकि हमारे दिलों-दिमाग में भगत सिंह बसते हैं.

मेरे सर पे कर्जा है भगत सिंह की चीखों का, मेरा हृदय आभारी है उनकी दी हुई सीखों का.

तिरंगा हो कफ़न मेरा बस यहीं अरमान रखता हूँ, भारत माँ का इस हृदय में अमिट सम्मान रखता हूँ

ना तन से प्यार है, ना धन से प्यार हैं, हमें तो बस अपने वतन से प्यार हैं.

Speech on Bhagat Singh in Hindi

हमारे सभी प्रिय विद्यार्थियों को इस “Bhagat Singh Speech in Hindi” जरूर मदद हुई होगी यदि आपको यह Speech on Bhagat Singh in Hindi अच्छा लगा है तो कमेंट करके जरूर बताएं कि आपको यह Bhagat Singh Speech in Hindi कैसा लगा? हमें आपके कमेंट का इंतजार रहेगा और आपको अगला Essay या Speech कौन से टॉपिक पर चाहिए. इस बारे में भी आप कमेंट बॉक्स में बता सकते हैं ताकि हम आपके अनुसार ही अगले टॉपिक पर आपके लिए निबंध ला सकें.

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Essay on Bhagat Singh: The Immortal Martyr of the Indian Independence Movement

essay on freedom fighter bhagat singh in hindi

  • Updated on  
  • Aug 7, 2023

essay on bhagat singh

Bhagat Singh was one of the most revolutionary young freedom fighters in India. He was a prominent member of the Hindustan Republican Association (HRA). He was a strong supporter of the Swadeshi Movement and also in the later years he withstand the non-violence movement. In his belief, only armed rebellions could bring independence to the country. He made an indelible mark in the history of India’s freedom struggle . The young revolutionary was full of passion and patriotism and sacrificed life for the independence of the country. Continue reading the blog the know more about Bhagat Singh.

Must Read: Significance of Independence Day

Table of Contents

  • 1 About Bhagat Singh in English
  • 2 Essay on Bhagat Singh in 5 Lines
  • 3 Short Essay On Bhagat Singh In 50 Words In English
  • 4 Essay on Bhagat Singh in 350 Words
  • 5 Essay on Bhagat Singh in 500 Words

Also Read: Revolutions in India You Must Know About

About Bhagat Singh in English

Bhagat Singh was born on 27 September 1907 to a Punjabi Sikh family in the village of Banga, Lyallpur District of Punjab, British India (present-day Pakistan). He studied in the village school in Banga for a few years and later enrolled in the Dayanand Anglo-Vedic School in Lahore. In 1923 he attended the National College in Lahore. The college encouraged the students to shun the educational institutes, schools and colleges that were subsidised by the British Indian Government. Bhagat Singh was a young rebel who participated in various actions to bring independence to the country. He became an impactful influence on the youth of the nation. In May 1927, he was involved in the bombing in Lahore in October of 1926. In 1929 Bhagat Singh and Batukeshwar Dutt, members of the Hindustan Republican Association were the main accused of the bombing at the Central Legislative Assembly. Bhagat Singh was a brilliant young mind who wrote and edited for the Urdu and Punjabi newspapers published in Amritsar and also wrote for the Kirti Kisan Party journal, Kirti. He contributed to the Naujawan Bharat Sabha by publishing low-priced pamphlets that excoriated British rule. Bhagat Singh often used pseudonyms names including Balwant, Ranjit and Vidhrohi for his actions. 

Also Read: Popular Struggles and Movement 

Essay on Bhagat Singh in 5 Lines

  • Bhagat Singh is one of the most significant freedom fighters of the Indian freedom struggle. 
  • Bhagat Singh was born on September 28, 1907, into a multilingual Sikh family in the Punjabi district of Leelpur’s Banga village (now in Pakistan). His mother’s name was Vidyavati Kaur, and his father’s name was Sardar Kishan Singh. His father, Uncle Ajit Singh, and Grandfather Arjan Singh all participated in the fight for independence.
  • During the freedom movement, the young were greatly influenced by his catchphrase, “Inquilab Zindabad.”
  • His life changed dramatically after freedom fighter Lala Lajpat Rai was assassinated. Bhagat Singh intended to get revenge on Rai because he could not stand the injustice. He planned to bomb the Central Legislative Assembly and kill British official John Saunders.
  • At just 23, Bhagat Singh got a death sentence.

Short Essay On Bhagat Singh In 50 Words In English

Bhagat Singh, an iconic Indian freedom fighter, fearlessly challenged British colonial rule. His undying spirit and sacrifice inspired a generation to fight for independence. He embraced martyrdom at a young age, leaving an indelible mark on the nation’s history, making him a symbol of courage, nationalism, and sacrifice.

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Essay on Bhagat Singh in 350 Words

Bhagat Singh was born on 27 September 1907 and was a fierce symbol of a young fearless spirit rebellion against British rule in India. He believed in the principles of Marxism and Socialism and wished to bring Independence to the country and establish a society that thrive on equality. He was driven by dedicated patriotism and participated in various events that strongly represented his ideologies of social justice and set up welfare for all. Bhagat Singh wrote on many social and political issues while working for newspapers. These issues emphasised the importance of education for all, raising awareness about public and individual rights etc. 

In his days of childhood, he witnessed the situation of the freedom struggle as few of his family members participated in the struggle. In 1919, he witnessed the spine-chilling massacre of Jallianwala Bagh which made an indelible mark on the mind of young Bhagat Singh. Many such incidents caused his inclination to fight for freedom. The Jallianwalan Bagh incident awakened his patriotic spirit and encourage him to stand in the fight against British Rule in India. 

He is prominently remembered for his bombing attack On 8 April 1929 at the Central Legislative Assembly, Delhi. The action was the symbol of protest against the Public Safety Bill and the Trade Disputes Bill that repressed and curb civil liberties. He was arrested for the action and was on trial. He used the trial process as a medium to propagate his ideologies and revolutionary ideas. 

Bhagat Singh continued on the path of radicalism and participated in the assassination of Saunders along with Rajguru and Sukhdev. This action marked them for the death sentence and they were hanged on 23 March 1931 in the Lahore Central Jail. This ignited a streak of outrage and patriotism in the general public that intensely demanded independence. 

The sacrifice of Bhagat Singh was a turning point in the history of India’s freedom struggle. His ideologies, determination and dedicated patriotism motivated many upcoming members of the youth to join the freedom movement.

Also Read: Civil Disobedience Movement

Essay on Bhagat Singh in 500 Words

One of India’s most well-known freedom fighters, Bhagat Singh, will always stand as a testament to bravery, giving, and unshakable commitment to the cause of Indian independence. Bhagat Singh’s life as a revolutionary began at a young age. He was born on September 28, 1907, in Banga, Punjab, to a family that was devoted to the fight against British authority. His historical legacy as a martyr who bravely stood up to colonial rulers and motivated generations to strive for a free and fair India is indelible.

Bhagat Singh’s family, notably his father Kishan Singh, and uncle Ajit Singh, who were actively involved in the liberation struggle, exposed him to revolutionary principles and patriotism from a young age. Bhagat Singh was influenced by these revolutionary principles and joined the liberation fight, joining groups like the Hindustan Socialist Republican Association (HSRA).

Bhagat Singh’s dedication to the cause of freedom was evident in both his words and deeds. The repressive Rowlatt Act, which gave the British government the right to detain and jail Indians without a trial, was something he fiercely opposed. He took part in demonstrations against the Simon Commission in 1928, which was established without any Indian participation and resulted in the notorious Lala Lajpat Rai’s killing at the hands of the police.

Bhagat Singh was greatly upset by the incident and desired retribution for Lala Lajpat Rai’s treatment unfairly. In an unfortunate turn of events, J.P. Saunders, the police officer who attacked Lajpat Rai, was murdered by the HSRA members rather than Saunders’ intended victim.

Bhagat Singh went into hiding but persisted in his pursuit of independence in order to avoid capture. He and Batukeshwar Dutt detonated non-lethal explosives inside the Central Legislative Assembly in Delhi on April 8, 1929. The goal was to raise awareness about oppressive legislation rather than to do harm to anyone. After the event, they actively courted arrest and took advantage of the trial to spread their ideas about a free India.

The public was moved by Bhagat Singh’s powerful and courageous comments throughout the trial. He refused to accept the British emperors’ leniency and used the court as a forum to call for equality and justice. His well-known adage, “It is easy to kill individuals, but you cannot kill the ideas,” became the liberation movement’s battle cry.

Bhagat Singh, Rajguru, and Sukhdev were all given the death penalty for their roles in the Saunders murder case on March 23, 1931. On March 23, 1931, a day now celebrated as Shaheed Diwas (Martyrs’ Day) in their honor, the British government cruelly killed them despite appeals for mercy from people across the country and around the world.

The sacrifice of Bhagat Singh and his allies sparked a national spirit of patriotism and resistance. Millions of Indians were inspired by their courage and tenacity to join the battle for freedom. These youthful revolutionaries’ legacy continues to motivate others and serve as a sobering reminder of the steep price that was paid for the freedom that we now take for granted.

Bhagat Singh lived a life that transcends time, and his beliefs still hold true now just as they did during the freedom fight. He stands as a symbol of hope and inspiration for a pluralistic and varied India because of his dedication to secularism, social justice, and inclusion.

Bhagat Singh, the courageous revolutionary, is still revered throughout India’s history as a model of bravery and selflessness. His unwavering attitude and devotion to the nation will always serve as an example for future generations. The tremendous sacrifice made by Bhagat Singh and his fellow martyrs is largely responsible for the freedom we enjoy today, reminding us of our responsibility to protect and preserve the nation’s hard-won independence and promote democratic and equitable principles.

Ans: The Indian Hindi-language film, The Legend of Bhagat Singh (2002). A Rajkumar Santoshi film narrated the life of Bhagat Singh.

Ans: Bhagat Singh was 23 years old when he was hanged death.

Ans: He participated in the assassination of Saunders along with Rajguru and Sukhdev. This action marked them for the death sentence and they were hanged on 23 March 1931 in the Lahore Central Jail.

We hope that this blog has provided you with relevant information and a sample essay on Bhagat Singh. For more such content follow Leverage Edu .

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Charvi Khaneja

Charvi Khaneja is currently working as a content writer with Leverage Edu. She can be heard from a distance if someone talks about Netflix, Content, Music, Pop- Culture, and Entertainment. Most of the time she thinks about the ideas of various concept art in the field of music and performances and entertainment content marketing and promotional strategies. Getting accepted into the University of Birmingham is nothing less than a series scene for her. She learnt French in high school and is still polishing her skills. And she is a Intermediate beginner in Korean language fluency. She also earned Google Certificates in Digital Marketing. At the strike of her emotions she resides to write poetry or verses and strums guitar. Her thought process basically resonates with the content she is watching and always has a background music playing in the back of her head.

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Freedom Fighters in Hindi | भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी

Freedom fighters in hindi

  • Post author By Admin
  • January 24, 2022

भारत बहुत लम्बे समय तक अंग्रेजो के अधीन था, बहुत लम्बे समय तक अंग्रेजो के अधीन रहने बाद 15 अगस्त 1947 को हमारे देश को आजादी मिली।

लेकिन क्या हमें आजादी ऐसे ही मिल गयी थी, क्या इतने सालों के जुल्म को खत्म करने के लिए अंग्रेज सरकार ऐसे ही मान गयी थी। 

नहीं, अंग्रेज सरकार ने यह माना नहीं था, उन्हें हमें आजाद करने का फैसला मानना पड़ा था, क्यूंकि भारत के कईं शूरवीर लोगो ने उन्हें ऐसा करने पर मजबूर कर दिया था। 

हम उन शूरवीरों को अब freedom fighters यानि की आज़ादी के लिए लड़ने वाले क्रांतिकारी कहते है। आज हम इस freedom fighters in hindi ब्लॉग में उन्ही साहसी लोगो के बारे में बात करेंगे।

जिनके निरंतर प्रयासों और बलिदानो के बाद आज हम अपने देश में आज़ाद है और अपने अनुसार अपनी ज़िन्दगी जी सकते है।

आज़ादी की इस लड़ाई में अलग अलग लोगों ने भाग लिया, किसी ने शांति के साथ अंग्रेजो तक अपनी बात पहुंचाई तो किसी ने अपने अंदर पनपन रहे देश के लिए ज़ज़्बे के साथ अंग्रेजी हकूमत की टस तोड़ी। 

इन सब लोगों का तरीका बेशक अलग अलग हो लेकिन सबके मन में एक ही विचार था की हमें हमारे देश को आज़ादी दिलानी है।

आज हम इन्ही लोगो के बारे में बात करेंगे और कोशिश करेंगे की हम इन लोगों से प्रेरणा ले सके और ज़रूरत पड़ने पर देश हित के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर सकें। 

Table of Contents

Indian Freedom fighters in Hindi

जैसा की हमनें आपको बताया की भारत को आज़ादी दिलाने में बहुत सारे लोगों ने अपना अपना योगदान दिया, ऐसे बहुत से लोग है,

जिन्होंने इस लड़ाई में अपना योगदान दिया था लेकिन उनका नाम इतिहास के पन्नो में कहीं खो के रह गया है। 

भारत के वह शूरवीर इतने है की यह सम्भव ही नहीं है की हम उन सबका नाम अपने इस freedom fighters in hindi ब्लॉग में लिख सकें। 

लेकिन हम कोशिश करेंगे की हम अधिक से अधिक स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में आपको जानकारी दे सकें। 

पर जिन जिन फ्रीडम फाइटर्स के नाम हम इस ब्लॉग में नहीं लिख पाए, course mentor की पूरी टीम उनका भी पूरा सम्मान करती है और देश के लिए दिए उनके बलदानों के लिए उनका धन्यवाद भी करती है। 

तो चलिए अब हम आपके सामने freedom fighters in Hindi लिस्ट पेश करते है -:

Mangal Pandey Ji

मंगल पाड़े का जन्म 19 जुलाई 1827 को उत्तर पदेश के बलिया जिले के एक गाँव नगवा में हुआ था। इनका जन्म ब्राह्मण परिवार में हुआ था।

इनके जन्म को लेकर इंतिहासकारों की अलग अलग राय है, कईं इतिहासकार इनका जन्म फैजाबाद जिले के अकबरपुर तहसील में भी बताते है। इनके पिता का नाम दिवाकर पांडे और माता का नाम अभय रानी था।

इन्होंने भारत की आजादी की पहली लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी, बहुत लोग इन्हें भारत का प्रथम स्वतरंता सेनानी भी मानते है।

वह पहले ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में भर्ती हुए थे, वह सेना में पैदल सेना के सिपाही थे, जिनमें उनका सिपाही नंबर 1446 था।

1857 में जब अंग्रेजी हकूमत के खिलाफ पहली बार विद्रोह किया गया, उस विद्रोह में मंगल पांडे जी का अहम योगदान था।

1857 में हुआ यह विद्रोह ही भारत की आजादी के जंग में नींव की तरह साबित हुआ, इस विद्रोह के बाद ही भारत में आजादी के लिए लड़ाई की लहर दौड़ गई थी।

मंगल पांडे जी को इस विद्रोह की वजह से ईस्ट इंडिया कंपनी ने गद्दार घोषित कर दिया था और फिर 8 अप्रैल 1857 को उन्हें फांसी दे दी गई।

Facts about Mangal Pandey

यह है मंगल पांडे जी के बारे में कुछ अहम बातें -:

  • इन्होंने ने 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ पहली जंग शुरू की थी। 
  • जब वह east इंडिया कंपनी सेना में थे तो उस समय कंपनी ने सेना को गाय और सूअर के मास से बने कारतूस दिए थे, लेकिन भारत के बहुत सारे सैनिकों ने उन्हें इस्तेमाल करने से मना कर दिया था, क्यूंकी कारतूस को मुँह से छीलना पड़ता था, उस समय भारतीय हिन्दू और मुस्लिम सैनिकों ने विद्रोह किया था और मंगल पांडे जी ने इस विद्रोह का नेतृत्व किया था।
  • कहा जाता है की मंगल पांडे जी अंग्रेजी हकूमत के इस फैसले पर इतना गुस्सा थे की उन्होंने अंग्रेजी Lieutenant Baugh पर गोली चला दी, गोली का निशाना तो चूक गया था, लेकिन Lieutenant को वहाँ से जान बचा कर भागना पड़ गया था।
  • इनके जीवन पर मंगल पांडे – दी राइज़ींग नाम से मूवी बन चुकी है, जिसमें आमिर खान जी ने मुख्य किरदार निभाया।

महात्मा गाँधी

Mahatma Gandhi Ji

हमारी इस freedom fighters in Hindi की लिस्ट में अगला नाम है महात्मा गांधी जी का। उनका पूरा नाम था मोहनदास कर्मचंद गांधी।

उनके पिता का नाम कर्मचंद गांधी और माता का पुतलीबाई था। उन्होंने देश को आजाद करवाने में एक बहुत अहम भूमिका निभाई।

वह एक बहुत साफ दिल और साधारण जीवन जीने वाले व्यक्ति थे, वह जो धोती पहनते थे उसके लिए सूत वह खुद चरखा चला कर कातते थे।

देश को आजाद करवाने के लिए उन्होंने कईं आंदोलन किए, वह कहीं पर भी अन्याय होता हुआ नहीं देख पाते थे। साउथ अफ्रीका में अश्वेत लोगो पर हो रहे जुल्म पर भी गांधी जी ने अपनी आवाज उठाई थी।

उनके इन योगदानों और उनके विचारों के वजह से आज केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरा विश्व उनसे प्रेरणा लेता है। उनके अहम योगदानों की वजह से भारत में उन्हें राष्ट्रपिता कहा जाता है।

Facts about Mahatma Gandhi Ji

यह है महात्मा गांधी जी के बारे कुछ facts जो की आपको पता होने चाहिए -:

  • उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा Alfred हाईस्कूल, राजकोट से प्राप्त की थी।
  • उनके जन्म दिवस 2 अक्टूबर को पूरे विश्व में अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस मनाया जाता है।
  • महात्मा गांधी जी के 2 बड़े भाई और 1 बड़ी बहन थी।
  • महात्मा गांधी जी को महात्मा का टाइटल रबिंद्रनाथ टैगोर जी ने दिया था।
  • गांधी जी को 5 बार नोबेल पीस प्राइज के लिए नॉमिनेट किया गया था, पहली बार सन 1937, 1938, 1939, 1947 और उनकी मृत्यु से कुछ दिन पहले यानी की जनवरी 1948 में।

आपको यह भी पसंद आएगा -: Essay on Mahatma Gandhi in Hindi

शहीद सरदार भगत सिंह जी

Shaheed Bhagat Singh Ji

जब भी freedom fighters in Hindi की बात होती है तो सरदार भगत सिंह जी का नाम जरूर लिया जाता है।

आखिर लिया भी क्या ना जाए देश की आजादी में जो उनके योगदान है, उसके लिए पूरा भारत उनका आभारी है।

भगत सिंह जी का जन्म 28 सितंबर 1907 को हुआ था और केवल 24 वर्ष की उम्र में 23 मार्च 1931 को वो देश के लिए शहीद हो गए।

उन्हें अंग्रेजी सरकार द्वारा फांसी दे दी गई थी, भगत सिंह जी के विचार बाकी स्वतंत्रता सेनानियों से अलग थे, इसलिए अधिकतर स्वतंत्रता सेनानी उनका खुल के समर्थन नही कर पाते थे।

लेकिन भगत सिंह जी हर एक सेनानी की सोच का मान रखते थे, जिन स्वतंत्रता सेनानियो की सोच उनसे अलग थी, वह उन्हे भी पूरा सम्मान दिया करते थे।

भगत सिंह जी ने देशवासियों के मन में देश की आजादी के चिंगारी जगाने में बहुत अहम योगदान दिया।

Facts about Bhagat Singh Ji -:

यह है सरदार भगत सिंह जी से जुड़ी कुछ बातें -:

  • जब भगत सिंह जी के माता पिता उनकी शादी करवाना चाहते थे तो भगत सिंह जी ने यह कह कर घर छोड़ दिया था की अगर देश की आजादी से पहले मेरी शादी होगी तो मेरी दुल्हन केवल मौत होगी।
  • उन्होंने और बटुकेश्वर दत्त जी ने मिलकर असेंबली हॉल, दिल्ली में बम फेंके थे और इंकलाब ज़िंदाबाद के नारे लगाए थे। वहां पर बम गिराने के बाद वह भागे नही बल्कि खुद पकड़े गए थे।
  • पकड़े जाने पर उन्होंने किसी तरह का डिफेंस नही मांगा और इसे भारत में आजादी की जज्बे को फैलाने के लिए प्रयोग किया।
  • उन्हें मौत की सजा 7 अक्टूबर 1930 को सुनाई गई थी। जेल में रहते हुए उन्होंने भारतीय कैदियों और बाहरी कैदियों के बीच हो रहे भेदभाव को देखकर भूख हड़ताल कर दी थी।
  • भगत सिंह जी पर बहुत फिल्में बनी है, लेकिन उनमें से The Legend of Bhagat Singh मूवी सबसे अधिक प्रसिद्ध है, इस मूवी में अजय देवगन जी ने प्रमुख भूमिका निभाई है।

सुभाषचद्र बोस 

Subhash Chandra Ji

अगली महान शख्सियत जो की हमारी इस freedom fighters in Hindi लिस्ट में है, वह है सुभाष चंद्र बोस।

सुबास चंद्र बोस जी का जन्म 23 जनवरी 1897 में हुआ था और उनकी मृत्यु 18 अगस्त 1945 में देश की आजादी से तकरीबन 2 साल पहले हो गई थी।

सुभाष चंद्र बोस जी को सब लोग नेताजी सुभाष चंद्र बोस कहते है। उन्होंने देशवासियों को आजादी के लिए लड़ने की प्रेरणा दी।

उन्होंने नारा दिया था “तुम मुझे खून दो, मै तुम्हें आजादी दूंगा”। यह नारा आज भी सभी भारतीयों के दिलो में पत्थर पर लिखें अक्षरों की तरह छपा हुआ है।

सुभाष चंद्र बोस ने देश की आजादी की लड़ाई में बहुत अहम योगदान दिया।

Facts about Subhas Chandra Bos

यह है सुभाषचंद्र बोस से जुड़ी कुछ बातें -:

  • सुभाष चंद्र बोस जी स्वामी विवेकानंद जी और श्री रामकृष्ण परमहंसा जी के विचारो से बहुत प्रभावित थे।
  • सुभाष चंद्र बोस जी देश की आजादी के लिए लड़ते हुए 11 बार जेल गए।
  • नेताजी ने जर्मनी में रहते हुए देश की आजादी के लिए लोगो को बहुत सपोर्ट हासिल की।
  • नेताजी की मौत आज भी एक रहस्य है, लेकिन अधिकतर लोगो का कहना है की उनकी मौत ताइवान में हुए प्लेन क्रैश के समय 18 अगस्त 1945 को हो गई थी।
  • कईं लोगों का मानना है की उनकी मौत प्लेन क्रैश में हुई थी और यह वहाँ से बचकर, अपनी पहचान छुपा कर रहने लगे थे।

चंद्रशेखर आज़ाद

Chandra Shekher Ji

चंद्रशेखर आजाद जी का जन्म 23 जुलाई 1906 को वर्तमान अलीराजपुर जिले में हुआ था, उनका नाम चंद्र शेखर तिवारी था। उन्हें आजाद और पंडित जी जैसे उपनामों से बुलाया जाता था।

वह शहीद भगत सिंह जी के साथी थे, वह 9 अगस्त 1925 को हुए काकोरी काण्ड में शामिल थे, जिसमें अंग्रेजी सरकार के खिलाफ युद्ध लड़ने के लिए हथियार खरीदने के लिए अंग्रेजी सरकार का ही खजाना लूट लिया गया था।

उन्होंने भगत सिंह जी के साथ मिलकर लाल लाजपत राय जी की मौत बदला लिया। उन्होंने भगत सिंह जी के असेंबली में बम फेंकने में भी सहायता की।

27 फरवरी 1931 को अंग्रेजी सरकार ने इन्हें अल्फ्रेड पार्क में घेर लिया और इन्हें surrender करने का कहा, लेकिन इन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया और एक पुलिस इंस्पेक्टर को गोली मार दी।

चंद्र शेखर आजाद जी ने 5 गोलियां चलाकर, 5 लोगो की हत्या कर दी, उसके बाद उन्होंने अंतिम बची गोली खुद को मारकर आत्महत्या कर ली, इन्होने देश की आजादी के लिए देशवासियों में एक अलग ही हुंकार भर दी।

यदि कभी freedom fighters in Hindi जैसी किसी लिस्ट को पेश किया जा रहा हो और इनका नाम ना आएं, तो हम उस लिस्ट को कभी पूरा नहीं मानेंगे।

Facts about Chandra Shekhar Azad

यह है चंद्रशेखर आजाद से जुड़ी कुछ बातें -:

  • चंद्रशेखर आजाद 1921 में जब वह एक स्कूल स्टूडेंट हुए करते थे, तभी आजादी की जंग में हिस्सा लेने लगे थे।
  • इन्होंने गाँधी जी के द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन में भाग लिया था, जिसकी वजह से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, जब उन्हें जज के सामने पेश किया गया तो उन्होंने वहाँ अपना नाम आजाद बातया।
  • उन्होंने जब अपने आपको आजाद नाम दिया था, उन्होंने तब यह शपथ ली थी की पुलिस उन्हें कभी जिंदा नहीं पकड़ पाएगी।
  • आजाद जी एक लाइन को बहुत बाहर दोहराया करते थे, जो की कुछ इस प्रकार है “दुश्मनों की गोलियों का हम सामना करेंगे, आजाद ही थे और आजाद ही रहेंगे।”
  • इनके अपने साथी ने ही अंग्रेजों को बताया था की यह अल्फ्रेड पार्क में मोजूद है और यह वहाँ कितनी देर रहेंगे।
  • इनके जीवन पर एक मूवी बनाई गई है, जिसका नाम है शहीद चंद्रशेखर आजाद, इस मूवी में इनकी कहानी को दिखाया गया है।

रानी लक्ष्मी बाई

Rani Lakshmi Bai

हमारी इस freedom fighters in Hindi लिस्ट में अब हम एक महिला के बारे में बात करेंगे।

नीचे हमनें महिला freedom fighters in hindi के लिए एक अलग लिस्ट बनाएंगे, लेकिन हम झांसी की रानी जी के हौंसले से इतना प्रेरित है की हम उनका नाम यहां लिखें बिना नही रह पाए।

रानी लक्ष्मी बाई यानी झांसी की रानी, इनके बारे में जो कुछ भी कहा जाए कम है, इनके नाम को सुनकर ही मन में एक अलग प्रकार का होंसला उत्पन्न हो जाता है।

इनपर एक कविता भी लिखी गई है “खूब लड़ी मर्दानी, वो झांसी वाली रानी थी”।

यह कविता को हम जितनी भी बार पढ़ ले, हमारी आंखों में आसूं आ जाते है, रानी लक्ष्मी बाई के हौंसले के बारे में बात करने के हम खुद को लायक भी नहीं समझते।

इनका जन्म 19 नवंबर 1828 को हुआ था, वह झांसी राज्य की रानी थी, उनके पिता का नाम मोरोपन्त ताम्बे और माता का नाम भागीरथी सापरे था, उनका विवाह झांसी नरेश महराज गंगाधर राव नवेलकर से हुआ था।

उन्होंने 29 वर्ष की उम्र में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ युद्ध किया, वह पूरे साहस के साथ युद्ध में लड़ी, युद्ध के दौरान ही सिर पर तलवार लगने की वजह से उनकी मृत्यु हो गई, वह 18 जून 1858 को शहीद हुई थी।

Facts about Rani Lakshmi Bai

यह है रानी लक्ष्मी बाई से जुड़ी कुछ बातें -:

  • इनको इनके माता पिता ने मणिकर्णिका नाम दिया था और इन्हें प्यार से मनु कह कर बुलाया जाता था, शादी के बाद इनको रानी लक्ष्मी बाई के नाम से जाना जाने लगा।
  • उनके पिता ने उन्हीं तीरंदाजी जैसे कईं युद्ध कौशल उनको छोटी उम्र से ही सीखने लगे थे।
  • उन्होंने केवल 4 वर्ष की उम्र में ही अपनी माता को खो दिया था, उनकी माता की मृत्यु के बाद उनके पिता जी ने बड़े लाड़ प्यार से उनको पालन पोषण किया।
  • जब झांसी के महाराज यानि की उनकी पति की मृत्यु हुई तो 1853 में केवल 18 वर्ष की आयु में उन्होंने झांसी राज्य को संभालना शुरू किया।

लाल बहादुर शास्त्री

Lal Bhadur Shashtri

हमारी आज की इस freedom fighters in Hindi लिस्ट में जो अगला नाम है, वह है लाल बहादुर शास्त्री जी का।

लाल बहादुर शास्त्री भारत के दूसरे प्रधानमंत्री बने थे, उनका जन्म 2 अक्टूबर 1904 में वाराणसी में हुआ था।

उन्होंने काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि प्राप्त की,शास्त्री जी ने देश की आजादी के संघर्ष में अहम योगदान दिए।

उन्होंने देश के प्रधानमंत्री मंत्री बनने के बाद लगभग 18 महीनो तक देश की सेवा की।

लेकिन फिर 11 जनवरी 1966 को सोवियत संघ रूस में इनकी मृत्यु हो गई।

Facts about Lal Bahadur Shashtri

यह है लाल बहदूर शास्त्री से जुड़ी कुछ बातें -:

  • लाल बहादुर शास्त्री जी के पिता की मृत्यु तभी हो गई थी, जब वह केवल डेढ़ साल के थे।
  • उनके पिता की मृत्यु के बाद उनकी माता जी अपने तीन बच्चों के साथ अपने पिता यानि की शास्त्री जी के नाना जी के घर चले गए, शास्त्री जी का पालन पोषण फिर वहीं पर हुआ।
  • उन्होंने वाराणसी से हाई स्कूल की शिक्षा प्राप्त की, जहां पर वह नंगे पाँव कईं किलोमीटर दूर अपने स्कूल जाया करते थे।
  • यह गाँधी जी के विचारों से बहुत प्रेरित थे और कमाल के इत्तेफाक की बात है की इनका जन्मदिवस भी गाँधी जी के साथ ही आता है।
  • इनकी मौत को बहुत लोग रहस्यमयी मानते है, इनकी मौत के स्पष्टीकरण पर सवाल उठाते हुए The Tashkent Files नाम की एक मूवी भी बनी है।

List of Some Other Freedom Fighters in Hindi

हमारे देश को आजाद करवाने में इतने लोगों ने अहम योगदान दिया है की उन सब का नाम यहाँ बता पान बहुत मुश्किल है। 

फिर भी हम पूरी कोशिश कर रहे है की आपको अधिक से अधिक लोगों के बारे में बता सकें, तो यह रहीं कुछ ओर freedom fighters in Hindi की लिस्ट -:

Woman Indian Freedom Fighters in Hindi

यह रहीं कुछ महिला freedom fighters in Hindi, जिन्होंने हमारे देश को आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाई।

Essay on Freedom Fighters in Hindi

बहुत सारे लोगो ने हमें आज़ादी दिलाने के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिए, हम देश के लिए उनके किये बलिदानो के लिए सदा उनके आभारी रहेंगे। 

अधिकतर सेनानी तो ऐसे है जिन्होंने जिस आज़ादी के लिए अपने प्राण भी दे दिए, उन्हें वह आज़ादी देखने के लिए भी नहीं मिली।

उन्होंने हमारे लिए इतना सब कुछ किया है तो यह हमारी ज़िम्मेदारी बनती है की हम उनके आज इस दुनिया में ना होने के बावजूद हमेशा उनको याद रखें। 

हमें उन्हें हमारे दिलो में हमेशा के लिए ज़िंदा रखना है, तो ऐसे में सब यह चाहते है की आने वाली पढियाँ भी उन्हें हमेशा याद रखें। 

आने वाली भी पढियाँ भी यह समझे की जिस हवा में वह सांस ले रहे है, उस हवा में हमारे महान स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्ष और ज़ज़्बे की महक है।

ताकि आने वाली पढियाँ भी उन्हें याद रखें इसलिए स्कूलो, कॉलेजों में freedom fighters in hindi पर निबंध लिखवाये जाते है। 

हम भी इस ब्लॉग में एक निबंध हमारे स्वतंत्रता सेनानियों पर लिख रहे है ताकि आप उनके बलिदानो को और अच्छे से समझ सकें। 

Indian Freedom Fighters in Hindi

भारत बहुत सालों तक अंग्रेजो की क्रूरता को सहता रहा और उनके अधीन रहा, लेकिन 15 अगस्त 1947 को हमारे देश को आज़ादी मिली। 

लेकिन यह आज़ादी ऐसे ही नहीं मिली बहुत लोगो बलिदानो के बाद हमें यह आज़ादी मिली, वो लोग जो की देश की आज़ादी के लिए लड़े, वह थे हमारे freedom fighters यानि की स्वतंत्रता सेनानी।

बहुत सारे स्वतंत्रता सेनानियों के प्रयासों के बाद जा कर हमें यह आज़ादी मिली है, उन लोगों ने लगातार अंग्रेजी हकूमत के खिलाफ अपनी आवाज़ उठायी। 

जिसकी वजह से उनमें से कईं को जेल जाना पड़ा, कई लोगो की हत्या कर दी गयी और कईं लोगो को बुरी तरह से प्रताड़ित किया। 

लेकिन इसके बावजूद हमारे देश के स्वतंत्रता सेनानियों ने हार नहीं मानी, उन्होंने उनके सामने आयी हर चुनौती का सामना किया, अंग्रेजी हकूमत के खिलाफ होने के वजह से उनपर कईं तरह के ज़ुल्म भी किये गए। 

पकडे जाने पर उन लोगो के साथ जानवरो से भी बुरा सुलूक किया जाता था। लेकिन उन सब के मन में एक ही बात थी की उन्हें अपने देश को आज़ाद कराना है।

इसलिए उन्होंने उन पर हुए हर ज़ुल्म का सामना किया और देश के लिए लड़े, वह भी हमारे जैसे आम नागरिक ही थे, लेकिन उनमें एक ज़ज़्बा था की वह अपने देश के लिए कुछ करेंगे। 

उनमें से बहुत लोगो को लड़ना नहीं आता था, लेकिन वह लोग फिर भी जंग में उतरे, उनमें से कहीं शारीरक रूप से ताक़तवर नहीं थे, लेकिन उनके हौसले के आगे शक्तिशाली से शकितशाली व्यक्ति भी हार जाता था।

वह सब लोग एक जैसे नहीं थे, उनमें असमानताएं थी लेकिन एक चीज़ जो समान करती थी, वह थी उनका देश के लिए प्यार और देश को आज़ादी दिलाने का उनका ज़ज़्बा। 

वह अपने से ऊपर अपने देश को मानते थे, इसलिए असामनातये होने के बावजूद भी वह लोग एक साथ एक जुट होकर अंग्रेजो के खिलाफ लड़े और उन्होंने हमारे देश को आज़ादी दिलाई। 

हमें हमारे स्वतंत्रता सेनानियों से प्रेरणा लेनी चाहिए और समझना चाहिए की व्यक्ति का सम्प्रदायिकता नहीं समझना चाहिए, इन सब से ऊपर एक चीज़ होती है वह है देश। 

देश से ऊपर कोई धर्म नहीं होता और ना ही कोई जात होती है, इसलिए हम सब को एक जुट होकर रहना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए की कैसे हम अपने देश के हित में काम आ सकते है।

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Conclusion about Freedom Fighters in Hindi

तो यह था आज का ब्लॉग “Freedom fighters in Hindi” के बारे में। 

हमें उम्मीद है की आपको आज का यह ब्लॉग पसंद आया होगा, इसमें हमें आपको हमारे देश के स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में जानकारी दी। 

हमारे देश को आज़ादी के लिए बहुत अधिक लोगो ने अपने बलिदान दिए है, उनकी वजह से ही हम आज इस आज़ाद देश में जी रहे है। 

हमें उनके बलिदानों को हमेशा याद रखना चाहिए और हमेशा उन्हीं अपने दिलो में ज़िंदा रखना है। 

तो इसी के साथ आज के ब्लॉग में इतना ही, ऐसे ही ओर ब्लॉग्स को पढ़ने के लिए आप course mentor से जुड़ें रहें। 

FAQ about Freedom Fighters in Hindi

फ्रीडम फाइटर को हिंदी में क्या बोलते हैं.

फ्रीडम फाइटर को हिंदी में स्वतंत्रता सेनानी कहते  है, यानि की ऐसे लोग जिन्होने देश को आज़ादी दिलाने के लिए क्रांति की हो, उन लोगो को फ्रीडम फाइटर कहा जाता है। महात्मा गाँधी जी, भगत सिंह जी जैसे बहुत से लोग हमारे फ्रीडम फाइटर है।

भारत में प्रथम स्वतंत्रता सेनानी कौन है?

भारत का प्रथम स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडे जी को कहा जाता है, वह अंग्रेजी सेना में एक सिपाही थे। 1857 में जब अंग्रेजो के खिलाफ भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम हुआ था, उस संग्राम में इन्होने बहुत भूमिका निभाई थी। 

देश आजाद कराने में कौन कौन थे?

भारत को आज़ाद कराने में किसी एक व्यक्ति का हाथ नहीं था, बहुत सारे लोगो के निरंतर प्रयास के बाद भारत को आज़ादी मिली, लेकिन जिन्होंने इस लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी उनमें से कुछ लोग इस प्रकार है -: 1. मंगल पांडे 2. सरदार भगत सिंह 3. महात्मा गाँधी जी 4. सुभाषचंद्र बोस 5. चंद्रशेखर आज़ाद। 

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भारत के स्वतंत्रता सेनानियों पर निबंध- Essay on Freedom Fighters in Hindi

In this article, we are providing information about freedom fighters of india in hindi- Short Essay on Freedom Fighters in Hindi Language. भारत के स्वतंत्रता सेनानियों पर निबंध

भारत के स्वतंत्रता सेनानियों पर निबंध- Essay on Freedom Fighters in Hindi

किसी भी देश को स्वतंत्र कराने में स्वतंत्रता सैनानी बहुत ही अहम भूमिका निभाते हैं। ये वो व्यक्ति होते हैं जो अपना तन मन धन सबकुछ देश को आजाद कराने में लगा देते हैं। भारत में महात्मा गाँधी, भगत सिंह, महाराणा प्रताप, झाँसी की रानी जैसे बहुत से स्वतंत्रता सैनानी हुए हैं जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपने प्राणों को आहुती दे दी थी। देश को आजाद कराने के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग देने वाले सभी व्यक्ति स्वतंत्रता सैनानी कहलाते हैं। कुछ स्वतंत्रता सैनानी गर्म स्वभाव के थे और दोश से भरपूर थे और उन्होंने देश को स्वतंत्र कराने के लिए हिंसा का मार्ग चुना था वहीं दुसरी तरफ बहुत से स्वतंत्रता सैनानी शांत स्वभाव के थे और उन्होंने अहिंसा और सत्य को पथ पर चल कर देश को आजाद करवाया था।

स्वतंत्रता सैनानियों के कारण ही हमारा भारत आजाद है और हम एक आजाद भारत के नागरिक है। इनके विचारों से ही देश में क्रांति की लहर दौड़ी थी और हर व्यक्ति ने अप्रत्यक्ष रूप से स्वतंत्रता सैनानी की भूमिका निभाई थी। हम सबको इन महान लोगों का दिल से सम्मान करना चाहिए और देश के लिए दी गई इनकी कुर्बानी को कभी भी नहीं भूलना चाहिए। स्वतंत्रता सैनानियों ने बहुत सी यातनाओं और कठिनाईयों का सामना किया और उनके खुन के बदले हमें यह आजादी प्राप्त हुई है। कुछ स्वतंत्रता सैनानी प्रसिद्ध हो गए तो कुछ के नाम गुमनाम ही रह गए लेकिन वह सब हमें आजादी दिलवा गए जिस वजह से वह मर कर भी बमारे बीत में जिंदा है। उनका नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखा गया है।

स्वतंत्रता सैनानियों में देशभक्ति की भावना कूट कूट कर भरी हुई थी। उन्होंने हम सबको भाईचारे का पाठ पढ़ाया था और मिलकर हिंदुस्तान को आजाद करवाया था। हम सबको उन्हें सम्मानपूर्वक याद करना चाहिए और उनके दिखाए मार्ग पर चलना चाहिए।

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Essay on Bhagat Singh in Hindi- शहीद भगत सिंह पर निबंध

चन्द्रशेखर आजाद पर निबंध- Essay on Chandrashekhar Azad in Hindi

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स्वतंत्रता सेनानियों पर निबंध 10 lines (Essay On Freedom Fighters in Hindi) 100, 200, 250, 300, 500, शब्दों मे

essay on freedom fighter bhagat singh in hindi

Essay On Freedom Fighters in Hindi – किसी देश की स्वतंत्रता उसके नागरिकों पर निर्भर करती है। अपने देश और देशवासियों को आजाद कराने के लिए निःस्वार्थ अपने प्राणों की आहुति देने वाले व्यक्तियों की पहचान स्वतंत्रता सेनानियों के रूप में की जाती है। हर देश में कुछ बहादुर दिल होते हैं जो स्वेच्छा से अपने देशवासियों के लिए अपनी जान दे देते हैं। स्वतंत्रता सेनानियों ने न केवल अपने देश के लिए लड़ाई लड़ी, बल्कि हर किसी के लिए जो चुपचाप सहते रहे, अपने परिवार और स्वतंत्रता को खो दिया, और यहां तक ​​कि अपने लिए जीने का अधिकार भी खो दिया। देश के लोग स्वतंत्रता सेनानियों को उनकी देशभक्ति और मातृभूमि के प्रति उनके प्रेम के लिए सम्मान की दृष्टि से देखते हैं। ये लोग ऐसे उदाहरण प्रदान करते हैं जिनके द्वारा अन्य नागरिक जीने का लक्ष्य रखते हैं।

Essay On Freedom Fighters in Hindi – सामान्य लोगों के लिए अपने प्राणों की आहुति देना बहुत बड़ी बात है लेकिन स्वतंत्रता सेनानी निःस्वार्थ भाव से अपने देश के लिए यह अकल्पनीय बलिदान बिना किसी परिणाम की परवाह किए करते हैं। अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उन्हें जितने दर्द और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है। उनके संघर्षों के लिए पूरा देश उनका सदैव ऋणी रहेगा।

स्वतंत्रता सेनानियों पर 10 पंक्तियाँ (10 Lines On Freedom Fighters in Hindi)

  • स्वतंत्रता सेनानी वे थे जिन्होंने भारत की आजादी के लिए अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।
  • उनके बलिदानों के कारण आज हम एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक समाज में जी रहे हैं।
  • उनके पास भारत को एक स्वतंत्र देश के रूप में देखने और हमारे लोगों को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त करने की दृष्टि थी।
  • उन्होंने हमारे देश से अंग्रेजों को भगाने के लिए एकजुट होने का फैसला किया।
  • महात्मा गांधी , भगत सिंह , सुभाष चंद्र बोस, सरदार पटेल , आदि कुछ प्रमुख व्यक्ति हैं जिन्होंने भारत में लोगों के बीच स्वतंत्रता की आग को प्रज्वलित किया।
  • हमारे कुछ स्वतंत्रता सेनानियों की सुंदरता यह थी कि उन्होंने किसी भी हथियार का इस्तेमाल नहीं किया और विशुद्ध रूप से “अहिंसा” और असहयोग की विचारधारा पर लड़े।
  • आजादी का बीज 1857 के आसपास बोया गया था और हमें आजादी लगभग 90 साल बाद यानी 1947 में मिली।
  • आज हम जिस स्वतंत्रता का आनंद ले रहे हैं, वह उन लोगों का संघर्ष है, जिन्होंने एक स्वतंत्र देश की कल्पना की थी।
  • हमारे स्वतंत्रता सेनानियों को मनाना और उनका सम्मान करना आवश्यक है।
  • हमारे स्वतंत्रता सेनानी हमारे लिए प्रेरणा के स्रोत हैं क्योंकि वे देश के लिए प्यार और देश को ब्रिटिश शासन से मुक्त करने के लिए किए गए बलिदान का मूल्य सिखाते हैं।

स्वतंत्रता सेनानियों पर 100 शब्दों का निबंध (100 Words Essay On Freedom fighters in Hindi)

अपने महान योद्धाओं के नेतृत्व में बहादुर स्वतंत्रता संग्राम के परिणामस्वरूप 15 अगस्त, 1947 को भारत को स्वतंत्रता मिली। हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने कई संघर्षों, आंदोलनों, लड़ाइयों और उथल-पुथल से लड़ने में योगदान दिया।

बाल गंगाधर तिलक, डॉ राजेंद्र प्रसाद, डॉ लाल बहादुर शास्त्री, सरदार वल्लभ भाई पटेल और महात्मा गांधी जैसे उत्कृष्ट मुक्ति सेनानियों द्वारा महत्वपूर्ण योगदान दिया गया है।

स्वतंत्रता सेनानियों ने न केवल अपने देश की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ी, बल्कि उन सभी के लिए भी संघर्ष किया, जिन्होंने चुपचाप सहा और अपने परिवार, स्वतंत्रता, या यहां तक ​​कि स्वतंत्र रूप से जीने का अधिकार खो दिया। स्वतंत्रता सेनानियों के लिए देश के लोगों के मन में बहुत सम्मान है।

स्वतंत्रता सेनानियों पर 200 शब्दों का निबंध (200 Words Essay On Freedom fighters in Hindi)

Essay On Freedom Fighters in Hindi – भारत अपनी स्वतंत्रता का श्रेय अपने बहादुर स्वतंत्रता सेनानियों को देता है। यही कारण है कि हम स्वतंत्रता दिवस मनाने का सौभाग्य प्राप्त कर सकते हैं। वे क्रांतिकारी थे, और उनमें से कुछ ने अंग्रेजों का मुकाबला करने के लिए अहिंसा को एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया। स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए हमारे स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किए गए प्रयासों के कारण, भारत को अंततः 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्रता प्राप्त हुई।

मेरे पसंदीदा स्वतंत्रता सेनानी

महात्मा गांधी, जिन्हें लोकप्रिय रूप से “राष्ट्रपिता” के रूप में जाना जाता है, वे हैं जिन्हें मैं बहुत प्यार करता हूं और मेरे पसंदीदा स्वतंत्रता सेनानियों में से एक हैं। उन्होंने अहिंसा का मार्ग चुना और केवल सत्य और शांति का उपयोग करके मुक्ति प्राप्त की, किसी हथियार का नहीं।

एक और महान स्वतंत्रता सेनानी रानी लक्ष्मी बाई थीं, जो एक मजबूत महिला थीं, जिनके पास उदाहरण के तौर पर सिखाने के लिए बहुत कुछ था। इतनी चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, उन्होंने देश के लिए लड़ाई लड़ी। माँ ने अपने बच्चे के लिए अपने देश को कभी नहीं छोड़ा; बल्कि, वह उसे अन्याय के खिलाफ युद्ध की अग्रिम पंक्ति में ले गई।

एक शताब्दी की क्रांति, रक्तपात और युद्धों के बाद, हम अंग्रेजों से अपनी आजादी वापस लेने में सक्षम हुए। हम इन उत्कृष्ट नेताओं के कारण एक लोकतांत्रिक, स्वतंत्र देश में रहते हैं। कई स्वतंत्रता सेनानियों ने ब्रिटिश अन्याय, शोषण और क्रूरता से लोगों की रक्षा के लिए संघर्ष किया। यह देश और इसके लोगों के लिए उनका सरासर प्यार और समर्पण था कि उन्होंने भारत को अंग्रेजों से वापस ले लिया।

स्वतंत्रता सेनानियों पर 250 शब्दों का निबंध (250 Words Essay On Freedom fighters in Hindi)

स्वतंत्रता सेनानी वे लोग हैं जो अपने देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ते हैं। उन्हें ऐसे नायकों के रूप में देखा जाता है जो अपने देश की आजादी के लिए कोई भी बलिदान देने को तैयार थे। देश की आजादी के लिए कई स्वतंत्रता सेनानियों ने लड़ाई लड़ी। कुछ उल्लेखनीय नामों में महात्मा गांधी, भगत सिंह, रानी लक्ष्मी बाई, सुभाष चंद्र बोस आदि शामिल हैं।

स्वतंत्रता सेनानियों का योगदान

स्वतंत्रता सेनानी किसी देश के स्वतंत्रता संग्राम में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे ही लोगों के संघर्ष में नेतृत्व करते हैं और उन्हें साहस और दिशा प्रदान करते हैं। स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने देश की आजादी के लिए कई कुर्बानियां दी हैं। स्वतंत्रता के लिए अपने संघर्ष में उन्हें कारावास, यातना और कभी-कभी मृत्यु का भी सामना करना पड़ा। उन्होंने यह सुनिश्चित करने के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर दिया कि देश स्वतंत्र है।

स्वतंत्रता सेनानियों का महत्व

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भारत के स्वतंत्रता सेनानी एक प्रमुख प्रेरक शक्ति थे। भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों ने ब्रिटिश राज से स्वतंत्रता प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे राजनीतिक और अहिंसक तरीकों से लड़े, और उनके प्रयासों से अंततः भारत में ब्रिटिश शासन का अंत हुआ। भारतीय स्वतंत्रता सेनानी व्यक्तियों का एक विविध समूह थे जो शिक्षित पेशेवरों से लेकर आदिवासी नेताओं तक थे। उन सबका एक ही लक्ष्य था – भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त कराना।

स्वतंत्रता सेनानी बहादुर आत्माएं हैं जो अपने देश की आजादी के लिए लड़ती हैं। वे महान त्याग करते हैं और खतरे का सामना करने में अपार साहस दिखाते हैं। स्वतंत्रता सेनानियों की विरासत उनकी मृत्यु के बाद भी जीवित रहती है। देश के लोग उनकी बहादुरी और समर्पण के लिए उन्हें याद करते हैं और उनका सम्मान करते हैं।

स्वतंत्रता सेनानियों पर 300 शब्दों का निबंध (300 Words Essay On Freedom fighters in Hindi)

Essay On Freedom Fighters in Hindi – स्वतंत्रता सेनानी वे बहादुर और दुस्साहसी लोग थे जिन्होंने ब्रिटिश शासन से अपने देश को आजादी दिलाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था। उन्होंने अंतहीन बलिदान दिए ताकि हम अपने देश में आज़ादी से रह सकें और खुशहाल जीवन जी सकें। अंग्रेज भारतीयों पर शोषण के कई अन्यायपूर्ण कार्य करते थे, इसलिए ये स्वतंत्रता सेनानी वे लोग थे जो इन ब्रिटिश लोगों का विरोध करने और अपने देश की स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए उनसे लड़ने का साहस रखते थे। भारत को एक स्वतंत्र और स्वतंत्र देश बनाने के लिए उन्होंने बहुत दर्द और कष्ट सहा।

लोग हमेशा उन्हें उनकी देशभक्ति और अपने देश के लिए प्यार के लिए याद करते हैं। हम और हमारी आने वाली पीढ़ियां कभी भी उनके बलिदान और कड़ी मेहनत के लिए उन्हें पर्याप्त धन्यवाद नहीं दे सकतीं। स्वतंत्रता सेनानी वे लोग हैं जिनकी वजह से हम स्वतंत्रता दिवस मना पा रहे हैं।

अंग्रेजों की क्रूरता से लोगों को बचाने के लिए कई स्वतंत्रता सेनानी युद्ध के लिए गए। भले ही उनके पास लड़ने का कोई प्रशिक्षण नहीं था, फिर भी वे लोगों की रक्षा करने और अपने देश को अन्याय और शोषण से मुक्त करने के लिए लड़े। उनमें से कई की युद्ध के दौरान हत्या कर दी गई थी और इस प्रकार हम महसूस कर सकते हैं कि उन्होंने कितनी बहादुरी से हर परिस्थिति का सामना किया और हमें एक स्वतंत्र नागरिक बनाया।

कई स्वतंत्रता सेनानियों ने अन्य लोगों को अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया, उन्होंने कई स्वतंत्रता आंदोलनों का नेतृत्व किया और लोगों को उनके मौलिक अधिकारों और शक्ति के बारे में बताया। तो वे हमारी संप्रभुता और स्वतंत्रता के पीछे कारण हैं। स्वतंत्रता सेनानियों की एक अंतहीन सूची है जिनमें से कुछ ज्ञात हैं जबकि अन्य अज्ञात हैं जिन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए चुपचाप अपने प्राणों की आहुति दे दी।

महात्मा गांधी, भगत सिंह, उधम सिंह, राजगुरु, सुभाष चंद्र बोस, चंदर शेखर, सुखदेव कुछ प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी हैं जिन्होंने अपना पूरा जीवन अपने देश के लिए लड़ते हुए समर्पित कर दिया।

हालाँकि, हम सांप्रदायिक घृणा को दिन-ब-दिन बढ़ते हुए देख सकते हैं जो काफी शर्मनाक है क्योंकि लोग इन स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदानों को बेकार कर रहे हैं। इसलिए हमें एक-दूसरे के खिलाफ खड़े नहीं होना चाहिए और हमेशा शांति से रहने की कोशिश करनी चाहिए ताकि हम अपने राष्ट्र को सफल और समृद्ध बनाने में मदद कर सकें।

स्वतंत्रता सेनानियों पर 500 शब्दों का निबंध (500 Words Essay On Freedom fighters in Hindi)

स्वतंत्रता सेनानी वे लोग थे जिन्होंने अपने देश की आजादी के लिए निस्वार्थ रूप से अपने प्राणों की आहुति दे दी। हर देश में स्वतंत्रता सेनानियों की अपनी उचित हिस्सेदारी है। लोग उन्हें देशभक्ति और अपने देश के प्रति प्रेम के संदर्भ में देखते हैं। उन्हें देशभक्त लोगों का प्रतीक माना जाता है।

देश की तो बात ही छोड़िए, स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्रियजनों के लिए ऐसा बलिदान दिया जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। जितना दर्द, कठिनाई और विपरीत उन्होंने सहा है उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। उनके बाद की पीढ़ियां उनके निःस्वार्थ बलिदान और कड़ी मेहनत के लिए हमेशा उनकी ऋणी रहेंगी।

स्वतंत्रता सेनानियों के महत्व पर पर्याप्त जोर नहीं दिया जा सकता है। आखिर उन्हीं की वजह से हम स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं। कोई फर्क नहीं पड़ता कि उन्होंने कितनी छोटी भूमिका निभाई, वे आज भी बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे उस समय में थे। इसके अलावा, उन्होंने देश और इसके लोगों के लिए खड़े होने के लिए उपनिवेशवादियों के खिलाफ विद्रोह किया।

इसके अलावा, अधिकांश स्वतंत्रता सेनानी अपने लोगों की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए युद्ध में भी गए। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनके पास कोई प्रशिक्षण नहीं था; उन्होंने ऐसा अपने देश को स्वतंत्र बनाने के शुद्ध इरादे से किया। स्वतंत्रता संग्राम में अधिकांश स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों की आहुति दी।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि स्वतंत्रता सेनानियों ने अन्याय से लड़ने के लिए दूसरों को प्रेरित और प्रेरित किया। वे स्वतंत्रता आंदोलन के पीछे के स्तंभ हैं। उन्होंने लोगों को उनके अधिकारों और उनकी शक्ति के बारे में जागरूक किया। यह सब स्वतंत्रता सेनानियों की वजह से है कि हम किसी भी प्रकार के उपनिवेशवादियों या अन्याय से मुक्त एक स्वतंत्र देश में समृद्ध हुए।

भारत ने बहुत से स्वतंत्रता सेनानियों को अपनी मातृभूमि के लिए लड़ते देखा है। जबकि मैं उनमें से हर एक का समान रूप से सम्मान करता हूं, मेरे कुछ व्यक्तिगत पसंदीदा हैं जिन्होंने मुझे अपने देश के लिए काम करने के लिए प्रेरित किया। सबसे पहले, मैं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को पूरी तरह से प्रणाम करता हूं। मैं उन्हें पसंद करता हूं क्योंकि उन्होंने अहिंसा का मार्ग चुना और बिना किसी हथियार के, केवल सत्य और शांति के बिना आजादी हासिल की।

दूसरे, रानी लक्ष्मी बाई एक महान स्वतंत्रता सेनानी थीं। मैंने इस सशक्त महिला से बहुत कुछ सीखा है। इतनी कठिनाइयों के बावजूद वह देश के लिए लड़ीं। एक मां ने अपने बच्चे के लिए कभी देश नहीं छोड़ा, बल्कि अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए उसे जंग के मैदान में ले गई। इसके अलावा, वह कई मायनों में इतनी प्रेरणादायक थी।

इसके बाद मेरी लिस्ट में नेताजी सुभाष चंद्र बोस का नाम आता है। उन्होंने अंग्रेजों को भारत की शक्ति दिखाने के लिए भारतीय राष्ट्रीय सेना का नेतृत्व किया। उनकी प्रसिद्ध पंक्ति ‘तुम मुझे खून दो और मैं तुम्हें आजादी दूंगा।’

अंत में, पंडित जवाहरलाल नेहरू भी महानतम नेताओं में से एक थे। एक समृद्ध परिवार से होने के बावजूद, उन्होंने आसान जीवन छोड़ दिया और भारत की आजादी के लिए संघर्ष किया। उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा लेकिन वह उन्हें अन्याय के खिलाफ लड़ने से नहीं रोक पाए। वह कई लोगों के लिए एक महान प्रेरणा थे।

संक्षेप में, स्वतंत्रता सेनानियों ने ही हमारे देश को वह बनाया जो आज है। हालाँकि, हम आजकल देखते हैं कि लोग हर उस चीज़ के लिए लड़ रहे हैं जिसके खिलाफ वे खड़े थे। सांप्रदायिक घृणा को बीच में नहीं आने देने के लिए हमें एक साथ आना चाहिए और इन स्वतंत्रता सेनानियों के भारतीय सपने को पूरा करना चाहिए। तभी हम उनके बलिदान और स्मृति का सम्मान करेंगे।

स्वतंत्रता सेनानियों पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

Q.1 स्वतंत्रता सेनानी क्यों महत्वपूर्ण थे.

A.1 स्वतंत्रता सेनानियों ने हमारे देश को स्वतंत्र कराया। उन्होंने अपने जीवन का त्याग कर दिया ताकि हम उपनिवेशवाद से मुक्त उज्ज्वल भविष्य प्राप्त कर सकें।

Q.2 कुछ भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के नाम बताइए।

A.2 भारत के कुछ प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी महात्मा गांधी, रानी लक्ष्मी बाई, नेताजी सुभाष चंद्र बोस और जवाहरलाल नेहरू थे।

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Essay on Indian Freedom Fighters

Students are often asked to write an essay on Indian Freedom Fighters in their schools and colleges. And if you’re also looking for the same, we have created 100-word, 250-word, and 500-word essays on the topic.

Let’s take a look…

100 Words Essay on Indian Freedom Fighters

Introduction.

India’s freedom struggle was a heroic saga, marked by the courage of numerous freedom fighters. These brave hearts fought relentlessly against the British rule, inspiring many to join the cause.

Mahatma Gandhi

Mahatma Gandhi, the ‘Father of the Nation’, led the struggle with his philosophy of non-violence and truth. His leadership in the Dandi March and Quit India Movement was pivotal.

Subhash Chandra Bose

Subhash Chandra Bose, known as ‘Netaji’, believed in armed rebellion. He formed the Indian National Army and fought against the British forces.

Bhagat Singh

Bhagat Singh, a young revolutionary, inspired many with his bravery. His execution at a young age left a deep impact.

250 Words Essay on Indian Freedom Fighters

The Indian freedom struggle was a prolonged battle for liberation from British rule, marked by the relentless efforts of numerous freedom fighters. These courageous individuals were the backbone of India’s fight for independence, sacrificing their lives for a future they wouldn’t live to see.

Significant Figures

Mahatma Gandhi, the Father of the Nation, was instrumental in India’s struggle for independence. His philosophy of non-violence and Satyagraha (truth-force) became a beacon of hope for millions.

Subhash Chandra Bose, another prominent figure, chose a more assertive approach. He formed the Indian National Army, rallying Indians with his stirring call, “Give me blood, and I will give you freedom.”

Bhagat Singh, a young revolutionary, became a symbol of youth resistance. His acts of defiance, like the bombing of the Central Legislative Assembly, awakened the nation to the need for freedom.

Women in the Struggle

Women were not behind in the struggle. Rani Lakshmibai of Jhansi, Sarojini Naidu, and Kasturba Gandhi were among many who battled the British Raj. Their bravery and resilience laid the foundation for women’s empowerment in India.

The freedom fighters’ sacrifices culminated in India’s independence on August 15, 1947. Their indomitable spirit continues to inspire generations, reminding us of the price paid for our freedom. In a world grappling with various forms of oppression, their lives serve as a testament to the power of resistance and the human spirit’s resilience.

500 Words Essay on Indian Freedom Fighters

India’s struggle for independence is a saga of the valor of countless freedom fighters who sacrificed their lives to liberate the nation from colonial rule. Their relentless efforts, indomitable spirit, and profound patriotism laid the foundation for the country’s independence, shaping the future of the largest democracy in the world.

Mahatma Gandhi: The Torchbearer of Non-Violence

Mahatma Gandhi, often referred to as the ‘Father of the Nation,’ was instrumental in India’s struggle for freedom. His philosophy of non-violence (Ahimsa) and civil disobedience shook the roots of the mighty British Empire. His famous Dandi March, a non-violent protest against the salt tax, was a significant turning point in the freedom struggle, inspiring millions to join the cause.

Subhash Chandra Bose: The Proponent of Armed Revolution

Subhash Chandra Bose, fondly known as Netaji, was a staunch advocate of an armed revolution against the British. His call for “Purna Swaraj” or complete independence resonated with the masses. He formed the Azad Hind Fauj (Indian National Army) with the help of Japan during World War II. His leadership and indomitable spirit continue to inspire generations.

Bhagat Singh: The Symbol of Youth Power

Bhagat Singh, one of the youngest freedom fighters, symbolized the power of the youth. His revolutionary ideas and fearless actions, including the bombing of the Central Legislative Assembly, made him a significant figure in the freedom struggle. His execution by the British at a young age of 23 ignited a spark of revolution among Indians.

Rani Lakshmibai: The Warrior Queen

Rani Lakshmibai of Jhansi was a symbol of resistance to the British Raj during the Indian Rebellion of 1857. Known for her bravery and strategic acumen, she led her troops against the British, refusing to cede her kingdom. Her valiant fight is a testament to the pivotal role women played in India’s struggle for independence.

The Indian freedom struggle was a long and arduous journey marked by the sacrifices of countless freedom fighters. Their selfless dedication, courage, and unwavering spirit of patriotism paved the way for India’s independence. They not only fought for freedom but also laid the foundation for a democratic, secular, and inclusive India. Their stories continue to inspire and instill a sense of pride and patriotism in every Indian. As we enjoy the fruits of their struggle, it is our duty to uphold the values they fought for and contribute to the nation’s progress.

That’s it! I hope the essay helped you.

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